09 अप्रैल 2014
एफएमसी-एमसीएक्स विवाद : वित्त मंत्रालय के पाले में गेंद
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के एक आदेश जारी कर मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) के मुख्य निवेशक को एक्सचेंज चलाने के लिए 'अयोग्य' करार दिए जाने के बाद यह मसला बहुपक्षीय विवाद बनता जा रहा है। सूत्रों ने कहा कि विवाद के हल की चाबी केवल वित्त मंत्रालय के पास है। एक तरफ एफएमसी कह रहा है कि उसके पास फाइनैंशियल टेक्नोलॉजिज (एफटीआईएल) को एक्सचेंज में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए सीधे कहने की शक्तियां नहीं हैं। वहीं वह एमसीएक्स से एक्सचेंज में एफटीआईएल की हिस्सेदारी में कमी सुनिश्चित करने के लिए कह रहा है।
सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्रालय इस मसले के हल के लिए एक सुझाव पर विचार कर रहा है। मंत्रालय जिंस वायदा अधिनियम के तहत जिंस एक्सचेंज को यह नियम बनाने का निर्देश दे सकता है कि अगर किसी शेयरधारक को अयोग्य करार दिया जाता है तो उसे अपने शेयर एस्क्रो खाते में स्थानांतरित कर इनकी नीलामी करनी होगी। एफटीआईएल पहले ही एफएमसी के आदेश को बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दे चुकी है। हालांकि न्यायालय ने इस आदेश पर न रोक लगाई है और न ही इसे रद्द किया है। यह ऐसे समय हो रहा है जब एफटीआईल पहले ही एमसीएक्स में अपनी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है और इसने इस बारे में एफएमसी और एमसीएक्स को सूचित भी कर दिया है। कंपनी को इसके लिए 10 ऑफर मिले हैं। वायदा बाजार नियमन अधिनियम की धारा 10 (1) केंद्र सरकार को नियम बनाने की शक्तियां देती है और इन शक्तियों का इस्तेमाल कर सरकार एमसीएक्स को उचित कदम उठाने का निर्देश दे सकती है।
मसला यह है कि एफटीआईएल की एक सब्सिडियरी नैशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) के 5,574 करोड़ रुपये का डिफॉल्ट करने के बाद पिछले साल दिसंबर में एफएमसी ने कहा था कि एफटीआईएल और तीन अन्य निवेशक 'फिट ऐंड प्रॉपर' नहीं हैं और ये लोग योग्य न होने की वजह से एफटीआईएल 2 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं रख सकते। हालांकि इस आदेश 'एफटीआईएल का हिस्सा कम करने' को लागू करने की जिम्मेदारी एमसीएक्स पर डाली गई थी। एफएमसी का तर्क यह है कि एफटीआईएल सीधे उसके नियंत्रण में नहीं आती है और इसलिए एमसीएक्स अपने प्रवर्तक-मुख्य निवेशक को अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए कहे। एक्सचेंज पर दबाव बनाए रखने के लिए एफएमसी ने लंबे समय से एमसीएक्स के अनुबंधों को मंजूरी नहीं दी है। नियामक ने एक्सचेंज को चेतावनी दी है कि अगर अप्रैल के अंत तक एफटीआईएल को हिस्सेदारी घटाने के उसके आदेश का पालन नहीं हुआ तो एक्सचेंज को आगे की नियामकीय कार्रवाई के लिए तैयार रहना होगा।
हालांकि न्यायालय ने एफएमसी के खिलाफ एफटीआईएल की अपील की सुनवाई करते हुए इस पर रोक नहीं लगाई है। न्यायालय ने इस मामले में फैसला नहीं दिया है, इसलिए एफएमसी ने यह रुख अपनाया है कि उसका आदेश अभी बरकरार है। एफटीआईएल की हिस्सेदारी कम कराने के लिए एफएमसी ने एमसीएक्स पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। जब एमसीएक्स ने एफटीआईएल को अपनी हिस्सेदारी एस्क्रो खाते में स्थानांतरित करने को कहा तो उसने यह कहते हुए विरोध किया कि एमसीएक्स के पास तरह की कोई शक्तियां नहीं हैं। (BS Hindi)
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