सरकारी एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने इस साल पहली बार मंडियों
से बाजार कीमतों पर दालें खरीदने का प्रयास किया, लेकिन वह इस सीजन के लिए
तय लक्ष्य की 60 फीसदी खरीद ही कर पाया। इस साल की शुरुआत में दालों की
कीमतों में अचानक तेजी से चिंतित सरकार ने मार्च में एफसीआई को दालों की
खरीद शुरू करने की मंजूरी दी थी। एफसीआई को 40,000 टन चना और 10,000 टन
मसूर की खरीद का लक्ष्य दिया गया था। हालांकि इस लक्ष्यके मुकाबले
खाद्यान्न खरीदने वाली यह सरकारी एजेंसी 15,200 टन चना और 4,335 टन मसूर
खरीद पाई। एफसीआई ने सरकार के कहने पर पहली बार बाजार कीमतों पर दालों की
खरीद शुरू की थी। आमतौर पर एफसीआई सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन
मूल्य (एमएसपी) पर अनाज की खरीदारी करता है।
एफसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हमने पहली बार दालों की खरीद
शुरू की, जो हमारे लिए एक नया अनुभव था। फिर भी हम सीजन में 15,200 टन चना
और 4,335 टन मसूर खरीदने में सफल रहे हैं, जो हमें दिए गए लक्ष्य का करीब
40 फीसदी है।' दालों की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी होने की स्थिति में
बाजार में दखल देने के लिए सरकार ने नवंबर 2015 में 3.5 लाख टन दालों का
बफर स्टॉक बनाने का फैसला किया था। इन दालों में 1.5 लाख टन अरहर की दाल और
2 लाख टन चने एवं मसूर की दाल शामिल थी। एफसीआई ने 15 जुलाई को रबी सीजन
की उपज की खरीद बंद की है।
अधिकारी ने तय लक्ष्य हासिल न होने की तीन वजह बताईं। पहला, सरकार ने
एफसीआई को दालों की खरीद शुरू करने की मंजूरी मार्च में दी। तब तक रबी
फसलों की कटाई का सीजन अपने मध्य में पहुंच चुका था। इसका मतलब है कि जिन
किसानों की फसलों की कटाई पहले हो चुकी थी, वे अपना माल पहले ही मंडियों
में बेच चुके थे और एफसीआई के खरीद शुरू करने तक कारोबारी स्टॉक तैयार कर
चुके थे। इस तरह एफसीआई द्वारा खरीदारी किए जाने के लिए दलहन की उपलब्धता
बहुत कम थी। अधिकारी ने कहा, 'हमने दो महीने बाद खरीद शुरू की। तब तक
कारोबारी और आढ़तिये दालों का स्टॉक कर चुके थे।'
दूसरा, किसानों ने तुरंत नकदी को तरजीह दी और तुरंत नकदी केवल
कारोबारी और आढ़तिये ही दे सकते हैं। एफसीआई अपनी उपज की कीमत के लिए चेक
देता है, लेकिन बहुत से किसानों ने चेक लेना पसंद नहीं किया। इसलिए
उन्होंने एफसीआई द्वारा दी जा रही कीमत से 1 से 2 फीसदी कम कीमत पर भी
कारोबारियों को दालें बेच दीं। रोचक बात यह है कि बहुत से किसान आढ़तियों
और कारोबारियों को दाल बेचने का करार कर उनसे पैसे ले चुके थे। इस तरह वे
अपनी उपज केवल आढ़तियों को ही बेच सकते थे।
तीसरा, सरकार ने एफसीआई को जिस गुणïवत्ता की दालें खरीदने का आदेश
दिया था, उसके मुकाबले दालों की गुणवत्ता हल्की थी। मंडियों में आई
ज्यादातर दलहन की सही ढंग से सफाई नहीं हुई थी। इसलिए दलहन की गुणवत्ता
एफसीआई के मानकों से मेल नहीं खाती थी। इसके विपरीत आढ़तियों ने कैसी भी
गुणवत्ता वाली दालों की खरीद कर ली, जिसके कारण उनकी खरीद एफसीआई से अधिक
रही।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक सरकार दालों की खरीद खरीफ सीजन में भी
जारी रखने के बारे में विचार कर रही है। एफसीआई सरकार के इस आदेश का इंतजार
कर रहा है। देश में उड़द की कटाई का सीजन सितंबर में शुरू हो जाता है। एक
अधिकारी ने कहा, 'अगर सरकार वर्तमान खरीफ सीजन में भी दालों की खरीद जारी
रखने की मंजूरी देती है तो हम सितंबर से शुरू होने जा रहे खरीफ फसलों की
कटाई के सीजन में लक्ष्य को हासिल करने की पूरी कोशिश करेंगे। हालांकि
सरकार को हमें खरीद शुरू करने की मंजूरी कटाई सीजन शुरू होने से पहले देनी
चाहिए।'
एफसीआई के अलावा सरकार ने नेफेड और लघु कृषक कृषि व्यापार संघ
(एसएफएसी) को मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र सहित प्रमुख दलहन
उत्पादक राज्यों में दालों की खरीद करने को कहा है। बेंचमार्क दिल्ली मंडी
में अरहर और उड़द के दाम 120 रुपये प्रति किलोग्राम पर स्थिर हो गए हैं।
वहीं मूंग दाल के भाव इस साल फरवरी से करीब 15 फीसदी घटकर फिलहाल 71 रुपये
प्रति किलोग्राम पर आ गए हैं। (BS Hindi)
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