यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने पर मची जद्दोजहद के बावजूद इसे अमली जामा पहनाया जाना मुश्किल लग रहा है। उर्वरक मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि अगले दो साल तक यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त किए जाने का फैसला सरकार के लिए बेहद मुश्किल है। इसकी दो मुख्य वजह हैं। पहली वजह है अंतरराष्ट्रीय बाजार पर यूरिया के आयात को लेकर हमारी निर्भरता। दूसरी वजह है बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने में लगने वाला समय।
सूत्रों का कहना है कि यूरिया के आयात को लेकर हमारी निर्भरता अंतरराष्ट्रीय बाजार पर काफी ज्यादा है। ऐसे में अगर फिलहाल यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया तो कहीं हालात डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे न हो जाएं। सूत्रों ने बताया कि डीएपी की कीमतें 400 डॉलर से बढ़कर 700 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई हैं।
ऐसे में डीएपी की कीमतों को लेकर सरकार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए सरकार के लिए फिलहाल यूरिया की कीमतों पर से बंदिश हटाना मुश्किल है। उधर, देश में बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने के लिए जल्द ही कैबिनेट से मंजूरी मिलने की संभावना है।
अगर बंद पड़ी यूरिया इकाइयां जल्द ही चालू हो जाती हैं तो देश की यूरिया आयात पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। इसके बाद सरकार के लिए यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना बेहद आसान हो जाएगा क्योंकि उस समय कीमतों पर काबू करना काफी हद तक सरकार के हाथ में होगा। सूत्रों ने बताया कि बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने में गैस की उपलब्धता सुनिश्चित करना सबसे जरूरी है।
इसके लिए जल्द ही यह मसला मंत्रियों के समूह के पास जाएगा। सूत्रों का कहना है कि इन बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करवाने और गैस उपलब्धता सुनिश्चित करने में दो साल का समय लग सकता है। ऐसे में तब तक सरकार यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने से परहेज करेगी। (Business Bhaskar)
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