नासिक की प्रमुख लासलगांव मंडी में सोमवार को नए सीजन की आवक में भारी
बढ़ोतरी होने के कारण प्याज की कीमतें सीजन के सबसे निचले स्तर 5 रुपये
प्रति किलोग्राम पर आ गई हैं। यह कीमत करीब दो साल में सबसे कम है। इसने
भारत में प्याज किसानों के सामने संकट के हालात पैदा कर दिए हैं। सार्वजनिक
अवकाश होने के कारण बाजार में सोमवार को कारोबार बंद रहने के बावजूद किसान
कृषि उपज मंडी समिति (एपीएमसी) के बाहर 4-5 रुपये प्रति किलोग्राम पर
बेचने के लिए 65 टन प्याज लाए। प्याज की गुणवत्ता खराब होने के डर से
किसानों ने खरीदारों द्वारा बोली गई किसी भी कीमत पर प्याज को डंप करना
मुनासिब समझा। असल में यह कीमत उत्पादन की औसत लागत 5.50 रुपये प्रति
किलोग्राम से भी कम है।
लासलगांव में तीन एकड़ से भी ज्यादा की जमीन वाले प्याज के एक किसान
पुंडलके पंचपुते ने बताया, 'प्याज को किसी भी दाम पर बेचने के अलावा हमारे
पास और कोई चारा नहीं है। खरीफ सीजन में उपजे लाल प्याज का लंबे समय तक
भंडारण नहीं किया जा सकता है। पिछले सीजन में जब कीमतें बढऩी शुरू हुईं, तो
सरकार ने हमे फसल कटाई के वक्त मदद का भरोसा दिलाया था। अब सरकार की ओर से
कोई सहायता नहीं है। हमने जिस स्थानीय साहूकार से 15,000 रुपये उधार लिए
थे, अब उसे पैसा लौटाना नामुमकिन दिख रहा है।' नासिक में शिवकृपा ट्रेडर्स
के मालिक प्याज व्यापारी संजय सनप भी ऐसी ही प्रतिक्रिया जताते हैं।
उन्होंने कहा, 'जब प्याज की कीमतें बढ़ती हैं, तो सब रोने-चिल्लाने लगते
हैं, लेकिन अब जब दाम उत्पादन से भी नीचे गिर गए हैं, तो कोई बचाने के लिए
नहीं आ रहा है। प्याज के किसानों की यही दुर्दशा है जिसका सामना वे हर साल
करते हैं।'
फिलहाल देश के विभिन्न बाजारों में प्याज की जो आवक हो रही है, वह
पिछले खरीफ सीजन की उपज है। यह प्रमुख रूप से महाराष्टï्र, गुजरात और
मध्यप्रदेश की आवक है। बाजार में आने वाले प्याज की गुणवत्ता काफी अच्छी है
और प्रति इकाई उत्पादकता पिछले सालों की तुलना में ज्यादा रहने का अनुमान
है। कृषि क्षेत्र की शीर्ष संस्था 'राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास
प्रतिष्ठïान' (एनएचआरडीएफ) ने पिछले साल के प्याज उत्पादन 1.893 करोड़ टन
की तुलना में इस साल 5-7 प्रतिशत ज्यादा 2.05-2.08 करोड़ टन रहने का
पूर्वानुमान जताया है। एनएचआरडीएफ ने रकबे में भी इजाफे का अनुमान लगाया
है। इसके अनुसार पिछले साल के 11.7 लाख हेक्टेयर रकबे की तुलना में इस साल
यह 12-13 लाख हेक्टेयर रहने का अनुमान लगाया गया है।
एनएचआरडीएफ के निदेशक आरपी गुप्ता ने कहा, 'जैसा कि पहले से ही
पूर्वानुमान था, बड़ी मात्रा की आवक से खरीफ और खरीफ के बाद वाले दोनों
सीजन की फसलों की मंडी को चोट पहुंच रही है। कीमतें कम रहने की संभावना है
और ज्यादा आपूर्ति होने पर इसमें आगे और गिरावट आ सकती है।' हालांकि
व्यापारियों के लिए बड़ी राहत के रूप में मध्य और सुदूर पूर्व, श्रीलंका
जैसे देशों से बड़ी मात्रा में आयात के ऑर्डर भी आने शुरू हो गए हैं। चीन
में नव वर्ष के अवकाश की वजह से वहां के खरीदार अब भी बाजार से नदारद हैं।
इस हफ्ते के आखिर तक एक बार फिर से उन्होंने व्यापार शुरू कर दिया, तो चीन
और मलयेशिया की खेप भी शुरू हो जाएगी। वर्तमान में भारत प्रति माह
100,000-125,000 टन निर्यात ऑर्डर का निष्पादन करता है। एक बार ये दोनों
बाजार भी भाारत से प्याज लेना शुरू कर दें, तो भारत का कुल निर्यात प्रति
माह बढ़कर कम से कम 150,000-175,000 टन तक हो जाएगा।
हॉर्टिकल्चर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजित शाह ने कहा,
'लेकिन जब तक आपूर्ति नियंत्रित है, तब तक निर्यात में बढ़ोतरी की उम्मीद
से शायद घरेलू बाजार में कीमतें कम न हों। चूंकि निर्यात गुणवत्ता वाली
प्याज की कीमत 6-7 रुपये प्रति किलोग्राम बताई जा रही है, इसलिए प्रति
किलोग्राम अतिरिक्त एक रुपये की कमी आने की संभावना है।' इसका मतलब यह होगा
कि आने वाले हफ्तों में मध्य गुणवत्ता वाले प्याज की कीमतें आगे और 4
रुपये प्रति किलोग्राम या इससे भी नीचे तक गिर सकती हैं। भारत हर साल करीब
15 लाख टन प्याज का निर्यात करता है। लेकिन भारत ने कीमतें चढऩे से रोकने
के लिए पिछले साल 25,000 टन प्याज का आयात किया था। (BS Hindi)
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