28 मई 2013
मिठास का चीनी मिलों का फॉर्मूला
आगामी ेराई सीजन में चीनी मिलों के लिए शीरा और खोई जैसे उपोत्पाद तारणहार साबित होंगे। ये मिलों के मुख्य कार्य-चीनी उत्पादन में होने वाले नुकसान की आंशिक भरपाई करेंगे। सहायक गतिविधियों जैसे विद्युत उत्पादन और शराब कारखानों (डिस्टिलरी) से आमदनी बढ़ाने के लिए चीनी मिलों ने 2014 में करीब 4,000 करोड़ रुपये की निवेश योजनाएं बनाई हैं।
इस समय मिलें गन्ने की कीमत 275 से 290 रुपये प्रति क्ंिवटल चुका रही हैं। इसके आधार पर चीनी उत्पादन की औसत लागत 3,300 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है, जबकि बेंचर्माक कोल्हापुर के हाजिर बाजार में इसकी कीमत 3,000 रुपये क्विंटल है। इसका मतलब कि उद्योग को प्रत्येक एक क्विंटल चीनी के उत्पादन पर औसतन 300 रुपये का नुकसान हो रहा है। लेकिन उपोत्पाद को एथेनॉल और बिजली समेत ऊंची आमदनी देने वाले उत्पादों में बदला जा रहा है। आमतौर पर चीनी कारखाने में उपोत्पाद का कुछ भी मौल नहीं होता है।
इस उद्योग की शीर्ष संस्था इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'आने वाले समय में उपोत्पाद चीनी मिलों की सेहत सुधारेंगे, क्योंकि एथेनॉल और बिजली सहित इनसे बनने वाले अंतिम उत्पादों से निकी आमदनी बढ़ रही है।Ó
इक्रा की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि खोई और शीरे जैसे उपोत्पादों की कीमतें आगे भी ऊंची रहेंगी, क्योंकि इनका इस्तेमाल करने वाले क्षेत्रों जैसे बिजली, कागज और शराब में इनकी अच्छी मांग है। चालू वित्त वर्ष में फ्यूल एथेनॉल की बेहतर कीमत मिलने से मिलों की उपोत्पादों से होने वाली आमदनी में सुधार होगा।
श्री रेणुका शुगर्स के प्रबंध निदेशक नरेंद्र मुरकुंबी ने कहा, 'चीनी बिक्री पर आंशिक रूप से रोक हटने और एथेनॉल की कीमतों में बढ़ोतरी और तेल विपणन कंपनियों के पेट्रोल के साथ मिश्रण के लिए एथेनॉल की समस्त मात्रा की खरीद करने की प्रतिबद्धता जताने से रुझान पूरी तरह बदल गया है। एथेनॉल और बिजली उत्पादन सहित उपोत्पादों में भारी निवेश होगा।Ó
चीनी मिलों की कुल आमदनी और लाभ का एक बड़ा हिस्सा उपोत्पाद से आता है। हालांकि उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में सरकारी कंपनियों को बिक्री का भुगतान मिलने से संबधित चिंताएं हैं। हालांकि पिछले कुछ समय से इन इकाइयों से भुगतान मिलने में सुधार आया है।
खोई के वर्तमान उत्पादन से चीनी मिलें हर साल 7,500 मेगावॉट बिजली का उत्पादन कर सकती हैं, जबकि अभी वास्तविक उत्पादन 3200 मेगावॉट है। शेष खोई का इस्तेमाल कागज और प्रेस बोर्ड (फर्नीचर का कच्चा माल) के विनिर्माण में किया जाता है। वर्मा ने कहा, 'करीब आधी चीनी मिलों की बिजली उत्पादन क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा है।Ó
बहुत सी छोटी इकाइयां मूल्य संवर्धन पर निवेश की जरूरत कम करने के लिए खोई बड़ी कंपनियों को बेच देती हैं। इन बड़ी कंपनियों में चीनी क्षेत्र में बजाज हिंदुस्तान और बहुत सी कागज बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं। इसके नतीजतन न केवल उपोत्पादों की कीमतों में उतार-चढ़ाव आता है, बल्कि मिलों की आमदनी में भी अनिश्चितता रहती है। वर्मा ने कहा, 'अन्य को उपोत्पाद बेचने की तुलना में अपनी मूल्य संवर्धन इकाइयों वाली मिलों को ज्यादा आमदनी प्राप्त होगी (BS Hindi)
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