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08 फ़रवरी 2016

दाल के मोर्चे पर सरकार की सधी चाल


रबी की चल रही बुआई में जहां दाल की बुआई कम होती दिख रही है, उससे दालों की कीमतों के फिर आसमान छूने की आशंकाएं बढ़ रही हैं। लिहाजा सरकार इसे लेकर सतर्कता दिखा रही है और उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय उन लोगों पर कड़ी नजर रखे हुए है, जो कृत्रिम तरीके से कीमतों को बढ़ा सकते हैं। इस मामले में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की मदद ली जा रही है। इसके जरिये दाल आयातकों और जमाखारों पर नजर रखी जा रही है। असल में खुफिया ब्यूरो (आईबी) की गुजारिश पर यह कवायद शुरू हुई, जिसमें आंतरिक खुफिया एजेंसी ने दाल को लेकर अवैध जमाखोरी से जुड़ी रिपोर्ट पेश की है, जिसमें उसने कुछ बड़े नामों पर भी निशाना साधा है और साथ ही यह चेतावनी भी दी कि आयातकों ने अंतरराष्टï्रीय बाजार में दालों की जमाखोरी शुरू भी कर दी है और खासतौर से मसूर दाल के मामले में यह रुझान देखने को मिल रहा है। 
 अधिकारियों ने यह भी बताया कि मसूर के मामले में भी वही किया जा रहा है, जो कुछ महीनों पहले अरहर को लेकर किया गया गया था। आयातक अंतरराष्टï्रीय बाजार में ऊंची कीमतों पर दालें खरीदकर उनकी जमाखोरी कर रहे हैं ताकि कीमतें चढऩे पर उसका फायदा उठाया जा सके। केंद्र का कहना है कि इस कृत्रिम किल्लत की स्थिति से कुछ महीनों पहले देसी खुदरा बाजार में अरहर दाल के भाव 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए थे। 
 बाद में केंद्र ने राज्यों के साथ मिलकर राष्टï्रव्यापी छापेमारी में 1,30,000 टन दालें जब्त की थीं, जिनकी स्वीकार्य सीमा से ऊपर जमाखोरी की गई थी। बाद में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने भी कानून के उल्लंघन मामले में दिल्ली के स्थानीय नया बाजार में थोक और खुदरा व्यापारियों के यहां छापेमारी की थी। इस साल जनवरी के अंत तक रबी सत्र में लगभग 13.4 लाख हेक्टेयर में मसूर की बुआई हुई थी, जबकि पिछले साल उसका रकबा 20 लाख हेक्टेयर रहा था। कुल मिलाकर वर्ष 2014-15 (जुलाई से जून) में दालों का उत्पादन घटकर 1.72 करोड़ टन रहा था, जबकि उससे पिछले वर्ष में यही उत्पादन 1.93 करोड़ टन था। वर्ष 2015-16 के दौरान भी उत्पादन में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी के आसार नहीं हैं, जिसको देखते हुए आने वाले महीनों में दाल के दाम और चढऩे की अटकलें लग रही हैं।
 भारत में सालाना 2.2 से लेकर 2.3 करोड़ टन दालों की खपत होती है और उत्पादन में कमी का अंतर आयात से पूरा किया जाता है। अमूमन दाल का 30 से 50 लाख टन के दायरे में आयात होता है। वर्ष 2015-16 में किसी संकट से निपटने के लिए केंद्र ने कुछ महीने पहले ही लगभग 10,000 टन दाल आयात के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। कमजोर मॉनसून और बेमौसम बारिश के चलते पिछले साल कमजोर हुई दाल की फसलों ने उसकी कीमतों को बहुत मजबूती दी थी और अरहर दाल के भाव चढ़कर 200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए थे। हालांकि केंद्र आवश्यक वस्तु अधिनियम के इस्तेमाल से दाल आयातकों और जमाखोरों पर कड़ी कार्रवाई करने की जुगत भिड़ा रहा है लेकिन कुछ समय पहले नीति आयोग द्वारा पेश किए गए एक परामर्श पत्र में चेताया गया था कि इस कानून के विवेकहीन इस्तेमाल से कृषि विपणन और भंडारण अवसंरचना में निजी निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इस कार्यबल में नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पानगडिय़ा, सदस्य विवेक देवरॉय और रमेश चंद, अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और कृषि, भू संसाधन, जल संसाधन, उर्वरक और अन्य मंत्रालयों के सचिव शामिल थे।

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