19 दिसंबर 2013
भारत के मुकाबले पांच गुना सब्सिडी दे रहा है अमेरिका
साक्षात्कार :- देविंदर शर्मा, एग्रीकल्चर इकनॉमिस्ट
बाली सम्मेलन के सफलतापूर्वक समापन के बाद भारत में इसे लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं। मसलन, भारत की अर्थव्यवस्था के अलावा वैश्विक स्तर पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। इन तमाम मुद्दे को लेकर बिजनेस भास्कर ने एग्रीकल्चर इकनॉमिस्ट देविंदर शर्मा से बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश...
यह है सच्चाई
: ट्रेड फैसिलिटेशन से एक लाख करोड़ डॉलर आने की बात सही नहीं है
: वैश्विक अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की बात में भी नहीं है कोई दम
बाली सम्मेलन में भारत के हाथ में क्या आया? इसका प्रभाव भारतीय कृषि के अलावा देश की पूरी अर्थव्यवस्था पर कैसे पड़ेगा?
भारत किसानों को दी जाने वाली कृषि सब्सिडी की राह में आने वाली समस्या को केवल कुछ समय के लिए टालने में सफल रहा है। बाली में अंतरिम पीस क्लॉज को मंजूरी मिली है जिसके जरिए इस बात को सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी देश सब्सिडी से जुड़े मसले का स्थायी समाधान निकलने तक भारत को डब्ल्यूटीओ डिस्प्यूट सेटलमेंट मैकेनिज्म में नहीं ले जाएगा।
विकासशील देशों में पहले से ही कृषि सब्सिडी के मुदे पर बातचीत आठ साल से चल रही है। इसलिए भारत के लिए यह काफी महत्वपूर्ण था कि इस मामले के स्थायी समाधान के लिए कोशिश की जाए, इसके बजाए इसे अगले चार साल के लिए प्रभावी रूप से टाल दिया जाए। भारत ने डब्ल्यूटीओ द्वारा निर्धारित कृषि सब्सिडी से जुड़े नियमों का उल्लंघन किया है।
एग्रीकल्चर के मुद्दे पर हुए समझौते में भारत को अधिकतम 10 फीसदी के सपोर्ट को मंजूरी मिली है। इसे डि-मिनिमिस कहा जाता है। चावल के मामले में भारत पहले से ही 24 फीसदी की सहायता किसानों को उपलब्ध करा रहा है। इसका संबंध 60 करोड़ किसानों के जीवनयापन की सुरक्षा से जुड़ा है। भारत के किसानों और गरीब तबके के लोगों की खाद्य सुरक्षा के साथ समझौता केवल डब्ल्यूटीओ के भविष्य के नाम पर नहीं किया जा सकता है।
वैश्विक स्तर पर इस डील का अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर क्या असर होगा?
हमने हाल ही गन्ना किसानों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर किए गए प्रदर्शनों को देखा है जिसमें दो किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी जो गन्ने की कम कीमत दिए जाने का विरोध कर रहे थे। आप कल्पना कीजिए कि विश्व व्यापार संगठन के दबाव में जब चावल और गेहूं उत्पादन करने वाले किसानों के लिए प्रोक्योरमेंट प्राइस घटाकर आधी कर दिया जाए। एक ही झटके में खेती से होने वाली आय में इतनी गिरावट से सरकार के सामने सामाजिक और राजनीतिक संकट खड़ा हो जाएगा।
इसका परिणाम यह होगा कि खेती लाभ का जरिया नहीं रह पाएगा और किसान या तो सामूहिक आत्महत्या करने या खेती छोडऩे को मजबूर होंगे। डब्ल्यूटीओ के नियमों के मुताबिक पुराने हो चुके प्रोक्योरमेंट प्राइस से बांधना किसी विनाशकारी कदम से कम नहीं होगा। हरित क्रांति के चार दशक बाद इतने परिश्रम के बाद देश खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर हुआ है ऐसे में प्रोक्योरमेंट प्राइस में कटौती से आत्मनिर्भरता प्रभावित होगी।
व्यापार सेवाओं को आसान बनाने के मसले पर आपकी क्या राय है?
ट्रेड फैसिलिटेशन सर्विसेज में होने वाले सुधार का मुख्य रूप से फायदा विकसित देशों के मल्टीनेशनल और बड़े बिजनेस हाउस को होगा। इस बात को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका अमेरिका और यूरोपियन यूनियन की है जो पोट्र्स पर सामान और सेवाओं की आवाजाही को बेरोकटोक किए जाने पर जोर दे रहे हैं ताकि अमीर देशों के बिजनेस में तेजी से इजाफा हो सके।
इसका फायदा विकासशील और कम विकसित देशों को मिलता नहीं दिख रहा है। यहां पर भारत एक बार फिर अवसर खो चुका है। ट्रेड फैसिलिटेशन के मुद्दे पर बातचीत आसानी से की जा सकती है जब भारत के स्किल्ड मैनपावर के लिए रास्ते केवल इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नहीं बल्कि दूसरे सर्विस सेक्टर जैसे मेडिसीन, एजूकेशन और विज्ञान के क्षेत्र में खोले जाएं।
ट्रेड फैसिलिटेशन से वैश्विक इकनॉमी में एक लाख करोड़ डॉलर आने की बात काफी बढ़ा-चढ़ा कर पेश की गई है। इस आंकड़े को अमेरिकी भी चुनौती दे रहे हैं। जहां तक व्यापार में बढ़ोतरी से वैश्विक अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की बात है जिसका कि विश्व व्यापार संगठन दावा कर रहा है, वह झूठा साबित होगा।
अगर वैश्विक व्यापार इतना लाभकारी होता तो क्यों वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट का माहौल देखा जा रहा है और बेरोजगारी एक बड़ी राजनीतिक समस्या का रूप ले रही है? इससे आर्थिक फायदा होने की बात गलत है, इससे केवल विकासशील देशों को पुरानी शर्तों पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रलोभन दिया जा रहा है।
विभिन्न तरह की सब्सिडी का इकनॉमिक्स क्या है? भारत इसके दायरे में कहां आता है?
यह विकसित देशों के लिए दोहरे सिद्धांत का मामला है। अमेरिका ने 2012 में एग्रीकल्चर के लिए 130 अरब डॉलर की सहायता दी है। यूरोपियन यूनियन ने करीब 90 अरब यूरो की सहायता दी है। इसमें से अधिकतर सब्सिडी ग्रीन बॉक्स के तहत संरक्षित होने की वजह से विश्व व्यापार संगठन में इसे चुनौती नहीं दी जा सकती ।
"अगर वैश्विक व्यापार इतना लाभकारी होता तो क्यों विश्व अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट का माहौल देखा जा रहा है और बेरोजगारी एक बड़ी राजनीतिक समस्या का रूप ले रही है? इससे आर्थिक फायदा होने की बात गलत है।" (Business Bhaskar)
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