घटती कीमतों और उत्पादन की ऊंची लागत
के बीच पिस रहे महाराष्ट्र के कपास किसानों ने सब्सिडी की मांग की है। उनका
कहना है कि उन्हें या तो केंद्र सब्सिडी उपलब्ध कराए या फिर राज्य सरकार।
उन्होंने कहा है कि सरकार खुद तय कर ले कि उसे किसानों को सब्सिडी प्रति
एकड़ के हिसाब से देनी है या फिर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से। उनका कहना है
कि कीमत-उत्पादन में बढ़ते अंतर को पाटने के लिए यह आवश्यक है। इस मामले
ने इसलिए जोर पकड़ा है कि महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन ग्रोअर्स
मार्केटिंग फेडरेशन 3900 रुपये के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कपास की खरीद कर
रहा था जबकि उत्पादन लागत प्रति हेक्टेयर 5000-5500 रुपये प्रति क्विंटल
रही है।
हालांकि हाल में राज्य विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ताधारी कांग्रेस-राकांपा और विपक्षी शिव सेना, भाजपा, एमएनएस ने कपास किसानों के लिए खरीद की ऊंची कीमतों की वकालत की थी। उन्होंने कहा कि चीन की तरफ से मांग बढऩे के चलते तीन साल पहले कीमतें 7,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थीं। उनकी मांग थी कि कपास की खरीदारी कम से कम 6,000 रुपये प्रति क्विंटल पर की जानी चाहिए।
कपास किसानों ने राज्य सरकार से यह भी अनुरोध किया है कि वह फौरन कदम उठाते हुए पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश व गुजरात की तरफ से 4,000-6,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बड़ी मात्रा में हो रही कपास की खरीद पर रोक लगाए क्योंकि वहां उत्पादन कम हुआ है। कपास उत्पादकों का कहना है कि आंध्र व गुजरात के कारोबारियों व जिनिंग मिलों की खरीदारी का सही तरीके से लेखाजोखा नहीं रखा जा रहा है। आंध्र व गुजरात की मिलें जिनिंग व प्रेसिंग के जरिए कपास की शंकर-6 किस्म को निर्यात के मकसद के लिए तैयार कर देती हैं।
अक्टूबर में कपास सलाहकार बोर्ड ने देश में 2012-13 के कपास सीजन में 334 लाख गांठ कपास उत्पादन का अनुमान जाहिर किया था, जिसमें से महाराष्ट्र में 80 लाख गांठ उत्पादन होने का अनुमान है। हालांकि राज्य कृषि विभाग व फेडरेशन के अधिकारियों का अनुमान है कि कम बारिश के चलते उत्पादन घटेगा।
महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन ग्रोअर्स मार्केटिंग फेडरेशन के चेयरमैन डॉ. एन पी हिरानी ने कहा कि अब तक फेडरेशन ने 4320 क्विंटल कपास की खरीदारी 3900 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर की है। वहीं कारोबारियों ने 58.8 लाख क्विंटल कपास ऊंचे भाव पर खरीदा है। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की तरफ ने अब तक 11,509 क्विंटल कपास खरीदा है। कपास किसान इस समय उत्पादन लागत और समर्थन मूल्य के बीच बढ़ती खाई से जूझ रहे हैं और उनके लिए बढ़ती लागत का भार उठाना मुश्किल हो रहा है। प्रति हेक्टेयर कपास उत्पादन की लागत 5,000-5,500 रुपये है, जिसमें उर्वरक, मजदूरी और अन्य खर्चे शामिल हैं जबकि उन्हें तैयार उत्पाद का भाव महज 3900 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है। इसलिए केंद्र या राज्य सरकार को प्राथमिकता के आधार पर सब्सिडी मुहैया कराना चाहिए। हिरानी ने कहा कि दो साल पहले किसानों को परेशानी के समय ऐसी सब्सिडी दी गई थी।
हिरानी ने स्पष्ट किया कि किसानों को अगर ज्यादा कीमतें मिलती है तो फेडरेशन इसके खिलाफ नहीं है, खास तौर से गुजरात व आंध्र प्रदेश के निजी कारोबारी व जिनिंग और प्रेसिंग की तरफ से। लेकिन कुल मिलाकर यह लेन-देन पूरी तरह दो नंबर का है क्योंकि ऐसी खरीद का कहीं लेखाजोखा नहीं है। सरकार को भी वैट का नुकसान हो रहा है और इससे राज्य का तेल उद्योग भी प्रभावित हो रहा है। इसलिए राज्य सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और ऐसी खरीद पर रोक लगानी चाहिए। (BS Hindi)
हालांकि हाल में राज्य विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सत्ताधारी कांग्रेस-राकांपा और विपक्षी शिव सेना, भाजपा, एमएनएस ने कपास किसानों के लिए खरीद की ऊंची कीमतों की वकालत की थी। उन्होंने कहा कि चीन की तरफ से मांग बढऩे के चलते तीन साल पहले कीमतें 7,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थीं। उनकी मांग थी कि कपास की खरीदारी कम से कम 6,000 रुपये प्रति क्विंटल पर की जानी चाहिए।
कपास किसानों ने राज्य सरकार से यह भी अनुरोध किया है कि वह फौरन कदम उठाते हुए पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश व गुजरात की तरफ से 4,000-6,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बड़ी मात्रा में हो रही कपास की खरीद पर रोक लगाए क्योंकि वहां उत्पादन कम हुआ है। कपास उत्पादकों का कहना है कि आंध्र व गुजरात के कारोबारियों व जिनिंग मिलों की खरीदारी का सही तरीके से लेखाजोखा नहीं रखा जा रहा है। आंध्र व गुजरात की मिलें जिनिंग व प्रेसिंग के जरिए कपास की शंकर-6 किस्म को निर्यात के मकसद के लिए तैयार कर देती हैं।
अक्टूबर में कपास सलाहकार बोर्ड ने देश में 2012-13 के कपास सीजन में 334 लाख गांठ कपास उत्पादन का अनुमान जाहिर किया था, जिसमें से महाराष्ट्र में 80 लाख गांठ उत्पादन होने का अनुमान है। हालांकि राज्य कृषि विभाग व फेडरेशन के अधिकारियों का अनुमान है कि कम बारिश के चलते उत्पादन घटेगा।
महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन ग्रोअर्स मार्केटिंग फेडरेशन के चेयरमैन डॉ. एन पी हिरानी ने कहा कि अब तक फेडरेशन ने 4320 क्विंटल कपास की खरीदारी 3900 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर की है। वहीं कारोबारियों ने 58.8 लाख क्विंटल कपास ऊंचे भाव पर खरीदा है। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की तरफ ने अब तक 11,509 क्विंटल कपास खरीदा है। कपास किसान इस समय उत्पादन लागत और समर्थन मूल्य के बीच बढ़ती खाई से जूझ रहे हैं और उनके लिए बढ़ती लागत का भार उठाना मुश्किल हो रहा है। प्रति हेक्टेयर कपास उत्पादन की लागत 5,000-5,500 रुपये है, जिसमें उर्वरक, मजदूरी और अन्य खर्चे शामिल हैं जबकि उन्हें तैयार उत्पाद का भाव महज 3900 रुपये प्रति क्विंटल मिल रहा है। इसलिए केंद्र या राज्य सरकार को प्राथमिकता के आधार पर सब्सिडी मुहैया कराना चाहिए। हिरानी ने कहा कि दो साल पहले किसानों को परेशानी के समय ऐसी सब्सिडी दी गई थी।
हिरानी ने स्पष्ट किया कि किसानों को अगर ज्यादा कीमतें मिलती है तो फेडरेशन इसके खिलाफ नहीं है, खास तौर से गुजरात व आंध्र प्रदेश के निजी कारोबारी व जिनिंग और प्रेसिंग की तरफ से। लेकिन कुल मिलाकर यह लेन-देन पूरी तरह दो नंबर का है क्योंकि ऐसी खरीद का कहीं लेखाजोखा नहीं है। सरकार को भी वैट का नुकसान हो रहा है और इससे राज्य का तेल उद्योग भी प्रभावित हो रहा है। इसलिए राज्य सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और ऐसी खरीद पर रोक लगानी चाहिए। (BS Hindi)
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