मक्के की किल्लत और ऊंचे दाम से स्टार्च उद्योग पर दबाव
देश में स्टार्च विनिर्माताओं को मक्के की बढ़ती कीमतों और कम उपलब्धता की दिक्कत झेलनी पड़ रही है। हाल में मक्के के दाम 1,850 रुपये प्रति क्विंटल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए थे। कम आपूर्ति के चलते आगे कीमतें और बढऩे के आसार हैं। ज्यादातर स्टार्च विनिर्माता कम क्षमता पर संयंत्र चला रहे हैं। घरेलू बाजार में मक्के की बढ़ती कीमतों तथा जमाखोरी पर लगाम लगाने के लिए सरकार मक्के का आयात करेगी। वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में ट्विटर पर बताया है कि कीमतों पर नियंत्रण तथा जमाखोरी रोकने के लिए वाणिज्य मंत्री ने शुल्क दर कोटा के तहत 5 लाख टन मक्के के आयात की अनुमति दी है। ऑल इंडिया स्टार्च मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आई के सरधना ने कहा कि मक्के का उत्पादन मुख्य रूप से बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्य के बारिश पर निर्भर इलाकों में होता है और पिछले दो वर्षों में सूखे से आपूर्ति में भारी गिरावट आई है। इस सीजन में मक्के के दाम सामान्यतया 1,500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास होते हैं और इनमें अगस्त से बढ़ोतरी शुरू होती है। लेकिन इस साल फसल खराब होने से कम उत्पादन और भारत में कारोबार करने वाले अंतरराष्ट्रीय उद्यमियों के स्टॉक करने से यह उद्योग दोराहे पर आ गया है। इस उद्योग के अनुमानों के मुताबिक इस सीजन में उत्पादन 1.7 करोड़ टन और मांग 2 करोड़ टन रहने का अनुमान है। पिछले साल कम बारिश और कम बुआई के चलते उत्पादन में गिरावट आई थी, जिससे पिछले साल का बचा हुआ स्टॉक भी नहीं है। इससे स्टार्च उद्योग मुश्किल दौर से गुजर रहा है। यह उद्योग स्टार्च की कीमतों में भी बढ़ोतरी नहीं कर सकता क्योंकि इसके अनुबंध काफी पहले किए जाते हैं और सीजन के बीच में कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की जा सकती। पिछले महीने उद्योग के प्रतिनिधियों ने केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य राज्य मंत्री निर्मला सीतारामन के साथ मुलाकात की थी। इसमें 5 लाख टन मक्के के शुल्क रहित कोटा (टीआरक्यू) की मंजूरी देने की मांग की गई थी क्योंकि आयातित मक्के की लागत कम पड़ेगी। मंत्री ने उनकी मांग को मंजूरी दे दी है। महाराष्ट्र में सहयाद्रि सटार्च इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विशाल मजीठिया ने कहा कि इस साल कम उत्पादन और भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मक्के का भारी स्टॉक करने से घरेलू स्टार्च उद्योग के लिए अपना परिचालन जारी रखना मुश्किल हो गया है।
देश में स्टार्च विनिर्माताओं को मक्के की बढ़ती कीमतों और कम उपलब्धता की दिक्कत झेलनी पड़ रही है। हाल में मक्के के दाम 1,850 रुपये प्रति क्विंटल की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए थे। कम आपूर्ति के चलते आगे कीमतें और बढऩे के आसार हैं। ज्यादातर स्टार्च विनिर्माता कम क्षमता पर संयंत्र चला रहे हैं। घरेलू बाजार में मक्के की बढ़ती कीमतों तथा जमाखोरी पर लगाम लगाने के लिए सरकार मक्के का आयात करेगी। वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में ट्विटर पर बताया है कि कीमतों पर नियंत्रण तथा जमाखोरी रोकने के लिए वाणिज्य मंत्री ने शुल्क दर कोटा के तहत 5 लाख टन मक्के के आयात की अनुमति दी है। ऑल इंडिया स्टार्च मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आई के सरधना ने कहा कि मक्के का उत्पादन मुख्य रूप से बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्य के बारिश पर निर्भर इलाकों में होता है और पिछले दो वर्षों में सूखे से आपूर्ति में भारी गिरावट आई है। इस सीजन में मक्के के दाम सामान्यतया 1,500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास होते हैं और इनमें अगस्त से बढ़ोतरी शुरू होती है। लेकिन इस साल फसल खराब होने से कम उत्पादन और भारत में कारोबार करने वाले अंतरराष्ट्रीय उद्यमियों के स्टॉक करने से यह उद्योग दोराहे पर आ गया है। इस उद्योग के अनुमानों के मुताबिक इस सीजन में उत्पादन 1.7 करोड़ टन और मांग 2 करोड़ टन रहने का अनुमान है। पिछले साल कम बारिश और कम बुआई के चलते उत्पादन में गिरावट आई थी, जिससे पिछले साल का बचा हुआ स्टॉक भी नहीं है। इससे स्टार्च उद्योग मुश्किल दौर से गुजर रहा है। यह उद्योग स्टार्च की कीमतों में भी बढ़ोतरी नहीं कर सकता क्योंकि इसके अनुबंध काफी पहले किए जाते हैं और सीजन के बीच में कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की जा सकती। पिछले महीने उद्योग के प्रतिनिधियों ने केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य राज्य मंत्री निर्मला सीतारामन के साथ मुलाकात की थी। इसमें 5 लाख टन मक्के के शुल्क रहित कोटा (टीआरक्यू) की मंजूरी देने की मांग की गई थी क्योंकि आयातित मक्के की लागत कम पड़ेगी। मंत्री ने उनकी मांग को मंजूरी दे दी है। महाराष्ट्र में सहयाद्रि सटार्च इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विशाल मजीठिया ने कहा कि इस साल कम उत्पादन और भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मक्के का भारी स्टॉक करने से घरेलू स्टार्च उद्योग के लिए अपना परिचालन जारी रखना मुश्किल हो गया है।
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