31 दिसंबर 2012
वर्ष 2012 में सोयाबीन का रहा बोलबाला
साल 2012 में मॉनसून की लेट-लतीफी का सीधा असर कृषि जिंसों की कीमतों पर पड़ा। इस साल कई कृषि जिंसों की कीमतें अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गईं। अमेरिका में पिछले 56 साल का सबसे भयानक सूखा और मॉनसून के शुरुआती दो महीनों में कमजोर बारिश के कारण कृषि जिसों की कीमतों में ज्यादा गरमाहट जून-जुलाई में देखने को मिली। अगस्त में मॉनसून की धमाकेदार वापसी और रबी फसलों की जोरदार बुआई के कारण अंतिम तिमाही में कृषि जिंस नरम हो गए।
वर्ष 2012 निवेशकों को सबसे ज्यादा रिटर्न सोयाबीन से मिला। सोयाबीन से 32 फीसदी, गेहूं से 28 फीसदी, चने से 19 फीसदी, सरसों से 18 फीसदी, चीनी से 12 फीसदी और मेंथा से 10 फीसदी रिटर्न प्राप्त हुआ। उठापटक वाले बाजार में हल्दी की कीमतें पूरे साल दबाव में रहीं, लेकिन अंतिम तिमाही में जब ज्यादातर जिंसों में गिरावट देखी जा रही थी तो हल्दी चटख होने लगी।
यही वजह है कि सालाना रिटर्न के लिहाज से हल्दी हाजिर बाजार में मुश्किल से 5 फीसदी जबकि वायदा में करीब 36 फीसदी रिटर्न दे रही है। हाजिर बाजार में काली मिर्च की कीमतें 14 फीसदी तेज हुईं जबकि वायदा में महज 5 फीसदी बढ़ीं। फसल के शुरुआती दिनों में खरीदारों की बाट जोह रहा आलू भी करीब 18 फीसदी मुनाफा दे गया। हाजिर बाजार में जो आलू पिछले साल दिसंबर में 306 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था, वह इस समय 900 रुपये के करीब है यानी कीमतों में लगभग 200 फीसदी की बढ़ोतरी।
सीपीओ यानी कच्चा पाम तेल पर दांव लगाने वाले निवेशकों को निराश हाथ लगी। मलयेशिया में पाम तेल के रिकॉर्ड उत्पादन के कारण इसमें करीब 25 फीसदी का नुकसान हुआ जबकि जीरा, काली मिर्च और हल्दी साल भर नफे-नुकसान की सीमा पर खड़े नजर आए।
तेजी से घट-बढ़ का शिकार होने वाला कृषि बाजार मांग और आपूर्ति की ताल पर नाचता है। इसमें आयात-निर्यात के साथ सरकार की नीतियां भी अहम भूमिका निभाती हैं। इस साल गेहूं, चीनी और कपास का उत्पादन कम होने की आशंका है, लेकिन देश में इन जिंसों का भरपूर स्टॉक है, ऐसे में 2013 में सरकार की निर्यात नीति इनकी दिशा तय करेगी। 2012 में साल भर दबाव में रहने वाली चीनी के बुरे दिन खत्म होते नजर आ रहे हैं। इस साल की अंतिम तिमाही में इसकी कीमतों में तेजी से सुधार हुआ है। फिलहाल चीनी मिलें उत्पादन लागत के आसपास कारोबार कर रही हैं। 2013-14 का मौसम इनकी कीमतें तय करने वाला साबित होगा। फिलहाल कपास सहित अधिकांश जिंस अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊपर हैं। ऐसे में कोई भी खराब खबर इनकी कीमतें गिरा सकती है।
ऐंजल कमोडिटी के प्रमुख नवीन माथुर के अनुसार वर्ष 2013 में दलहन फसलों में अच्छा रिटर्न मिलने की उम्मीद है। हालांकि इस साल दलहन का रकबा बढऩे की बात कही जा रही है, इसके बावजूद वैश्विक संकेतों और लगातार बढ़ती मांग से इनकी कीमतें बढ़ सकती हैं। हल्दी संभवत: अपने निवेशकों को निराश नहीं करेगी जबकि जीरे और काली मिर्च की कीमतें बढऩे की पूरी उम्मीद है। ग्वार जैसी जिंस का फिर से वायदा कारोबार रिटर्न के मामले में सब पर भारी पड़ सकता है। मेंथा भी इस साल छुपा रुस्तम साबित हो सकता है। (BS Hindi)
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