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30 जून 2019

जून में मानसूनी बारिश सामान्य से 34 फीसदी कम, 29 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश प्रभावित

आर एस राणा
नई दिल्ली। मानसूनी सीजन का पहला महीना बीत चुका है, लेकिन अभी भी देशभर में बारिश सामान्य से 34 फीसदी कम हुई है जिस कारण देश के 29 राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेशों के किसान प्रभावित हुए हैं। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार जून में केवल 6 राज्यों में ही सामान्य बारिश दर्ज की गई है जबकि इस दौरान केवल एक राज्य में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है।
मौसम विभाग के अनुसार पहली जून से 29 जून तक देशभर में सामान्यत: 159 फीसदी बारिश होती है लेकिन चालू खरीफ में इस दौरान केवल 104.3 फीसदी बारिश ही हुई है। उत्तर भारत के राज्यों में मानसून का आगमन 29 जून तक हो जाता है लेकिन इस बार सप्ताहभर की देरी होने की आशंका है। उत्तर भारत में प्री-मानसून की बारिश भी सामान्य से कम हुई थी। उत्तर भारत के राज्यों सात राज्यों में बारिश सामान्य से काफी कम हुई है जबकि मध्य भारत के छह राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश एवं दादर एडं नगर हेवेली में बारिश सामान्य से कम हुई है। दक्षिण भारत के राज्यों में मानसून के आगमन के बावजूद भी सात राज्यों में बारिश सामान्य से कम दर्ज की गई है। पूर्वी एवं पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में भी अभी तक बारिश सामान्य से कम हुई है।
बंगाल की खाड़ी में एक निम्न दबाव का बना हुआ है क्षेत्र
मौसम की निजी जानकारी देने वाली स्काईमेट के अनुसार पंजाब से हरियाणा, उत्तरी उत्तर प्रदेश, बिहार के निचले इलाकों, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, सिक्किम और असम होते हुए अरुणाचल प्रदेश तक एक ट्रफ रेखा फैली हुई है। साथ ही एक अन्य ट्रफ रेखा उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और सिक्किम से बांग्लादेश होते हुए बंगाल की खाड़ी के उत्तरी भागों तक भी फैली हुई है। इसके साथ ही बंगाल की खाड़ी के भागों पर एक निम्न दबाव का क्षेत्र बना हुआ है।
महाराष्ट्र, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश और दक्षिणी गुजरात में तेज बारिश का अनुमान
अगले 24 घंटों के दौरान मुंबई, महाराष्ट्र, दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश और दक्षिणी गुजरात समेत पश्चिमी तटीय भागों में भारी बारिश जारी रह सकती है। इसके अलावा उप-हिमालयी और सिक्किम समेत पूर्वोत्तर राज्यों में हल्की से मध्यम बारिश होने के आसार हैं। ओडिशा, चंडीगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश होने की संभावना है।कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में अगले 24 घंटों में बारिश होने के आसार हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर पंजाब और राजस्थान के कुछ स्थानों में बारिश हो सकती है जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार समेत पूर्वोत्तर राज्यों में मौसम शुष्क बने रहने की संभावना है।
बीते 24 घंटों के दौरान महाराष्ट्र, असम, त्रिपुरा, ओडिशा और झारखंड में बारिश
बीते 24 घंटों के दौरान पश्चिमी तटीय भागों में बेहद भारी वर्षा हुई है। वहीं महाराष्ट्र, असम, त्रिपुरा, ओडिशा और झारखंड में मध्यम से भारी बारिश देखने को मिली है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान के कुछ स्थानों सहित गया, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुछ स्थानों पर हल्की से मध्यम बारिश हुई है। वहीं तमिलनाडु के एक-दो स्थानों में भी बारिश हुई है।
मुंबई में बारिश से सड़कों पर पानी, चैन्नई में पीने के पानी की किल्लत
मुंबई में मानसून की बारिश से मायानगरी की सड़कें समंदर में तब्दील हो गई। गुजरात के वलसाड में भी बारिश के चलते शहर की सड़कों से लेकर अस्‍पताल और ऑफिस पानी में डूब गए हैं। वहीं दूसरी ओर चेन्नई में लोग खाली घड़े लिए पानी के टैंकर्स का इंतज़ार करने को मजबूर हैं। टैंकर आते ही लोग उस पर टूट पड़ते हैं। कुछ को पानी मिलता है। तो कुछ खाली हाथ ही घर लौट जाते हैं। पानी के लिए इतनी मारामारी है कि लोग नलों में ताला लगाने लगे हैं।............ आर एस राणा

मानसूनी बारिश 35 फीसदी कम होने से खरीफ फसलों की बुआई 15 फीसदी पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्री-मानसून के साथ ही मानसून की बारिश भी सामान्य से 35 फीसदी कम होने के कारण चालू  खरीफ में फसलों की बुआई 15.46 फीसदी पिछे चल रही है। कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ की प्रमुख फसल धान के साथ ही दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और कपास की बुआई में कमी आई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू खरीफ सीजन में मानसूनी बारिश पहली जून से 28 जून तक देशभर में सामान्य से 35 फीसदी कम हुई है। इस दौरान देशभर में 151.2 मिलीमीटर बारिश होती है जबकि चालू सीजन में अभी तक केवल 97.9 मिलीमीटर ही बारिश हुई है। देश के कई राज्यों में प्री-मानसून की बारिश भी कम हुई है, अत: मानसून की बारिश भी कम होने के कारण किसान खरीफ फसलों की बुआई नहीं कर पा रहे हैं। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक 146.61 लाख हेक्टयेर में ही खरीफ फसलों की बुआई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 162.07 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।
धान के साथ ही मोटे अनाज की बुवाई घटी
खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 27.09 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 27.12 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी। दालों की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 3.42 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 8.86 लाख हेक्टेयर में खरीफ दालों की बुआई हो चुकी थी। मोटे अनाजों की बुआई पिछले साल के 21.41 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू खरीफ में अभी तक केवल 19.12 लाख हेक्टेयर में ही हुई है। मोटे अनाजों में मक्का की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 11.26 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 12.17 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
कपास के साथ ही गन्ने की बुआई कम
तिलहन की बुआई चालू खरीफ में अभी तक केवल 13.43 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 14.08 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी। कपास की बुआई भी चालू खरीफ में पिछले साल के 32.20 लाख हेक्टेयर से घटकर केवल 27.08 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। गन्ने की बुआई चालू खरीफ में 49.81 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 51.27 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।.....  आर एस राणा

मध्य प्रदेश में बोनस के बाद भी गेहूं की खरीद लक्ष्य से कम, छत्तीसगढ़ से धान की खरीद बढ़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। किसानों को गेहूं पर बोनस दिए जाने के बाद भी मध्य प्रदेश में गेहूं की खरीद पिछले साल की तुलना में कम हुई है लेकिन छत्तीसगढ़ से धान की खरीद में जरुर बढ़ोतरी दर्ज की गई। मध्य प्रदेश से गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद पिछले साल की तुलना में 5.88 फीसदी कम होकर केवल 67.25 लाख टन की ही हुई है।
मध्य प्रदेश सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2018-19 के लिए गेहूं की खरीद पर किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देकर 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद की है। बोनस दिए जाने के बाद भी चालू रबी में राज्य से समर्थन मूल्य पर केवल 67.25 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई, जबकि पिछले रबी में राज्य से 73.13 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। चालू रबी में राज्य से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 75 लाख टन का तय किया था।
छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार ने किसानों से धान की खरीद 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की थी, जिससे खरीफ विपणन सीजन 2017-18 में चावल की खरीद बढ़कर 40.80 लाख टन की हुई जबकि इसके पिछले साल राज्य से समर्थन मूल्य पर केवल 32.55 लाख टन चावल ही खरीदा गया था। राज्य की कांग्रेस सरकार ने किसानों से धान की खरीद समर्थन मूल्य से 42.85 फीसदी अधिक दाम पर की।
छत्तीसढ़ सरकार ने धान की खरीद 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर की
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2017-18 के लिए धान का एमएसपी 1,750 और 1,770 रुपये प्रति क्विंटल किया था, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों से धान की खरीद 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की। गेहूं का एमएसपी पर चालू रबी विपणन सीजन 2018-19 के लिए केंद्र सरकार ने 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने किसानों से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद की है।
गेहूं के साथ ही चावल का रिकार्ड उत्पादन अनुमान
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में गेहूं का रिकार्ड 10.12 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 9.98 करोड़ टन का हुआ था। चावल का उत्पादन भी चालू फसल सीजन में रिकार्ड 11.56 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 11.27 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था।...... आर एस राणा

केंद्र सकरार की एक देश एक राशन कार्ड से खाद्यान्न वितरण की योजना

आर एस राणा
नई दिल्ली। सरकार 'एक देश एक राशन कार्ड' सेे खाद्यान्न के वितरण की योजना बना रही है, इससे लाभार्थी देश के किसी भी राज्य में राशन की दुकान से अपने हिस्से का अनाज प्राप्त कर सकेंगे। सुरक्षा के मुद्दों पर राज्य के खाद्य सचिवों के साथ सम्मेलन में खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने ये बात कही। इस सम्मेलन में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) और राज्य भंडारण निगम (एसडब्ल्यूसी) के अधिकारीगण भी उपस्थित थे।
केंद्रीय खाद्य मंत्री ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के कुशल क्रियान्वयन, पूर्ण कम्प्यूटरीकरण, खाद्यान्नों के भंडारण और वितरण में पारदर्शिता और एफसीआई, सीडब्ल्यूसी और एसडब्ल्यूसी डिपो के ऑनलाइन सिस्टम (डॉस) के साथ समन्वय सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। बयान में कहा गया है कि एक राष्ट्र एक राशन कार्ड के खाद्यान्न का वितरण किया जायेगा, जो सभी लाभार्थियों, विशेष रूप से प्रवासियों को सुनिश्चित करेगा कि वे अपनी पसंद के किसी भी राशन की दुकान से देश भर में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का उपयोग कर सकें।
प्रवासी मजदूर को होगा इसका लाभ
सरकार के इस कदम से पीडीएस से राशन ले रहे उपभोक्ताओं को फायदा होगा, क्योंकि वे किसी एक राशन की दुकान से बंधे नहीं होंगे और राशन वितरण केंद्रों पर अपनी निर्भरता कम करेंगे, साथ ही इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा। पासवान ने कहा कि इसके सबसे बड़े लाभार्थी वे प्रवासी मजदूर होंगे जो बेहतर रोजगार के अवसर तलाशने के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं, वे अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर पाएंगे।
अगले दो महीनों में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लाभार्थियों को मिलेगी सुविधा
पीडीएस (आईएमपीडीएस) प्रणाली का एकीकृत प्रबंधन आंध्रप्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना और त्रिपुरा में पहले से ही चालू है, जिसमें एक लाभार्थी राज्य के किसी भी जिले से अपने हिस्से का खाद्यान्न प्राप्त कर सकता है। अन्य राज्यों ने भी आश्वासन दिया कि जल्द से जल्द आईएमपीडीएस को लागू किया जाएगा। खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग वन नेशन वन राशन कार्ड के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बड़े स्तर पर काम कर रहा है और अगले दो महीनों में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लाभार्थी पीडीएस की दुकानों का उपयोग कर पाएंगे। विभाग का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इसे समयबद्ध तरीके से राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाए।...... आर एस राणा

चीनी उद्योग को राहत देने के लिए बफर स्टॉक बढ़ाने की तैयारी

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार चीनी मिलों को राहत देने के लिए बफर स्टॉक को 30 लाख टन से बढ़ाकर 50 लाख टन कर सकती है इस के लिए खाद्य मंत्रालय ने कैबिनेट नोट जारी किया है जिस पर अगले सप्ताह होने वाली कैबिनेट की बैठक में फैसला हो सकता है। किसानों के बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार मिलों को करीब 1,100 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे सकती है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चीनी के बफर स्टॉक को बढ़ाकर 50 लाख टन करने का प्रस्ताव है, जोकि इस समय 30 लाख टन का है। उन्होंने बताया कि बफर स्टॉक की मियाद अवधि को भी एक साल के लिए बढ़ाये जाने का प्रस्ताव है। इस पर करीब 1,100 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जा सकती है। उन्होंने बताया इस प्रस्ताव पर अगले सप्ताह होने वाली कैबिनेट की बैठक में फैसला होने की संभावना है।
चीनी मिलों पर 18,958 करोड़ रुपये है बकाया
पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2018-19 (अक्टूबर से सितंबर) में चीनी मिलों में पेराई बंद होने के बाद भी गन्ना किसानों का बकाया 18,958 करोड़ रुपये बचा हुआ है। बकाया में सबसे हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों की है। उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों पर किसानों का बकाया 11,082 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसके बाद कर्नाटक की चीनी मिलों पर 1,704 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र की चीनी मिलों पर 1,338 करोड़ रुपये का बकाया है।
गन्ना खरीदने के 14 दिन के अंदर करना होता है भुगतान
अन्य राज्यों में पंजाब में गन्ना किसानों का राज्य की मिलों पर बकाया 989 करोड़ रुपये, गुजरात और बिहार की चीनी मिलों पर किसानों का बकाया क्रमश: 965 करोड़ रुपये और 923 करोड़ रुपये हैं। गन्ना खरीदने के 14 दिन के अंदर चीनी मिलों को बकाया का भुगतान करना होता है लेकिन चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों में पेराई बंद हो चुकी है, इसके बावजूद भी किसानों के बकाया का भुगतान नहीं हो रहा है। जिससे गन्ना किसानों में राज्य और केंद्र सरकार के खिलाफ रोष बढ़ रहा है।
आगामी पेराई सीजन में चीनी उत्पादन घटने का अनुमान
उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 330 लाख टन होने का अनुमान है जोकि इसके पिछले पेराई सीजन के 320 लाख टन टन से ज्यादा है। उद्योग के अनुसार देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात होने के कारण पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन में करीब 15 फीसदी की कमी आने की आशंका है।........  आर एस राणा

23 जून 2019

पैदावार ज्यादा होने के बावजूद गेहूं की सरकारी खरीद 17 फीसदी घटी, यूपी और एमपी से कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2018-19 में देश में गेहूं की रिकार्ड पैदावार 10.12 करोड़ टन होने के बाद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद पिछले साल की तुलना में 17.33 फीसदी घटकर केवल 340.62 लाख टन की हुई है जबकि पिछले साल 357.95 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद में कमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में दर्ज की गई।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 340.62 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है जबकि खरीद का लक्ष्य केंद्र सरकार ने 357.95 लाख टन का तय किया था। पिछले रबी में समर्थन मूल्य पर 356.50 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018—19 में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 10.12 करोड़ टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 9.98 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से खरीद घटी
एफसीआई के अनुसार चालू रबी में उत्तर प्रदेश से गेहूं की खरीद में 16.55 फीसदी की कमी आकर कुल खरीद 36.39 लाख टन की ही हुई है जबकि पिछले साल राज्य से 52.94 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। राज्य से खरीद का लक्ष्य चालू रबी में 50 लाख टन का तय किया था। इसी तरह से मध्य प्रदेश से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद में 5.88 फीसदी की कमी आकर कुल खरीद 67.25 लाख टन की ही हुई है जबकि पिछले साल राज्य से 73.13 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी। राज्य से चालू रबी में खरीद का लक्ष्य 75 लाख टन का तय किया गया था। राजस्थान से एमएसपी पर गेहूं की खरीद 1.30 फीसदी की कमी आकर कुल खरीद 14.02 लाख टन की ही हुई है जबकि पिछले साल राज्य से 15.32 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।
पंजाब और हरियाणा से खरीद हुई ज्यादा
पंजाब से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद 129.12 लाख टन की हुई है जोकि पिछले साल के 126.92 लाख टन की तुलना में 2.20 फीसदी ज्यादा है। चालू रबी में राज्य से खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का तय किया गया था। हरियाणा से समर्थन मूल्य पर चालू रबी में गेहूं की खरीद 5.36 फीसदी बढ़कर रिकार्ड 93.20 लाख टन की हुई है जबकि राज्य से पिछले साल केवल 87.84 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। चालू रबी में राज्य से खरीद का लक्ष्य 85 लाख टन का तय किया गया था।
अन्य राज्यों से खरीद लक्ष्य से कम
अन्य राज्यों में उत्तराखंड से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 42 हजार टन, चंडीगढ़ से 13 हजार टन, गुजरात से 5 हजार टन और बिहार से 3 हजार टन तथा हिमाचल प्रदेश से एक हजार टन की ही खरीद हुई है। चालू रबी में इन राज्यों से गेहूं की खरीद का लक्ष्य उत्तराखंड से 2 लाख टन, गुजरात से 50 हजार टन और बिहार से 2 लाख टन का तय किया गया था।
मध्य प्रदेश सरकार ने दिया 160 रुपये का बोसन
केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल किया हुआ था, जबकि इसके पिछले साल रबी में गेहूं की खरीद 1,735 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर हुई थी। मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों के लिए 160 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस घोषित किया हुआ था, जिससे राज्य के किसानों से गेहूं की खरीद 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर की गई।
केंद्रीय पूल में बकाया स्टॉक ज्यादा
केंद्रीय पूल में पहली जून को गेहूं का बफर स्टॉक 465.60 लाख टन का है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 437.55 लाख टन से ज्यादा है। सरकार खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत 2,080 रुपये क्विंटल की दर से गेहूं बेच रही है। उत्पादक मंडियों में गेहूं के भाव कम होने के कारण ओएमएसएस से मिलों की खरीद नाममात्र की ही हो रही है। ................आर एस राणा

धान के साथ ही मोटे अनाज, दलहन और कपास की बुवाई पिछे

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्री-मानसून के साथ ही मानसून की बारिश सामान्य से कम होने के कारण खरीफ फसलों की बुवाई पिछे चल रही है। कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ की प्रमुख फसल धान के साथ ही दलहन, तिलहन, मोटे अनाज और कपास की बुवाई पिछड़ी है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक 90.62 लाख हेक्टयेर में ही खरीफ फसलों की बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 103.55 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। देशभर में अभी तक मानसूनी बारिश सामान्य से 42 फीसदी कम हुई है, हालांकि अब मानसून ने दोबारा तेजी पकड़ी है, इसलिए आगे खरीफ फसलों की बुवाई में भी तेजी आने का अनुमान है।
धान की रोपाई पिछे, मोटे अनाजों की बुवाई भी कम
खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 6.30 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 9.24 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी। दालों की बुवाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 1.70 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 3.38 लाख हेक्टेयर में खरीफ दालों की बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों की बुवाई पिछले साल के 9.58 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू खरीफ में अभी तक केवल 7.40 लाख हेक्टेयर में ही हुई है। मोटे अनाजों में मक्का की बुवाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 4.82 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 6.20 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
कपास के साथ ही गन्ने की बुवाई कम
तिलहन की बुवाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 1.60 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 3.47 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। कपास की बुवाई भी चालू खरीफ में पिछले साल के 20.68 लाख हेक्टेयर से घटकर केवल 18.18 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। गन्ने की बुवाई चालू खरीफ में 49.35 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 50.68 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।... आर एस राणा

मानसून आगे बढ़ा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना सहित छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कई हिसों में पहुंचा

आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी बारिश दक्षिण मध्य महाराष्ट्र, कर्नाटक के अधिकांश हिस्सों, तमिलनाडु के कई भागों के साथ ही पांडिचेरी सहित पूरे आंध्रप्रदेश, तेलंगान के अधिकांश भागों के अलावा छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ भागों में पहुंच गई है। मानसून के आगे बढ़ने से खरीफ फसलों की बुवाई में भी सुधार आने का अनुमान है।
मौसम विभाग के अनुसार अगले दो से तीन दिनों के दौरान मध्य अरब सागर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों, तेलंगाना, तमिलनाडु के बाकी भागों, बंगाल की खाड़ी, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के कुछ और हिस्सों सहित बिहार, झारखंड और ओडिशा के कुछ हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की प्रगति के लिए स्थितियां अनुकूल हो रही है। अगले 72 घंटों में मानूसन के महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के साथ ही विदर्भ के कई हिस्सों सहित, पूर्व मध्य प्रदेश और पूर्व उत्तर प्रदेश के पहुंंचने का अनुमान है।
मॉनसून ने फिर से पकड़ी रफ्तार
मौसम की जानकारी देने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट के अनुसार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2019 लंबे समय से दक्षिण भारत में डेरा जमाये हुए था, जिस कारण मॉनसून सामान्य से कई दिन पिछे हो गया है। हालांकि अब स्थितियाँ बदली हुई दिखाई दे रही हैं क्योंकि बंगाल की खाड़ी में एक निम्न दबाव का क्षेत्र विकसित हो रहा है, इस सिस्टम के चलते मॉनसून ने फिर से रफ्तार पकड़ी है।
अभी तक सामान्य से देशभर में 42 फीसदी कम हुई है बारिश
आईएमडी के अनुसार चालू मानूसनी सीजन में पहली जून से 21 जून तक देशभर में सामान्य से 42 फीसदी कम बारिश हुई है। इस दौरान महाराष्ट्र में सामान्य से 69 फीसदी, मध्य प्रदेश में 56 फीसदी तथा छत्तीसगढ़ में 42 फीसदी, गुजरात में 33 फीसदी कम बारिश हुई है। उत्तर प्रदेश में इस दौरान 78 फीसदी बारिश सामान्य से कम हुई है, जबकि उत्तराखंड में 56 फीसदी, हरियाणा में 35 फीसदी, पंजाब में 28 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 35 फीसदी कम बारिश हुई है। हालांकि राजस्थान में इस दौरान जरुर सामान्य से 16 फीसदी बारिश ज्यादा हुई है।
दक्षिण के साथ ही पूर्वोत्तर में बारिश सामान्य से कम
दक्षिण भारत के राज्यों तेलंगाना में चालू सीजन मानसूनी सीजन में सामान्य से 48 फीसदी कम बारिश हुई है, जबकि आंध्रप्रदेश में भी 48 फीसदी, तमिलनाडु में 36 फीसदी, कर्नाटक में 35 फीसदी और केरल में भी 39 फीसदी बारिश कम हुई है। पूर्वोतर भारत के राज्यों अरूणाचल प्रदेश में इस दौरान सामान्य से 41 फीसदी, असम में 46 फीसदी, मेघालय में 44 फीसदी तो मणिपुर में 60 फीसदी बारिश कम हुई है। झारखंड और पश्चिमी बंगला में इस दौरान सामान्य से क्रमश: 69 और 57 फीसदी बारिश कम हुई है। बिहार में चालू मानसूनी सीजन में अभी तक सामान्य से 55 फीसदी बारिश कम हुई है। ...............आर एस राणा

20 जून 2019

सूखे की आहट, केंद्र सरकार ने 648 जिलों के लिए तैयार किया आकस्मिक प्लान

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश में सूखे की गहराती आशंका के बीच केंद्र सरकार ने इससे निपटने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। कृषि मंत्रालय ने राज्यों के साथ बातचीत करके 648 जिलों के लिए कंटीजेंसी प्लान तैयार किया है।
सूत्रों के अनुसार देश के 648 जिलों के सूखे की चपेट में आने की आशंका है। अब तक मॉनसूनी बारिश में 43 फीसदी की कमी देखी गई है। आगे भी मॉनसून की चाल कमजोर रहने की आशंका है। देश के 91 जलाशयों में भी मात्र 18 फीसदी पानी ही बचा है जिसे देखते हुए सरकार मनरेगा फंड, लेबर के इस्तेमाल पर विचार कर रही है।
कृषि मंत्रालय ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को जल संकट तैयार रहने के निर्देश दिए हैं। साथ ही आईसीएआर को ऐसे बीज तैयार करने के लिए कहा गया है जिनमें कम पानी का इस्तेमाल हो सकें। साथ ही खरीफ की बुवाई भी देर से शुरू करने की भी सलाह देने की योजना है।
कई राज्यों में सूखे जैसे हालात
प्री-मानसून के साथ ही मानसूनी बारिश सामान्य से कम होने के कारण देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। पहले तो मानसून का आगमन ही 8 दिन की देरी से हुआ, उसके बाद चक्रवात वायु ने मानसून को रोक दिया। ऐसे में सूखे की आशंका गहरा गई है। चालू मानसूनी सीजन में अभी तक देशभर में 43 फीसदी बारिश सामान्य से कम हुई है।
देश में अभी तक 43 फीसदी बारिश कम
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू मानूसनी सीजन में पहली जून से 19 जून तक देशभर में सामान्य से 43 फीसदी कम बारिश हुई है, इस दौरान 20 राज्यों में सामान्य से कम बारिश हुई है जबकि 10 राज्यों में सामान्य से भी काफी कम बारिश दर्ज की गई। आईएमडी के अनुसार उत्तर प्रदेश में इस दौरान सामान्य से 80 फीसदी कम, उत्तराखंड में 58 फीसदी कम, बिहार में 52 फीसदी कम, पश्चिमी बंगाल में 56 फीसदी कम, छत्तीसगढ़ में 56 फीसदी कम तथा महाराष्ट्र में सामान्य से 71 फीसदी बारिश कम हुई है। तेलंगाना में भी सामान्य से 63 फीसदी और आंधप्रदेश में भी सामान्य से 57 फीसदी बारिश कम हुई है। गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक आदि राज्यों में पिछले खरीफ सीजन में भी बारिश सामान्य से कम हुई थी। जिससे इन राज्यों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं।
खरीफ फसलों की बुवाई पिछड़ी
बारिश कम होने के कारण खरीफ फसलों की बुवाई भी चालू खरीफ में पिछड़ी है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक 82.20 लाख हेक्टयेर में ही खरीफ फसलों की बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 90.34 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।......... आर एस राणा

अब सीएबी ने की कपास उत्पादन अनुमान में 24 लाख गांठ की कटौती

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में पिछले साल मानसूनी बारिश समाान्य से कम होने के कारण कपास उत्पादन में कमी आई है। कॉटन एडवाईजारी बोर्ड (सीएबी) ने फसल सीजन 2018-19 में कपास के उत्पादन में 24 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) की कटौती की। सीएबी के अनुसार चालू सीजन में कपास का उत्पादन घटकर 337 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि इससे पहले 361 लाख गांठ का उत्पादन होने का अनुमान था। पिछले साल देश में 370 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था।
सीएबी के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का निर्यात घटकर 50 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 67.59 लाख गांठ कपास का निर्यात हुआ था। विश्व बाजार में कपास की कीमतें नीचे होने एवं घरेलू बाजार में दाम उंचे होने के कारण चालू सीजन में कपास का आयात बढ़कर 22 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल कुल आयात 15.80 लाख गांठ का हुआ था। कपास के उत्पादन में कमी आने के परिणामस्वरूप पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले नए सीजन के समय कपास का बकाया स्टॉक भी घटकर 40.41 लाख गांठ ही बचने का अनुमान है जबकि पिछले साल नई फसल के समय 42.91 लाख गांठ कपास का बकाया स्टॉक बचा हुआ था।
मध्य और दक्षिण भारत के राज्यों में उत्पादन घटा
कॉटन एडवाईजारी बोर्ड के अनुसार मध्य भारत के राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन घटकर 188 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 209.33 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। दक्षिण भारत के राज्यों तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में कपास का उत्पादन घटकर 83 लाख गांठ ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 98.52 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में जरुर चालू फसल सीजन 2018—19 में कपास का उत्पादन बढ़कर 59.50 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 56.50 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था।
उद्योग के अनुसार 316 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान
कपास की बुवाई चालू फसल सीजन 2018-19 में 126.07 लाख हेक्टेयर में हुई थी जबकि इसके पिछले साल 125.86 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हो पाई थी। उद्योग के अनुसार चालू फसल सीजन में कपास का उत्पादन घटकर केवल 315 लाख गांठ ही होने का अनुमान है। उद्योग ने सीजन के आरंभ में 348 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान जारी किया था, उसके बाद से पांच बार में 33 लाख गांठ की कटौती की जा चुकी है।......   आर एस राणा

मानसूनी बारिश 44 फीसदी कम, पिछले 12 साल में पहली बार मानसून की रफ्तार इतनी धीमी

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में सूखे से जूझ रहे किसानों को मानसून भी दगा रहा है। पहले ही आठ दिन की देरी से आए मानसून की धीमी चाल ने किसानों का इंतजार और बढ़ा दिया है। चालू खरीफ में अभी तक देशभर में सामान्य से 44 फीसदी कम बारिश हुई है। इस दौरान जहां 10 राज्यों में बारिश से सामान्य से बहुत ही कम हुई है, वहीं 21 में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के कारण अगले दो-तीन दिनों में मानसून के आगे बढ़ने की संभावना है।
आईएमडी के अनुसार 19-20 जून तक देश के दो तिहाई हिस्सों में मानसून सक्रिय हो जाता है लेकिन इस बार अभी तक केवल 12 से 15 फीसदी हिस्से में ही मानसून पहुंचा है। मानसून की इस धीमी रफ्तार का कारण अरब सागर में उठने वाला चक्रवात वायु भी है। जिसने मानसूनी बादलों को आगे बढ़ने से रोका। पिछले 12 साल में यह पहली बार हुआ है जब मानसून इतनी धीमी रफ्तार से आगे बढ़ रहा है।
खरीफ फसलों की बुवाई पिछड़ी
प्री-मानसून के साथ ही मानसूनी बारिश कम होने के कारण खरीफ फसलों की बुवाई भी पिछड़ी है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक 82.20 लाख हेक्टयेर में ही खरीफ फसलों की बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 90.34 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। हालांकि खरीफ फसलों की बुवाई अभी शुरूआती चरण में है तथा आगामी दिनों में बुवाई में तेजी आने का अनुमान है।
मध्य भारत में सबसे कम 57 फीसदी बारिश
मौसम विभाग के अनुसार मानसून केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और उत्तर पूर्व के कुछ राज्यों तक पहुंंच गया है। मानसून में देरी का सबसे ज्यादा असर मध्य भारत पर पड़ा है। मौसम विभाग के अनुसार पहली जून से 18 जून तक मध्य भारत में बारिश में 57 फीसदी की कमी दर्ज की गई। दक्षिण भारत में मानसून सामान्य से 38 फीसदी, पूर्वोत्तर भारत में 43 फीसदी और उत्तर पश्चिमी भारत में मानसूनी बारिश सामान्य से 27 फीसदी कम हुई है।
अगले दो-तीन दिन में बढ़ेगा मानसून
आईएमडी के अनुसार अगले दो-तीन दिनों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगे बढ़ने के लिए स्थितियां मध्य अरब सागर, कर्नाटक के कुछ और हिस्सों, दक्षिण कोंकण और गोवा, आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्सों, तमिलनाडु के शेष हिस्सों, बंगाल की खाड़ी के कुछ और हिस्सों के साथ ही उत्तर भारत की तरफ बढ़ने के लिए स्थितियां अनुकूल होती जा रही है। मौसम विभाग के अनुसार महाराष्ट्र में रविवार तक पूरे राज्य में हल्की बारिश होने का अनुमान है। पानी की कमी से जूझ रहे महाराष्ट्र में मानसून अपने तय समय से 10 दिन की देरी से पहुंचने की आशंका है।
दिल्ली-एनसीआर में महीने के अंत तक मानसून पहुंचने की उम्मीद
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, दिल्ली में मानसून इस महीने के अंत तक पहुंचने की संभावना है। हालांकि एनसीआर में हो रही प्री-मानसूनी बारिश ने लोगों को गर्मी से राहत दी है। मौसम विभाग का अनुमान है कि आगामी दो-तीन दिनों में दिल्ली एनसीआर में भी हल्की बारिश होने व तेज हवाएं चलने की संभावना है। मौसम की जानकारी देने वाली निजी कंपनी स्काइमेट के मुताबिक, 18 से 24 जून के बीच पंजाब के कई हिस्सों में आंधी और मध्य बारिश होगी। तेलंगाना में 23 से 25 जून के बीच हल्की बारिश हो सकती है।..... आर एस राणा

सूखे से खाद्यान्न उत्पादन में कमी की आशंका, किसान पलायन को मजबूर

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के करीब एक तिहाई भाग में सूखे जैसे हालाता बने हुए हुए हैं, किसानों को सिंचाई के लिए क्या पीने के पानी के भी लाल पड़े हुए है। जिस कारण कई राज्यों से लोग पलायन को मजबूर हैं। सूख के कारण फसल सीजन 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन में भी कमी आने का अनुमान है। पहले 5 वर्ष के दौरान मोदी सरकार ने तमाम वादों के बीच कृषि में नई योजनाओं की शुरुआत की। इन योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया गया पर, तमाम प्रयासों के बावजूद भी कृषि विकास दर अपनी सबसे न्यूनतम स्तर पर चली गई है। वर्तमान में कृषि विकास दर 2.9 फीसदी है जिसे बढ़ाना केंद्र सरकार के लिए मुख्य चुनौती है।

देश के कुल 252 जिलों जोकि कुल जिलों के एक तिहाई सूखे से प्रभावित हैं। खरीफ मानसूनी सीजन 2018 में बारिश सामान्य से कम हुई थी जिस कारण महाराष्ट्र के 26 जिलों को सूखा घोषित किया हुआ है जबकि कर्नाटक के 24 जिलों में सूखा है। झारखंड के 18 जिलों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं तो गुजरात के 11 जिलों में सूखा पड़ा है। इसी तरह से राजस्थान के 9 जिलों में सूखे जैसे हालात है, जबकि आंध्रप्रदेश के 9 और ओडिशा के भी 9 जिलों में सूखा है।

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक मानूसनी सीजन 2018 में बारिश में 9.4 फीसदी की कमी आई थी तथा यह लगातार पांचवा साल था जब बारिश में गिरावट देखी गई। आईएमडी के अनुसार इससे पहले वर्ष 2017 में भी देश के 202 जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई थी, जबकि इसके पहले साल वर्ष 2016 में मानसूनी सीजन में देश के 36 सब डिवीजन में से 10 में बारिश सामान्य से कम हुई थी। सरकार भी समझती है कि कृषि क्षेत्र की समस्याओं को दूर किए बिना देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार नहीं दी जा सकती है। आज भी पूरी आबादी का 70 फीसदी से अधिक हिस्सा प्राथमिक क्षेत्र पर आधारित है। इसमें कृषि की भागीदारी काफी ज्यादा है।
देश के करीब 400 जिलों में खेती संकट
राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (एनआरएए) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) अशोक दलवाई के अनुसार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीआर) की एक रिपार्ट आई थी, जिसमें खेती संकट की बात कही गई है। खेती संकट देश के करीब 400 जिलों में अलग-अलग है। कहीं कम है तो कहीं ज्यादा है। उन्होंने कहा कि देश में 140.1 मिलियन हेक्टेयर में खेती होती है, उसमें 52 फीसदी क्षेत्रफल असिंचित है तथा केवल 48 फीसदी ही सिंचित क्षेत्रफल है। सिंचित क्षेत्र में प्रति हैक्टेयर उत्पादकता औसतन 2.8 टन प्रति हेक्टेयर होती है जबकि असिंचित क्षेत्रफल में औसत उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 1.1 टन हेक्टेयर की है। अत: जो अंतर है दोनों में वह 1.7 टन प्रति हेक्टेयर का है।
खाद्यान्न उत्पादन में भी कमी आने का अनुमान
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में खाद्यान्ना उत्पादन घटकर 28.33 करोड़ टन ही होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 28.50 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था। इस दौरान गेहूं और चावल का तो रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान है लेकिन दलहन और तिलहन के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। दलहन और तिलहन का उत्पादन कम होने से आयात पर निर्भरता बढ़ेगी।
सूखा प्रभावित इलाकों से लोग पलायन करने को मजबूर
स्वाभिमान शेतकारी संगठन के नेता और पूर्व लोकसभा सदस्य राजू शेट्टी ने बताया कि महाराष्ट्र में 1972 से अब तक का सबसे भीषण सूखा पड़ा है। पानी की ऐसी कमी है कि गांवों की महिलाओं को कई-कई किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। राज्य की 358 तहसीलों में से 151 तहसील सूखा प्रभावित घोषित की हुई हैं। राज्य के 13 हजार से ज्यादा गांव-बस्तियों में पानी का संकट है, पशुओं को चारा नहीं मिल रहा है। सूखा प्रभावित इलाकों से लोग पलायन करने को मजबूर हैं। मराठवाड़ा और विदर्भ में हालात ज्यादा खराब है, तथा राज्य के इन क्षेत्रों में हर साल सूखे के कारण हजारों किसान आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं।
चालू सीजन में मानसून के आगमन में हुई देरी
आईआईटी, गांधीनगर द्वारा चलाए जा रहे सूखा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के अनुसार देश के 40 फीसदी से अधिक क्षेत्र में सूखे का सामना करना पड़ सकता है। इसमें से लगभग आधा क्षेत्र गंभीर से असाधारण सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है। केंद्र सरकार ने पत्र लिखकर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु को सलाह दी है कि वो समझदारी से पानी का इस्तेमाल करें। चालू मानसूनी सीजन में मानसून का आगमन ही 8 दिन की देरी से हुआ है। साथ ही कई राज्यों में प्री—मानसून की बारिश भी सामान्य से काफी कम हुई है। वायु चक्रवात ने भी मानसून की चाल को रोक दिया है इसलिए जल्द ही इस संकट ने राहत मिलने की उम्मीद भी कम है।
देश के कई जिलों में स्थिति चिंताजनक
गुजरात का कच्छ जिला लगातार तीसरे साल सूखे की चपेट में है। पिछले 20 साल के बाद ऐसा भीषण सूखा पड़ा है कि स्थिति भयावह हो चली है। बुंदेलखंड क्षेत्र में करीब 181 गांव में पेयजल संकट है, जिसकी वजह से लोग मजबूरन पलायन कर रहे हैं। ओडिशा के नौ जिलों के 5,633 गांवों को सूखा प्रभावित घोषित किया हुआ है। कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और राजस्थान के कई जिलों में पानी का संकट है। हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के भी कई जिलों में जलस्तर डार्क जोन में जा चुका है। घटते जलस्तर के कारण ही हरियाणा सरकार ने धान की खेती के बजाए मक्का और अरहर अगाने वाले किसानों को सहायता राशि देने की घोषणा की है।
जलवायु परिवर्तन और औसत तापमान में बढ़ोतरी से कई क्षेत्रों में सूखा
देश के लगभग हर भाग में लगातार बढ़ते जा रहे जल संकट से निपटने के लिए जल स्रोतों और जलाशयों, भूजल तथा सिंचाई संसाधनों का विवेकपूर्ण और उचित उपयोग सीखना होगा। बीते दशक में जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक गतिविधियों और उपभोग की बदलती आदतों से वैश्विक स्तर पर जल की खपत हर साल एक फीसदी की दर से बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन और औसत तापमान में बढ़ोतरी की वजह से भी कई क्षेत्रों में सूखापन बढ़ रहा है।
वर्ष 2030 तक देश की 40 फीसदी आबादी इस गंभीर समस्या की चपेट में होगी
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगले एक वर्ष में जलसंकट की इस समस्या से 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे, वहीं 2030 तक देश की 40 फीसदी आबादी इस गंभीर समस्या की चपेट में होगी। इस आसन्न संकट से निपटने के लिए ठोस पहल की जरुरत है। सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने, वर्षा जल का संग्रहण और पौधारोपण जैसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना होगा। जल प्रबंधन, कृषि, शहरी नियोजन और पारिस्थितिकी संरक्षण के लिए भी बड़े स्तर पर मुहिम चलानी होगी। पानी के संरक्षण, संग्रहण और उपयोग पर व्यापक नीति बनाने तथा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय पर ध्यान दिये बिना जल संकट का दीर्घकालिक समाधान नहीं हो सकता है।....... आर एस राणा

उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ना किसान का बकाया 10,400 करोड़ से ज्यादा

आर एस राणा
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों में गन्ने की पेराई बंद हो चुकी है लेकिन मिलों पर अभी भी 10,400 करोड़ रुपये से ज्यादा का बकाया बचा हुआ है। बकाया में चालू पेराई सीजन का 10,343 करोड़ रुपये है जबकि इसके पिछले दो पेराई सीजन 2017-18 और 2016-17 का भी 72.24 करोड़ रुपये बचा हुआ है।
उत्तर प्रदेश के चीनी उद्योग एवं गन्रा विकास विभाग के अनुसार पहली अक्टूबर 2018 से शुरू चालू पेराई सीजन में राज्य की चीनी मिलों ने किसानों से 33,015 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा है जिसमें से 14 जून 2019 तक भुगतान 22,608 करोड़ रुपये का किया है। अत: गन्ना खरीदने के 14 दिन के अंदर बकाया भुगतान के आधार पर राज्य की चीनी मिलों पर 10,343 करोड़ रुपये का बकाया बचा हुआ है। कुल बकाया में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी राज्य की प्राइवेट चीनी मिलों पर 9,838 करोड़ रुपये तथा राज्य की को-आपरेटिव चीनी मिलों पर 444 करोड़ रुपये बकाया है।
पिछले दो पेराई सीजन का भी बचा हुआ है बकाया
राज्य की चीनी मिलों पर पेराई सीजन 2017-18 का भी 49.95 करोड़ रुपये बकाया बचा हुआ है जोकि निजी चीनी मिलों पर है। इसके पिछले पेराई सीजन 2016-17 का भी राज्य की निजी चीनी मिलों ने 22.29 करोड़ रुपये का बकाया किसानों को अभी तक भुगतान नहीं किया है। पेराई सीजन 2017-18 में राज्य की चीनी मिलों ने किसानों से 35,463 करोड़ रुपये का गन्ना खरीदा था, जबकि इसके पिछले पेराई सीजन में 25,386 करोड़ रुपये मूल्य का गन्ना खरीदा था।
चीनी उत्पादन में आई पिछले साल से कमी
चालू पेराई सीजन में राज्य में गन्ने में रिकवरी की दर औसतन 11.48 फीसदी की आई है जोकि इसके पिछले पेराई सीजन के 10.85 फीसदी से ज्यादा है। पहली अक्टूबर 2018 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में राज्य में चीनी का उत्पादन घटकर 118.23 लाख टन का ही हुआ है जबकि इसके पिछले पेराई सीजन में राज्य में 120.50 लाख टन का उत्पादन हुआ था जोकि रिकार्ड था। .......  आर एस राणा

लागत कम होने के कारण किसान हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की कर रहे हैं बुवाई

आर एस राणा
नई दिल्ली। बोलगार्ड 1 और बोलगार्ड 2 के मुकाबले लागत कम होने के कारण किसान प्रतिबंधित हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की बुवाई कर रहे हैं। कपास किसान प्रमोद तालमले ने बताया कि एचटीबीटी कपास की खेती में कीटनाशकों का छिड़काव कम होने के कारण लागत तो कम आती ही है, साथ ही प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी ज्यादा है। यही कारण है कि रोक के बावजूद किसान इसकी बुवाई को प्राथमिकता दे रहे हैं।
हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कॉटन, बीटी कॉटन में इनोवेशन है। इसमें राउंड-अप रेडी और राउंड-अप फ्लेक्स (आरआरएफ) जीन शामिल हैं। इसे यूएस-आधारित बहुराष्ट्रीय बीज कंपनी मोनसेंटो द्वारा विकसित और वाणिज्यिक किया गया है।
करीब 10 से 15 फीसदी में हो रही है इसकी खेती
केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र (सीआईसीआर) नागपुर के निदेशक डॉ. वीएन वाघमारे ने बताया कि देश में हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती को जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (जीईएसी) ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है। सरकार ने वर्ष 2017 में एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें देश के कई राज्यों में कपास के कुल रकबे में 10 से 15 फीसदी में एचटीबीटी की खेती करने की जानकारी मिली थी। इस पर पीएमओ ने एक समिति गठित की थी, समिति ने इसकी खेतो को रोकने के लिए राज्य सरकार को पत्र भी लिखा है, तथा अपनी रिपोर्ट पीएमओ को सौंप दी है।उन्होंने बताया कि हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती में खरपतवार को नष्ट करने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव कम करना पड़ता है अत: रोक के बावजूद कई राज्यों में किसान इसकी खेती कर रहे हैं।
कपनी ने व्यावसायिक खेती के लिए जीईएसी को दिया आवेदन लिया था वापिस
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के निदेशक डा. कुलदीप सिंह ने बताया कि मोनसेंटो और बायर दोनों ने भारत में 2007-09 के बीच एचटीबीटी कपास का परीक्षण किया था। मोनसेंटो की भारतीय सहायक कंपनी महिको (महाराष्ट्र हाइब्रिड सीड्स कंपनी) 2013 से हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की व्यावसायिक खेती के लिए जीईएसी से अनुमति की मांग कर रही थी, जिसे अगस्त 2016 में कपनी ने वापस ले लिया। उन्होंने बताया कि हाल ही में हरियाणा में बीटी बैंगन की खेती का मामला भी सामने आया था जिसे उखाड़कर गड्डे में दबा दिया गया।
ग्लाइफोसेट नामक खरपतवार से बचाने के लिए पौधे को ताकत प्रदान करता है
शेतकरी संगठन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ के प्रमुख अजीत नारडे ने बताया कि एचटीबीटी कपास तीसरी पीढ़ी का आनुवंशिक रूप से संशोधित तकनीक है जो अपने आप को ग्लाइफोसेट नामक खरपतवार से बचाने के लिए पौधे को ताकत प्रदान करता है। देश में कपास के रकबे में करीब 12 से 15 फीसदी क्षेत्रफल में इसकी खेती होती है। किसानों को इसके बीज एजेंटों द्वारा खरीदने पड़ते हैं जिनकी कोई गांरटी नहीं होती, साथ ही बीज भी महंगे दाम पर खरीदने पड़ते हैं। ऐसे में अगर सरकार हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास की खेती को अनुमति दे, तो किसानों को उचित दाम पर बीज मिल सकेंगे। साथ ही उत्पादकता ज्यादा होने के कारण किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बताया कि जो लोग हर्बिसाइड-टोलरेंट (एचटी) कपास का विरोध कर रहे हैं, उनका कपास की खेती से कोई लेना-देना नहीं है।
रुई की क्वालिटी भी है बेहतर
महाराष्ट्र के कपास किसान प्रमोद तालमले ने 3 हेेक्टेयर में एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। उन्होंने बताया कि बोलगार्ड 1 एवं बोलगार्ड 2 के मुकाबले एचटीबीटी का उत्पादन दोगने के करीब है, साथ ही खरपतवार कम होने के कारण कीटनाशकों का छिड़काव भी कम करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि रुई की क्वालिटी भी काफी अच्छी है। अकोला जिले की अकोट तहसील के जेतपूर गांव के किसान संजय शेलके ने भी अपने खेत में एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। अकोला जिले के तालूका तेलहाड़ा जिले के किसान नीलेश निमाले ने प्रतिबिंधित एचटीबीटी कपास की बुवाई की है। .............आर एस राणा

16 जून 2019

कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने की प्रधानमंत्री से मुलाकात, सूखे से निपटने के लिए सहायता राशि मांगी

आर एस राणा
नई दिल्ली। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर गंभीर सूखे से जूझ रहे राज्य को केंद्रीय सहायता देने की मांग की। राज्य में 45 फीसदी बारिश कम हुई थी।
लोकसभा चुनाव से पहले, केंद्र को दिए गए अपने ज्ञापन में राज्य सरकार ने रबी सीजन के दौरान सूखे की मार झेल रहे किसानों को राहत देने के लिए 2,064 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की मांग की थी। कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि मनरेगा योजना के तहत लंबित धनराशि को जल्द से जल्द जारी किया जाए।
मनरेगा के तहत राशि जल्दी करने का किया अनुरोध
बैठक में कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री जानकारी दी कि राज्य को इस साल सूखे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि खरीफ सीजन में मानसूनी बारिश में 45 फीसदी कम हुई थी। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि वे इस स्थिति से निपटने के लिए राज्य की मदद करें। कुमारस्वामी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत राज्य को 1,500 करोड़ रुपये के लंबित धन का मामला भी उठाया और केंद्र से इस राशि को जल्द से जल्द जारी करने का अनुरोध किया।
राज्य के 30 जिलों में सूखे का असर
कर्नाटक ने राज्य के 30 जिलों के 156 तालुका में सूखा घोषित किया हुआ है। 107 तालुका गंभीर सूखे का सामना कर रहे हैं, जबकि 49 तालुकों में मध्यम सूखा है। राज्य में सूखे के कारण लगभग 20.40 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हुई है। राज्य सरकार के अनुसार, 19.46 लाख हेक्टेयर में फसलों को नुकसान का अनुमान है। राज्य ने 2018-19 फसल वर्ष (जुलाई-जून) के खरीफ सीजन के दौरान सूखे का सामना किया था।.....  आर एस राणा

मई में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में पांच फीसदी की कमी आई

आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में मई में पांच फीसदी की कमी आकर कुल आयात 12,21,989 टन का हुआ है जबकि पिछले साल मई में इनका आयात 12,86,240 टन का आयात हुआ था। इस दौरान 11,80,786 टन खाद्य एवं 41,203 टन अखाद्य तेलों का आयात हुआ है।
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष 2018-19 (नवंबर-18 से अक्टूबर-19) के पहले सात महीनों में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात 2 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 87,63,678 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 86,04,535 टन का हुआ था। चालू तेल वर्ष के पहले सात महीनों में आरबीडी पॉमोलीन का आयात 38 फीसदी बढ़कर 15,70,112 टन का हुआ है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इसका आयात 11,38,185 टन का हुआ था। मलेशिया द्वारा क्रुड पॉम तेल और रिफाइंड तेल के निर्यात शुल्क में अंतर कम किए जाने से क्रुड के बजाए आरबीडी पॉमोलीन तेल का आयात बढ़ा है।
अप्रैल के मुकाबले मई में आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में आई गिरावट
एसईए के अनुसार उपलब्धता ज्यादा होने के कारण साल भर में विदेशी बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में 8 से 20 फीसदी का मंदा आया है। सालभर में रुपया भी डॉलर के मुकाबले करीब तीन फीसदी कमजोर हुआ है। आयातित खाद्य तेलों की कीमतों में भी अप्रैल के मुकाबले मई में गिरावट आई है। आरबीडी पॉमोलीन का भाव घटकर भारतीय बंदरगाह पर मई में औसतन 543 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि अप्रैल में इसका भाव 569 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रुड पॉम तेल का भाव अप्रैल में 530 डॉलर प्रति टन था, जोकि मई में घटकर 498 डॉलर प्रति टन रह गया। हालांकि कुड सोयाबीन तेल की कीमतों में इस दौरान जरुर हल्का सुधार आया है। अप्रैल में कुड सोयाबीन तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर 692 डॉलर प्रति टन था, जोकि मई में बढ़कर 703 डॉलर प्रति टन हो गया।.....   आर एस राणा

मक्का किसानों को उचित भाव मिलने लगा तो सरकार ने एक लाख टन आयात की दी मंजूरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। मक्का किसानों को फसल का उचित भाव मिलने लगा तो सरकार ने एक लाख टन मक्का के आयात की मंजूरी दे दी, जिसका असर आगे कीमतों पर पड़ सकता है। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए मक्का का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,700 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है तथा रबी में मक्का के प्रमुख उत्पादक राज्य बिहार की मंडियों में भी मक्का 1,700 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार 15 फीसदी आयात शुल्क पर एक लाख टन फीड मक्का का आयात किया जायेगा। सार्वजनिक कंपनी एमएमटीसी और नेफेड 50,000—50,000 टन मक्का का आयात करेंगी। आयातित मक्का आने पर घरेलू बाजार में मक्का की कीमतों पर इसका असर पड़ने की संभावना है।
उत्पादक मंडियों में समर्थन मूल्य पर बिक रही है मक्का
बिहार की नौगछिया मंडी के मक्का कारोबारी पवन अग्रवाल ने बताया कि शनिवार को मंडी में मक्का के भाव 1,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। पिछले दो दिनों में मक्का की कीमतों में 40 से 50 रुपये प्रति क्विंटल का सुधार आया है। उन्होंने बताया कि चालू रबी में राज्य में मक्का का उत्पादन कम होने का अनुमान है इसीलिए भाव में सुधार आया है। दिल्ली के मक्का कारोबारी कमलेश जैन ने बताया कि बिहार की मक्का के हरियाणा और पंजाब पहुंच मक्का के सौदे 1,900 से 1,925 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि हिमाचल और पंजाब में समर मक्का की आवक हो रही है, लेकिन आवक कम होने के कारण भाव में सुधार आया है।
कई राज्यों में उत्पादन में आई कमी
सूत्रों के अनुसार पिछले मानसून सीजन में बारिश सामान्य से कम होने के साथ ही कई राज्यों में कीट फाल आर्मीवर्म के संक्रमण के कारण खरीफ 2018 में मक्का की फसल को कई राज्यों में नुकसान हुआ था, जिस कारण गुजरात, महाराष्ट्र के साथ ही कर्नाटक आदि में मक्का का उत्पादन कम हुआ था। रबी सीजन में मक्का का उत्पादन सबसे ज्यादा बिहार में होता है, तथा बिहार में उत्पादन कम होने का अनुमान है।
वर्ष 2015 में भी हुआ था मक्का का आयात
मई में एडवांस लाइसेंस के तहत स्टार्च मिलों ने करीब 80 हजार टन मक्का के आयात सौदे किए थे। आयातकों ने यूक्रेन से लगभग 205 डॉलर प्रति टन की दर से आयात सौदे किए थे, जोकि बंदरगाह के आस-पास स्थित स्टार्च मिलों को सस्ती पड़ रही थी। जीएम होने के कारण ब्राजील और अमेरिका से मक्का के आयात की संभावना नहीं है। सूत्रों के अनुसार इससे पहले वर्ष 2015 में भी केंद्र सरकार ने पांच लाख टन मक्का के आयात की अनुमति दी थी, लेकिन आयात हुआ था केवल 2.5 लाख टन।
मक्का उत्पादन में कमी का अनुमान
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में रबी सीजन में मक्का का उत्पादन घटकर 71.9 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 86.3 लाख टन का उत्पादन हुआ था। देश में खरीफ में मक्का का उत्पादन ज्यादा होता है। फसल सीजन 2018-19 में खरीफ और रबी सीजन को मिलाकर कुल उत्पादन 278.2 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 287.5 लाख टन का उत्पादन हुआ था।.......  आर एस राणा

प्री-मानसून की बारिश कम होने के कारण खरीफ फसलों की बुवाई पिछड़ी

आर एस राणा
नई दिल्ली। कई राज्यों में सूखे जैसे हालात होने के साथ ही प्री-मानसून की बारिश कम होने के कारण खरीफ फसलों की बुवाई 8.14 फीसदी पिछे चल रही हैं। खरीफ की प्रमुख फसल धान के साथ ही दलहन, मोटे अनाज और कपास की बुवाई पिछे चल रही है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक 82.20 लाख हेक्टयेर में ही खरीफ फसलों की बुवाई हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 90.34 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। हालांकि खरीफ फसलों की बुवाई अभी शुरूआती चरण में है तथा आगामी दिनों में बुवाई में तेजी आने का अनुमान है।
धान और मोटे अनाजों की बुवाई भी पिछड़ी
खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 4.26 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 5.47 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो चुकी थी। दालों की बुवाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 1.04 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 2.11 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मोटे अनाजों की बुवाई पिछले साल के 7.13 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू खरीफ में अभी तक केवल 5.28 लाख हेक्टेयर में ही हुई है।
तिलहन, कपास और गन्ने की बुवाई कम
तिलहन की बुवाई चालू खरीफ में अभी तक केवल 1.04 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इस समय तक 1.79 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। कपास की बुवाई भी चालू खरीफ में पिछले साल के 16.92 लाख हेक्टेयर से घटकर केवल 15.32 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। गन्ने की बुवाई चालू खरीफ में 49.21 लाख हेक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 50.44 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।..... आर एस राणा

रोक के बावजूद एचटीबीटी कपास की बुवाई करने पर अड़े महाराष्ट्र के किसान

आर एस राणा
नई दिल्ली। रोक के बावजूद महाराष्ट्र के यवतमाल, परभणील, वर्धा और गढ़चिरौली के किसान हर्बिसाइड-टोलरेंट बीटी (एचटीबीटी) कपास की बुवाई कर रहे हैं। यवतमाल तालूक के किसान विजय निवाल ने कहा कि उन्होंने इस बार दो एकड़ में एचटीबी कपास की बुवाई की है। परभणी के एक किसान गजानन देशमुख ने बताया कि एचटीबीटी से प्रति हेक्टेयर उत्पादन तो ज्यादा हो रहा है, जबकि इसमें कीटनाशकों का उपयोग भी करना पड़ता है।
कपास किसान विजय निवाल ने बताया कि एक एकड़ में एचटीबीटी की फसल लगाने पर फसल पकने तक खर्च औसत खर्च आता है कि 22,700 रुपये तथा प्रति एकड़ उत्पादन औतसन 10 क्विंटल का होता है। सरकार ने कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। अत: एक एकड़ में 54,500 रुपये की फसल होती है। दूसरी तरफ अगर एक एकड़ में बीटी कपास की बुवाई करते हैं तो उसमें फसल पकने तक 110 दिन में खर्च आता है करीब 26,000 रुपये, जबकि औसत उत्पादन होता है 5 से 6 क्विंटल प्रति एकड़। अत: फसल हुई 25 से 30 हजार रुपये की। ऐसे में एचटीबीट कपास की खेती पर हमें लगभग दोगुना फायदा होता है।
एचटीबीटी की खेती करने पर जुर्माने और सजा का प्रावधान
उन्होंने बताया कि एचटीबीटी में खरतवार कम होता है, जिस कारण कीटनाशकों का छिड़काव केवल दो से तीन बार करना पड़ता है, जबकि बीटी कपास की फसल में 8 से 10 तक कीटनाशकों का छिड़काव करना पड़ता है। महाराष्ट्र सरकार के कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राज्य में एचटीबीटी कपास की बुवाई करने पर 1,00,000 लाख रुपये का जुर्माना और पांच साल की सजा का प्रावधान है। इस बारे में अभी जानकारी नहीं मिली है, जानकारी मिलने पर कार्यवाही की जायेगी।
एचटीबीटी कपास में औसत उत्पादन दोगुने के करीब
किसान गजानन देशमुख ने बताया कि पिछले साल मैंने तीन एकड़ में एचटीबीटी और दो एकड़ में पुराने बीटी की फसल लगाई थी। जहां एचटीबीटी का औसत: उत्पादन 12 क्विंटल हुआ, वहीं बीटी से औसत उत्पादन 6 से 7 क्विंटल मिला। इसलिए इस बार भी मैं एचटीबीटी की फसल की बुवाई करूंगा। उन्होंने बताया कि सरकार अगर एचटीबीट कपास को अनुमति दे देती है तो फिर किसानों को उचित दाम पर बीज मिल सकेंगे। उन्होंने बताया कि पुराने बीटी के 450 ग्राम के पैकेट का भाव 740 रुपये है जबकि हम एजेंट के माध्यम से एचटीबीटी कपास का पैकेट 800 रुपये में खरीदना पड़ता है। उन्होंने बताया कि राज्य में एचटीबीटी कपास के बीज गुजरात से लाकर एजेंटों द्वारा बेचे जा रहे हैं।
आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की बुवाई की दी जाए अनुमति
शेतकारी संगठन का कहना है कि किसानों के लिए लाभकारी होने के कारण सरकार से मांग की है कि आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के उपयोग की अनुमति दे जाए। गन्ना किसान और शेतकरी संगठन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठ के प्रमुख अजीत नारडे ने बताया कि जीएम फसलें न केवल किसानों के लिए बल्कि भारत की आर्थिक समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि सभी विकसित देशों में जीएम फसलों का उत्पादन हो रहा है, हमारे यहां भी करीब 10 से 15 फीसदी क्षेत्रफल में एचटीबीटी कपास की बुवाई अवैध रुप से की जा रही है, इसलिए सरकार को इसके उपयोग की अनुमति दे देनी चाहिए ताकि किसानों को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने बताया कि मक्का, सोया, कपास जैसी एक दर्जन जीएम फसलों की दुनिया भर में बुवाई की जा रही है, पिछले दो दशकों से लाखों लोग और पशुधन इन्हें खा रहे हैं। मनुष्यों या जानवरों पर किसी भी प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव का कोई सबूत नहीं है। ....... आर एस राणा

सूखे के कारण आगामी पेराई सीजन में चीनी उत्पादन में कमी आने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली। देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात के कारण पहली अक्टूबर 2019 से शुरू होने वाले पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। उद्योग के अनुसार आगामी पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन घटकर 280 से 290 लाख टन होने का अनुमान है जबकि चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 320 लाख टन होने का अनुमान है।
राष्ट्रीय सहकारी चीनी कारखाना संघ लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे का कहना है कि ब्राजील के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश भारत में आगामी पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन कम होने का अनुमान है। सूखे के कारण पेराई सीजन 2019-20 (अक्टूबर से सितंबर) चीनी का उत्पादन घटकर 280 से 290 लाख टन रहने का अनुमान है। चालू पेराई सीजन में लाख टन और उसके पहले 320 लाख टन टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इस तरह आगामी पेराई सीजन में यह तीन वर्षों के निचले स्तर पर पहुंच जाएगा।
महाराष्ट्र-कर्नाटक में सूखे की ज्यादा मार
सबसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों में शामिल महाराष्ट्र के साथ ही कर्नाटक में सूखे की मार सबसे ज्यादा पड़ी है। महाराष्ट्र के चीनी आयुक्त शेखर गायकवाड का कहना है कि कम बारिश की वजह से इस साल प्रदेश में गन्ने का रकबा करीब 28 फीसदी कम हो गया है। इस कारण चीनी उत्पादन भी पिछले साल के 65 लाख टन के मुकाबले 39 फीसदी कम रहने का अनुमान है। कर्नाटक में अमूमन 5 जून को और महाराष्ट्र में 10 जून को मानसून आ जाता है, लेकिन इस साल इसमें देरी हो रही है।
गन्ना चारे में हो रहा है इस्तेमाल
सूखे की मार झेल रहे राज्यों में पानी की कमी के कारण जानवरों के लिए चारे का उत्पादन भी नहीं हो सका है। ऐसे में किसान गन्ने का इस्तेमाल अपने जानवरों के चारे के रूप में कर रहे हैं। महाराष्ट्र के एक किसान रामदास पवार का कहना है कि उन्होंने दो एकड़ गन्ने की खेती को मवेशियों के शिविरों में बेच दिया। उन्होंने कहा कि अगले 6-8 महीने तक इसकी सिंचाई का साधन नहीं है और चारे के खरीदार मिलों की अपेक्षा बेहतर दाम भी दे रहे हैं।
कीमतों में सुधार आने की उम्मीद
पिछले साल चीनी का बंपर उत्पादन होने से घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में भारी गिरावट आई थी। साथ ही वैश्विक स्तर पर भी चीनी के दाम 20 फीसदी तक लुढ़क गए थे। एस्मा के अनुसार, देश में चीनी का भंडार काफी ज्यादा बढ़ गया है और इस साल उत्पादन कम होने से इसे खपाने में मदद मिलेगी। साथ ही कीमतों को भी सहारा मिलेगा जिसका लाभ मिलों और किसानों तक पहुंचेगा।......   आर एस राणा

केंद्र ने अरहर आयात की मात्रा को बढ़ाकर किया दोगुना, खुले बाजार में दो लाख टन बेचने का फैसला

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अरहर के आयात की मात्रा को दो लाख टन से बढ़ाकर चार लाख टन कर दिया है। दाल मिलें अक्टूबर तक चार लाख टन अरहर का आयात कर सकेंगी, साथ ही घरेलू बाजार में दालों की कीमतों को स्थिर रखने के लिए सरकार ने खुले बाजार में दो लाख टन अरहर बेचने का फैसला किया है।
खाद्य मंत्री राम विलास पासवान की अध्यक्षता में अंतर-मंत्रालयी समिति की बैठक में उक्त निर्णय किये गए। बैठक में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के सचिवों के अलावा नाफेड तथा विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी)  के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया। बैठक के बाद खाद्य मंत्री ने संवाददाताओं से कहा कि केवल मीडिया रिपोर्ट में अरहर दाल के दाम में तेजी की बात है। वैसे सरकार के पास अरहर दाल समेत दलहन के पर्याप्त भंडार हैं। समिति ने इस संदर्भ में 2-3 निर्णय किये हैं। देश में दाल की उपलब्धता पर चर्चा के बाद पासवान ने कहा कि सरकार ने निजी दाल मिलों माध्यम से अरहर दाल की आयात मौजूदा सीमा को 2 लाख टन से बढ़ाकर 4 लाख टन करने का निर्णय किया है। इसका आयात दाल मिलों द्वारा अक्टूबर तक किया जायेगा।
दो लाख टन की दी थी पहले अनुमति
उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि करीब 4 लाख टन अरहर दाल का आयात 30 अक्टूबर तक किया जाएगा। वाणिज्य मंत्रालय ने पहले 2 लाख टन अरहर दाल के आयात की अनुमति दी थी, साथ ही आयात के लिए दाल मिलों को लाइसेंस जारी कर रही है। सरकार ने स्थानीय किसानों के हितों की रक्षा के लिये 2017 में 2 लाख टन आयात सीमा लगाई थी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा समिति ने द्विपक्षीय आधार पर मोजाम्बिक से 1.75 लाख टन अरहर दाल के आयात की अनुमति दी है।
सरकार बाजार भाव पर बेचेगी दालें
पासवान ने यह भी कहा कि कीमतों पर अंकुश लगाने के लिये समिति ने करीब 2 लाख टन अरहर दाल बफर स्टॉक से खुले बाजार में बेचने का फैसला किया है। नोफेड से अरहर दाल बाजार में बिना नफा-नुकसान के बेचने को कहा गया है। मंत्री ने कहा कि इन उपायों से अरहर दाल की उपलब्धता बढ़ाने और कीमतों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। कीमतों में वृद्धि मनोवैज्ञानिक आधार पर है। मानसून में देरी की आशंका से उत्पादन में गिरावट के अनुमान आधारित है।
दलहन उत्पादन अनुमान में कमी आने का अनुमान
उन्होंने कहा कि सरकार जमाखोरों तथा कालाबजारी करने वालों पर भी नजर रखेगी और किसी को भी ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी की अनुमति नहीं देगी। पासवान ने कहा कि सरकार के पास 39 लाख टन दाल का बफर भंडार है। इसमें अरहर दाल करीब 7.5 लाख टन है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में दाल का उत्पादन 2018-19 में घटकर 232 लाख टन रहने का अनुमान है जो इससे पूर्व वर्ष में 254.2 लाख टन था।........ आर एस राणा

12 जून 2019

किसानों को मिलने लगा उचित भाव तो सरकार ने प्याज के निर्यात पर ली छूट वापिस

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्याज किसानों को उचित भाव मिलने लगा तो सरकार ने निर्यात पर दी जा रही छूट को वापिस ले लिया। इससे प्याज की कीमतों मेें हुई बढ़ोतरी रुक सकती है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार प्याज पर एमईआईएस के लाभ को तत्काल 10 फीसदी से घटाकर शून्य कर दिया गया है।
प्याज के निर्यातक पर मर्चेंडाइज एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (एमईआईएस) के तहत निर्यात माल के एफओबी (लदान मूल्य) के 10 फीसदी के बराबर शुल्क की पर्ची का लाभ दिया जा रहा था। इस पर्ची का इस्तेमाल मूल आयात शुल्क सहित कई प्रकार के शुल्कों के भुगतान में इस्तेमाल किया जा सकता है। डीजीएफटी ने कहा कि वह ताजा और शीत भंडारित प्याज के निर्यात के लिए दिए जाने वाले लाभों को समाप्त कर रहे है। इसमें कहा गया है प्याज पर एमईआईएस के लाभ को तत्काल 10 फीसदी से घटाकर शून्य कर दिया गया है।
सूखे के मद्देनजर लिया फैसला
पिछले साल दिसंबर में इस योजना के तहत प्याज निर्यात पर प्रोत्साहन की दर को पांच फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया था। इसे इस वर्ष 30 जून तक जारी रखना था। प्रोत्साहन को वापस लेने का निर्णय इस मायने में महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार ने उत्पादक राज्यों में सूखे की स्थिति को देखते हुए आने वाले महीनों में कीमतों को अंकुश में रखने के लिए 50,000 टन प्याज का बफर स्टॉक बनाना शुरू कर दिया है।
किसानों को मिलने लगा था उचित भाव
प्याज के सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र के लासलगांव में मंगलवार को प्याज का भाव 600 से 1,428 रुपये प्रति क्विंटल हो गया जबकि राज्य के पीपलगांव में इसका भाव 400 से 1,601 रुपये प्रति क्विंटल रहा। 13 मई को लासलगांव में प्याज का भाव 400 से 851 रुपये और पीपलगांव में 200 से 1,121 रुपये प्रति क्विंटल था। खुदरा में प्याज 20 से 25 रुपये प्रति किलो बिक रहा है।
उत्पादन वाले राज्यों में सूखा
महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख प्याज उगाने वाले राज्य इस साल सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2018-19 में प्याज का उत्पादन 232.8 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल प्याज का उत्पादन 232.6 लाख टन हुआ था। सरकार के द्वारा सूखे के प्रभाव के कारण अनुमान को संशोधित किये जाने की उम्मीद है। भारत में प्याज का उत्पादन रबी और खरीफ दोनों सीजनों में होता है, तथा कुल उत्पादन का 60 फीसदी हिस्सा रबी सीजन में होता है।
पिछले साल प्याज किसानों को नीचे भाव बेेचनी पड़ी थी फसल
इस साल महाराष्ट्र में पानी की कमी के चलते प्याज की फसल प्रभावित होने की आशंका है। इसी के मद्देनज़र सरकार ने प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी होने से पहले 50,000 टन प्याज का भंडारण करना शुरू कर दिया है। पिछले वर्ष प्याज के अधिक उत्पादन के चलते किसानों को इसे महज 50 पैसे और एक रुपये प्रति किलो की सस्ती कीमत पर बेचना पड़ा था।
महाराष्ट्र का 60 फीसदी हिस्सा सूखे की चपेट में
इस वर्ष महाराष्ट्र में पानी की कमी के कारण सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। जिसके कारण यहां के इलाकों में प्याज़ के उत्पादन में कमी की आशंका है। उत्पादन में कमी के कारण, अप्रैल से नवम्बर के दौरान होने वाली प्याज़ की मांग बढ़ने से कीमतों में बढ़ोत्तरी भी हो सकती है। महाराष्ट्र का 60 फीसदी हिस्सा पानी की भयानक कमी से जूझ रहा है।............ आर एस राणा

वायु तूफान से निपटने के लिए गृह मंत्री ने की बैठक, सेना को किया अलर्ट

आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चक्रवात तूफान 'वायु' से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए संबंधित राज्य और केंद्रीय मंत्रालयों और एजेंसियों की तैयारियों की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक की है। इस दौरान उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को प्रभावित क्षेत्रा में उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए हर संभव उपाय खोजने के निर्देश दिए। भारतीय तटरक्षक बल, नौसेना, थल सेना और वायु सेना की इकाइयां निगरानी के लिए तैनात कर दी गई हैं।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अरब सागर में कम दबाव का क्षेत्र बनने के कारण चक्रवाती तूफान 'वायु' तेज हो गया है। विभाग के मुताबिक अब ये तूफान गुजरात की ओर बढ़ रहा है। गुजरात के तटीय इलाकों में चक्रवात का खतरा मंडरा रहा है। मौसम विभाग द्वारा मंगलवार को जारी बुलेटिन के अनुसार, सुदूर समुद्र में हवा के कम दबाव का क्षेत्र तेजी से बनने के कारण ‘वायु’ के 13 जून को गुजरात के तटीय इलाकों पोरबंदर और कच्छ क्षेत्र में पहुंचने की संभावना है।
गुजरात सरकार ने किया ‘हाई अलर्ट’ जारी
विभाग ने अगले 24 घंटों में चक्रवाती तूफान के और अधिक गंभीर रूप धारण करने की संभावना व्यक्त करते हुये कहा कि उत्तर की ओर बढ़ता ‘वायु’ 13 जून को सुबह गुजरात के तटीय इलाकों में पोरबंदर से महुवा, वेरावल और दीव क्षेत्र को प्रभावित करेगा। इसकी गति 115 से 130 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है। इसे देखते हुए गुजरात सरकार ने भी ‘हाई अलर्ट’ जारी करते हुये सौराष्ट्र और कच्छ इलाकों में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के जवानों को तैनात किया है।
मछुआरों को अगले कुछ दिनों तक समुद्र में नहीं जाने की सलाह
तटीय क्षेत्रों में मछुआरों को अगले कुछ दिनों तक समुद्र में नहीं जाने की सलाह दी गई है। साथ ही बंदरगाहों को खतरे के संकेत और सूचना जारी करने को कहा गया है। बता दें कम दबाव वाले क्षेत्र ने गर्म समुद्री हवाओं की वजह से सोमवार को डिप्रेशन का रूप ले लिया था जो मंगलवार को चक्रवात में बदल गया। इस चक्रवाती तूफान का नाम वायु है, जो कि भारत द्वारा ही दिया गया है। मौसम विभाग का कहना है कि गुरुवार तक 'वायु' तूफान अपने चरम पर होगा।
लक्षद्वीप और पूर्व-मध्य अरब सागर में ऊंची लहरें उठने का अनुमान
विभाग ने संभावना जताई है कि 11 जून को लक्षद्वीप और पूर्व-मध्य अरब सागर में ऊंची-ऊंची लहरें उठ सकती हैं। आईएमडी मुंबई के डीडीजीएम केएस होसालिकर का कहना है कि मुंबई भी चक्रवाती तूफान वायु से प्रभावित होगा, लेकिन गंभीर रूप से नहीं। बुधवार को तूफान मुंबई के तट पर आ सकता है। तट के आसपास रहने वाले लोगों और मछुआरों के लिए अलर्ट जारी कर दिया गया है।
बुधवार और गुरूवार को तेज हवा और बारिश के आसार
अरब सागर से उठा समुद्री तूफान तेजी से उत्तर की ओर आगे बढ़ रहा है। मौसम विभाग ने इसे अगले चौबीस घंटे में सौराष्ट्र के तटीय इलाकों में पहुंचने की संभावना जताई है। ये पोरबंदर और महुआ के बीच से गुजरात में पहुंच सकता है। ऐसे में बुधवार और गुरूवार को गुजरात के कई इलाकों में तेज हवाओं के साथ बारिश होने की आशंका है। इसके साथ ही महाराष्ट्र के तटीय इलाकों में भी बारिश होने का अनुमान है। इस तूफान का असर मॉनसून की चाल पर पड़ सकता है। स्काईमेट के अनुसार समुद्री तूफान सौराष्ट्र की ओर बढ़ रहा है। बुधवार-गुरुवार तक आंधी के साथ ही बारिश की चेतावनी जारी की गई है। ...........आर एस राणा

09 जून 2019

डीओसी के निर्यात में 78 फीसदी की आई भारी गिरावट, विश्व बाजार में दाम कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। विश्व बाजार में कीमतें कम होने के कारण मई में डीओसी के निर्यात में 78 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 58,549 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल मई में इनका निर्यात 2,63,644 टन का निर्यात हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2019-20 के पहले दो महीनों अप्रैल से मई के दौरान डीओसी के निर्यात में 36 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 3,13,134 टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 4,87,995 टन का निर्यात हुआ था।
सोया तथा सरसों डीओसी निर्यात कम
साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार विश्व बाजार में सोया डीओसी के साथ ही सरसों डीओसी की कीमतें नीचे बनी हुई हैं, जिस कारण हमारे यहां से निर्यात पड़ते नहीं लग रहे हैं। अप्रैल के मुकाबले मई में सोया डीओसी के साथ ही सरसों डीओसी, राइसब्रान और केस्टर डीओसी के निर्यात में भा गिरावट आई है। अप्रैल में सोया डीओसी का निर्यात 40,829 टन का हुआ था जोकि मई में घटकर 18,470 टन का ही रह गया। सरसों डीओसी का निर्यात अप्रैल में 1,20,630 टन का हुआ था जोकि मई में घटकर 19,519 टन का ही रह गया।
राइब्रान और केस्टर डीओसी का निर्यात भी घटा
एसईए के अनुसार मई में राइब्रसान डीओसी का निर्यात घटकर 4,200 टन का ही हुआ है जबकि अप्रैल में 26,750 टन का निर्यात हुआ था। केस्टर खली का निर्यात भी अप्रैल के 66,285 टन से घटकर 16,360 टन का ही हुआ है।
भाव में आई कमी
सोया डीओसी के भाव भारतीय बंदरगाह पर घटकर मई में 447 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि अप्रैल में इसका भाव 460 डॉलर प्रति टन था। सरसों डीओसी का भाव इस दौरान 220 डॉलर प्रति टन से घटकर 218 डॉलर प्रति टन रह गया। हालांकि केस्टर डीओसी के भाव इस दौरान 77 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 101 डॉलर प्रति टन रह गए। ....... आर एस राणा

केरल पहुंचा मानसून, जानिए आपके यहां कब होगी बारिश

आर एस राणा
नई दिल्ली। आठ दिनों की देरी के बाद केरल में मानसून ने दस्तक दे दी है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अगले 24 घंटों के दौरान केरल और लक्षद्वीप में भारी बारिश होने का अनुमान है इसलिए मछुआरों को समुद्र में नहीं जाने की सलाह दी गयी है। आईएमडी के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी में भी मानसून पहुंचने में एक-दो दिनों की देरी होने की आशंका है।
आईएमडी के अनुसार दक्षिण-पश्चिम अरब सागर, लक्षद्वीप, मालदीव क्षेत्र, दक्षिण पूर्व अरब सागर और मन्नार की खाड़ी के ऊपर 35-45 किलोमीटर की रफ्तार से तेज हवा चलने का अनुमान है। विज्ञप्ति के अनुसार मौसम खराब होने के कारण राज्य के मछुआरों को 9, 10 और 11 जून को समुद्र में नहीं जाने की सलाह दी गयी है।
16 जून तक महाराष्ट्र में मानसूनी बारिश का अनुमान
मौसम विभाग के अनुसार हैदराबाद और पूर्वोत्तर के सिक्किम में 11 जून को मॉनसून की बारिश होने का अनुमान है। 13 जून तक मानसून के कनार्टक पहुंचने का अनुमान है जबकि महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में 15 जून के बाद ही मॉनसून के पहुंचने की संभावना है। 20 जून तक गुजरात और मध्य प्रदेश के कई इलाकों में मॉनसून पहुंच जाएगा। मॉनसून पर अगला अनुमान 10 जून के बाद जारी होगा। अगर मॉनसून की चाल में कोई बदलाव आता है तो 16 जून को यह महराष्ट्र में सक्रिय हो सकता है।
उत्तर भारत के राज्यों में जुलाई के आरंभ में पहुंचेगा मानसून
देश की राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में आमतौर पर बारिश जून के अंत तक होती है। लेकिन, इस बार यहां भी थोड़ा विलंब हो सकता है। अनुमान है कि पहली जुलाई तक यह दिल्ली-एनसीआर के इलाकों में दस्तक दे सकता है। हालांकि, उससे पहले प्री-मॉनसून की बारिश से मौसम अच्छा होने की उम्मीद है। साथ ही पारा गिरने से भी राहत मिल सकती है। राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में भी मॉनसून एक-दो जुलाई तक ही पहुंचेगा। जम्मू-कश्मीर में मॉनसून का आगमन आमतौर पर एक जुलाई तक तक होता है, लेकिन इस बार यह 3 जुलाई तक पहुंचने का अनुमान है। मानसूनी बारिश शुरू होने के बाद खरीफ फसलों की बुवाई में भी तेजी आती है।
पहले अनुमान से दो दिन की देरी से पहुंचा है मानसून
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) का कहना है कि जून में बारिश में थोड़ी कमी हो सकती है, लेकिन मानसून पूरी तरह सामान्य रहेगा। आईएमडी ने पहले 6 जून तक मॉनसून के केरल में पहुंचने का अनुमान जताया था लेकिन, इसमें दो दिन की देरी हुई है। आईएमडी के अनुसार इस साल औसत की 96 फीसदी बारिश हो सकती है। भारतीय मौसम विभाग 96 से 104 फीसदी बारिश को सामान्य मानता है।
कम बारिश होने की संभावना बेहद कम
मौसम विभाग के मुताबिक इस साल देश के हर इलाके में सामान्य बारिश होने का अनुमान है। वहीं, कम बारिश होने की संभावना बेहद कम है। मॉनसून की चाल पर मौसम विभाग का अगला अनुमान 10 जून को जारी कर सकता है।
अल-नीनो का खतरा नहीं
मौसम विभाग के मुताबिक, मॉनसून को प्रभावित करने वाला प्रशांत महासागर की सतह का तापमान अभी तक मॉनसून के अनुकूल है। अल-नीनो का खतरा दिखाई नहीं देता। प्रशांत महासागर में विषुवत रेखा के पास समुद्र के तापमान में कमी बनी हुई है। जून तक इसमें बदलाव की उम्मीदें नगण्य हैं। ऐसे में यहां लॉ नीना इफेक्ट पैदा होता है, जिससे विषुवत रेखा के पास चलने वाली हवाएं ट्रेंड विंग के दबाव में जल्दी आती हैं। यह अच्छे मॉनसून का प्रतीक है।
उत्तर भारत को सताएगी गर्मी
आईएमडी के मुताबिक आने वाले दिनों में उत्तर भारत में आसमान पूरी तरह साफ रहेगा। साथ ही ऐंटी-साइक्लोनिक हवाओं से तापमान ज्यादा रहने का अनुमान है। सामान्य से ज्यादा तापमान ग्लोबल वॉर्मिंग का संकेत है। उत्तर और पूर्वी भारत में अधिकतम तापमान सामान्य के करीब रह सकता है, जो आसमान में बादल और क्षेत्र में प्री-मॉनसून बारिश का संकेत है।.............. आर एस राणा

02 जून 2019

प्री-मानसून की बारिश 25 फीसदी कम, कैसे होगी खरीफ फसलों की बुवाई

आर एस राणा
नई दिल्ली। खरीफ फसलों की बुवाई के लिए प्री-मानसून की बारिश काफी अहम होती है, लेकिन चालू सीजन में पहली मार्च से 31 मई तक देशभर में प्री-मानसून की बारिश सामान्य से 25 फीसदी कम हुई है। देश के कुल 36 सबडिवीजनों में 23 में बारिश सामान्य से कम हुई है, जबकि 9 में इस दौरान सामान्य बारिश हुई है। देश के केवल एक डिवीजन में ही इस दौरान औसत से ज्यादा बारिश हुई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार पहली मार्च से 31 मई तक देशभर में केवल 99 मिलीमीटर बारिश ही हुई है, जबकि सामान्यत: इस दौरान 131.5 मिलीमीटर बारिश होती है। राज्यवार बात करे तो इस दौरान देश के 7 राज्य ऐसे हैं जहां प्री-मानसून की बारिश में भारी कमी आई है, दो राज्यों में बारिश हुई ही नहीं है जबकि 13 राज्यों में सामान्य से कम बारिश हुई है। देश के केवल 12 राज्यों में ही प्री-मानसून की सामान्य बारिश हुई है जबकि दो राज्य में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है।
देश के कई राज्य पहले ही सूखे की चपेट में
देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बने हुए हैं, ऐसे में प्री-मानसून की बारिश कम होने से किसानों के सामने खरीफ फसलों की बुवाई का संकट पैदा हो गया है। बारिश कम होने के कारण देशभर के कई राज्यों के जलाशयों में पानी औसत स्तर से काफी नीचे आ गया है, जिस कारण आईएमडी पहले ही छह राज्यों को चेतावनी जारी कर चुका है। केंद्र सरकार पत्र लिखकर महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु को सलाह दे चुका है कि वो समझदारी से पानी का इस्तेमाल करें।
गुजरात और महाराष्ट्र के साथ दक्षिण के राज्यों में भी कम बरसा पानी
आईएमडी के अनुसार गुजरात में प्री-मानसून की बारिश पहली मार्च से 31 मई तक 86 फीसदी कम हुई है, जबकि महाराष्ट्र में इस दौरान 80 फीसदी बारिश कम हुई है। इन दोनों राज्यों में पिछले खरीफ में मानसूनी बारिश कम होने के कारण पहले ही सूखे जैसे हालात बने हुए हैं। तमिलनाडु में प्री-मानसून की बारिश पहली मार्च से 31 मई तक 60 फीसदी कम हुई है, जबकि तेलंगाना में 51 फीसदी, आंध्रप्रदेश में 43 फीसदी, कर्नाटक में 35 फीसदी और केरल में 55 फीसदी कम हुई है।
उत्तर और पूर्वोंतर के राज्यों में भी बारिश कम
उत्तर भारत के राज्यों उत्तर प्रदेश में प्री-मानसून की बारिश पहली मार्च से 31 मई तक 58 फीसदी कम हुई है जबकि उत्तराखंड में इस दौरान 35 फीसदी और हिमाचल में 45 फीसदी कम हुई है। इसी तरह से पूर्वोतर भारत के मणिपुर में प्री-मानसून की बारिश 56 फीसदी और मिजोरम में 70 फीसदी तथा नागालैंड में 30 फीसदी और अरूणाचल प्रदेश में भी सामान्य से 27 फीसदी कम बारिश हुई है। बिहार में भी चालू सीजन में प्री-मानसून की बारिश सामान्य से 10 फीसदी कम हुई है। .......  आर एस राणा

किसानों को लेनी है पेंशन तो जमा करना होगा पैसा, पीएम-किसान सम्मान सभी को

आर एस राणा
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने पहली ही कैबिनेट बैठक में किसानों को पेंशन देने की घोषणा कर दी है लेकिन किसानों को पेंशन लेने के लिए पैसा जमा कराना होगा। इसके तहत 18 वर्ष की आयु के किसान को 55 रुपये प्रति महीने का योगदान देना होगा। इसके अलावा पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब देश के सभी किसानों को सालाना 6,000 रुपये देने का निर्णय लिया है।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की अपनी पहली कैबिनेट बैठक में किसानों और छोटे व्यापारियों के लिए पेंशन योजना का एलान किया गया है। इस योजना का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने घोषणापत्र में वादा किया गया था। पेंशन का लाभ लेने के लिए 18 वर्ष की आयु के किसान को 55 रुपये प्रति महीने का योगदान देना होगा। सरकार भी इतनी ही राशि का योगदान देगी। किसान की उम्र बढ़ने के साथ—साथ योगदान की राशि भी बढ़ेगी। पेंशन योजना के तहत 18 से 40 वर्ष आयु के किसानों को 60 साल की उम्र के बाद प्रति महीने 3 हजार रुपये पेंशन मिलेगी।
पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत अब सभी किसानों को सालाना 6,000 रुपये मिलेंगे।पीएम किसान योजना पहले सिर्फ लघु और सीमांत किसानों के लिए थी। लेकिन भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प पत्र में इस योजना में सभी किसानों को शामिल करने का वादा किया था, जिस पर पहली ही कैबिनेट की बैठक में मुहर लगाई गई। इस योजना का देश के 14.5 करोड़ किसानों को सीधा लाभ मिलेगा।
पीएम किसान सम्मान निधि योजना पर अब खर्च होंगे 87 हजार करोड़
कैबिनेट बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि प्रधानमंत्री ने कहा था कि किसान की आमदनी अगले 5 साल में दोगुनी करने की कोशिश करेंगे। फसल की लागत का कम से कम डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिले, यह प्रधानमंत्री मोदी ने सुनिश्चित किया। कृषि मंत्री ने कहा कि पीएम किसान सम्मान निधि के तहत 3 करोड़ से अधिक किसानों के खातों में पैसा पहुंच चुका है।
पीएम किसान सम्मान के दायरे में थे 12.5 करोड़ किसान
अभी तक 12.5 करोड़ किसान इस योजना के तहत कवर हो रहे थे। करीब 2 करोड़ किसान छूट रहे थे। अब सभी किसान इसके दायरे में होंगे। इस योजना पर पहले 75 हजार करोड़ खर्च होते लेकिन अब 12 हजार करोड़ रुपये और बढ़ेगा खर्च। यानी अब 87 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च होगा। वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने भी ट्वीट कर कहा कि इन फैसलों के जरिए सरकार ने पहली ही कैबिनेट बैठक में अपने प्रमुख चुनावी वादों को पूरा किया है।
किसानों और छोटे व्यापारियों के लिए पेंशन योजना
इसके अलावा किसानों और छोटे व्यापारियों के लिए पेंशन योजना का भी एलान किया गया है। पेंशन योजना के तहत 18 से 40 वर्ष आयु के लोगों को 60 साल की उम्र के बाद प्रति महीने 3 हजार रुपये पेंशन मिलेगी। इस योजना में 10 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। पेंशन स्कीम के तहत 18 वर्ष के उम्र के शख्स को 55 रुपये प्रति महीने का योगदान देना होगा। सरकार भी इतने का ही योगदान देगी। उम्र के हिसाब से योगदान की राशि बढ़ेगी।
पहले चरण में पांच करोड़ लोग होंगे कवर
कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि इन योजनाओं से किसानों, छोटे व्यापारियों के जीवनस्तर में सुधार होगा और उन्हें सामाजिक सुरक्षा मिलेगी। उन्होंने बताया कि पेंशन योजना के तहत 12 से 13 करोड़ लोग कवर होंगे। पहले चरण में 5 करोड़ लोगों को कवर करने का लक्ष्य है।....... आर एस राणा

मानूसनी बारिश 96 फीसदी होने का अनुमान, अगस्त में 99 फीसदी होगी बारिश

आर एस राणा
नई दिल्ली। खरीफ फसलों के लिए अहम मानी जाने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून लंबी अवधि के औसत का 96 फीसदी रहने का अनुमान है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार जून से सितंबर तक चलने वाला दक्षिण पश्चिम मानसून सामान्य रहेगा।
आईएमडी के अनुसार क्षेत्रीय आधार पर देखें तो उत्तर-पश्चिम भारत में मानसून की अवधि में 94 फीसदी बारिश होने के आसार हैं जबकि मध्य भारत में इसके 100 फीसदी रहने की संभावना है। वहीं दक्षिण भारत में मानसून के 97 फीसदी बरसने की संभावना जताई है। उत्तर-पूर्व के राज्यों में मानसूनी सीजन के दौरान 91 फीसदी बारिश इसमें 8 फीसदी कम या ज्यादा होने का अनुमान है।
अलनीनो की स्थिति हो रही है कमजोर
मौसम विभाग के अनुसार देशभर में जुलाई के दौरान 95 फीसदी बारिश होने की संभावना है। वहीं अगस्त में 99 फीसदी बारिश हो सकती है। अभी अलनीनो की स्थिति कमजोर बनी हुई है और आगामी दिनों में इसमें और कमजोरी आयेगी। आईएमडी का अगला अनुमान जुलाई के अंत में आयेगा। केरल में मानसून 6 जून को पहुंचने का अनुमान है, जोकि सप्ताहभर की देरी से आयेगा। वर्ष 2018 में मानसून 29 मई को केरल पहुंच गया था।
अगस्त में सबसे ज्यादा 99 फीसदी बारिश का अनुमान
मौसम विभाग के अनुसार जून से सितंबर के दौरान औसत का 96 फीसदी बारिश होने का अनुमान है। हालांकि जुलाई में सामान्य से कमजोर बारिश की संभावना है। मौसम विभाग के मुताबिक जुलाई में औसत की 95 फीसदी बारिश हो सकती है जबकि अगस्त में अच्छी बारिश होने के संकेत हैं। अगस्त में औसत की 99 फीसदी बारिश हो सकती है। मौसम विभाग के मुताबिक इस साल उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी भारत में कमजोर बारिश की आशंका है। वहीं, मध्य और दक्षिणी भारत में अच्छी बारिश का अनुमान है।.....  आर एस राणा

नरेंद्र सिंह तोमर बने देश के कृषि मंत्री, राम विलास पासवान के पास रहेगा उपभोक्ता मामले मंत्रालय

आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को मंत्रियों के विभागों का बंटवारा कर दिया। मध्यप्रदेश के मुरैना से सांसद नरेंद्र सिंह तोमर को देश का कृषि मंत्री बनाया गया है। उन्हें कृषि मंत्रालय के साथ ग्रामीण विकास और पंचायती राज की जिम्मेदारी भी सौपी गई है। राम विलास पासवान उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्री बने रहेंगे, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी उनके पास यही मंत्रालय था। महाराष्ट्र की जालना लोकसभा सीट से सांसद चुने गए दानवे रावसाहेब दादाराव को उपभोक्ता मामले मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया है।
पुरुषोत्तम रुपाला और कैलाश चौधरी कृषि मंत्रालय में राज्य मंत्री
पुरुषोत्तम रुपाला को कृषि मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया है, राज्यसभा सांसद पुरुषोत्तम रुपाला पिछली मोदी सरकार में भी कृषि और पंचायती राज मंत्रालय में राज्य मंत्री थे। गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके रुपाला को 2008 में राज्य सभा के लिए चुना गया। उसके बाद 2016 में दोबारा वो राज्य सभा भेजे गए। राजस्थान के बाड़मेर से सांसद कैलाश चौधरी को मोदी दो सरकार में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया है। 45 वर्षीय चौधरी मोदी कैबिनेट में नए चेहरे हैं।
हरसिमरत कौर बादल फिर से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में केंद्रीय मंत्री
पंजाब के बठिंडा से सांसद हरसिमरत कौर बादल को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय मिला है, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी उनके पास खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय था। रामेश्वर तेली खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाये गए हैं।
गजेन्द्र सिंह शेखावत को जल शक्ति मंत्रालय की कमान
जोधपुर से सांसद बने गजेन्द्र सिंह शेखावत को नरेंद्र मोदी सरकार दो में जल शक्ति मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। जल शक्ति मंत्रालय का गठन पहली बार किया गया है। इसका उल्लेख प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राजस्थान में अपनी जनसभा के दौरान किया था। उन्होंने कहा था कि जनता का आशीर्वाद मिला तो इस बार हर घर और खेत तक पानी पहुंचेगा। पानी के लिए अलग से मंत्रालय बनाया जाएगा, जिसका नाम जल-शक्ति मंत्रालय होगा।
गिरिराज सिंह बने केंद्रीय पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन मंत्री
बिहार की बेगूसराय सीट से सांसद बने गिरिराज सिंह को पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन का केंद्रीय मंत्री बनाया गया है। गिरिराज सिंह केंद्र की नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्री थे। वे लगातार दूसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। पिछली बार नवादा से 2014 में उन्होंने जीत हासिल की थी और इस बार बेगूसराय से दूसरी बार सांसद बने हैं।
संजीव बालियान मत्स्य एवं पशुपालन में बने राज्य मंत्री
उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर संसदीय सीट से सांसद चुने गए संजीव बालियान को मोदी सरकार दो में मत्स्य एवं पशुपालन में राज्य मंत्री बनाया गया है। 2014 में उन्हें एनडीए सरकार में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री बनाया गया था। उसके बाद जुलाई 2016 में राज्यमंत्री जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प बनाया गया। सितंबर 2017 में उनको मंत्री पद से हटा दिया गया था।...... आर एस राणा

अमूल और नंदिनी द्वारा डीएमएस को लीज पर लेने की बोली कम, सरकार अन्य विकल्पों पर करेगी विचार

आर एस राणा
नई दिल्ली। डेयरी सहकारी समितियों अमूल और नंदिनी द्वारा लंबी अवधि के लिए लीज पर केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली दिल्ली मिल्क स्कीम (डीएमएस) को संचालित करने के लिए दी गई बोली आरक्षित मूल्य से कम है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इनकी बोली कम होने के कारण सरकार अन्य विकल्पों की तलाश कर रही है।
वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डीएमएस के निगमीकरण के लिए प्रस्ताव दिया था जिसके बाद डीएमएस को लीज पर देने के लिए बोलियां आमंत्रित की गई। डीएमएस की दूध पैकेजिंग क्षमता दैनिक 5 लाख लीटर है, इसके अलावा एनसीआर में कंपनी के 1,298 आउटलेटस का नेटवर्क भी है।
अमूल और नंदिनी की बोली आरक्षित मूल्य से कम
उन्होंने बताया कि सरकार को अमूल और नंदिनी के दो प्रस्ताव मिले, लेकिन बोली आरक्षित मूल्य से काफी कम है। अमूल ब्रांड का विपणन गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) द्वारा किया जाता है, जबकि नंदिनी का विपणन कर्नाटक सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ (केएमएफ) द्वारा किया जाता है।
उचित मूल्य पर दूध की सप्लाई के लिए शुरू की थी कंपनी
उन्होंने कहा कि घाटे में चल रही डीएमएस को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है इसलिए अन्य विकल्पों पर काम करने की आवश्यकता है। इस मामले पर कैबिनेट को निर्णय लेना है। डीएमएस की स्थापना 1959 में, उचित मूल्य पर दिल्ली के नागरिकों को पौष्टिक दूध की आपूर्ति के प्राथमिक उद्देश्य के साथ-साथ दुग्ध उत्पादकों को पारिश्रमिक मूल्य प्रदान करने के लिए की गई थी। कंपनी में 800 कर्मचारी काय कर रहे हैं।
डीएमएस का प्लांट 25 एकड़ में है
डीएमएस पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार से कच्चा/ताजा दूध खरीद रहा है। दूध के प्रसंस्करण और आपूर्ति के अलावा, डीएमएस दही, घी, मक्खन, पनीर, मक्खन दूध और सुगंधित दूध का उत्पादन और विपणन भी करती है। डीएमएस को 1959 में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने शुरू किया था। इसके पास दिल्ली में 5 लाख लीटर की क्षमता वाला मिल्क प्रोसेसिंग प्लांट है, जोकि 25 एकड़ में फैला हुआ है। डीएमएस के पास 5 मिल्क कलेक्शन और चिलिंग सेंटर भी हैं। ........  आर एस राणा

हरियाणा सरकार ने धान का मिलिंग चार्ज बढ़ाने के लिए एफसीआई से मांगी मंजूरी

आर एस राणा
नई दिल्ली। राज्य की राइस मिलों को राहत देने के लिए हरियाणा सरकार ने धान का मिलिंग चार्ज 10 रुपये से बढ़ाकर 15 रुपये प्रति किलो करने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) से मंजूरी मांगी है। इससे राज्य की करीब 1,000 चावल मिलों को फायदा होगा।
राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय पूल में दिए जाने वाले धान की मिलिंग करने वाली चावल मिलों के लिए मिलिंग चार्ज को 10 रुपये से बढ़ाकर 15 रुपये प्रति किलो करने का प्रस्ताव एफसीआई के पास भेजा गया है, जैसे ही एफसीआई से मंजूरी मिलेगी चावल मिलों को इस आधार पर भुगतान कर दिया जायेगा। उन्होंने बताया कि राज्य की चावल मिलें धान की मिलिंग कर चुकी है। उन्होंने बताया कि इससे राज्य की लगभग 1,000 से ज्यादा चावल मिलों को लाभ मिलेगा।
चावल की मिलिंग का चार्ज अलग-अलग है राज्यवार
उन्होंने बताया कि धान का मिलिंग चार्ज राज्यों के हिसाब से अलग-अलग है तथा इस समय सबसे ज्यादा मिलिंग चार्ज केरल में 25 रुपये प्रति किलो है। उन्होंने बताया कि हाल ही में राज्य सरकार ने एफसीआई के कर्मचारियों की हड़ताल के कारण केंद्रीय पूल में कस्टम मिलिंग का चावल जमा नहीं कराने वाली चावल मिलों को भी राहत दी थी। राज्य की चावल मिलों पर लगे होल्डिंग चार्ज को माफ कर दिया था, जबकि यह राशि करोड़ों रुपये में है।
पिछले खरीफ में आठ लाख टन चावल की मिलिंग में हुई थी देरी
राज्य की चावल मिलों ने पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में करीब आठ लाख मीट्रिक टन चावल केंद्रीय पूल में जमा कराना था, लेकिन एफसीआई के कर्मचारियों हड़ताल चल रही थी जिस कारण यह चावल समय पर केंद्रीय पूल में जमा नहीं हो सका। केंद्र व राज्य सरकार ने इसके लिए चावल मिलों को दोषी मानते हुए उन पर होल्डिंग चार्ज लगा दिया। भारतीय खाद्य निगम 31 मार्च तक राज्य सरकार से कोई होल्डिंग चार्ज वसूल नहीं करती। इसके बाद 300 रुपये प्रति वैगन प्रतिदिन के हिसाब से होल्डिंग चार्ज वसूल किया जाता है। एक वैगन में 27 टन चावल होता है।
राज्य से करीब 60 लाख टन धान की होती है खरीद
हरियाणा से एफसीआई खरीफ विपणन सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर करीब 60 लाख टन धान की खरीद करती है, जिसकी मिलिंग राज्य की चावल मिलें करती है इसके बाद इस चावल को केंद्रीय पूल में भेजा जाता है। ......  आर एस राणा

घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में आई तेजी से आयात दोगुना होने का अनुमान

आर एस राणा
नई दिल्ली।  चालू सीजन में कपास के उत्पादन में आई भारी गिरावट से घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में तेजी तो आई है, लेकिन तेजी का फायदा किसानों को नहीं मिला। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव बढ़कर मंगलवार को 46,000 से 46,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) हो गया। घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में आई तेजी से चालू सीजन में कपास का आयात बढ़कर 31-32 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) से ज्यादा ही होने का अनुमान है।
नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया के अध्यक्ष राकेश राठी ने आउटलुक को बताया कि उत्पादक राज्यों में कपास का बकाया स्टॉक कम होने के कारण उत्पादक मंडियों में दैनिक आवक सीमित मात्रा ही हो रही है। सप्ताहभर में ही कपास की कीमतों में करीब 2,000 रुपये प्रति कैंडी की तेजी आकर भाव 46,000 से 46,500 रुपये प्रति कैंडी हो गए, जबकि गत सप्ताह इसके भाव 44,000 से 44,500 रुपये प्रति कैंडी थे। दिसंबर के शुरू में अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 43,700 से 43,800 रुपये प्रति कैंडी थे। उत्पादक राज्यों में बकाया स्टॉक कम है जबकि नई फसल आने में अभी तीन-चार महीने बचे हुए हैं, इसलिए मौजूदा कीमतों में आगे और तेजी बन सकती है।
आयात बढ़ेगा, निर्यात में आयेगी कमी
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया (सीएआई) के अनुसार घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में आई तेजी से कपास का आयात बढ़कर 31-32 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले सीजन में केवल 15 लाख गांठ का ही आयात हुआ था। चालू सीजन में अभी तक करीब 25 लाख गांठ के आयात सौदे हो भी चुके हैं। कपास का निर्यात घटकर चालू सीजन में 42 से 43 लाख गांठ का ही होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल सीजन में 69 लाख गांठ का निर्यात हुआ था। चालू फसल सीजन 2018-19 में कपास का उत्पादन घटकर 315 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलोग्राम) ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 365 लाख गांठ का उत्पादन हुआ था।
उत्पादक राज्यों में भाव तेज
मुक्तसर के कपास कारोबारी संजीव गुप्ता ने बताया कि उत्पादक राज्यों पंजाब और हरियाणा की मंडियों में नरमा कपास के भाव बढ़कर 6,100 से 6500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए है। अक्टूबर 2018 में फसल की आवक के समय इसके भाव 5,100 से 5,200 रुपये प्रति क्विंटल थे। महाराष्ट्र की मंडियों में कपास के भाव 5,900 से 6,400 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि गुजरात की मंडियों में कपास के भाव 1,200 से 1,310 रुपये प्रति 20 किलो हो गए हैं। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2018-19 के लिए मीडियम स्टेपल कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,150 रुपये और लौंग स्टेपल कपास का भाव 5,450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
उत्तर भारत के राज्यों में बुवाई शुरू
न्यूयार्क में कपास के जुलाई वायदा का भाव 68.39 सेंट प्रति पाउंड हो गया, जबकि पिछले सप्ताह में इसका भाव नीचे में 65.99 सेंट प्रति पाउंड रह गया था। राकेश राठी ने बताया कि आगे कपास की कीमतों में तेजी-मंदी उत्पादक राज्यों में होने वाली मानसूनी बारिश पर निर्भर करेगी। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणाा और राजस्थान में कपास की बुवाई शुरू हो गई है, तथा अन्य राज्यों में बुवाई जून में शुरू होगी।.......  आर एस राणा

पंजाब और हरियाणा से गेहूं की खरीद लक्ष्य से ज्यादा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से कम

आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं की खरीद पंजाब के साथ ही हरियाणा से तय लक्ष्य से ज्यादा हो चुकी है, जबकि उत्तर प्रदेश के साथ ही मध्य प्रदेश और राजस्थान से खरीद तय लक्ष्य से पिछे चल रही है। उत्पादक राज्यों में गेहूं के भाव बढ़कर समर्थन मूल्य से उपर हो गए हैं, इसलिए कुल खरीद पिछले साल के 357.95 लाख टन की तुलना में कम ही होने का अनुमान है।
गेहूं कारोबारी संजय गुप्ता ने बताया कि दिल्ली के लारेंस रोड़ पर गेहूं के भाव बढ़कर सोमवार को 1,990 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए है जबकि उत्पादक राज्यों की मंडियों में भाव 1,850 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल है। मंडियों में भाव समर्थन मूल्य 1,840 रुपये प्रति क्विंटल से उंचे होने के कारण खरीद केंद्रों पर गेहूं की आवक घट गई, ऐसे में चालू रबी में गेहूं की कुल खरीद तय लक्ष्य 356.50 लाख टन से भी कम होने की आशंका है।
कुल खरीद पिछले से पिछे
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 332.16 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जोकि पिछले साल की समान अवधि के 337.77 लाख टन से कम है। पंजाब से चालू रबी विपणन सीजन 2018-19 में गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद बढ़कर 129.12 लाख टन की हो चुकी है जबकि खरीद का लक्ष्य 125 लाख टन का ही तय किया गया था। राज्य से पिछले रबी सीजन में समर्थन मूल्य पर 126.92 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई थी।
हरियाणा से रिकार्ड खरीद, उत्तर प्रदेश से पिछड़ी
हरियाणा से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर रिकार्ड 93.20 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है जबकि खरीद का लक्ष्य केवल 85 लाख टन का ही तय किया गया था। पिछले रबी सीजन में राज्य से 87.84 लाख टन गेहूं की खरीद एमएसपी पर हुई थी। सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर केवल 29.95 लाख टन गेहूं ही खरीदा गया है, जबकि राज्य से गेहूं की खरीद का लक्ष्य 50 लाख टन का तय किया गया है। पिछले साल राज्य की मंडियों से समर्थन मूल्य पर 52.94 लाख टन गेहूं खरीदा गया था।
मध्य प्रदेश और राजस्थान से खरीद कम
मध्य प्रदेश से चालू रबी में एमएसपी पर अभी तक 67.25 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि खरीद का लक्ष्य 75 लाख टन का तय किया हुआ है। पिछले रबी में राज्य से 73.13 लाख टन गेहूं की खरीद समर्थन मूल्य पर हुई थी। राजस्थान से चालू रबी में समर्थन मूल्य पर 12.04 लाख टन गेहूं की खरीद ही हुई है जबकि खरीद का लक्ष्य 17 लाख टन का तय किया हुआ है। पिछले रबी में राज्य से 15.32 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।
पैदावार का अनुमान ज्यादा
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का रिकार्ड 991.2 लाख टन उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल 971.1 लाख टन का उत्पादन हुआ था। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन के लिए गेहूं का एमएसपी 1,840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि पिछले रबी में गेहूं की खरीद 1,735 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हुई थी। मध्य प्रदेश में राज्य सरकार गेहूं की खरीद पर किसानों को 160 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस दे रही है।.......    आर एस राणा

अमूल चालू वित्त वर्ष में उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 600-800 करोड़ का निवेश करेगी

आर एस राणा
नई दिल्ली। अमूल ब्रांड के तहत डेयरी उत्पादों का कारोबार करने वाली गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) चालू वित्त वर्ष 2019-20 में नई दूध प्रसंस्करण इकाई की स्थापना के साथ ही मौजूदा इकाइयों की क्षमता बढ़ाने पर 600 से 800 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।
अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर आर एस सोढ़ी ने बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान कंपनी के कारोबार में 13 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल कारोबार 33,150 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि चालू वित्त वर्ष 2019-20 में कारोबार में 20 फीसदी बढ़ोतरी होकर कुल कारोबार 40,000 करोड़ रुपये पर पहुंचने की उम्मीद है।
दिल्ली एनसीआर में नई इकाई स्थापित करने पर विचार
उन्होंने कहा कि कंपनी दिल्ली एनसीआर में नई इकाई स्थापित करने पर विचार कर रही है, इसके साथ ही मौजूदा इकाइयों की दूध प्रसंस्करण क्षमता में बढ़ोतरी करने के लिए चालू वित्त वर्ष 2019-20 में 600 से 800 करोड़ रुपये निवेश करेंगे।
कंपनी ने हाल ही में दूध के दाम 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ाये
सोढ़ी ने कहा कि पिछले वित्त वर्ष में हमने उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की थी, इसके बावजूद भी राजस्व में बढ़ोरती हुई। चालू वित्त वर्ष में मूल्य और मात्रा दोनों में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। कंपनी ने हाल ही में दूध की कीमतों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी। उन्होंने बताया कि कंपनी ने दूध की खरीद कीमतों में बढ़ोतरी के कारण ही बिक्री मूल्य में बढ़ोतरी करनी पड़ी है। अमूल ने इससे पहले 2017 में दूध की कीमतों में बढ़ोतरी की थी।
दूध प्रसंस्करण क्षमता को बढ़ाकर 380-400 लाख लीटर करने की योजना
अमूल फेडरेशन के अंतर्गत आने वाली 18 यूनियनों से गुजरात के 18,700 गांव के 36 लाख से अधिक किसान जुड़े हुए हैं जिनसे औसतन दैनिक 230 लाख लीटर दूध की खरीद की जा रही है। अमूल की सदस्य यूनियनों ने दैनिक 350 लाख लीटर दैनिक दूध प्रसंस्करण क्षमता को बढ़ाकर अगले दो साल में 380 से 400 लाख लीटर करने की योजना बनाई हुई है।.......आर एस राणा