बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
गेहूं निर्यात पर रोक हटाने के अपने बयान के कारण कृषि मंत्री शरद पवार मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। पवार ने 16 जुलाई (शनिवार) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना समारोह में कहा था कि गेहूं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है। लेकिन हकीकत इसके उलट है। सूत्रों के मुताबिक 11 जुलाई को मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक में गेहूं निर्यात का मसला एजेंडे में तो था लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं हुआ। इस संवाददाता ने खुद इस बैठक की मिनट्स देखी हैं जिसमें साफ लिखा है कि गेहूं निर्यात पर फैसला मुल्तवी कर दिया गया है। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर स्टॉक है। इस लिहाज से खाद्य मंत्रालय भी गेहूं निर्यात के हक में है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम भारत के मुकाबले काफी कम हंै, इसलिए वर्तमान स्थिति निर्यात के अनुकूल नहीं है। शरद पवार भी इस बात के मानते हैं कि वैश्विक बाजार में कीमतों में नरमी को देखते हुए भारत से गेहूं निर्यात की संभावनाएं फिलहाल बहुत अच्छी नहीं है। पिछले दिनों गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत अच्छी थी और उस समय निर्यात फायदेमंद था। लेकिन तब सरकार की तरफ से निर्यात पर पाबंदी जारी थी। ऐसी स्थिति में अगर अब सब्सिडी का गेहूं निर्यात के लिए दिया जाता है तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। सरकार ने घरेलू बाजार में महंगाई को देखते हुए वर्ष 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगी दी थी। चालू वर्ष में देश में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 842 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को 371.49 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक था। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को खाद्यान्न का स्टॉक 641 लाख टन से ज्यादा था जबकि भंडारण क्षमता 620 लाख टन से भी कम है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 2011-12 में देश में खाद्यान्न का रिकार्ड 24.5 करोड़ टन का उत्पादन होने का अनुमान है। ऐसे में खरीफ विपणन सीजन में सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे जाने वाले खाद्यान्न को रखने में सरकार को परेशानी उठानी पड़ सकती है। (Business Bhaskar)
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