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07 जुलाई 2019

बजट से किसान संगठन निराश, बोले उनके लिए कुछ नहीं

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2019-20 के आम बजट में खेती एवं किसानों को ज्यादा तरजीह नहीं दिए जाने से किसानों को निराशा हाथ लगी है। आम बजट में कोल्ड स्टोर, खाद्य प्रसंस्करण, सिंचाई योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, कृषि ऋण, सूखा के साथ जैविक खेती के बारे में कुछ नहीं किया गया है। वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा कि जीरो बजट खेती पर जोर दिया जाएगा, खेती के बुनियादी तरीकों पर लौटना इसका उद्देश्य है और इसी से किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य पूरा होगा लेकिन इससे कैसे किसानों की आय बढ़ेगी, इस बारे में कुछ नहीं कहा है।
सरकार किसानों के बजाए उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है
राष्ट्रीय मजदूर किसान संगठन के संयोजक वीएम सिंह ने आउटलुक से कहा कि देश की 65 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी हुई है, लेकिन सरकार ने आम बजट में किसानों के लिए कोई घोषणा नहीं की, इससे साफ है कि सरकार किसानों के बजाए उद्योगपतियों के लिए काम कर रही है। आधा देश सूखे से जूझ रहा है, लेकिन सूखे से निपटने के लिए सरकार ने बजट में कोई घोषणा नहीं की। किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है, किसानों को अपनी फसलों का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है, गन्ना किसानों को समय पर भुगतान नहीं हो रहा है। आम बजट में किसानों की आय बढ़ाने के लिए, खेती की उत्पादकता कैसे बढ़े इसके लिए कुछ नहीं किया है। इसलिए यह बजट किसानों के लिए निराशाजक है।
उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने बजट भाषण के आरंभ में कहां कि गांव, गरीब और किसान हमारे लिए अहम हैं लेकिन दो घंटे के भाषण हम यही सोचते रहे कि हमारा नंबर कब आयेगा। सरकार किसानों की आय बढ़ाने की बात तो करती है लेकिन अभी तक स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया है। अगर स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिए जाएं तो किसानों को 12 से 20 हजार रुपये प्रति एकड़ का लाभ होगा। इसी तरह से गन्ना किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम दिया जाए, तो प्रति एकड़ 44,000 रुपये अधिक मिलेंग। सरकार किसानों को सालाना 6,000 रुपये देने की बात करती है, लेकिन हम सरकार से मांग करते हैं हमें हमारा हक दिया जाए।
कोल्ड स्टोर के साथ ही खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बजट में कुछ नहीं
स्वाभिमान शेतकरी संगठन के नेता एवं पूर्व लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने कहा कि बजट से किसानों में बेहद निराशा है। उन्होंने कहा कि किसानों की माली हालत में सुधार लाने के लिए कोल्ड स्टोर के साथ ही खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने बजट में कुछ नहीं किया है। कृषि के अलावा टेक्सटाइल एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें रोजगार के अनेकों अवसर हैं, लेकिन इसके लिए भी आम बजट में कोई घोषणा नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार ने डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने की बात तो की है, लेकिन इसके लिए क्या योजना है इसके बारे में कुछ नहीं बताया है। उन्होंने कहा कि मनरेगा में लोगों को काम नहीं मिल रहा है, किसानों को दूध का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है साथ ही किसानों को अपनी फसलें न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है। इसलिए सरकार के इस बजट में किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
 जीरो बजट फार्मिंग की बात की लेकिन ये जीरो बजट स्पीच
स्वराज इंडिया के संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा कि बजट में ना खाता न बही, जो निर्मला कहें वो सही। जीरो बजट फार्मिंग की बात की लेकिन ये जीरो बजट स्पीच है। किसानों को उम्मीद थी लेकिन, सूखे का जिक्र नहीं। बटाईदार, ठेके पर खेती करने वालों का कोई जिक्र नहीं। उन्होंने कहा कि मोदीजी को झोली भर के वोट देने वाले किसान ने बजट सुनना शुरू करते हुए गुनगुनाया, आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे लेकिन बजट स्पीच के अंत में उसने निराश होकर बोला कि आज की रात बचेंगे तो सहर (सुबह) देखेंगे।
न तो फसल के सही दाम की बात, न ही फसल बीमा में देरी की बात
मध्य प्रदेश के आम किसान यूनियन के प्रमुख केदार सिरोही ने कहा कि आज वित्त मंत्री ने बजट में कहा है की "जीरो बजट खेती करो और किसानी खेती की सब दिक्कतों से निजात पाओ"! न तो फसल के सही दाम की बात, न ही फसल बीमा में देरी की बात, न ही गांव में शिक्षा के लिए पैसा, न ही ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में नौकरी के लिए निवेश की बात, न ही फसली कर्ज की बात।        
आर एस राणा

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