कृषि मंत्रालय ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के किसी तरह के वित्तीय संकट में होने से इनकार किया है। इस तरह की खबरें छपने के बाद कि एफसीआई अनाज की खरीद के लिए राज्यों और उनकी एजेंसियों को भुगतान नहीं कर पा रहा है, मंत्रालय ने सफाई पेश की है।
उसका कहना है कि एफसीआई को गेहूं और धान की खरीद पर बोनस व अतिरिक्त आवंटन वगैरह के कारण बजट में आवंटन रकम से ज्यादा खर्च करना पड़ा है। लेकिन इन सभी खर्चों की पूर्ति सरकार की तरफ से की जा रही है।
गौरतलब है कि एफसीआई के लिए चालू वित्त वर्ष 2011-12 का मूल बजट आवंटन 47239.8 करोड़ रुपए का था। साथ ही विकेन्द्रीकृत खरीद (डीसीपी) योजना वाले राज्यों के लिए 12,845 करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे। इस तरह कुल बजट आवंटन 60,084.8 करोड़ रुपए का है। इसमें से 12,000 करोड़ रुपए एफसीआई को अप्रैल 2011 और 4000 करोड़ रुपए जुलाई के पहले हफ्ते में में जारी किए जा चुके हैं। इसके बाद अभी 21 जुलाई को एफसीआई को 7635.84 करोड़ रुपए अलग से दिए गए हैं।
दिक्कत यह है कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही बीतते-बीतते ही एफसीआई और डीसीपी राज्यों के लिए आवंटन 35,227.2 करोड़ रुपए बढ़ाकर 95,311 करोड़ रुपए कर दिया गया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक एफसीआई के आवंटन को 34,738 करोड़ और डीसीपी राज्यों के आवंटन को 489 करोड़ रुपए बढ़ाया गया है। इसका सीधा असर इस साल की खाद्य सब्सिडी पर पड़ेगा। बजट 2011-12 में खाद्य सब्सिडी 60,570 करोड़ रुपए रखी गई है। जाहिर है, अब इसमें इजाफा हो जाएगा। पिछले दो सालों में भी ऐसा हो चुका है।
यह भी नोट करने की बात है कि देश के 59 बैंक एफसीआई को ऋण देते हैं। एफसीआई के लिए सरकार की तरफ से मान्य उधार सीमा 35,000 करोड़ रुपए है। रिजर्व बैंक हर पखवाड़े बैंकों द्वारा दिए गए खाद्य ऋण का जो आंकड़ा जारी करता है, वह दरअसल एफसीआई को ही मिलता है। (Arthkam)
27 जुलाई 2011
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