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30 अक्टूबर 2025

फसल सीजन 2024-25 के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 11 फीसदी घटा - सोपा

नई दिल्ली। फसल सीजन 2024-25 के अक्टूबर 24 से सितंबर 25 के दौरान देश से सोया डीओसी का निर्यात 11.07 फीसदी घटकर केवल 20.23 लाख टन का ही हुआ है, जबकि इसके पिछले फसल सीजन के दौरान इसका निर्यात 22.75 लाख टन का हुआ था।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के अक्टूबर से सितंबर के दौरान 89.56 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है, जबकि इसके पिछले साल का करीब 1.33 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। इस दौरान 20.23 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि 8 लाख टन की खपत फूड में एवं 62 लाख टन की फीड में हुई है। अत: पहली अक्टूबर 2025 को मिलों के पास 0.68 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 1.33 लाख टन से कम है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान देशभर की उत्पादक मंडियों में 103 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई है, जबकि सितंबर अंत तक 113.50 लाख टन की पेराई हुई है। इस दौरान 5 लाख टन सोयाबीन की खपत डारेक्ट हुई है जबकि 0.12 लाख टन का निर्यात हुआ है। अत: प्लांटों एवं व्यापारियों तथा किसानों के पास पहली अक्टूबर 2025 को 4.42 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि इससे पिछले साल की समान अवधि के 8.94 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 में देश में सोयाबीन का उत्पादन 125.82 लाख टन का हुआ था, जबकि 8.94 लाख टन का बकाया स्टॉक नई फसल की आवक के समय बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 134.76 लाख टन की बैठी है, जबकि फसल सीजन 2024-25 में करीब 0.02 लाख टन सोयाबीन का आयात हुआ है। फसल सीजन 2023-24 में 118.74 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल की आवक के समय 24.07 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 142.81 लाख टन की बैठी थी, जबकि 6.25 लाख टन का आयात हुआ था।

शुरुआती चरण में देशभर में रबी फसलों की कुल बुआई आगे, गेहूं की पीछे

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन के शुरुआती चरण में जहां देशभर में फसलों की बुवाई आगे चल रही है, वहीं रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुआई पिछड़ रही है।


कृषि मंत्रालय के अनुसार 24 अक्टूबर तक देशभर में रबी फसलों की कुल बुआई 27.46 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 26.92 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

गेहूं की बुआई 35 हजार हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल के 66 हजार हेक्टेयर की तुलना में पीछे चल रही है।

चालू रबी में दलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 4.50 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 4.38 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई चालू रबी सीजन में बढ़कर 3.19 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इस समय तक 2.89 लाख हेक्टेयर में ही इसकी बुआई हुई थी। अन्य रबी दलहन की बुआई अभी शुरुआती चरण में है।

चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई देशभर में बढ़कर 20 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 18.98 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में सरसों की बुआई बढ़कर 19.78 लाख हेक्टेयर में हो चुकी जबकि पिछले साल इस समय तक 18.98 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी।

चालू रबी सीजन में राज्य में धान की रोपाई घटकर 2.41 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 2.83 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

खरीफ फसलों का उत्पादन बढ़ने का अनुमान, रबी की बुआई शुरू - शिवराज सिंह

नई दिल्ली। खरीफ सीजन में जहां फसलों का उत्पादन अनुमान बढ़ने की संभावना है, वहीं रबी फसलों की बुआई शुरू हो चुकी है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान कृषि क्षेत्र में प्रगति की समीक्षा।


देश के कृषि क्षेत्र को इस बार अनुकूल मानसून, पर्याप्त वर्षा, जलाशयों में बेहतर जल संग्रहण के
चलते फायदा हुआ है। कृषि क्षेत्र की प्रगति की साप्ताहिक समीक्षा के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि प्रमुख जलाशयों में सामान्य या अधिक स्तर पर पानी संग्रहित है, जिससे सिंचाई संबंधी जरूरतें काफी हद तक पूरी हुई हैं व खरीफ की बुवाई समय पर पूरी हो सकी है। यह किसानों के लिए बड़ी राहत की बात रही, क्योंकि लगातार पर्याप्त नमी के कारण बुवाई में तेजी आई, पौधों की वृद्धि भी संतुलित रही हैं। पर्याप्त नमी से रबी बुवाई क्षेत्र में भी वृद्धि होगी।

उन्होंने बताया कि खरीफ-2025 के लिए धान की बुवाई का कुल आंकड़ा 441.58 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक है। वहीं, तिलहनी फसलों का अखिल भारतीय क्षेत्र 190.13 लाख हेक्टेयर तक दर्ज किया गया, जिसमें सोयाबीन एवं मूंगफली प्रमुख हैं। इसी तरह, दालों का क्षेत्र 120.41 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा है, जो पोषण सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धि है, वहीं गन्ने का क्षेत्र 59.07 लाख हेक्टेयर तक रहा हैं, जिससे गन्ना उत्पादक
किसान भाइयों-बहनों को सीधा फायदा होगा।

बैठक में मौजूद कृषि आयुक्त डा. पीके सिंह ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह को रिपोर्ट दी कि देशभर में सिंचाई परियोजनाओं एवं जलाशयों के लिए जल उपलब्धता में वृद्धि हुई हैं, जिससे सिंचाई आधारित कृषि क्षेत्रों में भी कृषि विकास संभव हुआ है। बैठक में बताया गया कि देश में पिछले वर्ष की तुलना में कुल जल संग्रहण की स्थिति बेहतर है, 161 जलाशयों में उपलब्ध संग्रहण 165.58 अरब घन मीटर (बीसीएम) है, जो गत वर्ष के मुकाबले 104.30 फीसदी और पिछले 10 वर्षों के औसत संग्रहण का 115.95 फीसदी है।

बैठक में यह जानकारी भी दी गई कि देश के कुछ क्षेत्रों में खरीफ की फसलों की कटाई शुरू हो गई है, अब तक कुल खरीफ क्षेत्र के लगभग 27 फीसदी भाग की कटाई हो चुकी है, साथ ही कुछ इलाकों में रबी फसलों की बुवाई भी प्रारंभ हो चुकी है, जो वर्तमान में प्रारंभिक चरण में है। देश में प्याज, आलू व टमाटर की फसलों की स्थिति भी औसतन अच्छी परिलक्षित हो रही है, वहीं चावल एवं गेहूं का वास्तविक स्टाक, बफर मानक की तुलना में ज्यादा है।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि समय पर और अनुकूल मानसून, पर्याप्त जलाशय संसाधन, बढ़िया योजना प्रबंधन एवं डिजिटल नवाचार के चलते देश के कृषि क्षेत्र में रिकॉर्ड उपलब्धियां दर्ज हो रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में, सरकार की किसान हितैषी नीतियों की वजह से ये उपलब्धियां किसानों के जीवन स्तर को ऊंचा उठा रही है, वहीं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए भी यह शुभ संकेत हैं। आगामी रबी मौसम में दलहनी और तिलहनी फसलों की ज्यादा बुवाई के लिए और रिकॉर्ड उत्पादकता प्राप्त करने के लिए केंद्र सरकार, प्रदेशों के साथ मिलकर हर संभव सहायता किसानों को उपलब्ध कराएगी। आज ही केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में 38 हजार करोड़ रुपये खाद सब्सिडी के लिए जारी करने का फैसला लिया है, इसके लिए शिवराज सिंह ने प्रधानमंत्री के प्रति सभी किसानों की ओर से आभार व्यक्त किया है।

केंद्र सरकार ने नवंबर के लिए 20 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने नवंबर 2025 के लिए 20 लाख टन चीनी का मासिक कोटा जारी किया है, जो पिछले साल इसी महीने जारी कोटे से 2 लाख टन कम है।

अक्टूबर 2025 में सरकार ने 24 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया था, जो कि नवंबर की तुलना में 4 लाख टन ज्यादा था।

व्यापारियों के अनुसार अधिकांश त्यौहार अक्टूबर में समाप्त हो गए हैं, और नवंबर एक सामान्य महीना प्रतीत होता है, जिस कारण चीनी की कोई बड़ी माँग की उम्मीद नहीं है।

अधिकांश चीनी उत्पादक राज्यों में गन्ने की पेराई का कार्य शुरू जल्द ही शुरू हो जायेगा, तथा कुछ मिलों ने पेराई आरंभ भी कर दी है। अत: जल्द ही नई चीनी का उत्पादन शुरू होने और चीनी की उपलब्धता में वृद्धि होने की उम्मीद है। सरकार स्थिति पर कड़ी नजर रख रही है इसलिए इसके भाव में बड़ी तेजी के आसार नहीं है। वैसे भी विश्व स्तर पर चीनी के दाम नीचे बने हुए हैं।

सीसीआई द्वारा कॉटन की बिक्री कीमतों में कटौती के बावजूद हाजिर बाजार में भाव तेज

नई दिल्ली। सीसीआई द्वारा कॉटन की कीमतों में कटौती के बावजूद हाजिर बाजार में सोमवार को सत्र में सत्र में इसके भाव तेज हुए। कई उत्पादक राज्यों में मौसम खराब होने से आवक प्रभावित होने का डर है, जिससे भाव में सुधार देखा गया।


कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने सोमवार को कॉटन की बिक्री कीमतों में 500–700 प्रति कैंडी की कटौती की। यह निर्णय मौजूदा बाजार परिस्थितियों और मिलों की सीमित खरीदारी को देखते हुए लिया गया। फसल सीजन 2024–25 के स्टॉक की बिक्री के भाव में निगम ने कटौती की, जोकि अकोला, औरंगाबाद, वारणगल, हब्ले, महबूबनगर और रायगढ़ जैसे प्रमुख केंद्रों पर आयोजित की गई।

हालांकि स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने से शाम के सत्र में गुजरात के साथ ही उत्तर भारत के राज्यों में सोमवार को कॉटन की कीमतों में सुधार आया।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव सोमवार को 150 रुपये बढ़कर 52,500 से 52,700 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई हाजिर डिलीवरी के भाव बढ़कर 5,180 से 5,260 रुपये प्रति मन बोले गए।हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव तेज होकर 5,100 से 5,120 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम बढ़कर 5,200 से 5,270 रुपये प्रति मन बोले गए। लोअर राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के दाम 48,200 से 49,200 रुपये कैंडी बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 46,000 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा कारोबार में कॉटन की कीमत में तेजी दर्ज की गई। एनसीडीईएक्स पर अप्रैल 26 महीने के वायदा अनुबंध में कपास के दाम 6 रुपये तेज होकर 1,562 रुपये प्रति 20 किलो हो गए। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन की कीमतों में तेजी का रुख रहा।

सीसीआई ने कॉटन की बिक्री कीमतों में 500–700 प्रति कैंडी, एक कैंडी 356 किलो की कटौती की।

केंद्र सरकार ने कॉटन के आयात पर शून्य शुल्क की समय सीमा को 30 सितंबर 2025 से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2025 किया हुआ है।

व्यापारियों के अनुसार गुजरात एवं उत्तर भारत के कॉटन के उत्पादक राज्यों में मौसम खराब हुआ है, जिस कारण कॉटन की कीमतों में सुधार आया है। आगामी दिनों में उत्पादक राज्यों में मौसम कैसा रहा है, इस पर कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी निर्भर करेगी।

विश्व बाजार में कॉटन के दाम नीचे होने के कारण आयातित कॉटन सस्ती है, तथा केंद्र सरकार ने दिसंबर तक शून्य शुल्क पर कॉटन के आयात की अनुमति दी हुई है। पिछले सीजन सितंबर के अंत में घरेलू बाजार में कॉटन का बकाया स्टॉक इसके पिछले साल की तुलना में ज्यादा बचा हुआ था। वैसे भी कपास की बुआई में कमी आने के बावजूद उद्योग का अनुमान है कि चालू सीजन उत्पादन बढ़ेगा।

कृषि मंत्रालय के अनुसार 3 अक्टूबर तक चालू खरीफ सीजन देशभर में कपास की बुआई कम होकर 110.03 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 112.97 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।

ब्राजील में मक्का से एथेनॉल के बढ़ते उत्पादन से विश्व स्तर पर चीनी के भाव पर दबाव

नई दिल्ली। ब्राजील में मक्का से एथेनॉल के उत्पादन में बढ़ोतरी से विश्व स्तर पर चीनी की कीमतों पर दबाव देखा जा रहा है। चालू सप्ताह के अंत में आईसीई व्हाइट शुगर की कीमत 4 साल के निचले स्तर पर और रॉ शुगर के दाम 4.5 साल के निचले स्तर के करीब पहुंच गई। विश्व स्तर पर बढ़ते उत्पादन आउटलुक और बकाया अनुमानों ने मार्केट सेंटीमेंट को कमजोर किया।


चालू सप्ताह के अंत में आईसीई व्हाइट शुगर 6.50 डॉलर यानी 1.5 फीसदी गिरकर 431.30 डॉलर प्रति टन पर बंद हुई, जो कि जुलाई 2021 के बाद का सबसे निचला स्तर है। इसी तरह से आईसीई रॉ शुगर के दाम भी 2.1 फीसदी गिरकर 14.97 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुई। सप्ताह भर में रॉ शुगर में करीब 3.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

ब्राजील में मक्का से एथेनॉल के बढ़ते उत्पादन ने गन्ना प्रसंस्करणकर्ताओं को जैव ईंधन बाजार से दूर कर दिया है, जिससे उन्हें अपनी फसल का एक बड़ा हिस्सा चीनी बनाने में लगाना पड़ रहा है। इस बदलाव ने चीनी की कीमतों को चार साल के निचले स्तर पर ला दिया है। यह बदलाव कभी शक्तिशाली रहे ब्राजीलियाई गन्ना उद्योग के सामने बढ़ती चुनौतियों को रेखांकित करता है। रायजेन और साओ मार्टिन्हो सहित मिलें आमतौर पर अधिक लाभ के आधार पर अधिक चीनी या इथेनॉल के उत्पादन के बीच बदलाव करती हैं। अब मक्का-आधारित जैव ईंधन से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का मतलब है कि उनमें से कई को चीनी के साथ ही बने रहना पड़ सकता है, भले ही कीमतें कम रहें।

आमतौर पर चीनी की कीमतों में गिरावट आने पर ब्राजील के मुख्य उत्पादक क्षेत्र में गन्ना मिलें अधिक एथेनॉल का उत्पादन शुरू कर देती है, लेकिन परामर्श फर्म डेटाग्रो के अनुसार वे अगले साल की फसल से रिकॉर्ड 4.3 करोड़ टन चीनी का उत्पादन करने के लिए तैयार हैं, जो पिछले साल की तुलना में 4.6 फीसदी अधिक है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मक्के से ईंधन बनाने वाली कंपनियों की बढ़ती संख्या ब्राजील में एथेनॉल की बाढ़ ला रही है, जिसकी लागत गन्ने से बनने वाले एथेनॉल से कम है।

स्टोनएक्स ग्रुप सर्विसेज इंक के अनुसार गन्ने से एथेनॉल का उत्पादन अभी भी प्रमुख है, लेकिन अप्रैल से शुरू होने वाले स्थानीय सीजन में दक्षिण अमेरिकी देश में उत्पादित गैसोलीन के विकल्प में मक्का-आधारित उत्पादन का हिस्सा 32 फीसदी होगा, जो वर्तमान सीजन में 23 फीसदी से ज्यादा है। स्टोनएक्स की विश्लेषक कैमिला लीमा ने कहा कि अगले सीजन में रिकॉर्ड एथेनॉल आपूर्ति की संभावना से कीमतों में गिरावट का खतरा है, जिससे गन्ना मिलों के लिए विशेष रूप से सबसे ज्यादा उत्पादन वाले राज्य साओ पाउलो में चीनी एक बेहतर विकल्प बन जाएगा।

ब्राजील के सबसे बड़े गन्ना प्रसंस्करणकर्ता रायजेन के शेयरों में इस साल 56 फीसदी की गिरावट आई है। छोटे प्रतिद्वंद्वियों जालेस मचाडो एसए और साओ मार्टिन्हो में क्रमशः 42 फीसदी और 37 फीसदी की गिरावट आई है। गन्ना प्रसंस्करणकर्ताओं ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी चीनी उत्पादन क्षमता का विस्तार किया है क्योंकि उन्हें मक्का से इथेनॉल से बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।

दिल्ली में चीनी की थोक कीमत कमजोर होकर शनिवार को 4,320 रुपये प्रति क्विंटल रह गई, जबकि 10 अक्टूबर को इसका दाम 4,370 रुपये प्रति क्विंटल था। इसी तरह से मुंबई में शनिवार को चीनी के दाम कमजोर होकर 4,120 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि 10 अक्टूबर को इसका भाव 4,180 रुपये प्रति क्विंटल था।

चालू साल के पहले 8 महीनों जनवरी से अगस्त के दौरान दलहन आयात 11.6 फीसदी घटा

नई दिल्ली। चालू साल 2025 के पहले 8 महीनों जनवरी से अगस्त के दौरान देश में 36,36,668 टन दलहन का आयात हुआ, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 42,08,880 टन की तुलना में 11.6 फीसदी कम है।


वाणिज्य एवं उद्वयोग मंत्रालय के अनुसार चालू साल के जनवरी से अगस्त के दौरान जहां चना के आयात में भारी बढ़ोतरी हुई है, वहीं इस दौरान पीली मटर के साथ ही अरहर के आयात में कमी आई है।

मंत्रालय के अनुसार चना का आयात चालू साल के पहले 8 महीनों जनवरी से अगस्त के दौरान 869 फीसदी बढ़कर 11,77,860 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका आयात केवल 1,21,487 टन का ही हुआ था।

हालांकि पीली मटर का आयात चालू साल के पहले 8 महीनों जनवरी से अगस्त के दौरान 68.36 फीसदी कम होकर कुल 6,75,218 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका आयात 21,34,266 टन का हुआ था।

इस दौरान मसूर का आयात 0.32 फीसदी बढ़कर 7,00,290 टन का हुआ, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका आयात 6,98,055 टन का हुआ था।

अरहर का आयात चालू साल के पहले 8 महीनों जनवरी से अगस्त के दौरान 14.59 फीसदी कम होकर कुल 4,33,557 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका आयात 5,07,608 टन का हुआ था।

उड़द का आयात चालू साल के पहले 8 महीनों जनवरी से अगस्त के दौरान 5.48 फीसदी बढ़कर 5,14,660 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका आयात 4,87,925 टन का ही हुआ था।

अन्य दलहन का आयात चालू साल के पहले 8 महीनों जनवरी से अगस्त के दौरान 47.95 फीसदी कम होकर कुल 1,35,079 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका आयात 2,59,537 टन का हुआ था।

सूत्रों के अनुसार बंदरगाह पर 13 अक्टूबर 2025 को 2,44,215 टन आयातित चना का स्टॉक था। इस दौरान पीली मटर का स्टॉक बंदरगाह पर 2,83,332 टन का एवं मसूर का 64,357 टन का स्टॉक था। मुंद्रा, कांडला और हजिरा बंदरगाह पर आयातित दलहन का कुल स्टॉक 5,91,808 टन का था।

चालू महीने में 15 एवं 16 अक्टूबर कनाडा से मुंद्रा और हजिरा बंदरगाह पर 3 जहाज आए हैं, जिनमें 1,57,507 टन पीली मटर थी, इसके अलावा इन जहाजों में 46,375 टन मसूर थी।

ऑस्ट्रेलिया के चना के दाम नवंबर एवं दिसंबर शिपमेंट के नवासेवा बंदरगाह पर 475 डॉलर प्रति टन एवं अक्टूबर एवं नवंबर के 490 डॉलर प्रति टन है।

जीएम सोया खली के आयात की अनुमति से उद्योग के साथ किसानों को होगा नुकसान - सोपा

नई दिल्ली। उद्योग ने केंद्र सरकार से आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सोया खली के आयात की अनुमति नहीं देने की मांग की है, क्योंकि देश में सोया खली की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में है। ऐसे में इसके आयात की अनुमति दी जाती है तो किसानों के साथ ही प्रसंस्करण इकाइयों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।


सूत्रों के अनुसार भारत और अमेरिका के बीच एक लंबे समय से लंबित व्यापार समझौता लगभग अंतिम चरण में है, जिसके तहत अमेरिका भारतीय आयात पर लगने वाले शुल्क को 50 फीसदी से घटाकर 15 से 16 फीसदी तक कर सकता है। अमेरिका से चल ही इस वार्ता में भारत अमेरिका से मक्का और सोया खली के आयात को बढ़ाने पर विचार कर सकता है।

सोयाबीन एसोसिएशन आफ इंडिया, सोपा ने वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल को एक ज्ञापन देकर सरकार से अनुरोध किया है कि वह आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सोया खली के आयात की अनुमति नहीं दे और जीएम सोया खली को द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) आयात अनुमतियों के अंतर्गत शामिल नहीं करे।

सोपा के अनुसार देश में घरेलू मांग को पूरा करने के लिए सोया खली का स्टॉक मांग से अधिक है। फसल सीजन 2025-26 (25 अक्टूबर से 26 सितंबर) के दौरान 77.90 लाख टन सोया खली के घरेलू उत्पादन का अनुमान है जबकि 1.08 लाख टन बकाया स्टॉक को मिलाकर कुल उपलब्धता 78.98 लाख टन की बैठेगी। इसकी घरेलू खपत फीड में 62 लाख टन और डायरेक्ट खपत फूड में 8 लाख टन तथा निर्यात भी 8 लाख टन को मिलाकर कुल खपत 78 लाख टन की होगी।  

यह सोपा का अनुमान है तथा सरकार का अनुमान उससे कहीं ज़्यादा होगा। इस समय जीएम सोया खली के आयात की अनुमति देने से भारत के कृषि क्षेत्र पर विनाशकारी परिणाम होंगे। विशेष रूप से देश के सोयाबीन किसानों को भारी नुकसान होगा, जो पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीचे दाम पर सोयाबीन बेचने को मजबूर हैं।

केंद्र सरकार ने अगर इसके आयात की अनुमति दी तो फिर घरेलू बाजार में सोयाबीन की कीमतों में और गिरावट आयेगी। इसका असर घरेलू सोयाबीन प्रसंस्करण उद्योग पर भी पड़ेगा, जिससे हजारों लोगों की आजीविका पर खतरा मंडराएगा।

विश्व बाजार में भारत ने उच्च-गुणवत्ता वाले गैर जीएमओ सोयाबीन के उत्पादों के आपूर्तिकर्ता के रूप में एक खास प्रतिष्ठा प्राप्त की है। अत: जीएम आयात की अनुमति देने से घरेलू बाजार से गैर जीएमओ सोया खली के निर्यात को भी नुकसान पहुंच सकता है।

चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले पांच महीनों में 2.27 लाख टन ग्वार गम का निर्यात

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले पांच महीनों अप्रैल से अगस्त के दौरान 2.27 लाख टन ग्वार गम उत्पादों का निर्यात का हुआ है। त्योहारी छुट्टियों के बाद उत्पादक मंडियों में ग्वार सीड की दैनिक आवकों में बढ़ोतरी होगी, हालांकि निर्यात मांग सीमित होने के कारण इसकी कीमतों में अभी बड़ी तेजी के आसार नहीं है।


कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष 2025-26 के अप्रैल से अगस्त के दौरान ग्वार गम उत्पादों का निर्यात 2,224.23 करोड़ रुपये का हुआ है।

वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान देश से 453,651 टन ग्वार का निर्यात हुआ था, जोकि मूल्य के हिसाब से 4,815.51 करोड़ रुपये का था।

जानकारों के अनुसार उत्पादक मंडियों में नए ग्वार सीड की दैनिक आवक 10 से 11 हजार बोरियों की हो रही है, तथा त्योहारी छुट्टियों के बाद इसकी दैनिक आवकों में बढ़ोतरी होने का अनुमान है। व्यापारी चालू सीजन में ग्वार सीड का उत्पादन अनुमान कम मान रहे हैं, इसके बावजूद भी इसके भाव में बड़ी तेजी के आसार नहीं है क्योंकि आवकों का दबाव बनने से कीमतों पर दबाव बना रह सकता है।

ग्वार गम की औसत कीमत लगभग 8,500 रुपये प्रति क्विंटल है, तथा इसका व्यापारी अभी 8,000 से 9,000 प्रति क्विंटल के दायरे में रहने का अनुमान है। हरियाणा की हिसार मंडी में मंगलवार को ग्वार सीड का भाव 4,000 से 4,600 रुपये प्रति क्विंटल रहा।

पहली से बीस अक्टूबर के दौरान मलेशिया से पाम तेल का निर्यात 3.4 फीसदी बढ़ा

नई दिल्ली। पहली से बीस अक्टूबर के दौरान मलेशिया से पाम तेल के निर्यात में 3.4 फीसदी बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 10,44,784 टन का हुआ है। मंलगवार को मलेशियाई पाम तेल वायदा में तेजी दर्ज की गई।


कार्गो सर्वेयर इंटरटेक टेस्टिंग सर्विसेज (आईटीएस) के आंकड़ों के अनुसार, 1–20 अक्टूबर के बीच मलेशियाई पाम तेल का निर्यात 3.4 फीसदी बढ़कर 10,44,784 टन का हुआ है, जबकि सितंबर की समान अवधि में इसका निर्यात 10,10,032 टन का हुआ था।

मंगलवार को मलेशियाई पाम तेल वायदा की कीमतें तेल होकर बंद हुई। डालियान के साथ शिकागो में सोया तेल मार्केट में मजबूती से कीमतों को सपोर्ट मिला है, हालांकि इस दौरान क्रूड तेल के दाम कमजोर होने के साथ ही भारत की पाम तेल की आयात मांग कमजोर होने के कारण निर्यात की ग्रोथ धीमी रही।

बुरसा मलेशिया डेरिवेटिव एक्सचेंज, (बीएमडी) पर जनवरी 2026 डिलीवरी वायदा अनुबंध में क्रूड पाम तेल (सीपीओ) वायदा 43 रिंगिट बढ़कर 4,556 रिंगिट प्रति टन पर बंद हुआ, जो 4,508 से 4,572 रिंगिट के दायरे में व्यापार कर रहा है। इसी तरह से दिसंबर 2025 वायदा अनुबंध में 44 रिंगिट की तेजी आकर दाम 4,520 रिंगिट प्रति टन और फरवरी 2026 वायदा अनुबंध में 39 रिंगिट की तेजी आकर भाव 4,566 रिंगिट प्रति टन हो गए।

आईटीएस के आंकड़ों के अनुसार पहली से बीस अक्टूबर के दौरान मलेशियाई पाम तेल का निर्यात तो सितंबर की समान अवधि की तुलना में बढ़ा है, लेकिन इस दौरान इसकी गति धीमी पड़ गई है, जिसकी वजह भारत की आयात मांग में कमी आना है। आईडीएस के मुताबिक मलेशिया को अक्टूबर के बाकी बचे 10 दिनों में लगभग 5.48 लाख टन का निर्यात करना होगा ताकि सितंबर के निर्यात के आंकड़ों की बराबरी हो सके। इस समय भारत की आयात मांग कमजोर बनी हुई है, जिस कारण यह आंकड़ा पार करना मुश्किल माना जा रहा है।

डालियान मार्केट में खाद्य तेलों में मजबूती देखने को मिली। डालियान कमोडिटी एक्सचेंज पर जनवरी के सोया तेल वायदा अनुबंध में 0.36 फीसदी और पाम तेल वायदा अनुबंध में 0.26 फीसदी की तेजी दर्ज की गई, जबकि शिकागो में दिसंबर का सोया तेल वायदा अनुबंध 0.03 सेंट बढ़कर 51.34 सेंट प्रति पाउंड हो गया।

हालांकि इस दौरान, क्रूड तेल मार्केट में गिरावट दर्ज की गई। डब्ल्यूअीआई दिसंबर का क्रूड तेल 0.13 डॉलर गिरकर 56.89 डॉलर प्रति बैरल और ब्रेंट दिसंबर क्रूड 0.18 डॉलर घटकर 60.83 डॉलर प्रति बैरल रह रहा, जिससे खाद्य तेलों की कीमतों को हल्का सपोर्ट मिला।

जानकारों का मानना है कि विश्व बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में मजबूत के साथ ही शुरुआती स्तर पर निर्यात मांग में हुई बढ़ोतरी से पाम तेल की कीमतों को हल्का सुधार मिल सकता है। हालांकि जिस तरह से भारत की आयात मांग में कमी आई है, उसे देखते हुए बड़ी तेजी के आसार नहीं है। वैसे भी घरेलू बाजार में खरीफ सीजन की तिलहनी फसलों की आवक आगामी दिनों में बढ़ेगी।

राजस्थान में शुरुआती चरण में रबी फसलों की बुआई बढ़ी

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में राजस्थान में फसलों की बुवाई शुरू हो गई है, तथा शुरुआती चरण में सरसों एवं चना के साथ ही गेहूं की बुआई आगे चल रही है।


राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार 16 अक्टूबर तक राज्य में रबी फसलों की बुआई 8.58 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में केवल 6.74 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। चालू रबी सीजन में राज्य में 120.15 लाख हेक्टेयर में फसलों की बुआई का लक्ष्य तय किया है। ऐसे में अभी तक तय लक्ष्य की केवल 7 फीसदी बुआई ही हुई है।

चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों की बुआई राज्य में बढ़कर 7.22 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 5.60 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। तिलहनी फसलों में सरसों की बुआई 7.16 लाख हेक्टेयर में, तारामीरा की 8,000 हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले रबी की समान अवधि में इनकी बुआई क्रमश: 5.57 लाख हेक्टेयर और 2,000 हेक्टेयर में ही हुई थी।

रबी दलहन की प्रमुख फसल चना की बुआई राज्य में चालू रबी सीजन में बढ़कर 1.05 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इस समय तक 95 हजार हेक्टेयर में ही इसकी बुआई हुई थी। अन्य रबी दलहन की बुआई अभी शुरू ही हुई है।

चालू रबी सीजन में राज्य में गेहूं की बुआई बढ़कर 1,893 हेक्टेयर में और जौ की बुआई शुरू ही हुई है।

18 अक्टूबर 2025

सितंबरी में डीओसी के निर्यात में 40 फीसदी की बढ़ोतरी - एसईए

नई दिल्ली। देश से सितंबरी में डीओसी के निर्यात में 40 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 299,252 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल सितंबर में इसका निर्यात 213,744 टन का ही हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली छमाही अप्रैल से सितंबर के दौरान डीओसी के निर्यात में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 2,093,067 टन का हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात  2,082,533 टन का हुआ था।

केंद्र सरकार ने अधिसूचना संख्या 37/2025-26 के तहत दिनांक 3 अक्टूबर, 2025 से तेल रहित चावल की भूसी के निर्यात पर लगी रोक को हटा लिया है। इस कदम से निर्यात के अवसर खुलने से चावल मिलिंग उद्योग को लाभ होने की उम्मीद है, साथ ही किसानों और प्रसंस्करणकर्ताओं को चावल की भूसी के उप-उत्पादों की बेहतर कीमत मिलने में मदद मिलेगी। इससे चावल की भूसी के प्रसंस्करण और चावल की भूसी के तेल के उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा। सरकार के इस कदम से उद्योग के साथ ही किसानों को लाभ होगा। अब डीओआरबी के निर्यात की अनुमति मिलने से भारत के कृषि-प्रसंस्करण निर्यात को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक बाजारों में एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में देश की प्रतिष्ठा मजबूत होगी।

देश में पिछले दो वर्षों से मूंगफली के उत्पादन में वृद्धि के कारण मूंगफली डीओसी के निर्यात में वृद्धि हुई है और पिछले वर्ष की इसी अवधि के 5,090 टन की तुलना में इस वर्ष 15,967 टन मूंगफली डीओसी का उत्पादन हुआ है। एसईए के खरीफ मूंगफली फसल सर्वेक्षण के अनुसार, गुजरात में मूंगफली की खेती का क्षेत्रफल पिछले वर्ष के 19.09 लाख हेक्टेयर से लगभग 3.0 लाख हेक्टेयर बढ़कर 22.02 लाख हेक्टेयर हो गया है और मूंगफली का उत्पादन 46.07 लाख टन होने का अनुमान है। देशभर में मूंगफली की बुवाई का कुल क्षेत्रफल पिछले वर्ष के 49.96 लाख हेक्टेयर से 1.60 लाख हेक्टेयर कम होकर 48.36 लाख हेक्टेयर का रह गया।

सोया डीओसी की कीमतों पर दबाव के कारण पहले छह महीनों (अप्रैल-सितंबर 2025) में सोया डीओसी का निर्यात पिछले वर्ष की इसी अवधि के 9.08 लाख टन से घटकर 8.39 लाख टन रह गया। भारतीय सोयाबीन खली की विश्व बाजार में मांग कमजोर है और दक्षिण एवं उत्तरी अमेरिकी उत्पादकों से बाजार हिस्सेदारी के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। घरेलू स्तर पर भी, चारा बाजार में डीडीजीएस की बढ़ती आपूर्ति के कारण सोया डीओसी की मांग कम हो रही है।

भारतीय बंदरगाह पर सितंबर में सोया डीओसी का भाव कमजोर होकर 398 डॉलर प्रति टन रह गए, जबकि अगस्त में इसका दाम 404 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य सितंबर में भारतीय बंदरगाह पर बढ़कर 198 डॉलर प्रति टन का हो गया, जबकि अगस्त में इसका भाव 195 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम अगस्त के 93 डॉलर प्रति टन से तेज होकर सितंबर में 101 डॉलर प्रति टन का हो गया।

चालू तेल वर्ष के पहले 11 महीनों में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 3 फीसदी कम - एसईए

नई दिल्ली। चालू तेल वर्ष के पहले 11 महीनों नवंबर-24 से सितंबर-25 के दौरान देश में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 3 फीसदी कम होकर 14,330,723 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 14,775,000 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष 2024-25 के सितंबर 2025 में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 51 फीसदी बढ़कर 1,639,743 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल सितंबर में इनका आयात 1,087,489 टन का हुआ था। इस दौरान खाद्य तेलों का आयात 1,604,643 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 35,100 टन का हुआ है।

इसके अलावा नेपाल से साफ्टा समझौते के तहत देश में मुख्य रूप से रिफाइंड सोया तेल और सूरजमुखी तेल तथा थोड़ी मात्रा में आरबीडी पामोलिन और रेपसीड तेल का आयात शून्य शुल्क पर हुआ है। नवंबर 2024 से अगस्त 2025 (10 महीने) के दौरान नेपाल से कुल आयात 6.46 लाख टन का हुआ।

अत: नवंबर 2024 से सितंबर 2025 के दौरान देश में कुल खाद्य तेलों का आयात 139.8 लाख टन + नेपाल से 6.46 लाख टन को मिलाकर कुल 146.26 लाख टन का हुआ है।

एसईए के अनुसार सीपीओ और आरबीडी पामोलिन के बीच आयात शुल्क अंतर को 31 मई, 2025 से 8.25 फीसदी से बढ़ाकर 19.25 फीसदी करने के बाद, रिफाइंड तेल का आयात धीरे-धीरे कम हो गया और वास्तव में सितंबर '25 में शून्य आयात (अप्रैल 21 के बाद) की सूचना मिली है जबकि सितंबर 24 में 84,279 टन का आयात हुआ था। शुल्क अंतर बढ़ाने का सरकार का फैसला एक साहसिक और समय पर लिया गया कदम है। इसने रिफाइंड पामोलिन के आयात को हतोत्साहित करना शुरू कर दिया और मांग को वापस क्रूड तेल की ओर मोड़ दिया है, जिससे घरेलू रिफाइनिंग क्षेत्र को पुनर्जीवित किया गया। यह कदम प्रधानमंत्री के "मेक इन इंडिया" के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जो घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के साथ ही रोजगार के अवसर पैदा करता है।

चालू खरीफ सीजन में देश देश में मानसूनी बारिश सामान्य से अधिक हुई है। 3 अक्टूबर 2025 तक कुल खरीफ तिलहन की फसलों का रकबा 190.13 लाख हेक्टेयर था, जो पिछले वर्ष के 200.75 लाख हेक्टेयर की तुलना में 10.62 लाख हेक्टेयर कम है। चालू खरीफ में मूंगफली की बुआई 48.36 लाख हेक्टेयर में (पिछले वर्ष 49.96 लाख हेक्टेयर की तुलना में), सोयाबीन की 120.45 लाख हेक्टेयर में (129.55 लाख हेक्टेयर की तुलना में) और कपास की 110.03 लाख हेक्टेयर में (112.97 लाख हेक्टेयर की तुलना में) कम है। सोयाबीन और कपास के रकबे में कमी मुख्यतः मक्का की ओर किसानों का रुख रहा, जो पिछले साल के 84.30 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 94.95 लाख हेक्टेयर हो गया। इस बीच सोपा ने 2025 तक सोयाबीन खरीफ का उत्पादन 105 लाख टन होने का अनुमान लगाया है, जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 125.81 लाख टन हुआ था। इसके अलावा, एसईए ने गुजरात में मूंगफली फसल सर्वेक्षण के अनुसार, खरीफ सीजन 2025-26 में मूंगफली का उत्पादन 46.07 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल 2024-25 के 42.19 लाख टन से ज्यादा है।

नवंबर 2024 से सितंबर 2025 के दौरान 995,711 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलीन) का आयात किया गया, जबकि नवंबर 2023 से सितंबर 2024 के दौरान 1,695,080 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलीन) का आयात किया गया था। नवंबर 2023 से सितंबर 2024 के दौरान 12,840,875 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलीन) के आयात की तुलना में इस दौरान 12,987,089 टन क्रूड तेल का आयात किया गया। आरबीडी पामोलीन के कम आयात के कारण रिफाइंड तेल का अनुपात 12 फीसदी से घटकर 7 फीसदी रह गया, जबकि सोया तेल के आयात में वृद्धि के कारण क्रूड तेल का अनुपात 88 फीसदी से बढ़कर 93 फीसदी हो गया।

अगस्त के मुकाबले सितंबर में आरबीडी पामोलीन और क्रूड पाम तेल के दाम भारतीय बंदरगाह पर तेज हुए हैं। सितंबर में आरबीडी पामोलिन का भाव भारतीय बंदरगाह पर बढ़कर 1,119 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि अगस्त में इसका भाव 1,105 डॉलर प्रति था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर सितंबर में बढ़कर 1,164 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि अगस्त में इसका भाव 1,151 डॉलर प्रति टन था। हालांकि क्रूड सोया तेल का भाव अगस्त में भारतीय बंदरगाह पर 1,195 डॉलर प्रति टन था, जोकि सितंबर में घटकर 1,182 डॉलर प्रति टन रह गया।

गुजरात में कपास की बुआई 11.59 फीसदी घटी, मूंगफली के साथ ही अरहर की बढ़ी

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में गुजरात में कपास की बुआई में 11.59 फीसदी की कमी आई है, लेकिन खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल मूंगफली की बुआई 15.40 फीसदी बढ़ी है। इस दौरान अरहर की बुआई पिछले साल की तुलना में 27 फीसदी से ज्यादा क्षेत्रफल में हुई है।


राज्य की कृषि निदेशालय के अनुसार 13 अक्टूबर तक राज्य में मूंगफली की बुआई बढ़कर 2,202,337 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई केवल 1,908,388 हेक्टेयर में ही हुई थी। इसी तरह से कैस्टर सीड की बुआई बढ़कर 683,080 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 646,334 हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। सोयाबीन की बुआई राज्य में 277,702 हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 300,773 हेक्टेयर की तुलना में कम है। राज्य में तिलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 3,204,689 हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इनकी बुआई केवल 2,905,716 हेक्टेयर में ही हुई थी।

कपास की बुआई राज्य में 2,096,513 हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 2,371,474 हेक्टेयर की तुलना में 11.59 फीसदी कम है।

खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 310,247 हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई केवल 244,250 हेक्टेयर में ही हुई थी। अन्य दालों में उड़द की बुआई 83,743 हेक्टेयर में तथा मूंग की बुआई 48,914 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 83,859 हेक्टेयर एवं 55,222 हेक्टेयर में हो चुकी थी। दलहनी फसलों की कुल बुआई चालू खरीफ में राज्य में 465,169 हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल के 406,711 हेक्टेयर की तुलना में ज्यादा है।

मोटे अनाजों की बुवाई चालू खरीफ में 1,381,492 हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 1,374,062 हेक्टेयर में ही हुई थी। धान की रोपाई 905,382 हेक्टेयर में, बाजरा की 172,588 हेक्टेयर में, मक्का की 280,978 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 886,779 हेक्टेयर में, 168,315 हेक्टेयर में तथा 286,060 हेक्टेयर में हुई थी।

ग्वार सीड की बुआई 75,180 हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 85,221 हेक्टेयर की तुलना में कम है।

14 अक्टूबर 2025

चालू खरीफ सीजन में गुजरात में 46.07 लाख टन मूंगफली के उत्पादन का अनुमान - एसईए

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन 2025-26 के दौरान गुजरात में मूंगफली का आरंभिक उत्पादन अनुमान 46.07 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि इससे पिछले साल कुल उत्पादन 46 लाख टन के लगभग बराबर ही है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के एक प्रतिनिधिमंडल ने 9 से 11 अक्टूबर 2025 के दौरान गुजरात के गोंडल, अमरेली, जूनागढ़, केशोद, मांगरोल, पोरबंदर और अडवाना सहित सौराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर किसानों, तेल मिल मालिकों, एस ई इकाइयों, एचपीएस निर्माताओं, व्यापारियों, कमीशन एजेंटों, दलालों आदि के साथ बैठक आयोजित की। बैठकों में फसल की संभावनाओं और फसल से उनकी अपेक्षाओं तथा अन्य विवरणों पर चर्चा की गई।

पिछले फसल सीजन में गुजरात में मूंगफली के उत्पादन का आरंभिक अनुमान 42.2 लाख टन आंका गया था। हालांकि, उपलब्धता के आंकड़ों और प्रसंस्करण के आंकड़ों को संशोधित करने के बाद, यह संख्या 46 लाख टन हो गई थी, जो कि आरंभ अनुमान से 10 फीसदी अधिक है। इस प्रकार, 2024-25 के लिए अंतिम उत्पादन आंकड़ा 46 लाख टन है।

चालू खरीफ सीजन 2025-26 में राज्य में मूंगफली की खेती का क्षेत्रफल लगभग 3 लाख हेक्टेयर बढ़ा है, लेकिन कुल उत्पादकता में गिरावट आने का अनुमान है। उत्पादकता पिछले वर्ष के 2,210 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से घटकर 2,092 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहने की आशंका है। यह गिरावट मुख्यतः मध्य जुलाई से मध्य अगस्त तक सूखे के कारण हुई है, जिसके बाद अत्यधिक वर्षा हुई जिससे पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

एसईए के अनुसार चालू खरीफ सीजन में बढ़े हुए रकबे के बावजूद मूंगफली का उत्पादन पिछले सीजन के समान लगभग 46 लाख टन ही होने का अनुमान। क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है, लेकिन इस बार उत्पादकता में कमी कमी आने की आशंका है।

केंद्र सरकार ने चालू खरीफ विपणन सीजन के लिए मूंगफली का न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 7,263 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है, जबकि अच्छी गुणवत्ता (एफएक्यू) और बोल्ड किस्म की मूंगफली का वर्तमान मंडी मूल्य 3,600 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल है। ऐसे में किसानों को उम्मीद है कि चालू खरीफ में मंडियों में कीमतों को समर्थन देने के लिए नेफेड द्वारा अधिक मात्रा में खरीद की जाएगी।

चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में बासमती चावल का निर्यात 19 फीसदी बढ़ा

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले पांच महीनों अप्रैल से अगस्त के दौरान बासमती चावल का निर्यात 18.91 फीसदी बढ़कर 27.37 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 23 लाख टन का हुआ था।


कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार मूल्य के हिसाब से चालू वित्त वर्ष 2025-26 के अप्रैल से अगस्त के दौरान बासमती चावल का निर्यात 20,479.89 करोड़ रुपये का हुआ है।

गैर बासमती चावल का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में 5,616,904 टन का हुआ है, जोकि मूल्य के हिसाब से 20,034.62 करोड़ रुपये का है।

पंजाब और हरियाणा में पिछले दिनों हुई भारी बारिश एवं बाढ़ से बासमती एवं गैर बासमती धान की फसल को नुकसान हुआ है। इसके बावजूद भी जानकारों का मानना है कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 के दौरान देश से चावल का निर्यात बढ़ने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2024-25 में देश से बासमती चावल का निर्यात 60.65 लाख टन और गैर बासमती चावल का निर्यात 141.28 लाख टन का हुआ था।

चालू खरीफ सीजन में देश के बासमती चावल के कुल उत्पादन में हल्की कमी आने का अनुमान है। पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख बासमती उत्पादक राज्यों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान भारी बारिश एवं बाढ़ जैसे हालात बनने से कुल उत्पादन प्रभावित होने की संभावना है। हालांकि अन्य राज्यों राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में उत्पादन बढ़ने की संभावना है। पंजाब में बासमती धान की फसल को 5 से 7 फीसदी और हरियाणा में 2 से 3 फीसदी फसल को नुकसान हुआ है।

पंजाब एवं हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश और राजस्थान के साथ ही मध्य प्रदेश की मंडियों में पूसा 1,509 किस्म के धान के साथ ही परमल आदि किस्मों की आवकों का दबाव बना हुआ है। इन राज्यों में मौसम साफ है इसलिए आगामी दिनों 1,718 के साथ 1,121 एवं 1,409 किस्म के धान की आवक बढ़ेगी। बासमती धान की आवक मध्य नवंबर के बाद बनने की उम्मीद है।

पिछले सप्ताह उत्पादक मंडियों में बासमती धान के साथ ही चावल की कीमतों में मंदा आया था, हालांकि नीचे दाम पर बिकवाली कम होने से इनकी कीमतों में हल्का सुधार आया है। पूसा 1,121 स्टीम बासमती चावल के भाव 8,300 से 8,500 रुपये और इसके सेला चावल के दाम 7,300 से 7,500 रुपये प्रति क्विंटल रहे। 1,121 किस्म के गोल्डन सेला चावल के दाम 8,000 से 8,200 रुपये प्रति क्विंटल रहे। पूसा 1,509 किस्म के स्टीम चावल के भाव 6,500 से 6,700 रुपये और इसके सेला चावल के 6,200 से 6,400 रुपये प्रति क्विंटल रहे।

हरियाणा की करनाल मंडी में पूसा 1,509 किस्म के धान के दाम शनिवार को 2,900 से 3,050 रुपये और बरवाला मंडी में 3,075 रुपये तथा 1,847 किस्म के दाम 2,600 से 2,800 रुपये प्रति क्विंटल रहे। पंजाब की कोटकपूरा मंडी में 1,509 किस्म के धान के दाम 3,275 रुपये और 1,718 किस्म के 3,160 रुपये तथा राजस्थान की बूंदी मंडी में 1,509 किस्म के धान के दाम 2,550 से 2,931 रुपये तथा सुगंधा के 2,300 से 2,531 रुपये और 1,847 किस्म के 2,350 से 2,600 रुपये प्रति क्विंटल रहे।

11 अक्टूबर 2025

गुजरात में मूंगफली एवं कैस्टर सीड का उत्पादन अनुमान ज्यादा, कपास का कम - कृषि निदेशालय

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन 2025-26 के दौरान गुजरात में मूंगफली के साथ ही कैस्टर सीड का उत्पादन बढ़ने का अनुमान है, जबकि इस दौरान कपास के उत्पादन में कमी आने की आशंका है।

राज्य के कृषि निदेशालय द्वारा जारी पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार राज्य में मूंगफली का उत्पादन बढ़कर 66.1 लाख टन होने की उम्मीद है, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 14 फीसदी अधिक है। इसी तरह से अरंडी का उत्पादन बढ़कर 14.35 लाख टन होने का अनुमान है, जो कि पिछले साल की तुलना में 10 फीसदी अधिक है।

राज्य में कपास का उत्पादन 73.32 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) होने का अनुमान है, जो कि पिछले खरीफ सीजन के 88.31 लाख गांठ से कम है। इसका मुख्य कारण सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात में पैदावार में आई कमी है।

राज्य में चालू खरीफ सीजन में दालों का उत्पादन 4.85 लाख टन होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष के 3.77 लाख टन से अधिक है। इनमें से, अरहर का उत्पादन पिछले सीजन की तुलना में 27 फीसदी बढ़कर 3.6 लाख टन होने का अनुमान है। बुआई रकबे में हुई बढ़ोतरी के कारण इसका उत्पादन अनुमान ज्यादा है। अनुकूल मौसम और समय पर बुवाई ने प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में दालों के उत्पादन में बढ़ोतरी में योगदान दिया है।

राज्य में सोयाबीन का उत्पादन 5.52 लाख टन से घटकर 4.71 लाख टन रह गया है, जो सौराष्ट्र और मध्य गुजरात के कुछ हिस्सों में कम बुवाई क्षेत्र और कम उत्पादकता को दर्शाता है।

चावल का उत्पादन 22.25 लाख टन पर लगभग अपरिवर्तित रहा, जबकि पैदावार में कमी आने के कारण मक्का का उत्पादन 5.82 लाख टन से घटकर 5.34 लाख टन रह गया। बाजरा का उत्पादन 3.03 लाख टन होने का अनुमान है। बाजरा और ज्वार के रकबे और उत्पादन दोनों में मामूली वृद्धि की उम्मीद है।

आरंभिक अनुमान के अनुसार राज्य में ग्वार सीड का उत्पादन लगभग 60,950 टन होने का अनुमान है।


बेमौसम बारिश से कपास की पिकिंग में देरी से उत्तरी महाराष्ट्र में जिनर्स मुश्किल में

नई दिल्ली। उत्तरी महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में हाल ही में हुई भारी बारिश एवं जलभराव से कपास की नई फसल की पिकिंग में देरी से क्षेत्र की जिनिंग मिलों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। अधिकांश जिनर्स ने अगले पंद्रह से 20 दिनों के लिए संचालन बंद कर दिया है।


जानकारों के अनुसार महाराष्ट्र में आमतौर पर अक्टूबर के पहले सप्ताह में नई कपास की पहली पिकिंग आरंभ हो जाती है, तथा जिनिंग मिलें पहले से दूसरे सप्ताह तक ओटाई का कार्य शुरू कर देती है। इस बार उत्तरी महाराष्ट्र में हाल ही में हुई भारी बारिश से जहां नई फसल की आवकों में देरी की आशंका है, वहीं नई फसल की क्वालिटी के साथ ही जलभराव वाले क्षेत्रों में उत्पादकता में भी कमी आने की आने की आशंका है।

इस समय महाराष्ट्र में कपास की आवक करीब 5,000 गांठ, एक गांठ 170 किलो की हो रही है, तथा हाल ही में मौसम साफ हुआ है। ऐसे में व्यापारियों को उम्मीद है कि दीपावली के बाद ही नई कपास की आवकों में बढ़ोतरी होगी। अत: जिनिंग मिलें दीपावली के बाद ही ओटाई का कार्य आरंभ कर पायेंगी। क्षेत्र में स्थित करीब 150 जिनिंग मिलें अक्टूबर मध्य के बाद या फिर फिर नवंबर के पहले सप्ताह में 100 फीसदी चल पायेंगी।

खानदेश जिनिंग एंड प्रेसिंग फैक्ट्री ओनर्स एसोसिएशन (केजीपीएफओए) के एक बयान के अनुसार इस साल जिनिंग मिलों द्वारा कच्चे कपास का प्रसंस्करण करके 10 लाख गांठ उत्पादन की उम्मीद है, जबकि पिछले सीजन में यह 13 लाख गांठ थी। आमतौर पर, जिनिंग मिलें पहली अक्टूबर से अपना कार्य आरंभ कर देती हैं, लेकिन उत्तरी महाराष्ट्र की अधिकांश जिनिंग मिल 25-40 फीसदी से ज्यादा नमी वाले कपास की कम आवक के कारण अभी तक काम शुरू नहीं कर पाए हैं।

हाल ही में हुई भारी बारिश के कारण पहली पिकिंग में देरी हुई है, जबकि ओटाई के लिए कच्चे कपास में नमी का स्तर 8 फीसदी से कम होना चाहिए। माना जा रहा है कि मौसम अनुकूल रहा तो दिवाली के बाद नई कपास की आवक शुरू हो जायेगी। इस समय नमी युक्त कपास के दाम 6,000 से 6,310 प्रति क्विंटल है, जोकि समर्थन मूल्य से काफी नीचे हैं।

केंद्र सरकार ने फसल सीजन 2025-26 के लिए कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मध्यम रेशे वाली कपास का 7,710 रुपये और लंबे रेशे वाली कपास का 8,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में ज्यादा है।

सूत्रों के अनुसार पिछले खरीफ सीजन में उत्तरी महाराष्ट्र के चार जिलों जलगांव, धुले और नंदुरबार के साथ ही नासिक में कपास की बुआई 8.86 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जो कि चालू खरीफ सीजन में घटकर 7.54 लाख हेक्टेयर रह गई।

तेल विपणन कंपनियों को इथेनॉल की आपूर्ति के लिए मांग से अधिक प्रस्ताव मिले

नई दिल्ली। तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) के इथेनॉल की आपूर्ति वर्ष 2025-26 के लिए चक्र एक के दौरान लगभग 1,050 करोड़ लीटर एथेनॉल की आपूर्ति के लिए बोलियां आमंत्रित की थी। देश भर के निर्माताओं द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों की संख्या 1,050 करोड़ लीटर की आवश्यक मात्रा से अधिक रही और 1,776 करोड़ लीटर से अधिक के प्रस्ताव प्राप्त हुए है।


जानकारों के अनुसार कुल मिलें 1,776.49 करोड़ लीटर के प्रस्तावों में से 471.63 करोड़ लीटर गन्ना आधारित फीडस्टॉक्स से और 1,304.86 करोड़ लीटर अनाज आधारित फीडस्टॉक्स से प्रस्ताव मिले हैं।

सरकार पेट्रोल के साथ इथेनॉल मिश्रित (ईबीपी) कार्यक्रम को सक्रिय रूप से लागू कर रही है, जो कि तेल विपणन कंपनियों को एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचने में सक्षम बनाता है। इथेनॉल निर्माताओं की प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक रही है, खासकर जब सरकार ने हाल ही में एथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं।

केंद्र सरकार ने अनाज आधारित इथेनॉल उत्पादकों को राहत देते हुए, भारतीय खाद्य निगम, एफसीआई ने चावल आधारित एथेनॉल की कीमत बढ़ा दी है। एफसीआई से प्राप्त अधिशेष चावल से उत्पादित एथेनॉल की कीमत ईएसवाई 2025-26 के लिए, ईएसवाई 2024-25 की तुलना में बढ़ाई है।

चीनी आधारित फीडस्टॉक से उत्पादित एथेनॉल की कीमत अपरिवर्तित बनी हुई है। हालांकि, उद्योग पहली अक्टूबर से शुरू हुए पेराई सीजन 2025-26 के लिए गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में वृद्धि का हवाला देते हुए सरकार से कीमत बढ़ाने की मांग कर रहा हैं।

पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, सरकार एथेनॉल के उत्पादन को बढ़ावा दे रही है, जिससे गन्ना किसानों को लाभ हो रहा है और कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम हो रही है।