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02 दिसंबर 2013

आमदनी बंटवारे के लिए नया तरीका

गन्ने के बढ़ते बकाये और चीनी की गिरती कीमतों की वजह से देश के बहुत से हिस्सों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में मिलों ने 2013-14 में किसानों से गन्ना खरीदने के लिए इनकार कर दिया है। पीएमईएसी के चेयरमैन सी रंगराजन ने प्रत्येक मिल द्वारा किसानों को चुकाई जाने वाली गन्ने की कीमत के निर्धारण के लिए राजस्व बंटवारे का फॉर्मूला सुझाया था। संजीव मुखर्जी के साथ विशेष साक्षात्कार में रंगराजन ने कहा कि अगर राज्य सहमत हों तो आमदनी बंटवारे का नया तरीका विकसित किया जा सकता है। चीनी क्षेत्र में सुधारों पर रिपोर्ट में आपके द्वारा सुझाए गए राजस्व बंटवारे की क्या आप फिर से समीक्षा करने को तैयार हैं? हमने जो फॉर्मूला दिया था, उसका आधार अब भी आमदनी बंटवारा ही है। अगर राज्य सिद्धांत: इस तरीके पर राजी होते हैं तो हम फॉर्मूले यानी चीनी मिलों द्वारा किसानों को चीनी कीमत का 75 फीसदी और उपोत्पादों का 70 फीसदी चुकाने के आंकड़े पर फिर से विचार करने को तैयार हैं। इसलिए कोई नया फॉर्मूला नहीं होगा? नए फॉर्मूले की कोई संभावना नहीं है। इस पर हम काफी विचार-विमर्श कर पहुंचे हैं। इसका आधार यही रहेगा, केवल आंकड़ों में थोड़ी घटत-बढ़त की जा सकती है। तब नए आंकड़े वर्तमान आंकड़ों से किस तरह अलग होंगे और आप चीनी क्षेत्र के इस झमेले को किस तरह देखते हैं। इससे किस तरह निपटा जा सकता है? बुनियादी समस्या यह है कि राज्य रंगराजन समिति द्वारा सुझाए गए आमदनी बंटवारे के फॉर्मूले को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। आमदनी निर्धारण के लिए चाहे यह चीनी हो या उपोत्पाद, इस फॉर्मूले पर हम फुल प्रूफ मैकेनिज्म के आधार पर पहुंचे हैं। अब हम यह सुझाव दे रहे हैं कि चीनी और उपोत्पादों के राजस्व निर्धारण के लिए राज्यों को मंजूूर नई व्यवस्था लागू की जा सकती है। इसका आधार भी आमदनी बंटवारा ही होगा। कुछ हलकों में यह सुझाव भी दिया जा रहा है कि केंद्र पूरे संकट से खुद को दूर रखे, क्योंकि यह समस्या राज्यों ने पैदा की है और उन्हें ही यह हल करनी चाहिए। केंद्र को मिलों को राहत पैकेज नहीं देना चाहिए। इस पर आपका क्या कहना है? वास्तव में केंद्र और राज्यों को संयुक्त रूप से हल ढूंढना चाहिए। समस्या है और इसके हल के लिए केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर काम करना होगा। (BS Hindi)

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