प्रकृति इस साल भी हमारे ऊपर मेहरबान नहीं रही है। अपर्याप्त मानसून के बाद शुष्क दौर के कारण लगातार दूसरे वर्ष कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है। यह गंभीर चिंता का विषय है। पूसा में आयोजित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के 54वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए प्रणव मुखर्जी ने यह बात कही। कृषि क्षेत्र के बड़े हिस्से सूखे, बाढ़ और तूफान जैसी जलवायु संबंधी कठिन परिस्थितियों से प्रभावित है। राष्टï्रपति ने ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने का आह्वान किया ताकि भारतीय कृषि को मौसम के उतार चढ़ाव झेलने में समर्थ बनाया जा सके।
राष्ट्रपति ने कहा कि फसल वर्ष 2014-15 (जुलाई से जून) के दौरारन बारिश में 12 प्रतिशत की कमी के कारण देश का खाद्यान्न उत्पादन घटकर 25.3 करोड़ टन रह गया, जबकि वर्ष 2013-14 में 26.5 करोड़ टन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था।
उन्होंने कहा कि यह गंभीर प्रयास करने का समय है क्योंकि भारत में खेती योग्य भूमि का लगभग 80 प्रतिशत भाग सूखा, बाढ़ और समुद्री तूफान जैसी प्राकृतिक कठिनाइयों से प्रभावित होता रहता है। खाद्य तेलों और दलहनों पर भारत की निर्भरता के बारे में उन्होंने कहा कि भविष्य में इन चीजों की मांग बढऩे की संभावना है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण ए समस्याएं और जटिल हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि आईएआरआई को जैव प्रौद्योगिकी, सिंथेटिक जीव विज्ञान, नैनो प्रौद्योगिकी, कंप्यूटेशन जीवविज्ञान, सेंसर प्रौद्योगिकी जैसे अग्रणी विज्ञान से पैदा हुए अवसरों का उपयोग कर विषम जलवायु को झेलने लायक प्रौद्योगिकी समाधान विकसित करना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें