आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार लगातार दावा करती आ रही है कि सरकार का मुख्य लक्ष्य किसानों की आय दौगुनी करने का है, जबकि हकीकत यह है कि किसानों को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नसीब नहीं हो रहा है। दलहन की प्रमुख फसलें अरहर, मूंग, उड़द के साथ जहां किसानों को मसूर एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ रही है, वहीं तिलहनी फसलों में सरसों, सोयाबीन और मूंगफली के भाव भी मंडियों में एमएसपी से नीचे बने हुए है। रबी की प्रमुख फसल गेहूं के भाव भी कई राज्यों में एमएसपी से नीचे बने हुए हैं, इसके बावजूद भी केंद्र सरकार गेहूं के आयात शुल्क में बढ़ोतरी नहीं करके किसकों फायदा पहुंचा रही है, या फिर किसकी आय दौगुनी कर रही है किसानों की या फिर फ्लोर मिलों की, यह समझ से परे है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2016-17 में देश में गेहूं का रिकार्ड 974.4 लाख टन का उत्पादन हुआ है। रिकार्ड उत्पादन के बावजूद गेहूं का करीब 55 लाख टन का आयात शुन्य शुल्क पर होने के बाद केंद्र सरकार ने 10 फीसदी आयात शुल्क लगाया, हालांकि 10 फीसदी आयात शुल्क चुकाने के भी दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों को आयातित गेहूं सस्ता पड़ रहा है, लेकिन केंद्र सरकार आयात शुल्क में बढ़ोतरी नहीं कर रही है। जिसके परिणामस्वरुप गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान के साथ ही उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं 1,550 से 1,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है जबकि चालू रबी विपणन सीजन 2017-18 के लिए केंद्र सरकार ने एमएसपी 1,625 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
यही हालात दलहन का है, किसानों का जहां अरहर एमएसपी से 1,000 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बेचनी पड़ रही है, वहीं उत्पादक राज्यों में मूंग, उड़द और मसूर के भाव एमएसपी से 200 से 500 रुपये प्रति क्विंटल नीचे हैं। केंद्र सरकार ने अरहर के आयात पर 10 फीसदी का आयात शुल्क तो लगाया लेकिन अरहर के कुल आयात में 50 फीसदी की हिस्सेदारी म्यांमार की है, तथा म्यांमार से अरहर का आयात शुन्य शुल्क पर हो रहा है इसलिए आयात शुल्क लगाना बेअसर हो गया।
तिलहनी फसलों में सोयाबीन के दाम उत्पादक मंडियों में एमएसपी से नीचे बने हुए हैं, सरसों के भाव उत्पादक मंडियों में एमएसपी से 400 से 500 रुपये नीचे हैं, साथ ही मूंगफली 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि एमएसपी 4,220 रुपये प्रति क्विंटल है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू खरीफ में मानसूनी बारिश अच्छी होने का अनुमान है अतः चालू फसल सीजन 2017-18 में भी खाद्यान्न उत्पादन तो बढ़ेगा, लेकिन किसानों को वाजिब दाम मिल पायेगा, इसकी कोई गांरटी नहीं है।
देश में कई राज्यों के किसान आज सड़क है, क्योंकि खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। रिकार्ड पैदावार से कृषि मंत्रालय अपनी पीठ तो थपथपा लेता है, अखबारों में विज्ञापन जारी कर प्रचार-प्रसार भी खूब कर रहा है, लेकिन किसानों को फसलों का उचित भाव भी नसीब नहीं हो रहा है, इसीलिए किसानों को मजबूरीवश आंदोलन का रास्ता अखियार करना पड़ रहा है।
केंद्र सरकार ने खरीफ फसलों के एमएसपी तो तय कर दिए हैं, लेकिन किसानों के आंदोलन को देखते हुए एमएसपी की घोषणा रोक ली है, मतलब केंद्र सरकार के पास मार्के इंटेलिजेंस की कमी है, खेती की पारदर्शी नीति नहीं है, केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों में आपसी तालमेल का अभाव है, केंद्र सरकार की नीतियां किसानों के बजाए कारोबारियों की हितैषी हैं साथ ही सरकार फैसला लेने में देरी कर देती है, जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ रहा है।........................ आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार लगातार दावा करती आ रही है कि सरकार का मुख्य लक्ष्य किसानों की आय दौगुनी करने का है, जबकि हकीकत यह है कि किसानों को फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नसीब नहीं हो रहा है। दलहन की प्रमुख फसलें अरहर, मूंग, उड़द के साथ जहां किसानों को मसूर एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ रही है, वहीं तिलहनी फसलों में सरसों, सोयाबीन और मूंगफली के भाव भी मंडियों में एमएसपी से नीचे बने हुए है। रबी की प्रमुख फसल गेहूं के भाव भी कई राज्यों में एमएसपी से नीचे बने हुए हैं, इसके बावजूद भी केंद्र सरकार गेहूं के आयात शुल्क में बढ़ोतरी नहीं करके किसकों फायदा पहुंचा रही है, या फिर किसकी आय दौगुनी कर रही है किसानों की या फिर फ्लोर मिलों की, यह समझ से परे है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2016-17 में देश में गेहूं का रिकार्ड 974.4 लाख टन का उत्पादन हुआ है। रिकार्ड उत्पादन के बावजूद गेहूं का करीब 55 लाख टन का आयात शुन्य शुल्क पर होने के बाद केंद्र सरकार ने 10 फीसदी आयात शुल्क लगाया, हालांकि 10 फीसदी आयात शुल्क चुकाने के भी दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों को आयातित गेहूं सस्ता पड़ रहा है, लेकिन केंद्र सरकार आयात शुल्क में बढ़ोतरी नहीं कर रही है। जिसके परिणामस्वरुप गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान के साथ ही उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं 1,550 से 1,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है जबकि चालू रबी विपणन सीजन 2017-18 के लिए केंद्र सरकार ने एमएसपी 1,625 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
यही हालात दलहन का है, किसानों का जहां अरहर एमएसपी से 1,000 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बेचनी पड़ रही है, वहीं उत्पादक राज्यों में मूंग, उड़द और मसूर के भाव एमएसपी से 200 से 500 रुपये प्रति क्विंटल नीचे हैं। केंद्र सरकार ने अरहर के आयात पर 10 फीसदी का आयात शुल्क तो लगाया लेकिन अरहर के कुल आयात में 50 फीसदी की हिस्सेदारी म्यांमार की है, तथा म्यांमार से अरहर का आयात शुन्य शुल्क पर हो रहा है इसलिए आयात शुल्क लगाना बेअसर हो गया।
तिलहनी फसलों में सोयाबीन के दाम उत्पादक मंडियों में एमएसपी से नीचे बने हुए हैं, सरसों के भाव उत्पादक मंडियों में एमएसपी से 400 से 500 रुपये नीचे हैं, साथ ही मूंगफली 3,500 से 3,600 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि एमएसपी 4,220 रुपये प्रति क्विंटल है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार चालू खरीफ में मानसूनी बारिश अच्छी होने का अनुमान है अतः चालू फसल सीजन 2017-18 में भी खाद्यान्न उत्पादन तो बढ़ेगा, लेकिन किसानों को वाजिब दाम मिल पायेगा, इसकी कोई गांरटी नहीं है।
देश में कई राज्यों के किसान आज सड़क है, क्योंकि खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। रिकार्ड पैदावार से कृषि मंत्रालय अपनी पीठ तो थपथपा लेता है, अखबारों में विज्ञापन जारी कर प्रचार-प्रसार भी खूब कर रहा है, लेकिन किसानों को फसलों का उचित भाव भी नसीब नहीं हो रहा है, इसीलिए किसानों को मजबूरीवश आंदोलन का रास्ता अखियार करना पड़ रहा है।
केंद्र सरकार ने खरीफ फसलों के एमएसपी तो तय कर दिए हैं, लेकिन किसानों के आंदोलन को देखते हुए एमएसपी की घोषणा रोक ली है, मतलब केंद्र सरकार के पास मार्के इंटेलिजेंस की कमी है, खेती की पारदर्शी नीति नहीं है, केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों में आपसी तालमेल का अभाव है, केंद्र सरकार की नीतियां किसानों के बजाए कारोबारियों की हितैषी हैं साथ ही सरकार फैसला लेने में देरी कर देती है, जिसका खामियाजा किसानों को उठाना पड़ रहा है।........................ आर एस राणा
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