24 दिसंबर 2013
100 रु किलो प्याज से महंगाई के तड़के तक, रुलाता गया साल 2013
खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी से जन साधारण की जेब तो ढीली हुई ही, इससे वर्ष 2013 का आखीर आते आते संप्रग सरकार को भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। संप्रग को चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के साथ इसकी कीमत चुकानी पड़ी और यदि महंगाई पर नियंत्रण नहीं हुआ, तो अगले साल आम चुनाव में भी इसका असर पड़ सकता है।
इस साल कुछ राज्यों में प्याज 100 रुपए प्रति किलो के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया था। टमाटर भी बीच में 80 रुपए प्रति किलो तक चढ गया था। सब्जियों और रसोईं में काम आने वाली अन्य खाद्य सामग्रियों के दाम चढने से खाद्य मुद्रास्फीति दहाई अंक में पहुंच गयी।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति नवंबर में 11.24 प्रतिशत रही। रिजर्व बैंक नीतिगत ब्याज दर बढ़ाकर अपनी ओर से मंहगाई दर कम करने की नीतिगत कोशिश करता रहा लेकिन इसका बहुत असर नहीं रहा और लगा कि मुद्रास्फीति ने पांव गड़ा लिया है।
चिदंबरम ने कहा था खाद्य मुद्रास्फीति पर लगाम लगाना का कोई आसान तरीका नही है, मुद्रास्फीति पर फौरन काबू पाने का कोई तरीका नहीं है। मुक्षे आशंका है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में कुछ समय लगेगा। हम इसकी राजनीतिक कीमत चुका रहे हैं। मैं इसे स्वीकार करता हूं लेकिन यह यह सच्चाई है।
थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति नवंबर में 7.52 प्रतिशत थी जो पिछले 14 महीने का उच्चतम स्तर है। सब्जियों, विशेष तौर पर प्याज के दाम पूरे साल तेज रहे। नवंबर में प्याज की कीमतें एक साल पहले की तुलना में 190 प्रतिशत (करीब तीन गुना) थीं और सब्जी खंड की मुद्रास्फीति 95.25 प्रतिशत रही।
मंहगाई जहां आम आदमी को परेशान कर रही थी वहीं कांग्रेस को दिल्ली, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव में हार की जो वजहें बताईं उनमें मंहगाई भी शामिल है।
मई 2014 में आम चुनाव होने वाले हैं। खाद्य महंगाई संप्रग के लिए लगातार तीसरी जीत हासिल करने की की राह में बड़ी चुनौती पेश कर सकती है। चिदंबरम ने कहा था सबको पता है कि आज की सरकार उच्च मुद्रास्फीति की कीमत चुकाएगी, विशेष तौर पर तब यदि मुद्रास्फीति लंबे समय तक बरकरार रहती है।
आरबीआई गवर्नर मुद्रास्फीति से साल भर लड़ते रहे। केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए रेपो दर में कई बार बढ़ोतरी की। इससे आर्थिक वद्धि की संभावना पर असर हुआ। आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव की सख्त मौद्रिक नीति उद्योग और विशेषज्ञों को अच्छी नहीं लगी थी। सुब्बाराव ने कहा था देश में करोड़ों लोग हैं जो मुद्रास्फीति से प्रभावित हैं। गरीबों के लिए मुद्रास्फीति अन्यायपूर्ण कर है। इसका असर हमारे जैसे लोगों की बजाय गरीबों पर ज्यादा असर होता है। हमें उन खामोश लोगों की आवाज सुनने की जरूरत है।
सुब्बाराव को लगातार मुद्रास्फीति पर ध्यान देने के कारण सरकार में बैठे लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने एक बार यहां तक कहा था कि यदि सरकार को वृद्धि की राह पर अकेले चलना है तो वह ऐसा करने के लिए तैयार है।
इधर सुब्बाराव ने सेवानिवृत्ति के समय चुटकी लेते हुए कहा मुझे उम्मीद है कि वित्त मंत्री चिदंबरम किसी दिन कहेंगे, मैं रिजर्व बैंक से अक्सर परेशान रहता हूं, इतना निराश कि मैं सैर पर जाना चाहता हूं चाहे मुझे अकेले ही क्यों न चलना पड़े। लेकिन भला हो भगवान का कि रिजर्व बैंक वजूद है।
जब पूर्व आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन ने सितंबर में सुब्बाराव के बाद आरबीआई के गवर्नर का पद ग्रहण किया, तो उम्मीद बंधी कि मुख्य दरों में कटौती से वृद्धि प्रोत्साहित होगी। राजन ने पद ग्रहण करने के बाद मौद्रिक नीति की लगातार दो समीक्षाओं में मुख्य दरों में 0.25-0.25 प्रतिशत की वृद्धि की। 18 दिसंबर को अपनी तीसरी समीक्षा बैठक राजन ब्याज दर नहीं बढाई और कहा कि मुद्रास्फीति में गिरावट के संकेत हैं। Business Bhaskar
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