14 अप्रैल 2014
जीएम फसलों के परीक्षण पर आगे बढ़ेगी सरकार
आमतौर पर शांत रहने वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अगर चाहें तो वह किसी बात पर अड़ सकते हैं। विवादास्पद जीन संवद्र्घित (जीएम) फसलों के मामले में उन्होंने सरकार को आगे बढऩे का आदेश दिया है। बिज़नेस स्टैंडर्ड के पास मौजूद दस्तावेजों के अनुसार जीएम फसलों के खेतों में परीक्षण को आगे बढ़ाने में प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय ने करीब दो साल तक अहम भूमिका निभाई है, इसमें खाद्य फसलें भी शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने नियामकीय सुधारों या उच्चतम न्यायालय में चल रहे फैसले का इंतजार किए बिना ही जीएम फसलों के परीक्षण को आगे बढ़ाने का फैसला किया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया, 'मनमोहन सिंह ने खाद्य सुरक्षा बिल में कटौती और जीएम फसलों के समर्थन पर काफी हठी रुख अपनाया है।'
पूर्व केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री जयंती नटराजन के सख्त विरोध के बावजूद जीत आखिर में सिंह की ही हुई। 21 दिसंबर 2013 को नटराजन ने मंत्री पद से इस्तीफा दिया तो अटकलें लगने लगी कि नटराजन की वजह से फैसले लेने में देरी हो रही थी और वह परियोजनाओं को लटका रही थीं। नटराजन के इस्तीफे के एक दिन बाद ही राहुल गांधी ने उद्योगों के साथ बैठक में कहा कि वह ज्यादा सक्षम पर्यावरण अनुमति तंत्र की वकालत करते हैं। वास्तविकता यही थी कि जीएम फसलों के मामले में प्रधानमंत्री के खिलाफ जाने के कारण ही नटराजन को मंत्रालय छोडऩा पड़ा। नटराजन की जगह इस मंत्रालय का प्रभार वीरप्पा मोइली को सौंप दिया गया।
फरवरी में हुई एक बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा था, 'सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी है, लेकिन हमें अवैज्ञानिक अवधारणाओं के दबाव में आकर जीएम फसलों का विरोध नहीं करना चाहिए।' और इस तरह एक ही झटके में सिंह ने जीएम फसलों के विरोध में उठ रहीं आवाजों को 'अवैज्ञानिक' करार दे डाला। जीएम फसलों का मुखरता से विरोध करने वालों में नटराजन, कृषि पर संसदीय स्थायी समिति, उच्चतम न्यायालय की विशेषज्ञ समिति के अधिकांश सदस्य और कई राज्य सरकारें शामिल हैं।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय का प्रभार संभालने के महज एक सप्ताह बाद ही मोइली ने प्रधानमंत्री के आदेश पर आगे बढऩे की घोषणा की। मोइली ने अपने पूर्ववर्ती के फैसलों को दरकिनार कर दिया और 'नियमित फैसला' करार देते हुए जीएम खाद्य फसलों के परीक्षण को दी गई अनुमति की वैधता की अवधि बढ़ा दी। मोइली ने कहा कि ये अनुमतियां काफी समय से लंबित थी और उच्चतम न्यायालय ने उन पर पाबंदी नहीं लगाई थी, जैसा कि नटराजन ने समझ लिया था। यह शब्दों का अच्छा जाल था। मोइली ने पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को आदेश दिया कि वह कैबिनेट सचिव व अन्य अधिकारियों के साथ बैठकर विचार-विमर्श करें, जिससे उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक संगठित रुख अपनाया जाए। इसका मतलब था कृषि मंत्री शरद पवार और प्रधानमंत्री कार्यालय के नजरिये से सहमति जताना। मोइली और पर्यावरण सचिव ने कहा कि नटराजन एक संयुक्त हलफनामे के खिलाफ नहीं थीं।
भारत में जीएम खाद्य फसलों पर बहस में ऐसा ही ध्रुवीकरण होता है, जैसा कि परमाणु ऊर्जा के मामले में हुआ था। परमाणु ऊर्जा ऐसे मामले का एक और उदाहरण है, जिसमें प्रधानमंत्री बिल्कुल अड़ गए थे। जीएम फसल उद्योग, कई वैज्ञानिक, कृषि मंत्री, प्रधानमंत्री और कुछ राज्यों का मानना है कि इन फसलों से उत्पादकता बढ़ेगी और इससे खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में मदद मिलेगी।
इसके विरोध में खड़े हैं कांग्रेस के कुछ नेता, ज्यादातर राज्य सरकारें, कुछ राजनीतिक दल, कुछ वैज्ञानिक, शिक्षाविद् और पर्यावरण के लिए काम कर रहे कार्यकर्ता, जो इन फसलों को लेकर संशय में हैं। सबसे अहम बात है कि उनका डर पर्यावरण और लोगों पर इन फसलों के संभावित अपरिवर्तनीय नुकसान को लेकर है, जिसका अभी तक आकलन नहीं किया गया है।
अभी 100 से भी ज्यादा जीएम खाद्य फसलों की किस्में प्रायोगिक चरण से गुजर रही हैं और ये देश में खाद्य फसलों की प्रकृति और उत्पादन में बुनियादी बदलाव ला सकती हैं। इस्तीफा देने से कई दिन पहले नटराजन ने एक तीन पन्ने के नोट में लिखा था, 'पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अलग हलफनामा दायर करने की मेरी गुजारिशों के बावजूद यही कहा जा रहा है कि सरकार को संयुक्त हलफनामा दायर करना चाहिए, जिससे ऐसा नहीं लगे कि इस मामले में सरकार व मंत्रालय आमने-सामने हैं।'
नटराजन ने यह नोट प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री के उस आग्रह के जवाब में लिखा था, जिसमें उन्होंने सुधारों का इंतजार या नियामकीय प्रक्रिया की समीक्षा किए बिना जीएम खाद्य फसलों के परीक्षण की अनुमति देने का समर्थन किया था। उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित तकनीकी विशेष समिति के अधिकतर सदस्यों ने 2013 में नियामकों में व्यापक बदलाव का समर्थन किया था और ऐसा होने तक जीएम फसलों के खेतों में परीक्षण को स्थगित करने की सिफारिश की थी। लेकिन कृषि मंत्रालय और विज्ञान एवं तकनीक विभाग ने इसका कड़ा विरोध किया।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने किया हस्तक्षेप अक्टूबर 2012 में न्यायालय की समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपी, जिसमें इन फसलों के खेतों में परीक्षण पर रोक लगाई गई थी और तभी प्रधानमंत्री ने पहली बार इस मामले में हस्तक्षेप किया। दस्तावेजों के अनुसार तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने प्रधानमंत्री के साथ बातचीत के बाद जीएम फसलों के खेतों में परीक्षण के खिलाफ अपने सख्त रवैये को नरम कर दिया।
नटराजन ने पहले लिखा था, 'मंत्रालय के लिए यह मुमकिन नहीं है कि वह कृषि मंत्रालय के रुख के अनुसार इन फसलों के परीक्षण को अभी अनुमति दे दे और मेरा यह भी मानना है कि इनके परीक्षण पर फिलहाल रोक लगाने की समिति की सिफारिश को मानना चाहिए।' लेकिन प्रधानमंत्री के साथ बातचीत के बाद उन्होंने उसी दिन अपना रवैया नरम कर लिया और इस बात से पर्यावरण सचिव व कैबिनेट सचिव अच्छी तरह वाकिफ थे।
इसके बाद कृषि मंत्रालय ने भारत सरकार की ओर से एक हलफनामा दायर किया और उसमें अंतरिम रिपोर्ट का विरोध करते हुए न्यायालय द्वारा गठित समिति में एक सेवानिवृत्त सरकारी कृषि वैज्ञानिक को भी सदस्य बना दिया। जब इस समिति ने अंतिम रिपोर्ट सौंपी तो इसी सदस्य ने स्थगनादेश की सिफारिश के खिलाफ राय दी, जबकि अन्य पांच सदस्यों ने परीक्षण के स्थगन पर सहमति जताई। इस बारे में जब बिजऩेस स्टैंडर्ड ने प्रधानमंत्री कार्यालय से जवाब मांगा तो उसने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
नटराजन ने यह भी कहा कि उनके मंत्रालय के तहत आने वाली सांविधिक जेनेटिक इंजीनियरिंग समीक्षा समिति को भी तब तक किसी तरह की अनुमति नहीं देनी चाहिए, जब तक न्यायालय इस बारे में अंतिम फैसला नहीं दे देता। नवंबर 2013 तक समिति की अंतिम रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देने का समय आ चुका था। कृषि मंत्रालय ने एक बार फिर वही कहा, जो केंद्र सरकार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष कहना था।
कृषि मंत्रालय ने समिति के अधिकतर सदस्यों की रिपोर्ट की खारिज कर दिया और ए सदस्य वाली रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए जीएम फसलों के परीक्षण को अनुमति दी। लेकिन इस राह में पर्यावरण मंत्रालय रोड़ा बनकर खड़ा था। प्रत्येक अधिकारी ने बताया कि इस रवैये से लगता है जैसे 'मंत्रालय की रणनीति अधिकतर सदस्यों की रिपोर्ट को खारिज करने की है।' अधिकारी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा अधिकांश सदस्यों की रिपोर्ट को दरकिनार करने की संभावना बहुत कम है। मंत्रालय को हलफनामे में यह स्पष्टï लिखने की सलाह दी जाती है कि परीक्षण से पहले सुधारों को पूरा कर लिया जाएगा। (BS Hindi)
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