आर एस राणा
नई दिल्ली। बोलगार्ड 1 और बोलगार्ड 2 के मुकाबले लागत कम होने के कारण किसान प्रतिबंधित हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की बुवाई कर रहे हैं। कपास किसान प्रमोद तालमले ने बताया कि एचटीबीटी कपास की खेती में कीटनाशकों का छिड़काव कम होने के कारण लागत तो कम आती ही है, साथ ही प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी ज्यादा है। यही कारण है कि रोक के बावजूद किसान इसकी बुवाई को प्राथमिकता दे रहे हैं।
हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कॉटन, बीटी कॉटन में इनोवेशन है। इसमें राउंड-अप रेडी और राउंड-अप फ्लेक्स (आरआरएफ) जीन शामिल हैं। इसे यूएस-आधारित बहुराष्ट्रीय बीज कंपनी मोनसेंटो द्वारा विकसित और वाणिज्यिक किया गया है।
करीब 10 से 15 फीसदी में हो रही है इसकी खेती
केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र (सीआईसीआर) नागपुर के निदेशक डॉ. वीएन वाघमारे ने बताया कि देश में हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती को जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है। सरकार ने वर्ष 2017 में एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें देश के कई राज्यों में कपास के कुल रकबे में 10 से 15 फीसदी में एचटीबीटी की खेती करने की जानकारी मिली थी। इस पर पीएमओ ने एक समिति गठित की थी, समिति ने इसकी खेतो को रोकने के लिए राज्य सरकार को पत्र भी लिखा है, तथा अपनी रिपोर्ट पीएमओ को सौंप दी है।उन्होंने बताया कि हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती में खरपतवार को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव कम करना पड़ता है अत: रोक के बावजूद कई राज्यों में किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
कपनी ने व्यावसायिक खेती के लिए जीईएसी को दिया आवेदन लिया था वापिस
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के निदेशक डा. कुलदीप सिंह ने बताया कि मोनसेंटो और बायर दोनों ने भारत में 2007-09 के बीच एचटीबीटी कपास का परीक्षण किया था। मोनसेंटो की भारतीय सहायक कंपनी महिको (महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी) 2013 से हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की व्यावसायिक खेती के लिए जीईएसी से अनुमति की मांग कर रही थी, जिसे अगस्त 2016 में कपनी ने वापस ले लिया। उन्होंने बताया कि हाल ही में हरियाणा में बीटी बैंगन की खेती का मामला भी सामने आया था जिसे उखाड़कर गड्डे में दबा दिया गया।
ग्लाइफोसेट नामक खरपतवार से बचाने के लिए पौधे को ताकत प्रदान करता है
शेतकरी संगठन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ के प्रमुख अजीत नारडे ने बताया कि एचटीबीटी कपास तीसरी पीढ़ी का आनुवंशिक रूप से संशोधित तकनीक है जो अपने आप को ग्लाइफोसेट नामक खरपतवार से बचाने के लिए पौधे को ताकत प्रदान करता है। देश में कपास के रकबे में करीब 12 से 15 फीसदी क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है। किसानों को इसके बीज एजेंटों द्वारा खरीदने पड़ते हैं जिनकी कोई गांरटी नहीं होती, साथ ही बीज भी महंगे दाम पर खरीदने पड़ते हैं। ऐसे में अगर सरकार हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती को अनुमति दे, तो किसानों को उचित दाम पर बीज मिल सकेंगे। साथ ही उत्पादकता ज्यादा होने के कारण किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बताया कि जो लोग हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास का विरोध कर रहे हैं, उनका कपास की खेती से कोई लेना-देना नहीं है।
रुई की क्वालिटी भी है बेहतर
महाराष्ट्र के कपास किसान प्रमोद तालमले ने 3 हेेक्टेयर में एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। उन्होंने बताया कि बोलगार्ड 1 एवं बोलगार्ड 2 के मुकाबले एचटीबीटी का उत्पादन दोगने के करीब है, साथ ही खरपतवार कम होने के कारण कीटनाशकों का छिड़काव भी कम करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि रुई की क्वालिटी भी काफी अच्छी है। अकोला जिले की अकोट तहसील के जेतपूर गांव के किसान संजय शेलके ने भी अपने खेत में एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। अकोला जिले के तालूका तेलहाड़ा जिले के किसान नीलेश निमाले ने प्रतिबिंधित एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। .............आर एस राणा
नई दिल्ली। बोलगार्ड 1 और बोलगार्ड 2 के मुकाबले लागत कम होने के कारण किसान प्रतिबंधित हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की बुवाई कर रहे हैं। कपास किसान प्रमोद तालमले ने बताया कि एचटीबीटी कपास की खेती में कीटनाशकों का छिड़काव कम होने के कारण लागत तो कम आती ही है, साथ ही प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी ज्यादा है। यही कारण है कि रोक के बावजूद किसान इसकी बुवाई को प्राथमिकता दे रहे हैं।
हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कॉटन, बीटी कॉटन में इनोवेशन है। इसमें राउंड-अप रेडी और राउंड-अप फ्लेक्स (आरआरएफ) जीन शामिल हैं। इसे यूएस-आधारित बहुराष्ट्रीय बीज कंपनी मोनसेंटो द्वारा विकसित और वाणिज्यिक किया गया है।
करीब 10 से 15 फीसदी में हो रही है इसकी खेती
केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र (सीआईसीआर) नागपुर के निदेशक डॉ. वीएन वाघमारे ने बताया कि देश में हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती को जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है। सरकार ने वर्ष 2017 में एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें देश के कई राज्यों में कपास के कुल रकबे में 10 से 15 फीसदी में एचटीबीटी की खेती करने की जानकारी मिली थी। इस पर पीएमओ ने एक समिति गठित की थी, समिति ने इसकी खेतो को रोकने के लिए राज्य सरकार को पत्र भी लिखा है, तथा अपनी रिपोर्ट पीएमओ को सौंप दी है।उन्होंने बताया कि हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती में खरपतवार को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव कम करना पड़ता है अत: रोक के बावजूद कई राज्यों में किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
कपनी ने व्यावसायिक खेती के लिए जीईएसी को दिया आवेदन लिया था वापिस
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के निदेशक डा. कुलदीप सिंह ने बताया कि मोनसेंटो और बायर दोनों ने भारत में 2007-09 के बीच एचटीबीटी कपास का परीक्षण किया था। मोनसेंटो की भारतीय सहायक कंपनी महिको (महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी) 2013 से हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की व्यावसायिक खेती के लिए जीईएसी से अनुमति की मांग कर रही थी, जिसे अगस्त 2016 में कपनी ने वापस ले लिया। उन्होंने बताया कि हाल ही में हरियाणा में बीटी बैंगन की खेती का मामला भी सामने आया था जिसे उखाड़कर गड्डे में दबा दिया गया।
ग्लाइफोसेट नामक खरपतवार से बचाने के लिए पौधे को ताकत प्रदान करता है
शेतकरी संगठन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ के प्रमुख अजीत नारडे ने बताया कि एचटीबीटी कपास तीसरी पीढ़ी का आनुवंशिक रूप से संशोधित तकनीक है जो अपने आप को ग्लाइफोसेट नामक खरपतवार से बचाने के लिए पौधे को ताकत प्रदान करता है। देश में कपास के रकबे में करीब 12 से 15 फीसदी क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है। किसानों को इसके बीज एजेंटों द्वारा खरीदने पड़ते हैं जिनकी कोई गांरटी नहीं होती, साथ ही बीज भी महंगे दाम पर खरीदने पड़ते हैं। ऐसे में अगर सरकार हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती को अनुमति दे, तो किसानों को उचित दाम पर बीज मिल सकेंगे। साथ ही उत्पादकता ज्यादा होने के कारण किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बताया कि जो लोग हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास का विरोध कर रहे हैं, उनका कपास की खेती से कोई लेना-देना नहीं है।
रुई की क्वालिटी भी है बेहतर
महाराष्ट्र के कपास किसान प्रमोद तालमले ने 3 हेेक्टेयर में एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। उन्होंने बताया कि बोलगार्ड 1 एवं बोलगार्ड 2 के मुकाबले एचटीबीटी का उत्पादन दोगने के करीब है, साथ ही खरपतवार कम होने के कारण कीटनाशकों का छिड़काव भी कम करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि रुई की क्वालिटी भी काफी अच्छी है। अकोला जिले की अकोट तहसील के जेतपूर गांव के किसान संजय शेलके ने भी अपने खेत में एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। अकोला जिले के तालूका तेलहाड़ा जिले के किसान नीलेश निमाले ने प्रतिबिंधित एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। .............आर एस राणा
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