नई दिल्ली July 11, 2011
अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने सोमवार को लंबे समय से प्रतीक्षित खाद्य सुरक्षा विधेयक को औपचारिक रूप से हरी झंडी दिखा दी। इस विधेयक के जरिए ग्रामीण इलाकों के 75 फीसदी परिवारों और शहरी इलाकों के 50 फीसदी परिवारों को अनाज प्राप्त करने का कानूनी अधिकार मिल जाएगा।इस विधेयक को मनरेगा के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम बताया जाता रहा है। राज्यों से विचार हासिल किए जाने के बाद इस विधेयक को कैबिनेट के सामने रखा जाएगा और फिर इसे मॉनसून सत्र में पेश किया जा सकता है।बैठक में शामिल होने वाले खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय द्वारा तैयार खाद्य विधेयक के मसौदे पर सभी सदस्यों की सहमति थी और ईजीओएम ने इसे हरी झंडी दिखा दी। इसके अलावा ईजीओएम ने 10 लाख टन गैर-बासमती चावल निर्यात को मंजूरी दे दी है और गेहूं निर्यात पर भी सैद्धांतिक रूप से सहमति जता दी है।एक अधिकारी ने कहा - काफी ज्यादा स्टॉक होने के चलते चावल निर्यात की अनुमति दी गई है, वहीं गेहूं की मात्रा और समयसीमा के बारे में बाद में फैसला लिया जाएगा। भारत ने साल 2007 और 2008 में स्थानीय बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी के बाद क्रमश: गेहूं और चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी।मंत्रियों के समूह ने 6.50 लाख टन गेहूं के उत्पाद के निर्यात की अनुमति देने का फैसला किया है। साथ ही बांग्लादेश को 3 लाख टन चावल और दूसरे देशों को 5 लाख टन चावल निर्यात का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि खाद्य विधेयक के तहत प्राथमिकता वाले परिवारों को (बीपीएल) प्रति व्यक्ति के हिसाब से हर महीने 7 किलोग्राम अनाज की आपूर्ति की जाएगी, वहीं सामान्य श्रेणी के लोगों को (एपीएल) को प्रति व्यक्ति प्रति माह 3-4 किलोग्राम अनाज दिया जाएगा। बीपीएल परिवारों को 3 रुपये की दर से चावल और 2 रुपये की दर से गेहूं मिलेगा जबकि मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाएगा। सामान्य श्रेणी वाले परिवारों को उस दर से अनाज मिलेगा, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित होगा। (BS Hindi)
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