01 अप्रैल 2014
पीला पड़ा सोने का आयात
खत्म हुए वित्त वर्ष में सोने का आयात छह साल के निचले स्तर 557 टन पर आ गया जो वर्ष 2007-08 के बाद सबसे कम है। आयात में गिरावट की वजह इस पीली धातु का आयात नियंत्रित करना है। इसके तहत सोने पर आयात शुल्क में भारी इजाफा किया गया। इसके अलावा वित्त वर्ष 2013-14 में सोने से मिलने वाले रिटर्न में भी गिरावट आई है। वहीं वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आज संकेत दिया कि रिजर्व बैंक की कल घोषित होने वाली सालाना मौद्रिक नीति के बाद सरकार सोने के आयात पर जारी प्रतिबंधों में और ढील दे सकती है।
एक ओर जहां सोने में अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को 19.4 फीसदी का नुकसान हुआ, वहीं भारत में रुपये के मूल्य में गिरावट (10.36 फीसदी) और आयात शुल्क में बढ़ोतरी के अलावा सोने की डिलिवरी के लिए ज्यादा प्रीमियम होने से इसके रिटर्न की गिरावट में केवल 3.17 फीसदी तक की कमी आई। मार्च महीने में सोने का आयात करीब 35 टन रह सकता है और मार्च की तिमाही को भी जोड़ लें तो कुल 90 टन का आयात हुआ जो दिसंबर तिमाही के आयात के मुकाबले 80 फीसदी ज्यादा है। अगर मार्च तिमाही में आयात में सुधार नहीं होता तो भारत का सालाना आयात दशक के सबसे निचले स्तर पर चला गया होता।
नियंत्रण के उपायों के कारण देश में वैध रास्ते से सोने की आवक घटी तो अवैध तरीके से बढऩे लगी। इससे सोने की कीमतें गिरीं। पिछले अप्रैल में कीमतों में गिरावट और इसके बाद की तिमाही में भी ऐसी ही गिरावट से यह सवाल उठने लगा कि क्या सोना निवेश के लिहाज से सुरक्षित है? भारत में लोगों के लिए सोने का आकर्षण कम नहीं हुआ है क्योंकि यहां इसकी कीमतें तेजी से नहीं गिर रही हैं।
अगर वल्र्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) के कैलेंडर वर्ष की मांग के आंकड़ों पर निगाह डालें तो अंदाजा मिलेगा कि कैलेंडर वर्ष 2013 में मांग में तेजी आई हालांकि दूसरी छमाही में निवेश की मांग भी में कमी आई थी जबकि दूसरी छमाही में आभूषणों की मांग में मामूली गिरावट आई थी। कारण कि ज्यादा नियंत्रण की वजह से सोने की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पा रही थी। दरअसल भारतीय रिजर्व बैंक के 80:20 के नियमों के मुताबिक आयातित सोने के 20 फीसदी हिस्से का निर्यात करने के बाद 80 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल घरेलू बाजार में करने की इजाजत दी गई।
हालांकि दूसरी छमाही में रुझान में आए बदलाव का असर आभूषण बनाने वाली कंपनियों की बैलेंसशीट पर पड़ा। महंगी धातुओं का विश्लेषण करने वाले जीएफएमएस, थॉमसन रॉयटर्स के सुधीश नांबियथ का कहना है, 'दूसरी छमाही में आयात में कमी को इस परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए कि पूंजीगत लागत में बढ़ोतरी हुई और भंडार के स्तर में कमी आई। शुद्ध मुनाफे में गिरावट के मुकाबले बिक्री में सुधार हुआ।'
इसका असर दिसंबर तिमाही में जेवरात की कंपनियो के नतीजे में भी देखा गया जबकि कुछ असर मार्च तिमाही में दिख सकता है। कम आयात और आपूर्ति से अधिक मांग की वजह से सोने की कमी हो गई। इस कारण सोने की वास्तविक डिलीवरी पर प्रीमियम बढ़ गया। तस्करी, पुराने आभूषणों की बिक्री और बैंकों की सोना जमा योजना के जरिये सोने के एवज में आयात से आपूर्ति में मदद मिली। वित्त वर्ष 2014 में वल्र्ड गोल्ड काउंसिल ने अनुमान लगाया है कि सोने का अवैध आयात 200 टन तक हो सकता है।
कॉमट्रेंड्ज रिसर्च ऐंड फंड मैनेजमेंट के निदेशक टी. ज्ञानशेखर कहते हैं, 'भविष्य में कीमतों के लिहाज से वर्ष 2014-15 में सोने पर दबाव बना रहेगा। हालांकि भू-राजनीतिक तनाव (अगर बढ़ा) के कारण इसमें मजबूती आ सकती है।' वह भविष्य में सोने की कीमतों में दबाव के लिए चार बड़ी वजहें गिनाते हैं। राहत की मुद्रा के जरिए सोने को मजबूती देने वाले उपाय अब खत्म हो जाएंगे और वर्ष 2015 तक ब्याज दरों में बढ़ोतरी होगी जिसका मतलब यह होगा कि शून्य प्रतिफल वाली परिसंपत्तियों के प्रति लोगों का मोहभंग होगा। तीसरी बात, सोना उत्पादकों में हेजिंग के लिए दिलचस्पी बढ़ रही है क्योंकि सोने के प्रति धारणा बदली है और कई हेजिंग करने वाले ऊंचे स्तर पर हेजिंग के लिए तैयार हैं। (BS Hindi)
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