आर एस राणा
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली आर्थिक समीक्षा 2018-19 में खेती के लिए भूजल स्तर पर में सुधार लाने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय प्राथमिकता ‘भूमि की उत्पादकता’ से ‘सिंचाई जल उत्पादकता’ की तरफ जाने की होनी चाहिए। नीतियों में सुधार करते हुए किसानों को इसके लिए संवेदनशील बनाना होगा और जल के इस्तेमाल में सुधार राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए। कृषि, वानिकी और मात्स्यिकी क्षेत्र के लिए विकास दर 2.9 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। आर्थिक समीक्षा में 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन 28.34 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश करते हुए कहां कि जलस्तर में लगातार आ रही गिरावट खेती के लिहाज से खतरनाक है। एशियन वाटर डेवलेपमेंट आउटलुक 2016 के मुताबिक, करीब 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है। सिंचाई के मौजूदा चलन की वजह से भू-जल निरंतर नीचे की तरफ खिसकता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय है।
सिंचाई के लिए होता है 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सिंचाई के लिए 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल किया जाता है। देश में धान और गन्ना की फसल उपलब्ध जल का 60 फीसदी से अधिक उपयोग सिंचाई के लिए करते हैं, जिससे अन्य फसलों के लिए कम पानी उपलब्ध रहता है। पिछले कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं उभर कर सामने आई हैं।
जोत छोटी होने के साथ ही जल संसाधनों की कमी
इसमें कहा गया है कि कृषि भूमि के बंटवारे और जल संसाधनों के कम होने से संकट बढ़ा है। अपनाये गये नये प्रभावी संसाधनों और जलवायु के अनुकूल सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कृषि क्षेत्र स्मार्ट हुआ है। कृषि जोतों के छोटा होने की वजह से भारत ने सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त संसाधनों को अपनाने पर जोर दिया गया है। सर्वेक्षण के अनुसार किसानों को पानी के उपयोग के कुशल तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों को तैयार करना होगा, साथ ही जल संकट को कम करने की राष्ट्रीय प्राथमिकता बनानी चाहिए।
जून में बारिश सामान्य से 33 फीसदी कम हुई
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है। हालांकि, जून के दौरान मानसूनी बारिश सामान्य से 33 फीसदी कम हुई थी जिस कारण खरीफ फसलों की बुआई में कमी आई है। आईएमडी ने कहा है कि जुलाई और अगस्त में बारिश अच्छी होने का अनुमान है। आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, कृषि और संबंधित क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण के प्रतिशत के रूप में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) में वर्ष 2013-14 में 17.7 फीसदी की बढ़त दिखायी देती है, लेकिन इसके बाद वर्ष 2017-18 में यह घटकर 15.5 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2012-13 के सकल पूंजी निर्माण 2,51,904 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2017-18 में यह 2,73,555 करोड़ हो गई।
कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, महिलाएं फसल उत्पादन, पशुपालन, बागवानी, कटाई के बाद के कार्यकलाप कृषि/सामाजिक, वानिकी, मत्स्य पालन इत्यादि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाओं द्वारा उपयोग में लायी जा रही क्रियाशील जोतों का हिस्सा वर्ष 2005-06 में 11.7 फीसदी से बढ़कर 2015-16 में 13.9 फीसदी हो गई। महिला किसानों द्वारा संचालित सीमांत एवं छोटी जोतों का अंश बढ़कर 27.9 फीसदी हो गया है। आर एस राणा
नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली आर्थिक समीक्षा 2018-19 में खेती के लिए भूजल स्तर पर में सुधार लाने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय प्राथमिकता ‘भूमि की उत्पादकता’ से ‘सिंचाई जल उत्पादकता’ की तरफ जाने की होनी चाहिए। नीतियों में सुधार करते हुए किसानों को इसके लिए संवेदनशील बनाना होगा और जल के इस्तेमाल में सुधार राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए। कृषि, वानिकी और मात्स्यिकी क्षेत्र के लिए विकास दर 2.9 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। आर्थिक समीक्षा में 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन 28.34 करोड़ टन रहने का अनुमान है।
केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश करते हुए कहां कि जलस्तर में लगातार आ रही गिरावट खेती के लिहाज से खतरनाक है। एशियन वाटर डेवलेपमेंट आउटलुक 2016 के मुताबिक, करीब 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जाता है। सिंचाई के मौजूदा चलन की वजह से भू-जल निरंतर नीचे की तरफ खिसकता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय है।
सिंचाई के लिए होता है 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सिंचाई के लिए 89 फीसदी भू-जल का इस्तेमाल किया जाता है। देश में धान और गन्ना की फसल उपलब्ध जल का 60 फीसदी से अधिक उपयोग सिंचाई के लिए करते हैं, जिससे अन्य फसलों के लिए कम पानी उपलब्ध रहता है। पिछले कुछ वर्षों में कृषि क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं उभर कर सामने आई हैं।
जोत छोटी होने के साथ ही जल संसाधनों की कमी
इसमें कहा गया है कि कृषि भूमि के बंटवारे और जल संसाधनों के कम होने से संकट बढ़ा है। अपनाये गये नये प्रभावी संसाधनों और जलवायु के अनुकूल सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कृषि क्षेत्र स्मार्ट हुआ है। कृषि जोतों के छोटा होने की वजह से भारत ने सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त संसाधनों को अपनाने पर जोर दिया गया है। सर्वेक्षण के अनुसार किसानों को पानी के उपयोग के कुशल तरीके अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए नीतियों को तैयार करना होगा, साथ ही जल संकट को कम करने की राष्ट्रीय प्राथमिकता बनानी चाहिए।
जून में बारिश सामान्य से 33 फीसदी कम हुई
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने की भविष्यवाणी की है। हालांकि, जून के दौरान मानसूनी बारिश सामान्य से 33 फीसदी कम हुई थी जिस कारण खरीफ फसलों की बुआई में कमी आई है। आईएमडी ने कहा है कि जुलाई और अगस्त में बारिश अच्छी होने का अनुमान है। आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, कृषि और संबंधित क्षेत्र में सकल पूंजी निर्माण के प्रतिशत के रूप में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) में वर्ष 2013-14 में 17.7 फीसदी की बढ़त दिखायी देती है, लेकिन इसके बाद वर्ष 2017-18 में यह घटकर 15.5 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2012-13 के सकल पूंजी निर्माण 2,51,904 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2017-18 में यह 2,73,555 करोड़ हो गई।
कृषि में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, महिलाएं फसल उत्पादन, पशुपालन, बागवानी, कटाई के बाद के कार्यकलाप कृषि/सामाजिक, वानिकी, मत्स्य पालन इत्यादि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। महिलाओं द्वारा उपयोग में लायी जा रही क्रियाशील जोतों का हिस्सा वर्ष 2005-06 में 11.7 फीसदी से बढ़कर 2015-16 में 13.9 फीसदी हो गई। महिला किसानों द्वारा संचालित सीमांत एवं छोटी जोतों का अंश बढ़कर 27.9 फीसदी हो गया है। आर एस राणा
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