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18 फ़रवरी 2016

बासमती निर्यात में आएगी फांस!


अमेरिका ने बासमती चावल का निर्यात करने वाले भारतीय निर्यातकों के लिए स्थानीय नियामक 'नेशनल प्लांट प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशन' (एनपीपीओ) से पंजीकरण अनिवार्य कर दिया है। देश के बासमती उद्योग के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। हालांकि पंजीकरण प्रक्रिया पिछले दो-तीन सालों से शुरू है, लेकिन तब भी 'कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण' (एपीडा) ने 10 फरवरी को पहली बार इस संबंध में चेतावनी जारी की। एपीडा ने कहा कि सिर्फ एनपीपीओ से पंजीकृत चावल मिलों/संसाधक इकाइयों को ही अमेरिका को किए जाने वाले बासमती चावल निर्यात के लिए अनुमति दी जाएगी जो 1 अप्रैल, 2016 से प्रभावी होगा।
पूर्व में अमेरिका के फाइटो सैनिटैरी अथॉरिटी द्वारा भारतीय बासमती चावल की खेप को अस्वीकृत किए जाने के संबंध में एपीडा का यह निर्देश महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके अलावा 2011-12 में अमेरिका ने भारतीय मूल के बासमती चावल में खापरा गुबरैला पाया था। तब से अमेरिका का फाइटो सैनिटैरी अथॉरिटी भारत से आयात किए जाने वाले बसमती चावल के संदर्भ में गुणवत्ता को लेकर ज्यादा सचेत हो गया। एनपीपीओ के अनिवार्य पंजीकरण से मौके का फायदा उठाने वाले निर्यातक दूर रखने और ईमानदार निर्यातकों को नियमित करने में मदद मिलेगी। कोहिनूर ब्रांड के बासमती चावल की उत्पादक व निर्यातक कोहिनूर फूड्स लि. के संयुक्त प्रबंध निदेशक गुरनाम अरोड़ा ने कहा, 'यह शायद बाजार को नियमित करने की कोशिश है क्योंकि अमेरिका को जाने वाली खेप से कीड़ों या दूसरी चीजों से जुड़े कुछ मामले उभरे हैं। एनपीपीओ से अनिवार्य पंजीकरण के जरिए मौकापरस्त निर्यातक बाहर हो जाएंगे, जबकि असली वाले चलते रहेंगे। इससे खेप को नामंजूर करने की दर को नियंत्रित करने में भी मदद मिलेगी।'
भारत अमेरिका को हर साल 14 करोड़ डॉलर मूल्य का लगभग 100,000 टन बासमती चावल भेजता है। लेकिन पूर्व में भारतीय निर्यातकों ने इससे ज्यादा मात्रा में माल भेजा। ऐसा या तो वहां स्टॉक निर्मित करने के लिए हुआ या फिर नामंजूर की गई खेप की मात्रा की पूति करने के लिए। अमेरिकी बाजार में भारत के सालाना बासमती निर्यात का करीब पांच प्रतिशत 37 लाख टन रहता है। अरोड़ा मानते हैं कि मौकापरस्त निर्यातकों को प्रणाली से बाहर किए जाने से आने वाले सालों में अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात की मात्रा में कुछ कमी आएगी।
व्यापार से जुड़े सूत्रों का अनुमान है कि खेप का लगभग 10-15 प्रतिश भाग हर साल अस्वीकृत कर दिया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका के कृषि सहयोग एवं किसान कल्याण मंत्रालय के वनस्पति संरक्षण सलाहकार ने स्पष्टï रूप में कहा है, 'यह निश्चित किया गया है कि 1 अप्रैल, 2016 से अमेरिका को किया जाने वाला चावल निर्यात सिर्फ एनपीपीओ से पंजीकृत चावल मिलों/संसाधक इकाइयों से ही मान्य होगा।' (BS Hindi)

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