04 जुलाई 2013
खाद्य विधेयक पर विपक्ष हुआ सख्त
कांग्रेस-नीत संप्रग सरकार ने आज अध्यादेश के जरिये विवादास्पद खाद्य सुरक्षा विधेयक का रास्ता साफ कर दिया। अध्यादेश के जरिये इस तरह के किसी महत्त्वपूर्ण विधेयक को लाए जाने के सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हुए मुख्य विपक्षी भाजपा के साथ साथ समाजवादी पार्टी, जदयू, अकाली दल ने इसका कड़ा विरोध किया।
संप्रग द्वारा अध्यादेश की पहल किए जाने के तुरंत बाद भाजपा ने कहा कि हालांकि पार्टी इस विधेयक का समर्थन करती है, लेकिन वह नेताओं की कुछ खास चिंताएं उठाए जाने के लिए और अधिक चर्चा चाहती थी और यही वजह है कि भाजपा ने संसद में इस मुद्दे पर बहस की मांग रखी।
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी इस फैसले का विरोध किया है। सपा नेता नरेश अग्रवाल ने कहा, 'यह जल्दबाजी और लापरवाही के साथ लिया गया फैसला है और इससे सिर्फ यही साबित होता है कि सरकार मध्यावधि चुनाव पर नजर लगाए हुए है।Ó अपने पूर्व के रुख पर कायम सपा नेता ने कहा कि यह विधेयक 'किसान-विरोधीÓ था। इससे किसानों को अपनी उपज के लिए उचित देय राशि नहीं मिलेगी।
अग्रवाल ने आरोप लगाया कि संप्रग सरकार यह संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि यदि अध्यादेश मॉनसून सत्र में स्वीकृत नहीं होता है तो कांग्रेस विपक्ष और राजनीतिक पार्टियों को लोगों के अनुकूल विधेयक को टालने के लिए जिम्मेदार ठहरा सकती है।
इस विधेयक के पक्ष में बहस में भाग लेने वाले राकांपा प्रमुख और कृषि मंत्री शरद पवार इसे लेकर सरकार के साथ हैं। वरिष्ठï राकांपा नेता डीपी त्रिपाठी ने कहा, 'हमें इसे लेकर कुछ चिंताएं थीं और हम चाहते हैं कि किसानों के अधिकारों की सुरक्षा हो। हम सरकार के हिस्सा हैं और इसलिए निश्चित तौर पर इसका समर्थन कर रहे हैं।Ó
लेकिन विपक्षी भाजपा का मानना है कि खाद्य सुरक्षा अध्यादेश कांग्रेस नीत संप्रग सरकार द्वारा 2014 में होने वाले लोक सभा चुनाव में 'इलेक्टोरल सिक्युरिटीÓ की दिशा में किया गया प्रयास है। भाजपा के सदस्यों ने यह सवाल उठाया है कि सरकार ने संसद के आगामी मॉनसून सत्र या इंतजार क्यों नहीं किया या उसने लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज द्वारा संसद के विशेष सत्र के सुझाव पर ध्यान क्यों नहीं दिया।
इसी तरह की चिंता राजग के पूर्व भागीदार जनता दल (यूनाइटेड) द्वारा जताई गई है। जनता दल-यू ने सवाल उठाया है कि सरकार ने इतनी जल्दबाजी में इस अध्यादेश को मंजूरी क्यों दी और उसने मॉनसून सत्र का इंतजार क्यों नहीं किया। (BS Hindi)
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