जीएम सरसों पर चर्चा तेज
देश के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार आर चिदंबरम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी से देश की पहली जीन संवद्र्घित (जीएम) खाद्य फसल, सरसों की तकदीर का
फैसला करने का आग्रह किया है। हाल में आयोजित एक बैठक से यही संकेत मिल रहा
है कि सरकार इसके वाणिज्यीकरण पर सहमति दे सकती है। हालांकि इसको
वाणिज्यिक रूप से बाजार में पेश करने की राह राजनीतिक विरोध से भरी हुई है
लेकिन इसे मंजूरी देना मोदी के उस लक्ष्य को हासिल करने के लिहाज से अहम
है जिसके तहत वह खाद्य तेलों के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाना चाहते
हैं। फिलहाल भारत खाद्य तेलों के आयात पर सालाना 10 अरब डॉलर की राशि खर्च
करता है। जीन संवद्र्घित सरसों का उत्पादन सामान्य फसल की तुलना में 38
फीसदी ज्यादा होता है। प्रधानमंत्री पहले ही कृषि में तकनीक के इस्तेमाल को
बढ़ाने में रुचि दिखा चुके हैं। उन्होंने 2014 में सत्ता में आते ही जीन
संवद्र्घित फसलों के खेतों में परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने का फैसला उलट
दिया था। देश की दो तिहाई से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है।
इससे पहले सितंबर में सरकार को उन सुरक्षा परीक्षणों के परिणाम सौंप
दिए गए थे जिन्हें बीते दशक के दौरान इस उन्नत तिलहन पर अंजाम दिया गया था।
जीन संवद्र्घित सरसों के मुख्य वैज्ञानिक दीपक पेंटल ने रॉयटर्स को बताया
कि उन्हें इसके शीघ्र वाणिज्यिक इस्तेमाल की उम्मीद है। चूंकि मंत्रालय ने
बीती 4 जनवरी को बैठक बुलाई थी तो लग रहा है कि वे इस बारे में गंभीर हैं।
प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार चिदंबरम द्वारा मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि जीन
संवद्र्घित फसल दुनिया भर में प्रयोग में लाई जा रही है और उत्पादन पर
मौसम के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए आगे इसका प्रयोग और बढ़ेगा। उल्लेखनीय
है कि भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कई समूहों ने मोनसैंटो जैसी
बहुराष्टï्रीय कंपनियों के महंगे बीज पेटेंट के चलते जीन संवद्र्घित फसलों
का विरोध किया है। (BS Hindi)
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