तिलहन की भारी किल्लत के कारण खाद्य तेल एवं खली का उत्पादन कम होने से परेशान घरेलू पेराई उद्योग ने सरकार से आग्रह किया है कि उद्योग पर आयात शुल्क वर्तमान 30 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी किया जाए। जलवायु की प्रतिकूल स्थितियों और किसानों के बेहतर वैकल्पिक फसलों की तरफ रुझान बढऩे के कारण भारत में तिलहन उत्पादन में लगातार गिरावट आ रही है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि फसल वर्ष (जुलाई से जून) 2014-15 में भारत का तिलहन उत्पादन करीब 19 फीसदी घटकर 266.8 लाख टन रहा है, जो वर्ष 2010-11 में 328.4 लाख टन था। सरकार ने तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए कई पहल शुरू करने के बावजूद उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में कम नवोन्मेष और प्रतिकूल मौसम से फसल को नुकसान के कारण भारत में उत्पादन घटा है।
इसके नतीजतन न केवल खाद्य तेल का आयात तेजी से बढ़ा है बल्कि भारत वैश्विक खली बाजार से भी बाहर हो गया है, जो एक समय विदेशी मुद्रा अर्जन का सबसे बड़ा स्रोत था। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा, 'तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए अभी तक किए गए प्रयास नाकाफी साबित हुए हैं क्योंकि उनके कोई वांछित नतीजे नहीं मिले हैं। तिलहन का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है, इसलिए तिलहन आयात को छूट देने का समय आ गया है।'
वित्त मंत्री अरुण जेटली को भेजे ज्ञापन में इस उद्योग की शीर्ष संस्था एसईए ने आग्रह किया है कि तिलहनों पर आयात शुल्क को वर्तमान 30 फीसदी के स्तर से घटाकर 5 फीसदी किया जाए। संभवतया इतना ऊंचा शुल्क किसानों के हितों के संरक्षण के लिए बड़ी मात्रा में तिलहन आयात को रोकने के लिए लगाया गया था। लेकिन सरकार किसानों को तिलहन का रकबा बढ़ाने की खातिर प्रोत्साहित करने के लिए हर साल तिलहनों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी करती जा रही है। घरेलू तिलहन उत्पादन में गिरावट और बढ़ती मांग के कारण पिछले कुछ वर्षों से भारत की आयातित खाद्य तेल पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
पिछले चार वर्षों के दौरान खाद्य तेल के आयात में चक्रवृद्धि सालाना वृद्धि दर 7 फीसदी रही है। खाद्य तेल का आयात वर्ष 2014-15 में 144.2 लाख टन रहा, जो 2011-12 में 99.8 लाख टन था। इसके अलावा भारत वैश्विक खली निर्यात बाजार में पिछड़ रहा है। खली के निर्यात में तेजी से गिरावट आई है। यह वर्ष 2011-12 में 56 लाख टन था, जो वर्ष 2014-15 में घटकर महज 24.7 लाख टन रहा। खली का निर्यात तेल वर्ष (नवंबर से अक्टूबर) 2015-16 में घटकर 20 लाख टन से भी नीचे आने के आसार हैं।
फॉच्र्युन ब्रांड के खाद्य तेलों की उत्पादक अदाणी विल्मर के मुख्य कार्याधिकारी अतुल चतुर्वेदी ने कहा, 'इस समय तिलहन आयात को शुल्क मुक्त करना बहुत जरूरी है। हमारा खली का निर्यात ऐसे समय घटा है, जब इसकी वैश्विक मांग बढ़ रही है। पक्षी एवं पशु आहार के रूप में भारत से बढ़ती मांग के चलते हम जल्द ही खली का आयात शुरू करेंगे।' भारत को ऐसे स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें खाद्य तेल के बढ़ते आयात और खली के घटते निर्यात से विदेशी मुद्रा बाहर जा रही है। वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2011-12 में शुद्ध निकासी 2014-15 में बढ़कर 9.65 अरब डॉलर हो गई है, जो वर्ष 2011-12 में 7 अरब डॉलर थी। तिलहन की कम उपलब्धता से भारतीय पेराई उद्योग प्रभावित हुआ है। तिलहन पेराई इकाइयों का औसत क्षमता उपयोग घटकर महज 30 फीसदी रह गया है। पिछले कई वर्षों से ऋणात्मक मार्जिन की वजह से बहुत सी लघु एवं मझोली इकाइयां बंद हो गई हैं।
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