सरकारी नीति - ईजीओएम के फैसले के बाद दस लाख टन निर्यात की तैयारी थीनिर्यातकों का सुझाव:- सरकार को एमईपी 400 डॉलर से बढ़ाकर 550 डॉलर प्रति टन तय करना चाहिए। इससे प्रीमियम किस्मों का गैर बासमती चावल निर्यात होगा। निर्यात के संबंध में गलत शर्तों को हटाया जाए।वाणिज्य मंत्रालय द्वारा हाल में 10 लाख गैर-बासमती चावल निर्यात करने के फैसले और इसकी विदेश में सप्लाई की समूची प्रक्रिया को दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक दिया है। इस आदेश के बाद गैर बासमती चावल निर्यात का काम रुक गया है।
उधर निर्यातकों ने सरकार ने एमईपी बढ़ाने और निर्यात की गलत शर्तों को हटाने की मांग की है। विदेशी व्यापार का महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने कहा कि 27 जुलाई के ट्रेड नोटिस के अनुसार गैर बासमती चावल के निर्यात के लिए आवंटन और इसकी विदेश को सप्लाई की पूरी प्रक्रिया को हाईकोर्ट के आदेश से रोक दिया गया है।
अनाज की महंगाई नियंत्रण में होने और घरेलू आपूर्ति ठीक रहने की वजह से सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी थी। अप्रैल 2008 से ही चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था।
चालू वित्त वर्ष में स्थितियों में सुधार होने के बाद उच्च अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) ने निर्यात कोटा खोलते हुए 10 लाख टन की अनुमति दी। डीजएफटी ने सरकार के चावल निर्यात के निर्णय पर 19 जुलाई को अधिसूचना जारी किया और 82 निर्यातकों को चावल निर्यात के लिए 27 जुलाई को आवंटन किया था।
लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश दिया कि अगली सुनवाई की तारीख तक कोई खेप नहीं भेजी जाए। आवंटन पर अदालती रोक लगने से डीजीएफटी की निर्यात संबंधी समूची प्रक्रिया रुक गई है। डीजीएफटी ने चावल निर्यात के लिए आवंटन कर दिया था। डीजीएफटी ने चावल निर्यात की प्रक्रिया पर लगी रोक के बारे में कानून मंत्रालय से सलाह मांगी है।
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद चावल निर्यातकों ने सरकार से चावल निर्यात की नीति में विसंगतियों को दूर करने की मांग की है। निर्यातकों ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) कम रखने की विसंगति को भी दूर करने का अनुरोध किया है। अखिल भारत चावल निर्यातक संघ (एआईआरईए) के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा कि यह पहल स्वागत योग्य है।
उम्मीद है कि डीजीएफटी निर्यात नीति की समीक्षा करेगा और इसकी खामियों को दूर करेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को एमईपी 550 डॉलर प्रति टन तय करना चाहिए। इससे गैर बासमती चावल की सिर्फ उन किस्मों का निर्यात सुनिश्चित होगा, जिनका विदेश में अच्छा मूल्य मिलता है। उन्होंने निर्यात के संबंध में गलत शर्तों को हटाने की भी मांग की है।
उधर श्री लाल महल कंपनी के प्रबंध निदेशक प्रेम गर्ग ने कहा कि याचिका दायर करने वाली एक निजी कंपनी मुकदमा वापस ले लेगी, अगर इस मसले पर वाणिज्य मंत्रालय अपनी निर्यात नीति में बदलाव करने की पहल करे और इस बारे में नई अधिसूचना जारी करे। (Business Bhaskar)
30 जुलाई 2011
एफएमसी कार्यकारी प्रमुख बन सकते हैं अभिषेक
खटुआ की विदाई तय:- एफएमसी सदस्य रमेश अभिषेक को अतिरिक्त कार्यभार मिलने की संभावना से खटुआ को दूसरा सेवा विस्तार मिलने की उम्मीद खत्म हो रही है।फॉरवर्ड मार्केट कमीशन के सदस्य रमेश अभिषेक को चेयरमैन का अतरिक्त कार्यभार सौंपा जा सकता है। सरकार अगले चेयरमैन की नियुक्ति तक के लिए यह व्यवस्था लागू कर सकती है।
वर्तमान एफएमसी चेयरमैन बी.सी. खटुआ एक साल के सेवा विस्तार के बाद इस साल 31 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं। वैसे उनका कार्यकाल पिछले साल 31 जुलाई को ही पूरा हो गया था। उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नए चेयरमैन की नियुक्ति तक के लिए 1982 बैच के बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी रमेश अभिषेक को अतिरिक्त कार्यभार दिया जा सकता है।
नए एफएमसी चेयरमैन का चयन एक पेनल करेगा। इस पेनल का गठन जल्दी ही किया जाएगा। इससे संभावना है कि खटुआ को दूसरा सेवा विस्तार नहीं मिलेगा। (Business Bhaskar)
वर्तमान एफएमसी चेयरमैन बी.सी. खटुआ एक साल के सेवा विस्तार के बाद इस साल 31 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं। वैसे उनका कार्यकाल पिछले साल 31 जुलाई को ही पूरा हो गया था। उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि नए चेयरमैन की नियुक्ति तक के लिए 1982 बैच के बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी रमेश अभिषेक को अतिरिक्त कार्यभार दिया जा सकता है।
नए एफएमसी चेयरमैन का चयन एक पेनल करेगा। इस पेनल का गठन जल्दी ही किया जाएगा। इससे संभावना है कि खटुआ को दूसरा सेवा विस्तार नहीं मिलेगा। (Business Bhaskar)
कॉपर में निवेश कर कमा सकते हैं मुनाफा
आर. एस. राणा नई दिल्ली
निवेशक कॉपर में निवेश करके मुनाफा कमा सकते हैं। विश्व की प्रमुख तांबा खदान एस्कोंडिडा में हड़ताल होने के कारण सप्लाई में कमी आने की आशंका से कॉपर की कीमतों में तेजी को बल मिल रहा है। उधर लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में पिछले तीन महीनों में कॉपर की इंवेंट्री 4,550 टन बढ़ी है लेकिन इसके बावजूद भी इस दौरान एलएमई में तीन माह अनुबंध खरीद कीमतों में 5.5 फीसदी की तेजी आई है। घरेलू वायदा बाजार में चालू महीने में कॉपर की कीमतों में 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
निवेश से होगा मुनाफाऐंजल कमोडिटी की बुलियन विश£ेशक रीना वालिया ने बताया कि विश्व की प्रमुख तांबा खदान एस्कोंडिडा में हड़ताल होने के कारण सप्लाई में कमी आने की आशंका है। हालांकि अमेरिका और यूरोप में कर्ज संकट के कारण कीमतों पर दबाव बना हुआ है लेकिन सप्लाई बाधित होने से कीमतों में तेजी की ही संभावना है।
मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड (एमसीएक्स) पर चालू महीने में कॉपर की कीमतों में 3.6 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एमसीएक्स पर अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में पहली जुलाई को कॉपर का भाव 421.30 रुपये प्रति किलो था जबकि शुक्रवार को भाव बढ़कर 436.50 रुपये प्रति किलो हो गया। अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में 22,808 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं।
वायदा में कैसे निवेशक वायदा बाजार में कॉपर में निवेश करने के लिए निवेशक को कमोडिटी ब्रोकर के यहां खाता खुलवाना होता है। खाता खुलवाने के लिए पैन कार्ड, बैंक की पास बुक, स्थायी पता और इनीशियल मार्जिन की आवश्यकता होती है। कॉपर में एमसीएक्स एक्सचेंज में सबसे ज्यादा कारोबार होता है।
एलएमई में इंवेंट्री बढ़ी सारु कॉपर एलॉय सेमीस प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर संजीव जैन ने बताया कि पिछले तीन महीनों में एलएमई में कॉपर की इंवेंट्री 4,550 टन बढ़कर 4,68,350 टन हो गया है। चार मई को एलएमई में इसकी इंवेंट्री 4,63,800 टन की थी लेकिन इंवेंट्री बढऩे के बावजूद भी इस दौरान कीमतों में 5.5 फीसदी की तेजी आई है। एलएमई में तीन माह में खरीद अनुबंध के भाव चार मई को 9,255 डॉलर प्रति टन थे जबकि शुक्रवार को भाव 9,769 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गए।
एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटी लिमिटेड के बुलियन विश£ेशक के अनुसार, अमेरिका और यूरोप में कर्ज संकट के कारण कॉपर की कीमतों पर दबाव तो बना हुआ है लेकिन प्रमुख तांबा खदान इस्कोंडिडा में हड़ताल का असर कॉपर की सप्लाई पर पड़ेगा।
वैसे भी चीली में जून महीने के दौरान कॉपर का उत्पादन करीब 8.5 फीसदी कम हुआ है। हालांकि जुलाई में उत्पादन बढऩे की संभावना है लेकिन सबसे बड़ी खदान में हड़ताल का असर कॉपर की सप्लाई पर पडऩे की संभावना है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में तेजी की ही संभावना है।
नीलकंठ मेटल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर दीपक अग्रवाल ने बताया कि घरेलू बाजार में कॉपर की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के भाव पर निर्भर करती है। हालांकि घरेलू बाजार में कॉपर में मांग कमजोर है लेकिन विदेशी बाजार में तेजी आने का असर कीमतों पर पड़ रहा है। कॉपर आर्मेचर का भाव 450-455 रुपये प्रति किलो चल रहा है।
कॉपर की खपत कॉपर की खबर सबसे ज्यादा खपत इलेक्ट्रीकल और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में 42 फीसदी होती है। इसके अलावा भवन निर्माण में 28 फीसदी और ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी होती है। कॉपर का सबसे ज्यादा उत्पादन एशिया में 43 फीसदी, अमेरिका में 32 फीसदी, यूरोप में 19 फीसदी और अफ्रीका में 4 फीसदी का होता है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
निवेशक कॉपर में निवेश करके मुनाफा कमा सकते हैं। विश्व की प्रमुख तांबा खदान एस्कोंडिडा में हड़ताल होने के कारण सप्लाई में कमी आने की आशंका से कॉपर की कीमतों में तेजी को बल मिल रहा है। उधर लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में पिछले तीन महीनों में कॉपर की इंवेंट्री 4,550 टन बढ़ी है लेकिन इसके बावजूद भी इस दौरान एलएमई में तीन माह अनुबंध खरीद कीमतों में 5.5 फीसदी की तेजी आई है। घरेलू वायदा बाजार में चालू महीने में कॉपर की कीमतों में 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
निवेश से होगा मुनाफाऐंजल कमोडिटी की बुलियन विश£ेशक रीना वालिया ने बताया कि विश्व की प्रमुख तांबा खदान एस्कोंडिडा में हड़ताल होने के कारण सप्लाई में कमी आने की आशंका है। हालांकि अमेरिका और यूरोप में कर्ज संकट के कारण कीमतों पर दबाव बना हुआ है लेकिन सप्लाई बाधित होने से कीमतों में तेजी की ही संभावना है।
मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड (एमसीएक्स) पर चालू महीने में कॉपर की कीमतों में 3.6 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एमसीएक्स पर अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में पहली जुलाई को कॉपर का भाव 421.30 रुपये प्रति किलो था जबकि शुक्रवार को भाव बढ़कर 436.50 रुपये प्रति किलो हो गया। अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में 22,808 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं।
वायदा में कैसे निवेशक वायदा बाजार में कॉपर में निवेश करने के लिए निवेशक को कमोडिटी ब्रोकर के यहां खाता खुलवाना होता है। खाता खुलवाने के लिए पैन कार्ड, बैंक की पास बुक, स्थायी पता और इनीशियल मार्जिन की आवश्यकता होती है। कॉपर में एमसीएक्स एक्सचेंज में सबसे ज्यादा कारोबार होता है।
एलएमई में इंवेंट्री बढ़ी सारु कॉपर एलॉय सेमीस प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर संजीव जैन ने बताया कि पिछले तीन महीनों में एलएमई में कॉपर की इंवेंट्री 4,550 टन बढ़कर 4,68,350 टन हो गया है। चार मई को एलएमई में इसकी इंवेंट्री 4,63,800 टन की थी लेकिन इंवेंट्री बढऩे के बावजूद भी इस दौरान कीमतों में 5.5 फीसदी की तेजी आई है। एलएमई में तीन माह में खरीद अनुबंध के भाव चार मई को 9,255 डॉलर प्रति टन थे जबकि शुक्रवार को भाव 9,769 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गए।
एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटी लिमिटेड के बुलियन विश£ेशक के अनुसार, अमेरिका और यूरोप में कर्ज संकट के कारण कॉपर की कीमतों पर दबाव तो बना हुआ है लेकिन प्रमुख तांबा खदान इस्कोंडिडा में हड़ताल का असर कॉपर की सप्लाई पर पड़ेगा।
वैसे भी चीली में जून महीने के दौरान कॉपर का उत्पादन करीब 8.5 फीसदी कम हुआ है। हालांकि जुलाई में उत्पादन बढऩे की संभावना है लेकिन सबसे बड़ी खदान में हड़ताल का असर कॉपर की सप्लाई पर पडऩे की संभावना है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में तेजी की ही संभावना है।
नीलकंठ मेटल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर दीपक अग्रवाल ने बताया कि घरेलू बाजार में कॉपर की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के भाव पर निर्भर करती है। हालांकि घरेलू बाजार में कॉपर में मांग कमजोर है लेकिन विदेशी बाजार में तेजी आने का असर कीमतों पर पड़ रहा है। कॉपर आर्मेचर का भाव 450-455 रुपये प्रति किलो चल रहा है।
कॉपर की खपत कॉपर की खबर सबसे ज्यादा खपत इलेक्ट्रीकल और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में 42 फीसदी होती है। इसके अलावा भवन निर्माण में 28 फीसदी और ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी होती है। कॉपर का सबसे ज्यादा उत्पादन एशिया में 43 फीसदी, अमेरिका में 32 फीसदी, यूरोप में 19 फीसदी और अफ्रीका में 4 फीसदी का होता है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
दुग्ध उत्पादों के दाम बढ़े
नई दिल्ली July 29, 2011
त्योहारी मांग का असर दुग्ध उत्पादों की कीमतों पर दिखने लगा है। बीते 10 दिनों के दौरान घी, खोया की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है और स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी ) की कीमतों में आ रही गिरावट थम गई है। कारोबारी अगले कुछ महीनों में एसएमपी के दाम बढऩे की संभावना जता रहे हैं। कारोबारियों के मुताबिक मॉनसून कमजोर होने के कारण भी दुग्ध उत्पादों की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है।दिल्ली के घी कारोबारी संजय कुमार ने बताया कि रक्षाबंधन की त्योहारी मांग के चलते घी की कीमतों में इजाफा होने लगा है। बकौल संजय पिछले 2 दिन में ही घी की कीमतों में 100 रुपये प्रति टिन की तेजी आ चुकी है। बाजार में देशी घी के दाम 4,200-4,500 रुपये प्रति टिन और लोकल यानी प्लांट वाले घी के दाम 3,750-3,950 रुपये प्रति टिन चल रहे हैं। अग्रवाल मावा भंडार के महेंद्र अग्रवाल का कहना है कि त्योहारों के लिए मिठाई निर्माताओं ने इसकी खरीद शुरू कर दी है, जिससे बाजार में खोया के दाम बढ़ गए हैं। (BS Hindi)
त्योहारी मांग का असर दुग्ध उत्पादों की कीमतों पर दिखने लगा है। बीते 10 दिनों के दौरान घी, खोया की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है और स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी ) की कीमतों में आ रही गिरावट थम गई है। कारोबारी अगले कुछ महीनों में एसएमपी के दाम बढऩे की संभावना जता रहे हैं। कारोबारियों के मुताबिक मॉनसून कमजोर होने के कारण भी दुग्ध उत्पादों की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है।दिल्ली के घी कारोबारी संजय कुमार ने बताया कि रक्षाबंधन की त्योहारी मांग के चलते घी की कीमतों में इजाफा होने लगा है। बकौल संजय पिछले 2 दिन में ही घी की कीमतों में 100 रुपये प्रति टिन की तेजी आ चुकी है। बाजार में देशी घी के दाम 4,200-4,500 रुपये प्रति टिन और लोकल यानी प्लांट वाले घी के दाम 3,750-3,950 रुपये प्रति टिन चल रहे हैं। अग्रवाल मावा भंडार के महेंद्र अग्रवाल का कहना है कि त्योहारों के लिए मिठाई निर्माताओं ने इसकी खरीद शुरू कर दी है, जिससे बाजार में खोया के दाम बढ़ गए हैं। (BS Hindi)
27 जुलाई 2011
कॉटन, यार्न निर्यातकों को फिर डीईपीबी लाभ
नई दिल्ली कॉटन यार्न और कॉटन निर्यातकों के लिए बंद हो चुकी डीईपीबी स्कीम को फिर खोल दिया गया है। कॉटन यार्न निर्यात पर यह स्कीम एक अप्रैल, 2011 से और कॉटन निर्यात पर अक्टूबर, 2010 से प्रभावी मानी जाएगी। कॉटन यार्न की मांग और कीमतों में 30 फीसदी तक गिरावट को देखते हुए सरकार ने यह फैसला किया है। कनफेडरेशन आफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज ने इसे राहत भरा कदम बताया है।
कनफेडरेशन के महासचिव डी.के. नायर ने बताया कि कॉटन यार्न के लिए डीईपीबी स्कीम के लाभ को पिछले साल अप्रैल से बंद कर दिया गया था। अप्रैल, 2010 से पहले कॉटन यार्न निर्यात के लिए डीईपीबी स्कीम की दर 7.6 फीसदी थी। उन्होंने कहा कि सरकार की इस घोषणा से निर्यातकों को निश्चित रूप से थोड़ी राहत मिलेगी। हालांकि डीईपीबी स्कीम 30 सितंबर को समाप्त हो रही है। (Business Bhaskar)
कनफेडरेशन के महासचिव डी.के. नायर ने बताया कि कॉटन यार्न के लिए डीईपीबी स्कीम के लाभ को पिछले साल अप्रैल से बंद कर दिया गया था। अप्रैल, 2010 से पहले कॉटन यार्न निर्यात के लिए डीईपीबी स्कीम की दर 7.6 फीसदी थी। उन्होंने कहा कि सरकार की इस घोषणा से निर्यातकों को निश्चित रूप से थोड़ी राहत मिलेगी। हालांकि डीईपीबी स्कीम 30 सितंबर को समाप्त हो रही है। (Business Bhaskar)
संभावित खपत के मुकाबले 30% एथनॉल की सप्लाई
फॉर्मूला - पेट्रोल में 5% एथनॉल मिश्रण के लिए 90 करोड़ लीटर की आवश्यकताआधा-अधूरा कार्यक्रम:- तमिलनाडु सरकार ने चीनी मिलों को एथनॉल बनाने की अनुमति नहीं दी है। वहां की मिलें साल में 7-8 करोड़ लीटर एथनॉल की सप्लाई कर सकती हैं। उत्तर प्रदेश में भी राज्य सरकार ने अप्रैल महीने से एथनॉल की दूसरे राज्यों को सप्लाई पर रोक लगा रखी है।
क्रूड ऑयल का आयात सीमित रखने के लिए पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण का कार्यक्रम आधा-अधूरा ही चल रहा है। पूरे देश में पेट्रोल में पांच फीसदी एथनॉल मिश्रण के लिए 90 करोड़ लीटर एथनॉल की खपत होनी चाहिए।
जबकि चीनी मिलों ने चालू सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में सिर्फ 57 करोड़ लीटर एथनॉल सप्लाई के सौदे किए। इसमें से भी अभी तक सिर्फ 29 करोड़ लीटर एथनॉल की सप्लाई हो पाई है जबकि चालू सीजन के दस माह पूरे हो रहे हैं। कई राज्य सरकारों ने एथनॉल बनाने की अनुमति नहीं दी है। इस वजह से एथनॉल का उत्पादन पूरी क्षमता से नहीं हो रहा है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने बताया कि चीनी मिलों ने पेट्रोलियम कंपनियों को अभी तक लगभग 29 करोड़ लीटर एथनॉल की सप्लाई की है। जबकि चालू पेराई सीजन में मिलों को 57 करोड़ एथनॉल सप्लाई करने की निविदा प्राप्त हुई हैं।
उन्होंने बताया कि मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक पेट्रोल में पांच फीसदी एथनॉल मिलाना अनिवार्य है। सरकार ने पेट्रोल में मिलाने वाले एथनॉल की अंतरिम कीमत 27 रुपये प्रति लीटर तय कर रखी है। पांच फीसदी मिश्रण के लिए करीब 90 करोड़ लीटर एथनॉल की सालाना आवश्यकता होगी। लेकिन कई राज्यों में सरकारों ने चीनी मिलों को एथनॉल बनाने की अनुमति नहीं दे रखी है।
तमिलनाडु राज्य सरकार ने चीनी मिलों को एथनॉल बनाने की अनुमति नहीं दी है। तमिलनाडु की चीनी मिलें साल में करीब 7-8 करोड़ लीटर एथनॉल की सप्लाई कर सकती हैं। उत्तर प्रदेश में भी राज्य सरकार ने अप्रैल महीने से एथनॉल की दूसरे राज्यों को सप्लाई पर रोक लगा रखी है। चालू पेराई सीजन में शीरे की कुल उपलब्धता 110 लाख टन होने का अनुमान है।
मवाना शुगर लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शीरे से अल्कोहल और एथनॉल बनता है। अल्कोहल की खपत केमिकल और शराब उद्योग में होती है। केंद्र सरकार ने अगस्त 2010 से पेट्रोल में पांच फीसदी एथनॉल मिश्रण को अनिवार्य कर दिया था तथा अंतरिम कीमत 21.50 रुपये बढ़ाकर 27 रुपये प्रति लीटर तय कर दी थी। सरकार ने योजना आयोग के सदस्य सुमित्रा चौधरी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था जिसको एथनॉल का मूल्य तय करने का फॉर्मूला तय करना था। फॉर्मूले के आधार पर वास्तविक कीमत का निर्धारण होना है।
इसके बाद सरकार का इसमें कोई दखल नहीं रहेगा। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को अप्रैल 2011 में सौंप दी थी। जिस पर अभी तक सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है।
ऑल इंडिया डिस्टीलरीज एसोसिएशन के महानिदेशक वी. के. रैना ने बताया कि चालू सीजन में शराब उद्योग की अल्कोहल में मांग बढ़कर 40 करोड़ केस (एक कैसेज-चार लीटर) की होने का अनुमान है। शराब बनाने में एक्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल का उपयोग होता है। शीरे के कुल उत्पादन का करीब 45 से 50 फीसदी हिस्से की खपत शराब कंपनियों में होती है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
क्रूड ऑयल का आयात सीमित रखने के लिए पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण का कार्यक्रम आधा-अधूरा ही चल रहा है। पूरे देश में पेट्रोल में पांच फीसदी एथनॉल मिश्रण के लिए 90 करोड़ लीटर एथनॉल की खपत होनी चाहिए।
जबकि चीनी मिलों ने चालू सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में सिर्फ 57 करोड़ लीटर एथनॉल सप्लाई के सौदे किए। इसमें से भी अभी तक सिर्फ 29 करोड़ लीटर एथनॉल की सप्लाई हो पाई है जबकि चालू सीजन के दस माह पूरे हो रहे हैं। कई राज्य सरकारों ने एथनॉल बनाने की अनुमति नहीं दी है। इस वजह से एथनॉल का उत्पादन पूरी क्षमता से नहीं हो रहा है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने बताया कि चीनी मिलों ने पेट्रोलियम कंपनियों को अभी तक लगभग 29 करोड़ लीटर एथनॉल की सप्लाई की है। जबकि चालू पेराई सीजन में मिलों को 57 करोड़ एथनॉल सप्लाई करने की निविदा प्राप्त हुई हैं।
उन्होंने बताया कि मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक पेट्रोल में पांच फीसदी एथनॉल मिलाना अनिवार्य है। सरकार ने पेट्रोल में मिलाने वाले एथनॉल की अंतरिम कीमत 27 रुपये प्रति लीटर तय कर रखी है। पांच फीसदी मिश्रण के लिए करीब 90 करोड़ लीटर एथनॉल की सालाना आवश्यकता होगी। लेकिन कई राज्यों में सरकारों ने चीनी मिलों को एथनॉल बनाने की अनुमति नहीं दे रखी है।
तमिलनाडु राज्य सरकार ने चीनी मिलों को एथनॉल बनाने की अनुमति नहीं दी है। तमिलनाडु की चीनी मिलें साल में करीब 7-8 करोड़ लीटर एथनॉल की सप्लाई कर सकती हैं। उत्तर प्रदेश में भी राज्य सरकार ने अप्रैल महीने से एथनॉल की दूसरे राज्यों को सप्लाई पर रोक लगा रखी है। चालू पेराई सीजन में शीरे की कुल उपलब्धता 110 लाख टन होने का अनुमान है।
मवाना शुगर लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि शीरे से अल्कोहल और एथनॉल बनता है। अल्कोहल की खपत केमिकल और शराब उद्योग में होती है। केंद्र सरकार ने अगस्त 2010 से पेट्रोल में पांच फीसदी एथनॉल मिश्रण को अनिवार्य कर दिया था तथा अंतरिम कीमत 21.50 रुपये बढ़ाकर 27 रुपये प्रति लीटर तय कर दी थी। सरकार ने योजना आयोग के सदस्य सुमित्रा चौधरी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था जिसको एथनॉल का मूल्य तय करने का फॉर्मूला तय करना था। फॉर्मूले के आधार पर वास्तविक कीमत का निर्धारण होना है।
इसके बाद सरकार का इसमें कोई दखल नहीं रहेगा। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को अप्रैल 2011 में सौंप दी थी। जिस पर अभी तक सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है।
ऑल इंडिया डिस्टीलरीज एसोसिएशन के महानिदेशक वी. के. रैना ने बताया कि चालू सीजन में शराब उद्योग की अल्कोहल में मांग बढ़कर 40 करोड़ केस (एक कैसेज-चार लीटर) की होने का अनुमान है। शराब बनाने में एक्ट्रा न्यूट्रल अल्कोहल का उपयोग होता है। शीरे के कुल उत्पादन का करीब 45 से 50 फीसदी हिस्से की खपत शराब कंपनियों में होती है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
अनिश्चितता के भंवर में फंसा कपास निर्यात
मुंबई July 26, 2011
कारोबारियों और विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के बीच 10 लाख गांठ अतिरिक्त कपास निर्यात पर जारी रस्साकशी से निर्यात का काम लटक गया है। पिछले बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय के फैसले से गिनर्स व छोटे कारोबारियोंं को राहत मिली थी, लेकिन बड़े कारोबारी अब डीजीएफटी को अदालत में घसीटने की योजना बना रहे हैं। ये कारोबारी डीजीएफटी के उस फैसले को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं जिसमें महानिदेशालय ने निर्यात कोटा कम करने की खातिर उन्हें दिए गए सर्टिफिकेट वापस मंगाने का फैसला किया है।बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार डीजीएफटी ने निर्यात के लिए जारी 1000 टन से अधिक क्षमता वाले सभी पंजीकृत सर्टिफिकेट वापस ले लिए हैं, जिससे 200 से अधिक कारोबारी प्रभावित हुए हैं। इन कारोबारियों में से अधिकतर पहले ही अपने विदेशी खरीदारों से साथ अनुबंध कर चुके हैं। नाम न छापने की शर्त पर डीजीएफटी से नोटिस पाने वाले एक बड़े कारोबारी ने कहा कि 'अब हमें एक बार फिर अपने विदेशी ग्राहकों से कम निर्यात के लिए सौदेबाजी करनी होगी। कुछ मामलों में हमें अपने अनुबंध-पत्र रद्द करने पड़ते हैं, जिसमें हमेशा कारोबार के नुकसान का खतरा होता है।Óडीजीएफटी ने केवल उन कारोबारियों से निर्यात पंजीकरण के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे, जिन्होंने पिछले दो वर्षों 2008-09 और 2009-10 में निर्यात किया था। इसका मतलब है कि चालू वित्त वर्ष में कपास के मूल निर्यात की आवंटित मात्रा 55 लाख गांठ के दौरान निर्यात करने वालों पर अतिरिक्त आवंटन में निर्यात करने पर रोक लगा दी गई है। इस निर्णय को बाद में 82 छोटे कारोबारियों, मुख्य रूप से गिनर्स द्वारा उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई। विभिन्न उच्च न्यायालय पहले ही डीजीएफटी को गिनर्स के आवेदनों पर विचार करने का निर्देश दे चुके हैं। बंबई उच्च न्यायालय ने 20 जुलाई को दिए अपने आदेश में डीजीएफटी को कहा था कि 6 जुलाई, 2011 तक आवेदन करने वाले सभी कारोबारियों के आवेदनों पर विचार किया जाए। डीजीएफटी द्वारा आवेदन आमंत्रित करने की अंतिम तारीख 6 जुलाई, 2011 तय की गई थी। कारोबारियों के अनुसार डीजीएफटी द्वारा जारी किए गए नोटिस में आलोक इंडस्ट्रीज, भाईदास कर्सनदास, बीबी कॉटन कंपनी और कारगिल इंडिया जैसी कंपनियां शामिल हैं। हालांकि आलोक इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक दिलीप जीवराजका ने इससे इनकार किया है। उन्होंने कहा कि 'पहले चरण में आवंटित कपास की 55 लाख गांठ के दौरान उन्हें 1000 टन के लिए निर्यात प्रमाण-पत्र मिले थे। लेकिन हम केवल 1.7 टन का ही निर्यात कर पाए। (BS Hindi)
कारोबारियों और विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के बीच 10 लाख गांठ अतिरिक्त कपास निर्यात पर जारी रस्साकशी से निर्यात का काम लटक गया है। पिछले बुधवार को बंबई उच्च न्यायालय के फैसले से गिनर्स व छोटे कारोबारियोंं को राहत मिली थी, लेकिन बड़े कारोबारी अब डीजीएफटी को अदालत में घसीटने की योजना बना रहे हैं। ये कारोबारी डीजीएफटी के उस फैसले को चुनौती देने की योजना बना रहे हैं जिसमें महानिदेशालय ने निर्यात कोटा कम करने की खातिर उन्हें दिए गए सर्टिफिकेट वापस मंगाने का फैसला किया है।बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार डीजीएफटी ने निर्यात के लिए जारी 1000 टन से अधिक क्षमता वाले सभी पंजीकृत सर्टिफिकेट वापस ले लिए हैं, जिससे 200 से अधिक कारोबारी प्रभावित हुए हैं। इन कारोबारियों में से अधिकतर पहले ही अपने विदेशी खरीदारों से साथ अनुबंध कर चुके हैं। नाम न छापने की शर्त पर डीजीएफटी से नोटिस पाने वाले एक बड़े कारोबारी ने कहा कि 'अब हमें एक बार फिर अपने विदेशी ग्राहकों से कम निर्यात के लिए सौदेबाजी करनी होगी। कुछ मामलों में हमें अपने अनुबंध-पत्र रद्द करने पड़ते हैं, जिसमें हमेशा कारोबार के नुकसान का खतरा होता है।Óडीजीएफटी ने केवल उन कारोबारियों से निर्यात पंजीकरण के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे, जिन्होंने पिछले दो वर्षों 2008-09 और 2009-10 में निर्यात किया था। इसका मतलब है कि चालू वित्त वर्ष में कपास के मूल निर्यात की आवंटित मात्रा 55 लाख गांठ के दौरान निर्यात करने वालों पर अतिरिक्त आवंटन में निर्यात करने पर रोक लगा दी गई है। इस निर्णय को बाद में 82 छोटे कारोबारियों, मुख्य रूप से गिनर्स द्वारा उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई। विभिन्न उच्च न्यायालय पहले ही डीजीएफटी को गिनर्स के आवेदनों पर विचार करने का निर्देश दे चुके हैं। बंबई उच्च न्यायालय ने 20 जुलाई को दिए अपने आदेश में डीजीएफटी को कहा था कि 6 जुलाई, 2011 तक आवेदन करने वाले सभी कारोबारियों के आवेदनों पर विचार किया जाए। डीजीएफटी द्वारा आवेदन आमंत्रित करने की अंतिम तारीख 6 जुलाई, 2011 तय की गई थी। कारोबारियों के अनुसार डीजीएफटी द्वारा जारी किए गए नोटिस में आलोक इंडस्ट्रीज, भाईदास कर्सनदास, बीबी कॉटन कंपनी और कारगिल इंडिया जैसी कंपनियां शामिल हैं। हालांकि आलोक इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक दिलीप जीवराजका ने इससे इनकार किया है। उन्होंने कहा कि 'पहले चरण में आवंटित कपास की 55 लाख गांठ के दौरान उन्हें 1000 टन के लिए निर्यात प्रमाण-पत्र मिले थे। लेकिन हम केवल 1.7 टन का ही निर्यात कर पाए। (BS Hindi)
एफसीआई का बचाव, पर बढ़ेगी खाद्य सब्सिडी
कृषि मंत्रालय ने भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के किसी तरह के वित्तीय संकट में होने से इनकार किया है। इस तरह की खबरें छपने के बाद कि एफसीआई अनाज की खरीद के लिए राज्यों और उनकी एजेंसियों को भुगतान नहीं कर पा रहा है, मंत्रालय ने सफाई पेश की है।
उसका कहना है कि एफसीआई को गेहूं और धान की खरीद पर बोनस व अतिरिक्त आवंटन वगैरह के कारण बजट में आवंटन रकम से ज्यादा खर्च करना पड़ा है। लेकिन इन सभी खर्चों की पूर्ति सरकार की तरफ से की जा रही है।
गौरतलब है कि एफसीआई के लिए चालू वित्त वर्ष 2011-12 का मूल बजट आवंटन 47239.8 करोड़ रुपए का था। साथ ही विकेन्द्रीकृत खरीद (डीसीपी) योजना वाले राज्यों के लिए 12,845 करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे। इस तरह कुल बजट आवंटन 60,084.8 करोड़ रुपए का है। इसमें से 12,000 करोड़ रुपए एफसीआई को अप्रैल 2011 और 4000 करोड़ रुपए जुलाई के पहले हफ्ते में में जारी किए जा चुके हैं। इसके बाद अभी 21 जुलाई को एफसीआई को 7635.84 करोड़ रुपए अलग से दिए गए हैं।
दिक्कत यह है कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही बीतते-बीतते ही एफसीआई और डीसीपी राज्यों के लिए आवंटन 35,227.2 करोड़ रुपए बढ़ाकर 95,311 करोड़ रुपए कर दिया गया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक एफसीआई के आवंटन को 34,738 करोड़ और डीसीपी राज्यों के आवंटन को 489 करोड़ रुपए बढ़ाया गया है। इसका सीधा असर इस साल की खाद्य सब्सिडी पर पड़ेगा। बजट 2011-12 में खाद्य सब्सिडी 60,570 करोड़ रुपए रखी गई है। जाहिर है, अब इसमें इजाफा हो जाएगा। पिछले दो सालों में भी ऐसा हो चुका है।
यह भी नोट करने की बात है कि देश के 59 बैंक एफसीआई को ऋण देते हैं। एफसीआई के लिए सरकार की तरफ से मान्य उधार सीमा 35,000 करोड़ रुपए है। रिजर्व बैंक हर पखवाड़े बैंकों द्वारा दिए गए खाद्य ऋण का जो आंकड़ा जारी करता है, वह दरअसल एफसीआई को ही मिलता है। (Arthkam)
उसका कहना है कि एफसीआई को गेहूं और धान की खरीद पर बोनस व अतिरिक्त आवंटन वगैरह के कारण बजट में आवंटन रकम से ज्यादा खर्च करना पड़ा है। लेकिन इन सभी खर्चों की पूर्ति सरकार की तरफ से की जा रही है।
गौरतलब है कि एफसीआई के लिए चालू वित्त वर्ष 2011-12 का मूल बजट आवंटन 47239.8 करोड़ रुपए का था। साथ ही विकेन्द्रीकृत खरीद (डीसीपी) योजना वाले राज्यों के लिए 12,845 करोड़ रूपए आवंटित किए गए थे। इस तरह कुल बजट आवंटन 60,084.8 करोड़ रुपए का है। इसमें से 12,000 करोड़ रुपए एफसीआई को अप्रैल 2011 और 4000 करोड़ रुपए जुलाई के पहले हफ्ते में में जारी किए जा चुके हैं। इसके बाद अभी 21 जुलाई को एफसीआई को 7635.84 करोड़ रुपए अलग से दिए गए हैं।
दिक्कत यह है कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही बीतते-बीतते ही एफसीआई और डीसीपी राज्यों के लिए आवंटन 35,227.2 करोड़ रुपए बढ़ाकर 95,311 करोड़ रुपए कर दिया गया है। कृषि मंत्रालय के मुताबिक एफसीआई के आवंटन को 34,738 करोड़ और डीसीपी राज्यों के आवंटन को 489 करोड़ रुपए बढ़ाया गया है। इसका सीधा असर इस साल की खाद्य सब्सिडी पर पड़ेगा। बजट 2011-12 में खाद्य सब्सिडी 60,570 करोड़ रुपए रखी गई है। जाहिर है, अब इसमें इजाफा हो जाएगा। पिछले दो सालों में भी ऐसा हो चुका है।
यह भी नोट करने की बात है कि देश के 59 बैंक एफसीआई को ऋण देते हैं। एफसीआई के लिए सरकार की तरफ से मान्य उधार सीमा 35,000 करोड़ रुपए है। रिजर्व बैंक हर पखवाड़े बैंकों द्वारा दिए गए खाद्य ऋण का जो आंकड़ा जारी करता है, वह दरअसल एफसीआई को ही मिलता है। (Arthkam)
26 जुलाई 2011
इस्मा ने मांगी और चीनी निर्यात की अनुमति
नई दिल्ली July 24, 2011
निर्यात से करीब 25 फीसदी ज्यादा रकम हासिल होने और ब्राजील में कम चीनी उत्पादन के अनुमान के चलते भारतीय चीनी मिलें अक्टूबर तक 10 लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति देने की मांग कर रही हैं। भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन (इस्मा) ने पिछले शुक्रवार को खाद्य मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है कि 10 लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति दी जाए। निर्यात का यह कोटा साल की शुरुआत में 10 लाख टन के अतिरिक्त होगा।भारत में चीनी मिलों को घरेलू बाजार के मुकाबले निर्यात से औसतन 600-700 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा रकम मिल रही है। महाराष्ट्र में चीनी की कीमतें 2600 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि उत्तर प्रदेश में 2900 रुपये प्रति क्विंटल।10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दिए जाने के बाद देसी मिलें करीब 70,000 टन का निर्यात कर चुकी हैं। भारत ने एडवांस लाइसेंस स्कीम के तहत 11 लाख टन चीनी का निर्यात भी किया है। अप्रैल में सरकार ने सबसे पहले 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी थी और फिर जून में भी 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मिली।दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील ने फसल के नुकसान और सूखे मौसम के चलते मार्च के बाद से उत्पादन अनुमान को संशोधित कर 6.4 फीसदी घटा दिया है। ब्राजील ने मार्च में 345.9 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान जाहिर किया था, लेकिन अब इसे घटाकर 323.8 लाख टन कर दिया गया है, इस तरह से वैश्विक बाजार में 221 लाख टन चीनी की कमी हो जाएगी। उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं और मई की शुरुआत के मुकाबले चीनी वायदा में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है।भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और देश में निजी चीनी मिलों के अग्रणी संगठन इस्मा का मानना है कि भारत के पास चीनी का अतिरिक्त स्टॉक होगा, जिसका फायदा ब्राजील के कम उत्पादन के चलते उठाया जा सकता है। इस्मा के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने कहा - वैश्विक बाजार में ब्राजील की कमी की भरपाई भारत कर सकता है। मौजूदा अक्टूबर-सितंबर सीजन में 294 लाख टन चीनी की उपलब्धता और खपत व निर्यात (210 व 21 लाख टन) को देखते हुए देश के पास 1 अक्टूबर को 63 लाख टन का ओपनिंग स्टॉक रहेगा। वर्मा ने कहा कि पिछले चार वर्षों में अक्टूबर-दिसंबर के दौरान औसत खपत पर नजर डालें तो 63 लाख टन चीनी का स्टॉक काफी ज्यादा है क्योंकि उस दौरान 54 लाख टन से ज्यादा चीनी की खपत नहीं हुई है। चीनी निर्यात खोले जाने के बावजूद खुदरा बाजार में कीमतें नहीं बढ़ी हैं। उपभोक्ता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में खुदरा बाजार में चीनी 32.5 रुपये पर उपलब्ध है जबकि छह महीने पहले यह 33 रुपये प्रति किलोग्राम पर उपलब्ध थी। (BS Hindi)
निर्यात से करीब 25 फीसदी ज्यादा रकम हासिल होने और ब्राजील में कम चीनी उत्पादन के अनुमान के चलते भारतीय चीनी मिलें अक्टूबर तक 10 लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति देने की मांग कर रही हैं। भारतीय चीनी मिल एसोसिएशन (इस्मा) ने पिछले शुक्रवार को खाद्य मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा है कि 10 लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति दी जाए। निर्यात का यह कोटा साल की शुरुआत में 10 लाख टन के अतिरिक्त होगा।भारत में चीनी मिलों को घरेलू बाजार के मुकाबले निर्यात से औसतन 600-700 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा रकम मिल रही है। महाराष्ट्र में चीनी की कीमतें 2600 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि उत्तर प्रदेश में 2900 रुपये प्रति क्विंटल।10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दिए जाने के बाद देसी मिलें करीब 70,000 टन का निर्यात कर चुकी हैं। भारत ने एडवांस लाइसेंस स्कीम के तहत 11 लाख टन चीनी का निर्यात भी किया है। अप्रैल में सरकार ने सबसे पहले 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी थी और फिर जून में भी 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मिली।दुनिया के सबसे बड़े चीनी उत्पादक देश ब्राजील ने फसल के नुकसान और सूखे मौसम के चलते मार्च के बाद से उत्पादन अनुमान को संशोधित कर 6.4 फीसदी घटा दिया है। ब्राजील ने मार्च में 345.9 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान जाहिर किया था, लेकिन अब इसे घटाकर 323.8 लाख टन कर दिया गया है, इस तरह से वैश्विक बाजार में 221 लाख टन चीनी की कमी हो जाएगी। उसके बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें बढ़ रही हैं और मई की शुरुआत के मुकाबले चीनी वायदा में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है।भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और देश में निजी चीनी मिलों के अग्रणी संगठन इस्मा का मानना है कि भारत के पास चीनी का अतिरिक्त स्टॉक होगा, जिसका फायदा ब्राजील के कम उत्पादन के चलते उठाया जा सकता है। इस्मा के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने कहा - वैश्विक बाजार में ब्राजील की कमी की भरपाई भारत कर सकता है। मौजूदा अक्टूबर-सितंबर सीजन में 294 लाख टन चीनी की उपलब्धता और खपत व निर्यात (210 व 21 लाख टन) को देखते हुए देश के पास 1 अक्टूबर को 63 लाख टन का ओपनिंग स्टॉक रहेगा। वर्मा ने कहा कि पिछले चार वर्षों में अक्टूबर-दिसंबर के दौरान औसत खपत पर नजर डालें तो 63 लाख टन चीनी का स्टॉक काफी ज्यादा है क्योंकि उस दौरान 54 लाख टन से ज्यादा चीनी की खपत नहीं हुई है। चीनी निर्यात खोले जाने के बावजूद खुदरा बाजार में कीमतें नहीं बढ़ी हैं। उपभोक्ता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में खुदरा बाजार में चीनी 32.5 रुपये पर उपलब्ध है जबकि छह महीने पहले यह 33 रुपये प्रति किलोग्राम पर उपलब्ध थी। (BS Hindi)
मॉनसून की बढ़ी बौछार तो बुआई ने पकड़ी रफ्तार
नई दिल्ली, July 25, 2011
पश्चिम व मध्य भारत में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में सुधार के संकेत के साथ ही कपास, तिलहन व दलहन की बुआई ने रफ्तार पकड़ ली है। बुआई में आई तेजी के चलते पिछले साल के मुकाबले इस साल रकबे के बीच का अंतर काफी हद तक कम हो गया है।पिछले हफ्ते तक कपास का रकबा बीते वर्ष के मुकाबले 30.24 फीसदी कम था, लेकिन 22 जुलाई को समाप्त हफ्ते में यह अंतर घटकर महज 3.66 फीसदी रह गया है। पिछले हफ्ते तक 97 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई पूरी हो चुकी है, जो सामान्य कपास के सामान्य रकबे का करीब 87 फीसदी है। गुजरात और महाराष्ट्र की देश में कपास के रकबे में 80 फीसदी से ज्यादा भागीदारी होती है। इन इलाकों में बारिश की तीव्रता में बढ़ोतरी के साथ ही कपास की बुआई ने रफ्तार पकड़ ली है।भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार हफ्ते के दौरान गुजरात में सामान्य से 2 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में 20 जुलाई को समाप्त हफ्ते के दौरान सामान्य से क्रमश: 42 व 88 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। इसी तरह दलहन के मामले में भी बीते हफ्ते तक पिछले साल के मुकाबले इस साल के रकबे का अंतर 16 फीसदी था, लेकिन अब यह घटकर 8.33 फीसदी रह गया है। देश के पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी इलाकों में दलहन की ज्यादातर खेती होती है, जहां हफ्ते के दौरान अच्छी बारिश हुई है।मध्य भारत में 20 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान सामान्य से 21 फीसदी अधिक बारिश हुई है। वहीं, दक्षिणी क्षेत्र में समीक्षाधीन सप्ताह में दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून 25 फीसदी अधिक रहा है। दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल आदि राज्य आते हैं। बारिश से तिलहन की बुआई में तेजी आई है, जिससे 2010 और 2011 में रकबे का अंतर 3.55 फीसदी से घटकर 0.55 फीसदी या 130.4 लाख हेक्टेयर रह गया है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'हमें पूरी उम्मीद है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से और अधिक क्षेत्रों में बारिश होगी, जिससे फसलों की बुआई रफ्तार पकड़ेगी। इससे पिछले बरस और इस साल के फसली रकबे का अंतर खत्म हो जाएगा।Óहालांकि देश के पश्चिमी भाग में जुलाई के पहले सप्ताह में सामान्य से कम बारिश की वजह से मोटे अनाज की बुआई का रकबा घटा है। शुक्रवार तक मोटे अनाज की बुआई करीब 141.4 लाख हेक्टेयर हो चुकी है, जो पिछले साल से 11.46 फीसदी कम है। मोटे अनाज में सबसे ज्यादा प्रभावित मक्का की बुआई हुई है। इस साल मक्के का रकबा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 5.5 लाख हेक्टेयर घटकर 49.9 लाख हेक्टेयर रहा है। शुक्रवार तक धान का रकबा पिछले साल के समान ही 154.7 लाख हेक्टेयर है। वहीं गन्ने का रकबा इस साल 2,70,000 हेक्टेयर बढ़कर 51.6 लाख हेक्टेयर हो गया है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के मेहरबान होने से देश के 81 प्रमुख जलाशयों में जलस्तर बढ़कर 52.52 अरब घन मीटर (बीसीएम) हो गया है, जो पिछले सप्ताह तक 45.71 बीसीएम था। (BS Hindi)
पश्चिम व मध्य भारत में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में सुधार के संकेत के साथ ही कपास, तिलहन व दलहन की बुआई ने रफ्तार पकड़ ली है। बुआई में आई तेजी के चलते पिछले साल के मुकाबले इस साल रकबे के बीच का अंतर काफी हद तक कम हो गया है।पिछले हफ्ते तक कपास का रकबा बीते वर्ष के मुकाबले 30.24 फीसदी कम था, लेकिन 22 जुलाई को समाप्त हफ्ते में यह अंतर घटकर महज 3.66 फीसदी रह गया है। पिछले हफ्ते तक 97 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई पूरी हो चुकी है, जो सामान्य कपास के सामान्य रकबे का करीब 87 फीसदी है। गुजरात और महाराष्ट्र की देश में कपास के रकबे में 80 फीसदी से ज्यादा भागीदारी होती है। इन इलाकों में बारिश की तीव्रता में बढ़ोतरी के साथ ही कपास की बुआई ने रफ्तार पकड़ ली है।भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार हफ्ते के दौरान गुजरात में सामान्य से 2 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र में 20 जुलाई को समाप्त हफ्ते के दौरान सामान्य से क्रमश: 42 व 88 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। इसी तरह दलहन के मामले में भी बीते हफ्ते तक पिछले साल के मुकाबले इस साल के रकबे का अंतर 16 फीसदी था, लेकिन अब यह घटकर 8.33 फीसदी रह गया है। देश के पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी इलाकों में दलहन की ज्यादातर खेती होती है, जहां हफ्ते के दौरान अच्छी बारिश हुई है।मध्य भारत में 20 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान सामान्य से 21 फीसदी अधिक बारिश हुई है। वहीं, दक्षिणी क्षेत्र में समीक्षाधीन सप्ताह में दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून 25 फीसदी अधिक रहा है। दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल आदि राज्य आते हैं। बारिश से तिलहन की बुआई में तेजी आई है, जिससे 2010 और 2011 में रकबे का अंतर 3.55 फीसदी से घटकर 0.55 फीसदी या 130.4 लाख हेक्टेयर रह गया है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 'हमें पूरी उम्मीद है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून से और अधिक क्षेत्रों में बारिश होगी, जिससे फसलों की बुआई रफ्तार पकड़ेगी। इससे पिछले बरस और इस साल के फसली रकबे का अंतर खत्म हो जाएगा।Óहालांकि देश के पश्चिमी भाग में जुलाई के पहले सप्ताह में सामान्य से कम बारिश की वजह से मोटे अनाज की बुआई का रकबा घटा है। शुक्रवार तक मोटे अनाज की बुआई करीब 141.4 लाख हेक्टेयर हो चुकी है, जो पिछले साल से 11.46 फीसदी कम है। मोटे अनाज में सबसे ज्यादा प्रभावित मक्का की बुआई हुई है। इस साल मक्के का रकबा पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 5.5 लाख हेक्टेयर घटकर 49.9 लाख हेक्टेयर रहा है। शुक्रवार तक धान का रकबा पिछले साल के समान ही 154.7 लाख हेक्टेयर है। वहीं गन्ने का रकबा इस साल 2,70,000 हेक्टेयर बढ़कर 51.6 लाख हेक्टेयर हो गया है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के मेहरबान होने से देश के 81 प्रमुख जलाशयों में जलस्तर बढ़कर 52.52 अरब घन मीटर (बीसीएम) हो गया है, जो पिछले सप्ताह तक 45.71 बीसीएम था। (BS Hindi)
सितंबर के बाद अतरिक्त चीनी निर्यात की मंजूरी पर विचार
मुंबई July 26, 2011
खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने आज कहा कि सरकार सितंबर के बाद और चीनी निर्यात की अनुमति देने के बारे में फैसला कर सकती है। भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक तथा सबसे ज्यादा खपत वाला देश है। थॉमस ने संवाददाताओं से कहा कि हम और चीनी निर्यात के मामले में बिल्कुल जल्दी में नहीं है क्योंकि जनवरी तक चीनी के भाव स्थिर बने रहने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि एक अक्तूबर से शुरू होने वाले अगले चीनी सीजन की शुरूआत में देश में 59 से 60 लाख टन चीनी का भंडार हो सकता है। यह त्यौहार के समय अधिक मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। थॉमस ने यह भी कहा कि सरकार सितंबर के बाद अतिरिक्त चीनी निर्यात की अनुमति देने पर विचार कर सकती है।
सहकारी चीनी मिलों के संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ओपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) ने वैश्विक स्तर पर उच्च कीमत का लाभ उठाने के लिए 500,000 टन अतिरिक्त चीनी के निर्यात की अनुमति देने का आग्रह किया है। सरकार ने इस वर्ष अबतक 22 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने की अनुमति दी है। इसमें से 10 लाख टन खुले सामान्य लाइसेंस के तहत मंजूरी दी गई है। (BS Hindi)
खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने आज कहा कि सरकार सितंबर के बाद और चीनी निर्यात की अनुमति देने के बारे में फैसला कर सकती है। भारत चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक तथा सबसे ज्यादा खपत वाला देश है। थॉमस ने संवाददाताओं से कहा कि हम और चीनी निर्यात के मामले में बिल्कुल जल्दी में नहीं है क्योंकि जनवरी तक चीनी के भाव स्थिर बने रहने की संभावना है।
उन्होंने कहा कि एक अक्तूबर से शुरू होने वाले अगले चीनी सीजन की शुरूआत में देश में 59 से 60 लाख टन चीनी का भंडार हो सकता है। यह त्यौहार के समय अधिक मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। थॉमस ने यह भी कहा कि सरकार सितंबर के बाद अतिरिक्त चीनी निर्यात की अनुमति देने पर विचार कर सकती है।
सहकारी चीनी मिलों के संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ओपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) ने वैश्विक स्तर पर उच्च कीमत का लाभ उठाने के लिए 500,000 टन अतिरिक्त चीनी के निर्यात की अनुमति देने का आग्रह किया है। सरकार ने इस वर्ष अबतक 22 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने की अनुमति दी है। इसमें से 10 लाख टन खुले सामान्य लाइसेंस के तहत मंजूरी दी गई है। (BS Hindi)
21 जुलाई 2011
गेहूं निर्यात पर बयान से मुश्किल में पवार
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
गेहूं निर्यात पर रोक हटाने के अपने बयान के कारण कृषि मंत्री शरद पवार मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। पवार ने 16 जुलाई (शनिवार) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना समारोह में कहा था कि गेहूं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है। लेकिन हकीकत इसके उलट है। सूत्रों के मुताबिक 11 जुलाई को मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक में गेहूं निर्यात का मसला एजेंडे में तो था लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं हुआ। इस संवाददाता ने खुद इस बैठक की मिनट्स देखी हैं जिसमें साफ लिखा है कि गेहूं निर्यात पर फैसला मुल्तवी कर दिया गया है। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर स्टॉक है। इस लिहाज से खाद्य मंत्रालय भी गेहूं निर्यात के हक में है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम भारत के मुकाबले काफी कम हंै, इसलिए वर्तमान स्थिति निर्यात के अनुकूल नहीं है। शरद पवार भी इस बात के मानते हैं कि वैश्विक बाजार में कीमतों में नरमी को देखते हुए भारत से गेहूं निर्यात की संभावनाएं फिलहाल बहुत अच्छी नहीं है। पिछले दिनों गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत अच्छी थी और उस समय निर्यात फायदेमंद था। लेकिन तब सरकार की तरफ से निर्यात पर पाबंदी जारी थी। ऐसी स्थिति में अगर अब सब्सिडी का गेहूं निर्यात के लिए दिया जाता है तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। सरकार ने घरेलू बाजार में महंगाई को देखते हुए वर्ष 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगी दी थी। चालू वर्ष में देश में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 842 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को 371.49 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक था। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को खाद्यान्न का स्टॉक 641 लाख टन से ज्यादा था जबकि भंडारण क्षमता 620 लाख टन से भी कम है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 2011-12 में देश में खाद्यान्न का रिकार्ड 24.5 करोड़ टन का उत्पादन होने का अनुमान है। ऐसे में खरीफ विपणन सीजन में सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे जाने वाले खाद्यान्न को रखने में सरकार को परेशानी उठानी पड़ सकती है। (Business Bhaskar...R S Rana)
गेहूं निर्यात पर रोक हटाने के अपने बयान के कारण कृषि मंत्री शरद पवार मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। पवार ने 16 जुलाई (शनिवार) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना समारोह में कहा था कि गेहूं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है। लेकिन हकीकत इसके उलट है। सूत्रों के मुताबिक 11 जुलाई को मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक में गेहूं निर्यात का मसला एजेंडे में तो था लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं हुआ। इस संवाददाता ने खुद इस बैठक की मिनट्स देखी हैं जिसमें साफ लिखा है कि गेहूं निर्यात पर फैसला मुल्तवी कर दिया गया है। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर स्टॉक है। इस लिहाज से खाद्य मंत्रालय भी गेहूं निर्यात के हक में है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम भारत के मुकाबले काफी कम हंै, इसलिए वर्तमान स्थिति निर्यात के अनुकूल नहीं है। शरद पवार भी इस बात के मानते हैं कि वैश्विक बाजार में कीमतों में नरमी को देखते हुए भारत से गेहूं निर्यात की संभावनाएं फिलहाल बहुत अच्छी नहीं है। पिछले दिनों गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत अच्छी थी और उस समय निर्यात फायदेमंद था। लेकिन तब सरकार की तरफ से निर्यात पर पाबंदी जारी थी। ऐसी स्थिति में अगर अब सब्सिडी का गेहूं निर्यात के लिए दिया जाता है तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। सरकार ने घरेलू बाजार में महंगाई को देखते हुए वर्ष 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगी दी थी। चालू वर्ष में देश में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 842 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को 371.49 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक था। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को खाद्यान्न का स्टॉक 641 लाख टन से ज्यादा था जबकि भंडारण क्षमता 620 लाख टन से भी कम है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 2011-12 में देश में खाद्यान्न का रिकार्ड 24.5 करोड़ टन का उत्पादन होने का अनुमान है। ऐसे में खरीफ विपणन सीजन में सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे जाने वाले खाद्यान्न को रखने में सरकार को परेशानी उठानी पड़ सकती है। (Business Bhaskar...R S Rana)
19 जुलाई 2011
हाईब्रिड धान का रकबा दोगुना की संभावना
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
चालू खरीफ सीजन में धान के हाईब्रिड बीजों की बिक्री 50 फीसदी बढऩे की संभावना है। हाईब्रिड धान की रोपाई का रकबा चालू खरीफ में करीब 87.5 फीसदी बढ़कर 30 लाख हैक्टेयर होने का अनुमान है। प्रति हैक्टेयर उत्पादन ज्यादा होने के कारण किसान धान के हाईब्रिड बीजों की बुवाई कर रहे हैं। हर साल देश में करीब 394 लाख हैक्टेयर में धान की रोपाई होती है। केंद्रीय धान अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. टी. के. आद्या ने बताया कि प्रति हैक्टेयर पैदावार ज्यादा होने के कारण किसान धान के हाईब्रिड बीजों को अपना रहे हैं। चालू खरीफ में देश में करीब 30 लाख हैक्टेयर में हाईब्रिड धान की बुवाई होने की संभावना है। पिछले साल देश में 16 लाख हैक्टेयर में हाईब्रिड धान के बीजों की रोपाई हुई थी। सामान्य किस्म की प्रजाति के मुकाबले हाईब्रिड प्रजाति का उत्पादन एक टन प्रति हैक्टेयर तक ज्यादा होता है। रासी सीड प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ अरविंद कपूर ने बताया कि चालू खरीफ में धान के हाईब्रिड बीजों की कुल बिक्री 28,000 से 30,000 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 19,000 से 20,000 टन बीजों की बिक्री हुई थी। प्रति हैक्टेयर कम उत्पादकता वालों राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में राज्य सरकारें हाईब्रिड बीजों की खरीद पर किसानों को सब्सिडी दे रही है। इसीलिए इन राज्यों में हाईब्रिड धान की रोपाई के क्षेत्रफल में ज्यादा बढ़ोतरी होने की संभावना है। रासी सीड ने पिछले साल धान के 200 टन हाईब्रिड बीजों की बिक्री की थी लेकिन चालू खरीफ में बिक्री बढ़कर 500 टन होने की उम्मीद है। पीएचआई सीड लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जिन राज्यों में धान का प्रति हैक्टेयर उत्पादन कम है वहां के किसान हाईब्रिड धान की रोपाई करके प्रति हैक्टेयर उत्पादन ज्यादा ले रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो चावल का प्रति हैक्टेयर उत्पादन ठीक है लेकिन अन्य राज्यों में कम है। चालू खरीफ सीजन में धान के हाईब्रिड बीजों की ब्रिकी पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी से भी ज्यादा बढऩे की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
चालू खरीफ सीजन में धान के हाईब्रिड बीजों की बिक्री 50 फीसदी बढऩे की संभावना है। हाईब्रिड धान की रोपाई का रकबा चालू खरीफ में करीब 87.5 फीसदी बढ़कर 30 लाख हैक्टेयर होने का अनुमान है। प्रति हैक्टेयर उत्पादन ज्यादा होने के कारण किसान धान के हाईब्रिड बीजों की बुवाई कर रहे हैं। हर साल देश में करीब 394 लाख हैक्टेयर में धान की रोपाई होती है। केंद्रीय धान अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. टी. के. आद्या ने बताया कि प्रति हैक्टेयर पैदावार ज्यादा होने के कारण किसान धान के हाईब्रिड बीजों को अपना रहे हैं। चालू खरीफ में देश में करीब 30 लाख हैक्टेयर में हाईब्रिड धान की बुवाई होने की संभावना है। पिछले साल देश में 16 लाख हैक्टेयर में हाईब्रिड धान के बीजों की रोपाई हुई थी। सामान्य किस्म की प्रजाति के मुकाबले हाईब्रिड प्रजाति का उत्पादन एक टन प्रति हैक्टेयर तक ज्यादा होता है। रासी सीड प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ अरविंद कपूर ने बताया कि चालू खरीफ में धान के हाईब्रिड बीजों की कुल बिक्री 28,000 से 30,000 टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 19,000 से 20,000 टन बीजों की बिक्री हुई थी। प्रति हैक्टेयर कम उत्पादकता वालों राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में राज्य सरकारें हाईब्रिड बीजों की खरीद पर किसानों को सब्सिडी दे रही है। इसीलिए इन राज्यों में हाईब्रिड धान की रोपाई के क्षेत्रफल में ज्यादा बढ़ोतरी होने की संभावना है। रासी सीड ने पिछले साल धान के 200 टन हाईब्रिड बीजों की बिक्री की थी लेकिन चालू खरीफ में बिक्री बढ़कर 500 टन होने की उम्मीद है। पीएचआई सीड लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जिन राज्यों में धान का प्रति हैक्टेयर उत्पादन कम है वहां के किसान हाईब्रिड धान की रोपाई करके प्रति हैक्टेयर उत्पादन ज्यादा ले रहे हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो चावल का प्रति हैक्टेयर उत्पादन ठीक है लेकिन अन्य राज्यों में कम है। चालू खरीफ सीजन में धान के हाईब्रिड बीजों की ब्रिकी पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी से भी ज्यादा बढऩे की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
नेगोशिएबल वेयरहाउस रसीद पर मिलने लगा बैंक कर्ज
आर.एस. राणा
नई दिल्ली
वेयरहाउसों की रसीदों को नेगोशिएबल इंस्ट्र्ूमेंट का दर्जा मिल जाने के बाद किसानों को बैंकों से उनकी उपज पर कर्ज आसानी से मिलने लगा है। लेकिन वेयरहाउसों का भंडारण किराया ज्यादा होने के कारण किसानों के सामने मुश्किल आ रही है। सरकार ने वेयरहाउसिंग के नियमन के लिए भंडारण विकास एवं नियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए) का गठन किया है। डब्ल्यूडीआरए की अधिकृत एजेंसियों से मान्यता प्राप्त वेयरहाउस किसानों की उपज रखकर नेगोशिएबल रसीद जारी के लिए अधिकृत हैं। वेयरहाउसों की रसीद पर किसानों को बैंक 9 से 11 फीसदी ब्याज पर ऋण दे रहे हैं। किसानों पर वेयरहाउसों का किराया भी लग रहा है। यह किराया 3.15 से 3.60 रुपये प्रति 50 किलो प्रति महीना है। हरियाणा के सिरसा जिले में मंडी आदमपुर के किसान किशोरी लाल ने बताया कि उन्होंने 705 कट्टा (एक कट्टा-50 किलो) जौ वेयरहाउस में रखा है। वेयरहाउस में रखे गए जौ के बदले उन्हें आईसीआईसीआई बैंक से आसानी से ऋण 11 फीसदी ब्याज पर मिल गया, उन्हें वेयरहाउस का मासिक किराया 3.15 रुपये प्रति कट्टा भी देना होगा। वेयरहाउस में जिंस रखने की सुविधा से उन्हें फायदा तो हुआ है लेकिन ब्याज और वेयरहाउस का किराया मिलाकर कुल खर्च काफी ज्यादा है। वेयर हाउस के मैनेजर जयप्रकाश ने बताया कि उनके वेयरहाउसों में किसानों ने 2,868 क्विंटल अनाज रखा है। जबकि वेयरहाउस की भंडारण क्षमता 17,250 टन की है। करनाल स्थिति सेंट्रल वेयर हाउस के मैनेजर ऋषिपाल ने बताया कि अभी तक 100 किसानों और व्यापारियों को वेयरहाउस रसीद जारी की गई है। इसके बदले में किसानों और व्यापारियों को बैंक से 9 से 11 फीसदी ब्याज पर ऋण मिला है। वेयरहाउस में जिंसों का मासिक किराया 3.60 रुपये प्रति 50 किलो है। उन्होंने बताया कि अप्रैल में ही उनके वेयरहाउस को नेगोशिएबल रसीद जारी कने के लिए मान्यता मिली थी। राजस्थान के श्रीमाधोपुर स्थित वेयरहाउस के मैनेजर के. प्रसाद ने बताया कि जिंसों के बदले किसानों को अभी तक 23 रसीद जारी की जा चुकी हैं। जैसे-जैसे किसानों को पता लगेगा कि इसमें और तेजी आएगी। डब्ल्यूडीआरए के डायरेक्टर (टेक्निकल) डॉ. एन. के. अरोड़ा ने बताया कि अभी तक वेयरहाउस रजिस्ट्रेशन के लिए देशभर से 340 आवेदन मिले हैं जिनकी भंडारण क्षमता 12 लाख टन की है। इसमें से 40 आवेदनों को खामियों की वजह से रद्द किया गया है। जबकि कुल मिलें आवेदनों में से 70 वेयरहाउसों को मान्यता दी जा चुकी है। उन्होंने बताया कि किसानों को जागरूक बनाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। डब्ल्यूडीआरए के अधिकारी कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में जागरूकता अभियान चला रहे हैं। अन्य राज्यों में भी जल्दी ही जागरूक अभियान चलाया जाएगा। (Business Bhaskar....R S Rana)
नई दिल्ली
वेयरहाउसों की रसीदों को नेगोशिएबल इंस्ट्र्ूमेंट का दर्जा मिल जाने के बाद किसानों को बैंकों से उनकी उपज पर कर्ज आसानी से मिलने लगा है। लेकिन वेयरहाउसों का भंडारण किराया ज्यादा होने के कारण किसानों के सामने मुश्किल आ रही है। सरकार ने वेयरहाउसिंग के नियमन के लिए भंडारण विकास एवं नियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए) का गठन किया है। डब्ल्यूडीआरए की अधिकृत एजेंसियों से मान्यता प्राप्त वेयरहाउस किसानों की उपज रखकर नेगोशिएबल रसीद जारी के लिए अधिकृत हैं। वेयरहाउसों की रसीद पर किसानों को बैंक 9 से 11 फीसदी ब्याज पर ऋण दे रहे हैं। किसानों पर वेयरहाउसों का किराया भी लग रहा है। यह किराया 3.15 से 3.60 रुपये प्रति 50 किलो प्रति महीना है। हरियाणा के सिरसा जिले में मंडी आदमपुर के किसान किशोरी लाल ने बताया कि उन्होंने 705 कट्टा (एक कट्टा-50 किलो) जौ वेयरहाउस में रखा है। वेयरहाउस में रखे गए जौ के बदले उन्हें आईसीआईसीआई बैंक से आसानी से ऋण 11 फीसदी ब्याज पर मिल गया, उन्हें वेयरहाउस का मासिक किराया 3.15 रुपये प्रति कट्टा भी देना होगा। वेयरहाउस में जिंस रखने की सुविधा से उन्हें फायदा तो हुआ है लेकिन ब्याज और वेयरहाउस का किराया मिलाकर कुल खर्च काफी ज्यादा है। वेयर हाउस के मैनेजर जयप्रकाश ने बताया कि उनके वेयरहाउसों में किसानों ने 2,868 क्विंटल अनाज रखा है। जबकि वेयरहाउस की भंडारण क्षमता 17,250 टन की है। करनाल स्थिति सेंट्रल वेयर हाउस के मैनेजर ऋषिपाल ने बताया कि अभी तक 100 किसानों और व्यापारियों को वेयरहाउस रसीद जारी की गई है। इसके बदले में किसानों और व्यापारियों को बैंक से 9 से 11 फीसदी ब्याज पर ऋण मिला है। वेयरहाउस में जिंसों का मासिक किराया 3.60 रुपये प्रति 50 किलो है। उन्होंने बताया कि अप्रैल में ही उनके वेयरहाउस को नेगोशिएबल रसीद जारी कने के लिए मान्यता मिली थी। राजस्थान के श्रीमाधोपुर स्थित वेयरहाउस के मैनेजर के. प्रसाद ने बताया कि जिंसों के बदले किसानों को अभी तक 23 रसीद जारी की जा चुकी हैं। जैसे-जैसे किसानों को पता लगेगा कि इसमें और तेजी आएगी। डब्ल्यूडीआरए के डायरेक्टर (टेक्निकल) डॉ. एन. के. अरोड़ा ने बताया कि अभी तक वेयरहाउस रजिस्ट्रेशन के लिए देशभर से 340 आवेदन मिले हैं जिनकी भंडारण क्षमता 12 लाख टन की है। इसमें से 40 आवेदनों को खामियों की वजह से रद्द किया गया है। जबकि कुल मिलें आवेदनों में से 70 वेयरहाउसों को मान्यता दी जा चुकी है। उन्होंने बताया कि किसानों को जागरूक बनाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है। डब्ल्यूडीआरए के अधिकारी कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में जागरूकता अभियान चला रहे हैं। अन्य राज्यों में भी जल्दी ही जागरूक अभियान चलाया जाएगा। (Business Bhaskar....R S Rana)
गेहूं निर्यात पर बयान से मुश्किल में पवार
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
गेहूं निर्यात पर रोक हटाने के अपने बयान के कारण कृषि मंत्री शरद पवार मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। पवार ने 16 जुलाई (शनिवार) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना समारोह में कहा था कि गेहूं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है। लेकिन हकीकत इसके उलट है। सूत्रों के मुताबिक 11 जुलाई को मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक में गेहूं निर्यात का मसला एजेंडे में तो था लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं हुआ। इस संवाददाता ने खुद इस बैठक की मिनट्स देखी हैं जिसमें साफ लिखा है कि गेहूं निर्यात पर फैसला मुल्तवी कर दिया गया है। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर स्टॉक है। इस लिहाज से खाद्य मंत्रालय भी गेहूं निर्यात के हक में है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम भारत के मुकाबले काफी कम हंै, इसलिए वर्तमान स्थिति निर्यात के अनुकूल नहीं है। शरद पवार भी इस बात के मानते हैं कि वैश्विक बाजार में कीमतों में नरमी को देखते हुए भारत से गेहूं निर्यात की संभावनाएं फिलहाल बहुत अच्छी नहीं है। पिछले दिनों गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत अच्छी थी और उस समय निर्यात फायदेमंद था। लेकिन तब सरकार की तरफ से निर्यात पर पाबंदी जारी थी। ऐसी स्थिति में अगर अब सब्सिडी का गेहूं निर्यात के लिए दिया जाता है तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। सरकार ने घरेलू बाजार में महंगाई को देखते हुए वर्ष 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगी दी थी। चालू वर्ष में देश में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 842 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को 371.49 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक था। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को खाद्यान्न का स्टॉक 641 लाख टन से ज्यादा था जबकि भंडारण क्षमता 620 लाख टन से भी कम है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 2011-12 में देश में खाद्यान्न का रिकार्ड 24.5 करोड़ टन का उत्पादन होने का अनुमान है। ऐसे में खरीफ विपणन सीजन में सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे जाने वाले खाद्यान्न को रखने में सरकार को परेशानी उठानी पड़ सकती है। (Business Bhaskar)
गेहूं निर्यात पर रोक हटाने के अपने बयान के कारण कृषि मंत्री शरद पवार मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। पवार ने 16 जुलाई (शनिवार) को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के स्थापना समारोह में कहा था कि गेहूं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया है। लेकिन हकीकत इसके उलट है। सूत्रों के मुताबिक 11 जुलाई को मंत्रियों के उच्चाधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक में गेहूं निर्यात का मसला एजेंडे में तो था लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं हुआ। इस संवाददाता ने खुद इस बैठक की मिनट्स देखी हैं जिसमें साफ लिखा है कि गेहूं निर्यात पर फैसला मुल्तवी कर दिया गया है। खाद्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर स्टॉक है। इस लिहाज से खाद्य मंत्रालय भी गेहूं निर्यात के हक में है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम भारत के मुकाबले काफी कम हंै, इसलिए वर्तमान स्थिति निर्यात के अनुकूल नहीं है। शरद पवार भी इस बात के मानते हैं कि वैश्विक बाजार में कीमतों में नरमी को देखते हुए भारत से गेहूं निर्यात की संभावनाएं फिलहाल बहुत अच्छी नहीं है। पिछले दिनों गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमत अच्छी थी और उस समय निर्यात फायदेमंद था। लेकिन तब सरकार की तरफ से निर्यात पर पाबंदी जारी थी। ऐसी स्थिति में अगर अब सब्सिडी का गेहूं निर्यात के लिए दिया जाता है तो सरकार के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। सरकार ने घरेलू बाजार में महंगाई को देखते हुए वर्ष 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगी दी थी। चालू वर्ष में देश में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 842 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को 371.49 लाख टन गेहूं का भारी-भरकम स्टॉक था। केंद्रीय पूल में पहली जुलाई को खाद्यान्न का स्टॉक 641 लाख टन से ज्यादा था जबकि भंडारण क्षमता 620 लाख टन से भी कम है। कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार 2011-12 में देश में खाद्यान्न का रिकार्ड 24.5 करोड़ टन का उत्पादन होने का अनुमान है। ऐसे में खरीफ विपणन सीजन में सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदे जाने वाले खाद्यान्न को रखने में सरकार को परेशानी उठानी पड़ सकती है। (Business Bhaskar)
16 जुलाई 2011
अच्छा रिटर्न दिला सकता है सोने में निवेश
आर.एस. राणा
यूरापीय देशों में ऋण संकट गहराने और कच्चे तेल की कीमतों में उथल-पुथल से बढ़ रहा है सोने में निवेश।आगामी दिनों में त्यौहारी सीजन के कारण भारत में सोने की मांग बढ़ेगी। महंगाई का असर सोने की कीमतों पर ज्यादा नहीं पड़ेगा।
यूरोपीय देशों में ऋण संकट लगातार बढ़ रहा है जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के भंवर में फंसी हुई है। उधर पश्चिमी एशिया के देशों में राजनीतिक उथल-पुथल थम नहीं रही है जिसके कारण कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। ऐसे में सुरक्षित निवेश की चाह में निवेशक सोने की खरीद को तरजीह दे रहे हैं। चालू वित्त वर्ष के पहले साढ़े तीन महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें में 9.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। उधर मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर अप्रैल से अभी तक अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में सोने की कीमतें 7.1 फीसदी बढ़ चुकी हैं।
वायदा में दाम बढ़े मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में अप्रैल से अभी तक सोने की कीमतों में 7.1 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एक अप्रैल को अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में सोने का भाव 21,650 रुपये प्रति दस ग्राम थे जबकि शुक्रवार को भाव 23,201 रुपये प्रति प्रति दस ग्राम पर कारोबार करते देखे गए। अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में 3,116 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। बुलियन विश£ेशक ओमप्रकाश सिंह ने बताया कि मौजूदा स्तर पर मुनाफावसूली से सोने की कीमतों में गिरावट आती है तो निवेशकों के लिए खरीद का अच्छा मौका रहेगा क्योंकि भविष्य में दाम बढऩे की ही संभावना है।
सोने में कैसे करें निवेशवायदा बाजार में सोने में निवेश करने के लिए निवेशक को कमोडिटी ब्रोकर के यहां खाता खुलवाना होता है। खाता खुलवाने के लिए पैन कार्ड, बैंक का पास बुक, स्थायी पता और शुरुआती मार्जिन की आवश्यकता होती है। सोने का सबसे अधिक कारोबार एमसीएक्स में होता है। इसके अलावा निवेशक भौतिक सोना, गोल्ड ईटीएफ और ई-गोल्ड के जरिये भी सोने में निवेश कर सकते हैं।
यूरोपीय ऋण संकट का असर एंजेल ब्रोकिंग के एसोसिएट डायरेक्टर (कमोडिटी एंड करेंसी) नवीन माथुर ने बताया कि ग्रीस का कर्ज संकट यूरोप की अन्य अर्थव्यवस्थाओं को भी चपेट में ले सकता है। ग्रीस, पुर्तगाल और रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड की तरह इटली और स्पेन में भी ऋण संकट गहराने की आशंका बनी हुई है। उधर अमेरिकी अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के भंवर में फसी हुई है। तथा पश्चिमी एशिया के देशों में राजनीतिक उथल-पुथल थम नहीं रही है जिसके कारण कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में निवेशक सोने में निवेश बढ़ा सकते हैं। जिसका असर घरेलू बाजार में भी सोने की कीमतों पर पड़ेगा।
भारत-चीन की मांग में बढ़ोतरी आदित्य बिड़ला मनी लिमिटेड के बुलियन विश£ेशक आशीष महाजन के अनुसार भारत और चीन की सोने की मांग लगातार बढ़ रही है। चीन में सोने की मांग सालाना करीब 14 फीसदी की दर से बढ़ रही है। सोने के गहनों की मांग पिछले साल में चीन में करीब दोगुनी हो गई है। जबकि विश्व की कुल मांग में भारत की हिस्सेदारी करीब 35 फीसदी है। आगामी दिनों में त्यौहारी सीजन के कारण भारत में सोने की मांग बढ़ेगी। हालांकि इस दौरान महंगाई बनी रहेगी लेकिन महंगाई का असर सोने की कीमतों पर ज्यादा नहीं पड़ेगा। हेज फंड वालों की खरीद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की तेजी को बल मिल रहा है।
विदेशी बाजार में दाम बढ़े अंतरराष्ट्रीय बाजार में अप्रैल से अभी तक सोने की कीमतों में करीब 9.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एक अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 1,440 डॉलर प्रति औंस था जबकि शुक्रवार को 1,580 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। दिल्ली बुलियन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने बताया कि सोने की कीमतों में तेजी जरुर आई है लेकिन मांग बनी हुई है। आगामी दिनों में त्यौहारी सीजन शुरू होने के बाद मांग में और तेजी आने की संभावना है।
दिल्ली सर्राफा बाजार में अप्रैल से अभी तक सोने की कीमतों में 2,065 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी आ चुकी है। एक अप्रैल को दिल्ली सर्राफा बाजार में सोने का भाव 21,155 रुपये प्रति दस ग्राम था जबकि 14 जुलाई को भाव 23,220 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। (Business Bhaskar....R S Rana)
यूरापीय देशों में ऋण संकट गहराने और कच्चे तेल की कीमतों में उथल-पुथल से बढ़ रहा है सोने में निवेश।आगामी दिनों में त्यौहारी सीजन के कारण भारत में सोने की मांग बढ़ेगी। महंगाई का असर सोने की कीमतों पर ज्यादा नहीं पड़ेगा।
यूरोपीय देशों में ऋण संकट लगातार बढ़ रहा है जबकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के भंवर में फंसी हुई है। उधर पश्चिमी एशिया के देशों में राजनीतिक उथल-पुथल थम नहीं रही है जिसके कारण कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। ऐसे में सुरक्षित निवेश की चाह में निवेशक सोने की खरीद को तरजीह दे रहे हैं। चालू वित्त वर्ष के पहले साढ़े तीन महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की कीमतें में 9.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। उधर मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर अप्रैल से अभी तक अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में सोने की कीमतें 7.1 फीसदी बढ़ चुकी हैं।
वायदा में दाम बढ़े मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में अप्रैल से अभी तक सोने की कीमतों में 7.1 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एक अप्रैल को अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में सोने का भाव 21,650 रुपये प्रति दस ग्राम थे जबकि शुक्रवार को भाव 23,201 रुपये प्रति प्रति दस ग्राम पर कारोबार करते देखे गए। अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में 3,116 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। बुलियन विश£ेशक ओमप्रकाश सिंह ने बताया कि मौजूदा स्तर पर मुनाफावसूली से सोने की कीमतों में गिरावट आती है तो निवेशकों के लिए खरीद का अच्छा मौका रहेगा क्योंकि भविष्य में दाम बढऩे की ही संभावना है।
सोने में कैसे करें निवेशवायदा बाजार में सोने में निवेश करने के लिए निवेशक को कमोडिटी ब्रोकर के यहां खाता खुलवाना होता है। खाता खुलवाने के लिए पैन कार्ड, बैंक का पास बुक, स्थायी पता और शुरुआती मार्जिन की आवश्यकता होती है। सोने का सबसे अधिक कारोबार एमसीएक्स में होता है। इसके अलावा निवेशक भौतिक सोना, गोल्ड ईटीएफ और ई-गोल्ड के जरिये भी सोने में निवेश कर सकते हैं।
यूरोपीय ऋण संकट का असर एंजेल ब्रोकिंग के एसोसिएट डायरेक्टर (कमोडिटी एंड करेंसी) नवीन माथुर ने बताया कि ग्रीस का कर्ज संकट यूरोप की अन्य अर्थव्यवस्थाओं को भी चपेट में ले सकता है। ग्रीस, पुर्तगाल और रिपब्लिक ऑफ आयरलैंड की तरह इटली और स्पेन में भी ऋण संकट गहराने की आशंका बनी हुई है। उधर अमेरिकी अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के भंवर में फसी हुई है। तथा पश्चिमी एशिया के देशों में राजनीतिक उथल-पुथल थम नहीं रही है जिसके कारण कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में निवेशक सोने में निवेश बढ़ा सकते हैं। जिसका असर घरेलू बाजार में भी सोने की कीमतों पर पड़ेगा।
भारत-चीन की मांग में बढ़ोतरी आदित्य बिड़ला मनी लिमिटेड के बुलियन विश£ेशक आशीष महाजन के अनुसार भारत और चीन की सोने की मांग लगातार बढ़ रही है। चीन में सोने की मांग सालाना करीब 14 फीसदी की दर से बढ़ रही है। सोने के गहनों की मांग पिछले साल में चीन में करीब दोगुनी हो गई है। जबकि विश्व की कुल मांग में भारत की हिस्सेदारी करीब 35 फीसदी है। आगामी दिनों में त्यौहारी सीजन के कारण भारत में सोने की मांग बढ़ेगी। हालांकि इस दौरान महंगाई बनी रहेगी लेकिन महंगाई का असर सोने की कीमतों पर ज्यादा नहीं पड़ेगा। हेज फंड वालों की खरीद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की तेजी को बल मिल रहा है।
विदेशी बाजार में दाम बढ़े अंतरराष्ट्रीय बाजार में अप्रैल से अभी तक सोने की कीमतों में करीब 9.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। एक अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 1,440 डॉलर प्रति औंस था जबकि शुक्रवार को 1,580 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार करते देखा गया। दिल्ली बुलियन वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने बताया कि सोने की कीमतों में तेजी जरुर आई है लेकिन मांग बनी हुई है। आगामी दिनों में त्यौहारी सीजन शुरू होने के बाद मांग में और तेजी आने की संभावना है।
दिल्ली सर्राफा बाजार में अप्रैल से अभी तक सोने की कीमतों में 2,065 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी आ चुकी है। एक अप्रैल को दिल्ली सर्राफा बाजार में सोने का भाव 21,155 रुपये प्रति दस ग्राम था जबकि 14 जुलाई को भाव 23,220 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। (Business Bhaskar....R S Rana)
असम में चाय उत्पादन पर मौसम का असर
गुवाहाटी July 15, 2011
भविष्य में ब्रह्मपुत्र बेसिन में जलवायु परिवर्तन से असम में चाय के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। ब्रह्मपुत्र बेसिन के जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर आईआईटी-गुवाहाटी के प्रारंभिक अध्ययन में कहा गया है कि इससे बारिश के पैटर्न और बेसिन के तापमान में भारी बदलाव आएगा। अध्ययन में कहा गया है कि 'अल्प अवधि की मूसलाधार बारिश और सूखे के लंबे चक्र इस क्षेत्र में बाढ़ और सूखे के हालात पर असर डालेंगे। Ó हकीकत में, क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों से अनियमित और असामान्य बारिश हो रही है। चाय बोर्ड के कार्यकारी निदेशक राकेश सैनी ने कहा कि चाय बागानों में जल प्रबंधन हमेशा जटिल रहा है। बारिश के दिनों में चाय की फसल को जल भराव या बाढ़ से बचाने के लिए प्रभावी जल निकासी की व्यवस्था करनी होती है जबकि सूखे के दिनों में सिंचाई के लिए पानी सुनिश्चित करना होती है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन महत्वपूर्ण विषय बन गया है, क्योंकि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के शुरुआती संकेत दिखाई देने लगे हैं। (BS Hindi)
भविष्य में ब्रह्मपुत्र बेसिन में जलवायु परिवर्तन से असम में चाय के उत्पादन पर असर पड़ सकता है। ब्रह्मपुत्र बेसिन के जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर आईआईटी-गुवाहाटी के प्रारंभिक अध्ययन में कहा गया है कि इससे बारिश के पैटर्न और बेसिन के तापमान में भारी बदलाव आएगा। अध्ययन में कहा गया है कि 'अल्प अवधि की मूसलाधार बारिश और सूखे के लंबे चक्र इस क्षेत्र में बाढ़ और सूखे के हालात पर असर डालेंगे। Ó हकीकत में, क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों से अनियमित और असामान्य बारिश हो रही है। चाय बोर्ड के कार्यकारी निदेशक राकेश सैनी ने कहा कि चाय बागानों में जल प्रबंधन हमेशा जटिल रहा है। बारिश के दिनों में चाय की फसल को जल भराव या बाढ़ से बचाने के लिए प्रभावी जल निकासी की व्यवस्था करनी होती है जबकि सूखे के दिनों में सिंचाई के लिए पानी सुनिश्चित करना होती है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन महत्वपूर्ण विषय बन गया है, क्योंकि क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के शुरुआती संकेत दिखाई देने लगे हैं। (BS Hindi)
दूसरी हरित क्रांति की जरूरतः प्रधानमंत्री
सीएनबीसी आवाज़
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कृषि सेक्टर की खस्ता हालत पर चिंता जाहिर की है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुताबिक कृषि सेक्टर काफी मुश्किल दौर से गुजर रहा है और देश में दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है।
मनमोहन सिंह के मुताबिक कृषि की स्थिति सुधारने के लिए 2020 तक कृषि रिसर्च और डेवलपमेंट पर 2-3 गुना निवेश बढ़ाना होगा। प्रधानमंत्री के मुताबिक 2010-2011 में देश में खाद्यान का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। लेकिन ये ग्रोथ आगे कायम रहना मुश्किल है। इसलिए सरकार को 11वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि ग्रोथ 4 फीसदी के मुकाबले 3 फीसदी रहने की ही उम्मीद है।
प्रधानमंत्री ने बढ़ती महंगाई दर पर भी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि खाने-पीने की चीजों के दाम पर काबू पाने की जरूरत है। इसके लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना होगा, जो देश में दूसरी हरित क्रांति के जरिए हो सकता है।
वहीं इस मामले पर कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का कहना है कि सरकार को बयानबाजी करने की बजाए ठोस कदम उठाने चाहिए। देश में खाद्य महंगाई के इतनी तेजी से बढ़ने की बड़ी वजह नहीं है। मांग-आपूर्ति के बीच अंतर वास्तविक नहीं बल्कि जानबूझकर पैदा किया गया है।
देश में कृषि उत्पादन ठीक तरीके से बढ़ रहा है और कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार को रिटेल और थोक कारोबारियों पर खाद्यान्न स्टॉक की सही सीमा लगानी चाहिए।
देवेंद्र शर्मा का कहना है कि 2020 की बात करने के बजाए सरकार को फौरन कड़े कदम उठाकर महंगाई को काबू करना चाहिए। (Mani Cantrol)
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कृषि सेक्टर की खस्ता हालत पर चिंता जाहिर की है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुताबिक कृषि सेक्टर काफी मुश्किल दौर से गुजर रहा है और देश में दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है।
मनमोहन सिंह के मुताबिक कृषि की स्थिति सुधारने के लिए 2020 तक कृषि रिसर्च और डेवलपमेंट पर 2-3 गुना निवेश बढ़ाना होगा। प्रधानमंत्री के मुताबिक 2010-2011 में देश में खाद्यान का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है। लेकिन ये ग्रोथ आगे कायम रहना मुश्किल है। इसलिए सरकार को 11वीं पंचवर्षीय योजना में कृषि ग्रोथ 4 फीसदी के मुकाबले 3 फीसदी रहने की ही उम्मीद है।
प्रधानमंत्री ने बढ़ती महंगाई दर पर भी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि खाने-पीने की चीजों के दाम पर काबू पाने की जरूरत है। इसके लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना होगा, जो देश में दूसरी हरित क्रांति के जरिए हो सकता है।
वहीं इस मामले पर कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का कहना है कि सरकार को बयानबाजी करने की बजाए ठोस कदम उठाने चाहिए। देश में खाद्य महंगाई के इतनी तेजी से बढ़ने की बड़ी वजह नहीं है। मांग-आपूर्ति के बीच अंतर वास्तविक नहीं बल्कि जानबूझकर पैदा किया गया है।
देश में कृषि उत्पादन ठीक तरीके से बढ़ रहा है और कालाबाजारी रोकने के लिए सरकार को रिटेल और थोक कारोबारियों पर खाद्यान्न स्टॉक की सही सीमा लगानी चाहिए।
देवेंद्र शर्मा का कहना है कि 2020 की बात करने के बजाए सरकार को फौरन कड़े कदम उठाकर महंगाई को काबू करना चाहिए। (Mani Cantrol)
चार साल बाद गेहूं के निर्यात से प्रतिबंध हटा
सरकार ने चार साल से अधिक समय से गेहूं निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटाने का निर्णय किया है। हालांकि वैश्विक बाजार में कीमतों में नरमी को देखते हुए भारत से गेहूं के निर्यात की संभावनाएं फिलहाल बहुत अच्छी नहीं हैं।
GA_googleFillSlot("lh_business_top_lhs_200x200");
सरकार ने घरेलू महंगाई को देखते हुए 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि अब निर्यात पर पाबंदी नहीं है। गेहूं का निर्यात खोल दिया गया है। पवार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के स्थापना दिवस समारोह के बाद संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी यह घोषणा नहीं की है कि कितने गेहूं का निर्यात किया जाएगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतें नीचे चल रही हैं।
उल्लेखनीय है कि खाद्यान्न पर वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह ने गेहूं निर्यात खोलने पर सैद्धांतिक सहमति दे दी है। यह निर्णय भंडार की बेहतर स्थिति को देखते हुए किया गया है।
पवार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार के हालात को देखते हुए फिलहाल भारत से गेहूं के निर्यात की संभावना पर आशंका जाहिर की। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि कहीं से कोई हरकत होगी। सवाल है कि क्या हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में जो नीचा भाव चल रहा है उसपर माल बेच सकेंगे।
कृषि मंत्री ने कहा कि भंडारण की समस्या बढ़ रही है। उन्होंने कहा इस समय हमारे पास गोदाम में जरूरत से अधिक भंडार है। ऐसे में मेरी वास्तविक चिंता है कि जब आंध्र प्रदेश और पंजाब में धान की खरीद शुरू होगी तो उसे रखने का क्या इंतजाम होगा।
यद्यपि सरकार ने जुलाई-जून (2010-11) के उत्पादन के अंतिम आंकड़े जारी नहीं किए है, परंतु सूमों का कहना है कि वर्ष के दौरान गेहूं का उत्पादन 8.6 करोड़ टन हुआ है जो कि एक रिकार्ड है। इससे पिछले वर्ष गेहूं उत्पादन 8.08 करोड़ टन था। (Hindustan hindi)
GA_googleFillSlot("lh_business_top_lhs_200x200");
सरकार ने घरेलू महंगाई को देखते हुए 2007 के शुरू में गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी। कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि अब निर्यात पर पाबंदी नहीं है। गेहूं का निर्यात खोल दिया गया है। पवार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के स्थापना दिवस समारोह के बाद संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि सरकार ने अभी यह घोषणा नहीं की है कि कितने गेहूं का निर्यात किया जाएगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमतें नीचे चल रही हैं।
उल्लेखनीय है कि खाद्यान्न पर वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाला मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह ने गेहूं निर्यात खोलने पर सैद्धांतिक सहमति दे दी है। यह निर्णय भंडार की बेहतर स्थिति को देखते हुए किया गया है।
पवार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार के हालात को देखते हुए फिलहाल भारत से गेहूं के निर्यात की संभावना पर आशंका जाहिर की। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि कहीं से कोई हरकत होगी। सवाल है कि क्या हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में जो नीचा भाव चल रहा है उसपर माल बेच सकेंगे।
कृषि मंत्री ने कहा कि भंडारण की समस्या बढ़ रही है। उन्होंने कहा इस समय हमारे पास गोदाम में जरूरत से अधिक भंडार है। ऐसे में मेरी वास्तविक चिंता है कि जब आंध्र प्रदेश और पंजाब में धान की खरीद शुरू होगी तो उसे रखने का क्या इंतजाम होगा।
यद्यपि सरकार ने जुलाई-जून (2010-11) के उत्पादन के अंतिम आंकड़े जारी नहीं किए है, परंतु सूमों का कहना है कि वर्ष के दौरान गेहूं का उत्पादन 8.6 करोड़ टन हुआ है जो कि एक रिकार्ड है। इससे पिछले वर्ष गेहूं उत्पादन 8.08 करोड़ टन था। (Hindustan hindi)
12 जुलाई 2011
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक को ईजीओएम ने दी मंजूरी
गरीबों को सस्ता अनाज देने के लिए प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक को उच्च अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) ने अपनी मंजूरी दे दी है। इसके तहत गांव में रहने वाली 75 फीसदी आबादी में से 46 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी में रखा जायेगा। इसके अलावा शहरों में रहने वाली 50 फीसदी आबादी की 28 फीसदी आबादी को गरीबी रेखा से ऊपर यानि एपीएल की श्रेणी में रखा गया है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्ष में सोमवार को उच्च अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक के बाद एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि बीपीएल परिवारों को व्यक्तियों के आधार पर हर महीने सात किलो अनाज देने का फैसला किया गया है। इसमें तीन रुपये किलो की दर से चावल, दो रुपये किलो गेहूं और एक रुपये किलो बाजरा दिया जायेगा। इसके अलावा एपीएल परिवारों के सदस्य को हर महीने 3-4 किलो अनाज दिया जायेगा। एपीएल परिवार के सदस्यों को दिए जाने वाले अनाज की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से आधी होगी। इनके आवंटन में राज्य सरकारों का भूमिका महत्वपूर्ण होगी। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक कानून मंत्रालय के बाद राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में रखा जायेगा। उसके बाद ही इसे कैबिनेट के पास जायेगा। उन्होंने बताया कि इसके लिए सालाना करीब 610 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। इससे खाद्य सब्सिडी बढ़कर करीब 95,000 करोड़ रुपये होने की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
फलों की दिनोंदिन बढ़ती कीमतों
आर. एस. राणा
फलों की दिनोंदिन बढ़ती कीमतों ने जहां सामान्य परिवारों को परेशान कर रखा है, वहीं उच्च वर्गीय परिवारों को भी फल खरीदने से पहले दो बार सोचना पड़ता है। सीजन का समय होने के बावजूद आम, केला, जामुन काफी महंगा है। पिछले तीन-चार सालों में फलों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। मानसूनी बारिश पूरे देश में शुरू हो चुकी है तथा चालू मानसून सीजन में घर के गार्डन या आंगन में फलदार पौधे लगाकर महंगे फलों से काफी हद तक राहत मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के फल एवं बागवानी प्रौद्योगिकी प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. ए. के. सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आम, अमरूद, नींबू, किन्नू और जामुन के पौधे लगाने का एकदम उपयुक्त समय है। इन्हें घर के गार्डन या आंगन में लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि आम की आम्रपाली प्रजाति का पौधा बौना (छोटा आकार) किस्म का होता है। इसलिए इसे घर के आंगन या गार्डन में आसानी से लगाया जा सकता है। आम्रपाली आम का पेड़ हर साल फल देता है। इसके अलावा हर साल फसल देने वाली आम की अन्य प्रजातियों में पूसा प्रतिभा, पूसा पीतांबर, पूसा लालीमा और पूसा श्रेष्ठ है। उत्पादक आम का बाग लगाकर इनसे अच्छी सालाना आय भी प्राप्त हो सकती है। ये किस्में निर्यात के लिए एकदम उपयुक्त है। इन प्रजातियों के पौधों की लंबाई कम होती है लेकिन फल का आकार बड़ा होता है। अन्य फलों में अमरूद की प्रजातियों में सफेदा, ललीत और सुरखा ज्यादा फल देने वाली किस्में हैं। नींबू में कागजी कला साल में दो बार फल देती है। इसके अलावा नींबू की बारामासी और पंत लेमन प्रजातियां है। जिन्हें 10 जुलाई के बाद बोने का उपयुक्त समय है। किन्नू की एक खास प्रजाति किन्नो है जिसके फल का आकार बड़ा होता है। किन्नू का पौधा तीन साल में फल देना आरंभ कर देता है तथा उत्तर भारत के कुछेक चुनिंदा क्षेत्रों (राजस्थान के कई जिलों) में इसे लगाया जा सकता है। इसका फल नवंबर में तैयार होता है जबकि उस समय कोई और फल नहीं आता है। सिंह ने बताया कि जामुन में कोंकण बाहडोली प्रजाति के फल का आकार बड़ा होता है तथा इसमें गूदा ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ ने जामुन की दो प्रजातियां विकसित की है जिनमें गूदे की मात्रा 75 फीसदी होती है। उन्होंने बताया कि 10 जुलाई के बाद आईसीएआर के फल एवं बागवानी प्रौद्योगिकी प्रभाग से आम, अमरूद, नींबू, किन्नू और जामुन के पौधे लिए जा सकते हैं। पौधों को लगाने के लिए घर के गार्डन, आंगन या फिर बगीचे में एक बड़ा सा गड्ढा खोदें। गड्ढे को आधा गोबर की सड़ी हुई खाद से भरें तथा पौधा लगाते समय उसमें दो से चार बूंद दीमक मारने की दवा डाल दें। आवश्यकता हो तभी पानी दें तथा रसायनिक उर्वरकों का उपयोग कम से कम मात्रा में करें। पौधा जैसे-जैसे बड़ा हो, उसमें गोबर की खाद का बराबर उपयोग करते रहें। बारिश के दिनों में पौधे पर राख का छिड़काव करते रहें। इससे पौधे में कीड़ा नहीं लगेगा। इसके अलावा पौधों की शाखाएं आपस में उलझे तो समय-समय पर कटाई करते रहें। (Business Bhaskar )
फलों की दिनोंदिन बढ़ती कीमतों ने जहां सामान्य परिवारों को परेशान कर रखा है, वहीं उच्च वर्गीय परिवारों को भी फल खरीदने से पहले दो बार सोचना पड़ता है। सीजन का समय होने के बावजूद आम, केला, जामुन काफी महंगा है। पिछले तीन-चार सालों में फलों की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। मानसूनी बारिश पूरे देश में शुरू हो चुकी है तथा चालू मानसून सीजन में घर के गार्डन या आंगन में फलदार पौधे लगाकर महंगे फलों से काफी हद तक राहत मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के फल एवं बागवानी प्रौद्योगिकी प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. ए. के. सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आम, अमरूद, नींबू, किन्नू और जामुन के पौधे लगाने का एकदम उपयुक्त समय है। इन्हें घर के गार्डन या आंगन में लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि आम की आम्रपाली प्रजाति का पौधा बौना (छोटा आकार) किस्म का होता है। इसलिए इसे घर के आंगन या गार्डन में आसानी से लगाया जा सकता है। आम्रपाली आम का पेड़ हर साल फल देता है। इसके अलावा हर साल फसल देने वाली आम की अन्य प्रजातियों में पूसा प्रतिभा, पूसा पीतांबर, पूसा लालीमा और पूसा श्रेष्ठ है। उत्पादक आम का बाग लगाकर इनसे अच्छी सालाना आय भी प्राप्त हो सकती है। ये किस्में निर्यात के लिए एकदम उपयुक्त है। इन प्रजातियों के पौधों की लंबाई कम होती है लेकिन फल का आकार बड़ा होता है। अन्य फलों में अमरूद की प्रजातियों में सफेदा, ललीत और सुरखा ज्यादा फल देने वाली किस्में हैं। नींबू में कागजी कला साल में दो बार फल देती है। इसके अलावा नींबू की बारामासी और पंत लेमन प्रजातियां है। जिन्हें 10 जुलाई के बाद बोने का उपयुक्त समय है। किन्नू की एक खास प्रजाति किन्नो है जिसके फल का आकार बड़ा होता है। किन्नू का पौधा तीन साल में फल देना आरंभ कर देता है तथा उत्तर भारत के कुछेक चुनिंदा क्षेत्रों (राजस्थान के कई जिलों) में इसे लगाया जा सकता है। इसका फल नवंबर में तैयार होता है जबकि उस समय कोई और फल नहीं आता है। सिंह ने बताया कि जामुन में कोंकण बाहडोली प्रजाति के फल का आकार बड़ा होता है तथा इसमें गूदा ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ ने जामुन की दो प्रजातियां विकसित की है जिनमें गूदे की मात्रा 75 फीसदी होती है। उन्होंने बताया कि 10 जुलाई के बाद आईसीएआर के फल एवं बागवानी प्रौद्योगिकी प्रभाग से आम, अमरूद, नींबू, किन्नू और जामुन के पौधे लिए जा सकते हैं। पौधों को लगाने के लिए घर के गार्डन, आंगन या फिर बगीचे में एक बड़ा सा गड्ढा खोदें। गड्ढे को आधा गोबर की सड़ी हुई खाद से भरें तथा पौधा लगाते समय उसमें दो से चार बूंद दीमक मारने की दवा डाल दें। आवश्यकता हो तभी पानी दें तथा रसायनिक उर्वरकों का उपयोग कम से कम मात्रा में करें। पौधा जैसे-जैसे बड़ा हो, उसमें गोबर की खाद का बराबर उपयोग करते रहें। बारिश के दिनों में पौधे पर राख का छिड़काव करते रहें। इससे पौधे में कीड़ा नहीं लगेगा। इसके अलावा पौधों की शाखाएं आपस में उलझे तो समय-समय पर कटाई करते रहें। (Business Bhaskar )
सब्जी ज्यादा उगने की अजीब
आर. एस. राणा
किचन गार्डन बनाने पर एक ही तरह की सब्जी ज्यादा उगने की अजीब की समस्या भी आती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे किचन में रोजाना अलग-अलग सब्जियों की जरूरत होती है, उसी तरह किचन गार्डन में अलग-अलग सब्जियां उगानी चाहिए। इस तरह आपको रोजाना बदल-बदलकर सब्जियां उपलब्ध हो सकेंगी। इसके लिए यह चुनाव करना जरूरी है कि हर सब्जी के कितने बीज बोए जाएं। बढिय़ा किचन गार्डन वही है, जिसमें हर तरह की सब्जियां थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रोजाना मिलती रहे। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के डिवीजन ऑफ वेजीटेबल सांइस के अध्यक्ष डॉ. प्रतीम कालिया ने बिजनेस भास्कर को बताया कि लौकी, बैंगन, तोरी, लोबिया, भिंडी और मध्यम अगेती गोभी लगाने के लिए यह उपयुक्त समय है। मानसूनी बारिश शुरू हो चुकी है इसलिए घर में किचन गार्डन या आंगन में एक या फिर दो बेल लौकी की, दो बेल तोरई की, चार-पांच पौधे बैंगन के तथा पांच-सात पौधे भिंडी के लगाए जा सकते हैं। अगर घर में जगह नहीं तो बेल वाली सब्जियों को गमले में भी लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि सीजनल सब्जियों को लगाने के लिए ग्राहक प्रमाणित बीजों का ही चुनाव करें। प्रमाणित बीजों की खरीद सरकारी संस्थानों से करें। बोने से पहले बीज को फंफूदीनाशक दवा से उपचारित कर लें। इसके अलावा बुवाई से पहले खरफतवारनाशी दवाई का छिड़काव करें। साथ ही रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल सीमित मात्रा में ही करें तथा फसल को जरूरत हो, तभी पानी दें। उन्होंने बताया कि लौकी में पूसा हाईब्रिड, पूसा समृद्धि, पूसा संदेश का चुनाव कर सकते हैं। बुवाई के 50 से 55 दिन बाद इसमें फल लगना प्रारंभ हो जाता है। इसके अलावा तोरई की फसल के लिए डीएसजी-2, पूसा सुप्रिया या फिर पूसा स्नेहा प्रजातियों का चुनाव किया जा सकता है। इसमें भी बुवाई के 50 से 55 दिन बाद पहली तुड़ाई आरंभ हो जाती है। लोबिया के लिए किसान पूसा सुकोमल प्रजाति का चुनाव कर सकते हैं। इसमें किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है तथा फल भी ज्यादा आता है। बुवाई के 40 से 45 दिन बाद इसमें फल लगना शुरू हो जाता है। डॉ. कालिया ने बताया कि बैंगन की हाईब्रिड किस्मों में हाईब्रिड-5, हाईब्रिड-6 और हाईब्रिड-9 प्रजातियों का उत्पादन अच्छा रहता है। इसके अलावा बगैर हाईब्रिड में अंकुर, पूसा शामला, पूसा उत्तम और पूसा बिंदू प्रजातियां हैं। बैंगन की हाईब्रिड किस्मों में 50 से 55 दिन बाद पहली तुड़ाई शुरू जाती है जबकि सामान्य प्रजातियों में 60 से 65 दिन बाद फल आना आरंभ हो जाता है। बीज की खरीद किसान राज्यों में स्थिति बीज निगम, आईएआरआई के बीज डिवीजन या फिर क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान, करनाल से भी कर सकते हैं। भिंडी की फसल लगाने के लिए किसान पूसा ए-4 प्रजाती का चुनाव कर सकते हैं। इसकी प्रति हैक्टेयर उत्पादकता ज्यादा है। इसके अलावा किसान मध्यम अगैती गोभी लगाने के लिए पूसा शरद या फिर पूसा हाइब्रिड-2 प्रजातियों को लगा सकते हैं। इसकी फसल 15 नवंबर से 15 दिसंबर तक तैयार हो जाती है। (Buisness Bhaskar)
किचन गार्डन बनाने पर एक ही तरह की सब्जी ज्यादा उगने की अजीब की समस्या भी आती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसे किचन में रोजाना अलग-अलग सब्जियों की जरूरत होती है, उसी तरह किचन गार्डन में अलग-अलग सब्जियां उगानी चाहिए। इस तरह आपको रोजाना बदल-बदलकर सब्जियां उपलब्ध हो सकेंगी। इसके लिए यह चुनाव करना जरूरी है कि हर सब्जी के कितने बीज बोए जाएं। बढिय़ा किचन गार्डन वही है, जिसमें हर तरह की सब्जियां थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रोजाना मिलती रहे। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के डिवीजन ऑफ वेजीटेबल सांइस के अध्यक्ष डॉ. प्रतीम कालिया ने बिजनेस भास्कर को बताया कि लौकी, बैंगन, तोरी, लोबिया, भिंडी और मध्यम अगेती गोभी लगाने के लिए यह उपयुक्त समय है। मानसूनी बारिश शुरू हो चुकी है इसलिए घर में किचन गार्डन या आंगन में एक या फिर दो बेल लौकी की, दो बेल तोरई की, चार-पांच पौधे बैंगन के तथा पांच-सात पौधे भिंडी के लगाए जा सकते हैं। अगर घर में जगह नहीं तो बेल वाली सब्जियों को गमले में भी लगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि सीजनल सब्जियों को लगाने के लिए ग्राहक प्रमाणित बीजों का ही चुनाव करें। प्रमाणित बीजों की खरीद सरकारी संस्थानों से करें। बोने से पहले बीज को फंफूदीनाशक दवा से उपचारित कर लें। इसके अलावा बुवाई से पहले खरफतवारनाशी दवाई का छिड़काव करें। साथ ही रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल सीमित मात्रा में ही करें तथा फसल को जरूरत हो, तभी पानी दें। उन्होंने बताया कि लौकी में पूसा हाईब्रिड, पूसा समृद्धि, पूसा संदेश का चुनाव कर सकते हैं। बुवाई के 50 से 55 दिन बाद इसमें फल लगना प्रारंभ हो जाता है। इसके अलावा तोरई की फसल के लिए डीएसजी-2, पूसा सुप्रिया या फिर पूसा स्नेहा प्रजातियों का चुनाव किया जा सकता है। इसमें भी बुवाई के 50 से 55 दिन बाद पहली तुड़ाई आरंभ हो जाती है। लोबिया के लिए किसान पूसा सुकोमल प्रजाति का चुनाव कर सकते हैं। इसमें किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है तथा फल भी ज्यादा आता है। बुवाई के 40 से 45 दिन बाद इसमें फल लगना शुरू हो जाता है। डॉ. कालिया ने बताया कि बैंगन की हाईब्रिड किस्मों में हाईब्रिड-5, हाईब्रिड-6 और हाईब्रिड-9 प्रजातियों का उत्पादन अच्छा रहता है। इसके अलावा बगैर हाईब्रिड में अंकुर, पूसा शामला, पूसा उत्तम और पूसा बिंदू प्रजातियां हैं। बैंगन की हाईब्रिड किस्मों में 50 से 55 दिन बाद पहली तुड़ाई शुरू जाती है जबकि सामान्य प्रजातियों में 60 से 65 दिन बाद फल आना आरंभ हो जाता है। बीज की खरीद किसान राज्यों में स्थिति बीज निगम, आईएआरआई के बीज डिवीजन या फिर क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान, करनाल से भी कर सकते हैं। भिंडी की फसल लगाने के लिए किसान पूसा ए-4 प्रजाती का चुनाव कर सकते हैं। इसकी प्रति हैक्टेयर उत्पादकता ज्यादा है। इसके अलावा किसान मध्यम अगैती गोभी लगाने के लिए पूसा शरद या फिर पूसा हाइब्रिड-2 प्रजातियों को लगा सकते हैं। इसकी फसल 15 नवंबर से 15 दिसंबर तक तैयार हो जाती है। (Buisness Bhaskar)
गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक हटी
केंद्र सरकार ने दस लाख टन गैर बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दे दी है। इसके अलावा पांच लाख टन गेहूं और पांच लाख टन चावल का निर्यात कूटनीतिक आधार पर किया जाएगा। इसके साथ ही 6.5 लाख टन गेहूं उत्पादों (आटा, मैदा और सूजी) के निर्यात को भी सरकार ने अनुमति दे दी है। पिछले तीन साल से गैर बासमती चावल के निर्यात पर सरकार ने रोक लगाई हुई थी।
खाद्य मामलों पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले उच्चाधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) की सोमवार को बैठक हुई। बैठक के बाद एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि दस लाख टन गैर बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दे दी गई है। गेहूं के निर्यात पर बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। हालांकि, डिप्लोमैटिक आधार पर पांच लाख टन गेहूं और पांच लाख टन चावल के निर्यात की इजाजत दी गई है। इसके अलावा 6.50 लाख टन गेहूं उत्पादों आटा, मैदा और सूजी का निर्यात किया जाएगा। उन्होंने बताया कि गेहूं और चीनी के निर्यात पर फैसला अगली बैठक में लिया जा सकता है। मालूम हो कि घरेलू बाजार में खाद्यान्न के दाम बढ़ जाने के कारण सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर अप्रैल 2008 में रोक लगाई थी। वहीं, गेहूं के निर्यात पर वर्ष 2007 से ही रोक लगी हुई है।
फिलहाल केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक 641 लाख टन से ज्यादा है, जबकि भंडारण क्षमता 620 लाख टन के करीब है। उधर, कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2011-12 में देश में 24.5 करोड़ टन खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में गत 1 जुलाई को 641.62 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक बचा हुआ था। इसमें 371.49 लाख टन गेहूं और 268.57 लाख टन चावल भी शामिल है। (Business Bhaskar....R S Rana)
खाद्य मामलों पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले उच्चाधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) की सोमवार को बैठक हुई। बैठक के बाद एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि दस लाख टन गैर बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दे दी गई है। गेहूं के निर्यात पर बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। हालांकि, डिप्लोमैटिक आधार पर पांच लाख टन गेहूं और पांच लाख टन चावल के निर्यात की इजाजत दी गई है। इसके अलावा 6.50 लाख टन गेहूं उत्पादों आटा, मैदा और सूजी का निर्यात किया जाएगा। उन्होंने बताया कि गेहूं और चीनी के निर्यात पर फैसला अगली बैठक में लिया जा सकता है। मालूम हो कि घरेलू बाजार में खाद्यान्न के दाम बढ़ जाने के कारण सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर अप्रैल 2008 में रोक लगाई थी। वहीं, गेहूं के निर्यात पर वर्ष 2007 से ही रोक लगी हुई है।
फिलहाल केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक 641 लाख टन से ज्यादा है, जबकि भंडारण क्षमता 620 लाख टन के करीब है। उधर, कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2011-12 में देश में 24.5 करोड़ टन खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में गत 1 जुलाई को 641.62 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक बचा हुआ था। इसमें 371.49 लाख टन गेहूं और 268.57 लाख टन चावल भी शामिल है। (Business Bhaskar....R S Rana)
दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए 408.52 करोड़ रुपये की योजना
चालू वित्त वर्ष 2011-12 में देश में दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत 408.52 करोड़ रुपये जारी करने की योजना बनाई है। इसके तहत देश के 16 राज्यों में दालों का उत्पान बढ़ाने पर जोर दिया जायेगा। एनएफएसएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत चालू वित्त वर्ष 2011-12 में देश के 16 राज्यों में दलहन उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई गई है।
चुने हुए 16 राज्यों में मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं। एनएफएसम के तहत इन राज्यों के चुने हुए जिलों में प्रमाणित बीजों को उपलब्ध कराना, खाद उपलब्ध करना, सिंचाई सुविधा तथा कीटनाशक दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही किसानों को प्रशिक्षण देना भी शामिल है।
उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा राशि का आवंटन प्रमुख दलहन उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 66.63 करोड़ रुपये का होगा। इसके अलावा मध्य प्रदेश में 65.26 करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे। राजस्थान के लिए 60.42 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल के लिए 60.7 करोड़ रुपये तथा उत्तर प्रदेश के लिए 56.74 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया जाएगा।
अन्य राज्यों में कर्नाटक के लिए 32.43 करोड़ रुपये, आंध्र प्रदेश 36.09 करोड़ रुपये, गुजरात 14.10 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़13.79 करोड़ रुपये, बिहार 8.58 करोड़, असम 5.47 करोड़, उड़ीसा 13.48 करोड़, पंजाब 5.21 करोड़, हरियाणा 5.42 करोड़ रुपये तथा तमिलनाडु 9.30 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा।
देश में दलहन की सालाना खपत करीब 180 से 185 लाख टन की होती है जबकि कृषि मंत्रालय द्वारा जारी तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में दालों का उत्पादन 172.9 लाख टन होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)
चुने हुए 16 राज्यों में मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, उड़ीसा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं। एनएफएसम के तहत इन राज्यों के चुने हुए जिलों में प्रमाणित बीजों को उपलब्ध कराना, खाद उपलब्ध करना, सिंचाई सुविधा तथा कीटनाशक दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही किसानों को प्रशिक्षण देना भी शामिल है।
उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा राशि का आवंटन प्रमुख दलहन उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में 66.63 करोड़ रुपये का होगा। इसके अलावा मध्य प्रदेश में 65.26 करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे। राजस्थान के लिए 60.42 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल के लिए 60.7 करोड़ रुपये तथा उत्तर प्रदेश के लिए 56.74 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया जाएगा।
अन्य राज्यों में कर्नाटक के लिए 32.43 करोड़ रुपये, आंध्र प्रदेश 36.09 करोड़ रुपये, गुजरात 14.10 करोड़ रुपये, छत्तीसगढ़13.79 करोड़ रुपये, बिहार 8.58 करोड़, असम 5.47 करोड़, उड़ीसा 13.48 करोड़, पंजाब 5.21 करोड़, हरियाणा 5.42 करोड़ रुपये तथा तमिलनाडु 9.30 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाएगा।
देश में दलहन की सालाना खपत करीब 180 से 185 लाख टन की होती है जबकि कृषि मंत्रालय द्वारा जारी तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में दालों का उत्पादन 172.9 लाख टन होने का अनुमान है। (Business Bhaskar....R S Rana)
घटेगा सोयाबीन का रकबा
मुंबई July 11, 2011
मौजूदा मॉनसून में देश के अलग-अलग इलाकों में हुई असमान बारिश के कारण इस साल सोयाबीन के रकबे और अनुमानित उत्पादन को लेकर देसी खाद्य तेल उद्योग की राय बंट गई हैं। इस मामले में प्रमुख औद्योगिक संस्था केंद्रीय तेल उद्योग एवं व्यापार संगठन (सीओओआईटी) और सोयाबीन प्रसंस्करण संघ (सोपा) अलग-अलग दावे कर रहे हैं। सीओओआईटी के अध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल का कहना है कि महाराष्टï्र सहित प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्यों में शुरुआती वर्षा की कमी के कारण सोयाबीन का कुल रकबा 5 से 7 फीसदी कम रह सकता है। सोयाबीन की बुआई मॉनसून के आगाज के साथ ही शुरू हो जाती है और जुलाई के दूसरे हफ्ते तक चलती है। जिन इलाकों में कुछ प्राकृतिक कारणों से फसल को नुकसान हुआ है वहां दोबारा बुआई शुरू हो गई है और इसे जुलाई के तीसरे हफ्ते तक निपटाया जाएगा ताकि सामान्य स्तर पर उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सके। अग्रवाल कहते हैं, 'अगर बारिश में काफी बढ़ोतरी होती है तब भी खासतौर से महाराष्टï्र में हुए नुकसान की भरपाई मुश्किल लग रही है।देश के कुल सोयाबीन उत्पादन का एक तिहाई उत्पादित करने वाले महाराष्टï्र में 9 जुलाई तक सोयाबीन का रकबा 9.779 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंचा है जबकि लक्ष्य 25.30 लाख हेक्टेयर का तय किया गया है। हालांकि राज्य में अभी तक 152.18 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है लेकिन सोयाबीन उत्पादन का गढ़ पश्चिमी महाराष्टï्र अभी भी वर्षा के लिए तरस रहा है, नतीजतन राज्य में कुल रकबा निचले स्तर पर है। इसके उलट सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल का कहना है कि कुछ इलाकों में रकबे में आई कमी को बुआई सीजन के आखिर में आने वाली तेजी से आसानी से पूरा किया जा सकता है। अग्रवाल ने कहा, 'पिछले साल सोयाबीन का कुल रकबा 93 लाख हेक्टेयर रहा था। इस साल अगर इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं होती है तब भी पिछले साल के आंकड़े को तो हासिल किया ही जा सकता है। इस साल मॉनसून ने शुरुआत तो बेहतरीन की थी और जून में सामान्य से 11 फीसदी अधिक बारिश भी हुई। लेकिन बुआई के लिहाज से बेहद निर्णायक जुलाई के पहले हफ्ते में मॉनसून गच्चा दे गया और 6 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में सामान्य से 25 फीसदी कम वर्षा हुई। कृषि मंत्रालय ने 8 जुलाई तक सोयाबीन के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है। सॉल्वेंट एक्सटै्रक्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता सोयाबीन के रकबे में कमी को देसी खाद्य तेल उद्योग के लिए बड़ी चिंता मानते हैं। (BS Hindi)
मौजूदा मॉनसून में देश के अलग-अलग इलाकों में हुई असमान बारिश के कारण इस साल सोयाबीन के रकबे और अनुमानित उत्पादन को लेकर देसी खाद्य तेल उद्योग की राय बंट गई हैं। इस मामले में प्रमुख औद्योगिक संस्था केंद्रीय तेल उद्योग एवं व्यापार संगठन (सीओओआईटी) और सोयाबीन प्रसंस्करण संघ (सोपा) अलग-अलग दावे कर रहे हैं। सीओओआईटी के अध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल का कहना है कि महाराष्टï्र सहित प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्यों में शुरुआती वर्षा की कमी के कारण सोयाबीन का कुल रकबा 5 से 7 फीसदी कम रह सकता है। सोयाबीन की बुआई मॉनसून के आगाज के साथ ही शुरू हो जाती है और जुलाई के दूसरे हफ्ते तक चलती है। जिन इलाकों में कुछ प्राकृतिक कारणों से फसल को नुकसान हुआ है वहां दोबारा बुआई शुरू हो गई है और इसे जुलाई के तीसरे हफ्ते तक निपटाया जाएगा ताकि सामान्य स्तर पर उत्पादन का लक्ष्य हासिल किया जा सके। अग्रवाल कहते हैं, 'अगर बारिश में काफी बढ़ोतरी होती है तब भी खासतौर से महाराष्टï्र में हुए नुकसान की भरपाई मुश्किल लग रही है।देश के कुल सोयाबीन उत्पादन का एक तिहाई उत्पादित करने वाले महाराष्टï्र में 9 जुलाई तक सोयाबीन का रकबा 9.779 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंचा है जबकि लक्ष्य 25.30 लाख हेक्टेयर का तय किया गया है। हालांकि राज्य में अभी तक 152.18 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है लेकिन सोयाबीन उत्पादन का गढ़ पश्चिमी महाराष्टï्र अभी भी वर्षा के लिए तरस रहा है, नतीजतन राज्य में कुल रकबा निचले स्तर पर है। इसके उलट सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल का कहना है कि कुछ इलाकों में रकबे में आई कमी को बुआई सीजन के आखिर में आने वाली तेजी से आसानी से पूरा किया जा सकता है। अग्रवाल ने कहा, 'पिछले साल सोयाबीन का कुल रकबा 93 लाख हेक्टेयर रहा था। इस साल अगर इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं होती है तब भी पिछले साल के आंकड़े को तो हासिल किया ही जा सकता है। इस साल मॉनसून ने शुरुआत तो बेहतरीन की थी और जून में सामान्य से 11 फीसदी अधिक बारिश भी हुई। लेकिन बुआई के लिहाज से बेहद निर्णायक जुलाई के पहले हफ्ते में मॉनसून गच्चा दे गया और 6 जुलाई को समाप्त हुए सप्ताह में सामान्य से 25 फीसदी कम वर्षा हुई। कृषि मंत्रालय ने 8 जुलाई तक सोयाबीन के रकबे में पिछले साल के मुकाबले 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है। सॉल्वेंट एक्सटै्रक्टर्स एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता सोयाबीन के रकबे में कमी को देसी खाद्य तेल उद्योग के लिए बड़ी चिंता मानते हैं। (BS Hindi)
मंत्रिसमूह ने मंजूर किया खाद्य विधेयक का मसौदा
नई दिल्ली July 11, 2011
अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने सोमवार को लंबे समय से प्रतीक्षित खाद्य सुरक्षा विधेयक को औपचारिक रूप से हरी झंडी दिखा दी। इस विधेयक के जरिए ग्रामीण इलाकों के 75 फीसदी परिवारों और शहरी इलाकों के 50 फीसदी परिवारों को अनाज प्राप्त करने का कानूनी अधिकार मिल जाएगा।इस विधेयक को मनरेगा के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम बताया जाता रहा है। राज्यों से विचार हासिल किए जाने के बाद इस विधेयक को कैबिनेट के सामने रखा जाएगा और फिर इसे मॉनसून सत्र में पेश किया जा सकता है।बैठक में शामिल होने वाले खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय द्वारा तैयार खाद्य विधेयक के मसौदे पर सभी सदस्यों की सहमति थी और ईजीओएम ने इसे हरी झंडी दिखा दी। इसके अलावा ईजीओएम ने 10 लाख टन गैर-बासमती चावल निर्यात को मंजूरी दे दी है और गेहूं निर्यात पर भी सैद्धांतिक रूप से सहमति जता दी है।एक अधिकारी ने कहा - काफी ज्यादा स्टॉक होने के चलते चावल निर्यात की अनुमति दी गई है, वहीं गेहूं की मात्रा और समयसीमा के बारे में बाद में फैसला लिया जाएगा। भारत ने साल 2007 और 2008 में स्थानीय बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी के बाद क्रमश: गेहूं और चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी।मंत्रियों के समूह ने 6.50 लाख टन गेहूं के उत्पाद के निर्यात की अनुमति देने का फैसला किया है। साथ ही बांग्लादेश को 3 लाख टन चावल और दूसरे देशों को 5 लाख टन चावल निर्यात का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि खाद्य विधेयक के तहत प्राथमिकता वाले परिवारों को (बीपीएल) प्रति व्यक्ति के हिसाब से हर महीने 7 किलोग्राम अनाज की आपूर्ति की जाएगी, वहीं सामान्य श्रेणी के लोगों को (एपीएल) को प्रति व्यक्ति प्रति माह 3-4 किलोग्राम अनाज दिया जाएगा। बीपीएल परिवारों को 3 रुपये की दर से चावल और 2 रुपये की दर से गेहूं मिलेगा जबकि मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाएगा। सामान्य श्रेणी वाले परिवारों को उस दर से अनाज मिलेगा, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित होगा। (BS Hindi)
अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह ने सोमवार को लंबे समय से प्रतीक्षित खाद्य सुरक्षा विधेयक को औपचारिक रूप से हरी झंडी दिखा दी। इस विधेयक के जरिए ग्रामीण इलाकों के 75 फीसदी परिवारों और शहरी इलाकों के 50 फीसदी परिवारों को अनाज प्राप्त करने का कानूनी अधिकार मिल जाएगा।इस विधेयक को मनरेगा के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार का यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम बताया जाता रहा है। राज्यों से विचार हासिल किए जाने के बाद इस विधेयक को कैबिनेट के सामने रखा जाएगा और फिर इसे मॉनसून सत्र में पेश किया जा सकता है।बैठक में शामिल होने वाले खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय द्वारा तैयार खाद्य विधेयक के मसौदे पर सभी सदस्यों की सहमति थी और ईजीओएम ने इसे हरी झंडी दिखा दी। इसके अलावा ईजीओएम ने 10 लाख टन गैर-बासमती चावल निर्यात को मंजूरी दे दी है और गेहूं निर्यात पर भी सैद्धांतिक रूप से सहमति जता दी है।एक अधिकारी ने कहा - काफी ज्यादा स्टॉक होने के चलते चावल निर्यात की अनुमति दी गई है, वहीं गेहूं की मात्रा और समयसीमा के बारे में बाद में फैसला लिया जाएगा। भारत ने साल 2007 और 2008 में स्थानीय बाजार में कीमतों में बढ़ोतरी के बाद क्रमश: गेहूं और चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी।मंत्रियों के समूह ने 6.50 लाख टन गेहूं के उत्पाद के निर्यात की अनुमति देने का फैसला किया है। साथ ही बांग्लादेश को 3 लाख टन चावल और दूसरे देशों को 5 लाख टन चावल निर्यात का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि खाद्य विधेयक के तहत प्राथमिकता वाले परिवारों को (बीपीएल) प्रति व्यक्ति के हिसाब से हर महीने 7 किलोग्राम अनाज की आपूर्ति की जाएगी, वहीं सामान्य श्रेणी के लोगों को (एपीएल) को प्रति व्यक्ति प्रति माह 3-4 किलोग्राम अनाज दिया जाएगा। बीपीएल परिवारों को 3 रुपये की दर से चावल और 2 रुपये की दर से गेहूं मिलेगा जबकि मोटा अनाज 1 रुपये प्रति किलो के हिसाब से दिया जाएगा। सामान्य श्रेणी वाले परिवारों को उस दर से अनाज मिलेगा, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित होगा। (BS Hindi)
07 जुलाई 2011
थाली की दाल अब नहीं होगी गीली
आर.एस. राणा & नई दिल्ली
मिलेगी राहत उत्पादक राज्यों में बारिश होने से बंधी यह उम्मीद महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश हैं इन राज्यों में शामिल
पिछले दो दिनों में दलहन के प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में तेजी रुकने की उम्मीद है। बारिश की कमी के कारण पिछले आठ-दस दिनों में दाल की थोक कीमतों में 250 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। हालांकि, कनाडा में मटर और मसूर तथा आस्ट्रेलिया में चने के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। ऐसे में भविष्य में दालों की कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है। ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर चंद्रशेखर एस नादर ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में पिछले दो दिनों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में जारी तेजी रुकने की संभावना है। उत्पादक क्षेत्रों में बारिश देर से होने के कारण मूंग और उड़द की बुवाई में कमी आएगी, लेकिन अरहर की बुवाई बढऩे की संभावना है। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनिल एस बंदेवार ने बताया कि महाराष्ट्र की मंडियों में उड़द दाल का भाव बढ़कर 4,000-4,300 रुपये, मूंग दाल का 4,000-4,400 रुपये, अरहर दाल का 3,000-3,500 रुपये और चने का भाव बढ़कर दिल्ली में 2,750-2,775 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। हालांकि, बारिश से इनकी कीमतों में 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की आंशिक गिरावट आने की उम्मीद है। रिका ग्लोबल इम्पैक्स लिमिटेड के डायरेक्टर कर्ण अग्रवाल ने बताया कि आयातित दालों के दाम भी तेज बने हुए है। म्यांमार की लेमन अरहर का भाव मुंबई बंदरगाह पर 640 डॉलर, उड़द एफएक्यू का 825 डॉलर, एसक्यू का 925 डॉलर, मूंग पेड़ीसेवा का 1150 डॉलर, कनाडा की मसूर का 520 डॉलर और कनाडाई मटर का भाव 465 डॉलर प्रति टन है। कनाडा में वर्ष 2011-12 में मटर का उत्पादन 26 फीसदी घटकर 21.25 लाख टन रह जाने और मसूर का उत्पादन पिछले साल के 14.10 लाख टन से घटकर 11.30 लाख टन पर आ जाने का अनुमान है। उधर आस्ट्रेलिया में चने की बुवाई पिछले साल के 5.46 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 2011-12 में 3.03 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, इसलिए आने वाले दिनों में इसकी कीमतों में तेजी आने की संभावना है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में अभी तक दालों की बुवाई 7.08 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 8.68 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। वर्ष 2010-11 के खरीफ सीजन में दलहन की बुवाई कुल 123.43 लाख हेक्टेयर में हुई थी। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में दालों का उत्पादन 70.3 लाख टन होने का अनुमान है। इसमें 31.5 लाख टन अरहर, 14 लाख टन उड़द, 12.1 लाख टन मूंग और 12.7 लाख टन अन्य दालें शामिल हैं। (Dainik Bhaskar R S Rana)
मिलेगी राहत उत्पादक राज्यों में बारिश होने से बंधी यह उम्मीद महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश हैं इन राज्यों में शामिल
पिछले दो दिनों में दलहन के प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में तेजी रुकने की उम्मीद है। बारिश की कमी के कारण पिछले आठ-दस दिनों में दाल की थोक कीमतों में 250 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। हालांकि, कनाडा में मटर और मसूर तथा आस्ट्रेलिया में चने के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। ऐसे में भविष्य में दालों की कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है। ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर चंद्रशेखर एस नादर ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में पिछले दो दिनों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में जारी तेजी रुकने की संभावना है। उत्पादक क्षेत्रों में बारिश देर से होने के कारण मूंग और उड़द की बुवाई में कमी आएगी, लेकिन अरहर की बुवाई बढऩे की संभावना है। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनिल एस बंदेवार ने बताया कि महाराष्ट्र की मंडियों में उड़द दाल का भाव बढ़कर 4,000-4,300 रुपये, मूंग दाल का 4,000-4,400 रुपये, अरहर दाल का 3,000-3,500 रुपये और चने का भाव बढ़कर दिल्ली में 2,750-2,775 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। हालांकि, बारिश से इनकी कीमतों में 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की आंशिक गिरावट आने की उम्मीद है। रिका ग्लोबल इम्पैक्स लिमिटेड के डायरेक्टर कर्ण अग्रवाल ने बताया कि आयातित दालों के दाम भी तेज बने हुए है। म्यांमार की लेमन अरहर का भाव मुंबई बंदरगाह पर 640 डॉलर, उड़द एफएक्यू का 825 डॉलर, एसक्यू का 925 डॉलर, मूंग पेड़ीसेवा का 1150 डॉलर, कनाडा की मसूर का 520 डॉलर और कनाडाई मटर का भाव 465 डॉलर प्रति टन है। कनाडा में वर्ष 2011-12 में मटर का उत्पादन 26 फीसदी घटकर 21.25 लाख टन रह जाने और मसूर का उत्पादन पिछले साल के 14.10 लाख टन से घटकर 11.30 लाख टन पर आ जाने का अनुमान है। उधर आस्ट्रेलिया में चने की बुवाई पिछले साल के 5.46 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 2011-12 में 3.03 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, इसलिए आने वाले दिनों में इसकी कीमतों में तेजी आने की संभावना है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में अभी तक दालों की बुवाई 7.08 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 8.68 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। वर्ष 2010-11 के खरीफ सीजन में दलहन की बुवाई कुल 123.43 लाख हेक्टेयर में हुई थी। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में दालों का उत्पादन 70.3 लाख टन होने का अनुमान है। इसमें 31.5 लाख टन अरहर, 14 लाख टन उड़द, 12.1 लाख टन मूंग और 12.7 लाख टन अन्य दालें शामिल हैं। (Dainik Bhaskar R S Rana)
खुशखबरी, दालें सस्ती हो जाएंगी
आर.एस. राणा नई दिल्ली
मिलेगी राहत उत्पादक राज्यों में बारिश होने से बंधी यह उम्मीद महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश हैं इन राज्यों में शामिलपिछले दो दिनों में दलहन के प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में तेजी रुकने की उम्मीद है। बारिश की कमी के कारण पिछले आठ- दस दिनों में दाल की थोक कीमतों में 250 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। हालांकि, कनाडा में मटर और मसूर तथा आस्ट्रेलिया में चने के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। ऐसे में भविष्य में दालों की कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है। ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर चंद्रशेखर एस नादर ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में पिछले दो दिनों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में जारी तेजी रुकने की संभावना है। उत्पादक क्षेत्रों में बारिश देर से होने के कारण मूंग और उड़द की बुवाई में कमी आएगी, लेकिन अरहर की बुवाई बढऩे की संभावना है। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनिल एस बंदेवार ने बताया कि महाराष्ट्र की मंडियों में उड़द दाल का भाव बढ़कर 4,000-4,300 रुपये, मूंग दाल का 4,000-4,400 रुपये, अरहर दाल का 3,000-3,500 रुपये और चने का भाव बढ़कर दिल्ली में 2,750-2,775 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। हालांकि, बारिश से इनकी कीमतों में 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की आंशिक गिरावट आने की उम्मीद है। रिका ग्लोबल इम्पैक्स लिमिटेड के डायरेक्टर कर्ण अग्रवाल ने बताया कि आयातित दालों के दाम भी तेज बने हुए है। म्यांमार की लेमन अरहर का भाव मुंबई बंदरगाह पर 640 डॉलर, उड़द एफएक्यू का 825 डॉलर, एसक्यू का 925 डॉलर, मूंग पेड़ीसेवा का 1150 डॉलर, कनाडा की मसूर का 520 डॉलर और कनाडाई मटर का भाव 465 डॉलर प्रति टन है। कनाडा में वर्ष 2011-12 में मटर का उत्पादन 26 फीसदी घटकर 21.25 लाख टन रह जाने और मसूर का उत्पादन पिछले साल के 14.10 लाख टन से घटकर 11.30 लाख टन पर आ जाने का अनुमान है। उधर आस्ट्रेलिया में चने की बुवाई पिछले साल के 5.46 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 2011-12 में 3.03 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, इसलिए आने वाले दिनों में इसकी कीमतों में तेजी आने की संभावना है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में अभी तक दालों की बुवाई 7.08 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 8.68 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। वर्ष 2010-11 के खरीफ सीजन में दलहन की बुवाई कुल 123.43 लाख हेक्टेयर में हुई थी। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार 2010-11 में दालों का उत्पादन 70.3 लाख टन होने का अनुमान है। इसमें 31.5 लाख टन अरहर, 14 लाख टन उड़द, 12.1 लाख टन मूंग और 12.7 लाख टन अन्य दालें शामिल हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)
मिलेगी राहत उत्पादक राज्यों में बारिश होने से बंधी यह उम्मीद महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश हैं इन राज्यों में शामिलपिछले दो दिनों में दलहन के प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में तेजी रुकने की उम्मीद है। बारिश की कमी के कारण पिछले आठ- दस दिनों में दाल की थोक कीमतों में 250 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। हालांकि, कनाडा में मटर और मसूर तथा आस्ट्रेलिया में चने के उत्पादन में कमी आने की आशंका है। ऐसे में भविष्य में दालों की कीमतों पर दबाव बढ़ सकता है। ग्लोबल दाल इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर चंद्रशेखर एस नादर ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के उत्पादक क्षेत्रों में पिछले दो दिनों में बारिश हुई है जिससे दालों की कीमतों में जारी तेजी रुकने की संभावना है। उत्पादक क्षेत्रों में बारिश देर से होने के कारण मूंग और उड़द की बुवाई में कमी आएगी, लेकिन अरहर की बुवाई बढऩे की संभावना है। बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनिल एस बंदेवार ने बताया कि महाराष्ट्र की मंडियों में उड़द दाल का भाव बढ़कर 4,000-4,300 रुपये, मूंग दाल का 4,000-4,400 रुपये, अरहर दाल का 3,000-3,500 रुपये और चने का भाव बढ़कर दिल्ली में 2,750-2,775 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। हालांकि, बारिश से इनकी कीमतों में 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल की आंशिक गिरावट आने की उम्मीद है। रिका ग्लोबल इम्पैक्स लिमिटेड के डायरेक्टर कर्ण अग्रवाल ने बताया कि आयातित दालों के दाम भी तेज बने हुए है। म्यांमार की लेमन अरहर का भाव मुंबई बंदरगाह पर 640 डॉलर, उड़द एफएक्यू का 825 डॉलर, एसक्यू का 925 डॉलर, मूंग पेड़ीसेवा का 1150 डॉलर, कनाडा की मसूर का 520 डॉलर और कनाडाई मटर का भाव 465 डॉलर प्रति टन है। कनाडा में वर्ष 2011-12 में मटर का उत्पादन 26 फीसदी घटकर 21.25 लाख टन रह जाने और मसूर का उत्पादन पिछले साल के 14.10 लाख टन से घटकर 11.30 लाख टन पर आ जाने का अनुमान है। उधर आस्ट्रेलिया में चने की बुवाई पिछले साल के 5.46 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 2011-12 में 3.03 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, इसलिए आने वाले दिनों में इसकी कीमतों में तेजी आने की संभावना है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में अभी तक दालों की बुवाई 7.08 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 8.68 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी। वर्ष 2010-11 के खरीफ सीजन में दलहन की बुवाई कुल 123.43 लाख हेक्टेयर में हुई थी। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार 2010-11 में दालों का उत्पादन 70.3 लाख टन होने का अनुमान है। इसमें 31.5 लाख टन अरहर, 14 लाख टन उड़द, 12.1 लाख टन मूंग और 12.7 लाख टन अन्य दालें शामिल हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)
चाय उत्पादन 5 फीसदी बढ़ा
मुंबई July 07, 2011
इस साल मई माह के दौरान देश में चाय का उत्पादन करीब 5 फीसदी तक बढ़ा है। आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान चाय का उत्पादन बढ़कर 7.68 करोड़ किलोग्राम रहा जबकि एक साल पहले इसी अवधि के दौरान चाय का उत्पादन 7.26 करोड़ किलोग्राम रहा था।
देश में चाय का उत्पादन मूल रूप से असम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में होता है। इस क्षेत्र में मई माह में कुल 5.17 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ जबकि मई 2010 में यह आंकड़ा 4.74 करोड़ किलोग्राम रहा था। जबकि चाय के शेष हिस्से का उत्पादन दक्षिण भारत में हुआ। हालांकि दक्षिण भारत के राज्यों में चाय का उत्पादन घटा। इन राज्यों में चाय का उत्पादन केवल 2.44 करोड़ किलोग्राम रहा जबकि पिछले साल इसी अवधि में चाय का उत्पादन 2.55 करोड़ किलोग्राम रहा था।
साल 2011 के कैलेंडर वर्ष में जनवरी से मई माह के दौरान देश में चाय का कुल 24.36 करोड़ किलोग्राम रहा। जबकि पिछले साल इसी अवधि में चाल का कुल उत्पादन 23.50 करोड़ किलोग्राम रहा था। इस बीच चाय का उत्पादन बढऩे से इसका निर्यात भी बढ़ा है। हालांकि इसमें बेहद मामूली वृद्घि दर्ज हुई है। मई 2011 के दौरान कुल 1.13 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात किया गया जबकि एक साल पलहे इसी अवधि में चाय का निर्यात 1.12 करोड़ किलोग्राम रहा था। (BS Hindi)
इस साल मई माह के दौरान देश में चाय का उत्पादन करीब 5 फीसदी तक बढ़ा है। आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान चाय का उत्पादन बढ़कर 7.68 करोड़ किलोग्राम रहा जबकि एक साल पहले इसी अवधि के दौरान चाय का उत्पादन 7.26 करोड़ किलोग्राम रहा था।
देश में चाय का उत्पादन मूल रूप से असम और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में होता है। इस क्षेत्र में मई माह में कुल 5.17 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ जबकि मई 2010 में यह आंकड़ा 4.74 करोड़ किलोग्राम रहा था। जबकि चाय के शेष हिस्से का उत्पादन दक्षिण भारत में हुआ। हालांकि दक्षिण भारत के राज्यों में चाय का उत्पादन घटा। इन राज्यों में चाय का उत्पादन केवल 2.44 करोड़ किलोग्राम रहा जबकि पिछले साल इसी अवधि में चाय का उत्पादन 2.55 करोड़ किलोग्राम रहा था।
साल 2011 के कैलेंडर वर्ष में जनवरी से मई माह के दौरान देश में चाय का कुल 24.36 करोड़ किलोग्राम रहा। जबकि पिछले साल इसी अवधि में चाल का कुल उत्पादन 23.50 करोड़ किलोग्राम रहा था। इस बीच चाय का उत्पादन बढऩे से इसका निर्यात भी बढ़ा है। हालांकि इसमें बेहद मामूली वृद्घि दर्ज हुई है। मई 2011 के दौरान कुल 1.13 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात किया गया जबकि एक साल पलहे इसी अवधि में चाय का निर्यात 1.12 करोड़ किलोग्राम रहा था। (BS Hindi)
06 जुलाई 2011
गोदाम होंगे खाली, गरीबों की भरेगी थाली!
नई दिल्ली July 03, 2011
केंद्र सरकार खाद्यान्न भंडारण के लिए ज्यादा जगह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्यों को केंद्रीय निर्गम मूल्य पर अतिरिक्त अनाज आवंटित करने पर विचार कर रही है। यह अनाज गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के उन परिवारों के लिए होगा, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत आते हैं। अधिकारियों ने बताया कि यदि यह प्रस्ताव लागू किया जाता है तो केंद्र सरकार को अतिरिक्त 4,161 करोड़ रुपये की रियायत (सब्सिडी) का बोझ उठाना पड़ेगा। इस योजना से एक ओर सरकार की तनावपूर्ण वित्तीय सेहत पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा और दूसरी ओर अनाज भंडारण के लिए अतिरिक्त जगह की व्यवस्था की जा सकेगी।सब्सिडी का अतिरिक्त बोझ इसलिए बढ़ेगा क्योंकि एपीएल परिवारों के लिए राज्यों को आवंटित अतिरिक्त अनाज में चावल का भाव फिलहाल 11.85 रुपये प्रति किलोग्राम है और गेहूं का भाव 8.45 रुपये प्रति किलोग्राम, जो केंद्रीय निर्गम मूल्य से अधिक है। इसलिए यदि अनाज आवंटन केंद्रीय निर्गम मूल्य पर होता है, तो चावल का भाव गिरकर 8.30 रुपये प्रति किलोग्राम और गेहूं का भाव 6.10 रुपये प्रति किलोग्राम रह जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि राज्यों की ओर से इस तरह की मांग की गई थी, लिहाजा इस बारे में एक प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। गौरतलब है कि मंत्रियों के एक अधिकार प्राप्त समूह ने हाल ही में पीडीएस के अंतर्गत आने वाले एपीएल परिवारों के लिए अतिरिक्त 50 लाख टन अनाज आवंटन को मंजूरी दे दी थी। समिति ने इस वर्ष जनवरी में केंद्रीय पूल से आवंटित अतिरिक्त अनाज की वैधता अवधि भी बढ़ाने पर विचार किया। इसकी वैधता अवधि मार्च, 2011 में खत्म हो गई, जिसे सितंबर 2011 तक बढ़ाया जा सकता है।केंद्रीय निर्गम मूल्य की तुलना में ऊंचे भाव की वजह से राज्यों ने केवल 17 फीसदी तदर्थ (ऐडहॉक) एपीएल अनाज ही उठाया है। यह न केवल अतिरिक्त अनाज आवंटन को नकारने जैसा है, बल्कि इस वजह से भंडारण की भी जबरदस्त समस्या हुई है।अधिकारियों ने बताया कि राज्य गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों (बीपीएल) के लिए आवंटित अतिरिक्त पूरा अनाज भी नहीं उठा रहे हैं। केंद्र सरकार ने मई 2010 में विशेष तदर्थ आवंटन के तहत राज्यों को 30 लाख टन से ज्यादा अनाज आवंटित किया था, जिसमें से केवल 40 फीसदी अनाज उठाया गया। इस वर्ष जनवरी में भी बीपीएल परिवारों के लिए 50 लाख टन अनाज का विशेष आवंटन किया गया था, जिसकी 6 महीनों की अवधि जून में समाप्त हो गई। लेकिन राज्यों ने केवल 54 फीसदी अनाज उठाए। एक प्रमुख अधिकारी ने बताया, 'राज्य केवल एपीएल परिवारों के लिए विशेष रूप से आवंटित अनाज ही नहीं, बल्कि बीपीएल परिवारों के लिए आवंटित अनाज भी नहीं उठा रहे हैं।अधिकारी ने बताया कि एपीएल की हाल ज्यादा खराब है। खाद्य मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वे केंद्रीय पूल के तहत उनके लिए विशेष रूप से आवंटित ज्यादा-से-ज्यादा अनाज उठाएं क्योंकि भंडारण की स्थिति बहुत खराब हो रही है।इस वर्ष पहली जून को जारी खाद्य मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक देश में लगभग 6.5 करोड़ टन अनाज का भंडार है, जबकि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य की एजेंसियों की कुल भंडारण क्षमता लगभग 6.3 करोड़ टन की है। जाहिर है, भंडारण क्षमता जरूरत से कम है। (BS Hindi)
केंद्र सरकार खाद्यान्न भंडारण के लिए ज्यादा जगह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से राज्यों को केंद्रीय निर्गम मूल्य पर अतिरिक्त अनाज आवंटित करने पर विचार कर रही है। यह अनाज गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल) के उन परिवारों के लिए होगा, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के अंतर्गत आते हैं। अधिकारियों ने बताया कि यदि यह प्रस्ताव लागू किया जाता है तो केंद्र सरकार को अतिरिक्त 4,161 करोड़ रुपये की रियायत (सब्सिडी) का बोझ उठाना पड़ेगा। इस योजना से एक ओर सरकार की तनावपूर्ण वित्तीय सेहत पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा और दूसरी ओर अनाज भंडारण के लिए अतिरिक्त जगह की व्यवस्था की जा सकेगी।सब्सिडी का अतिरिक्त बोझ इसलिए बढ़ेगा क्योंकि एपीएल परिवारों के लिए राज्यों को आवंटित अतिरिक्त अनाज में चावल का भाव फिलहाल 11.85 रुपये प्रति किलोग्राम है और गेहूं का भाव 8.45 रुपये प्रति किलोग्राम, जो केंद्रीय निर्गम मूल्य से अधिक है। इसलिए यदि अनाज आवंटन केंद्रीय निर्गम मूल्य पर होता है, तो चावल का भाव गिरकर 8.30 रुपये प्रति किलोग्राम और गेहूं का भाव 6.10 रुपये प्रति किलोग्राम रह जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि राज्यों की ओर से इस तरह की मांग की गई थी, लिहाजा इस बारे में एक प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। गौरतलब है कि मंत्रियों के एक अधिकार प्राप्त समूह ने हाल ही में पीडीएस के अंतर्गत आने वाले एपीएल परिवारों के लिए अतिरिक्त 50 लाख टन अनाज आवंटन को मंजूरी दे दी थी। समिति ने इस वर्ष जनवरी में केंद्रीय पूल से आवंटित अतिरिक्त अनाज की वैधता अवधि भी बढ़ाने पर विचार किया। इसकी वैधता अवधि मार्च, 2011 में खत्म हो गई, जिसे सितंबर 2011 तक बढ़ाया जा सकता है।केंद्रीय निर्गम मूल्य की तुलना में ऊंचे भाव की वजह से राज्यों ने केवल 17 फीसदी तदर्थ (ऐडहॉक) एपीएल अनाज ही उठाया है। यह न केवल अतिरिक्त अनाज आवंटन को नकारने जैसा है, बल्कि इस वजह से भंडारण की भी जबरदस्त समस्या हुई है।अधिकारियों ने बताया कि राज्य गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों (बीपीएल) के लिए आवंटित अतिरिक्त पूरा अनाज भी नहीं उठा रहे हैं। केंद्र सरकार ने मई 2010 में विशेष तदर्थ आवंटन के तहत राज्यों को 30 लाख टन से ज्यादा अनाज आवंटित किया था, जिसमें से केवल 40 फीसदी अनाज उठाया गया। इस वर्ष जनवरी में भी बीपीएल परिवारों के लिए 50 लाख टन अनाज का विशेष आवंटन किया गया था, जिसकी 6 महीनों की अवधि जून में समाप्त हो गई। लेकिन राज्यों ने केवल 54 फीसदी अनाज उठाए। एक प्रमुख अधिकारी ने बताया, 'राज्य केवल एपीएल परिवारों के लिए विशेष रूप से आवंटित अनाज ही नहीं, बल्कि बीपीएल परिवारों के लिए आवंटित अनाज भी नहीं उठा रहे हैं।अधिकारी ने बताया कि एपीएल की हाल ज्यादा खराब है। खाद्य मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वे केंद्रीय पूल के तहत उनके लिए विशेष रूप से आवंटित ज्यादा-से-ज्यादा अनाज उठाएं क्योंकि भंडारण की स्थिति बहुत खराब हो रही है।इस वर्ष पहली जून को जारी खाद्य मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक देश में लगभग 6.5 करोड़ टन अनाज का भंडार है, जबकि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य की एजेंसियों की कुल भंडारण क्षमता लगभग 6.3 करोड़ टन की है। जाहिर है, भंडारण क्षमता जरूरत से कम है। (BS Hindi)
कृषि जिंसों पर दबाव बने रहने की आशंका: खुल्लर
नई दिल्ली July 06, 2011
गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर अगले हफ्ते अधिकार प्राप्त मंत्रियों की समिति की होने वाली बैठक से पूर्व आज वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा कि कृषि जिंसों की ऊंचाी कीमत का दबाव बने रहने की आशंका है। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार को 'हड़बड़ीÓ में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।
अधिकार प्राप्त मत्रियों के समूह की बैठक 11 जुलाई को होने वाली है। खाद्य मंत्रालय ने 20 लाख टन गेहूं और 10 लाख टन गैर-बासमती चावल के निर्यात का प्रस्ताव रखा है। गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर क्रमश: फरवरी 2007 और अप्रैल 2008 से पाबंदी लगी हुई है। खुल्लर ने यहां विश्व व्यापार संगठन के एक कार्यक्रम में कहा कि मुझे लगता है कि कृषि जिंसों पर दबाव बना रहेगा।
घरेलू तौर पर भी कीमतों पर और अधिक दबाव पडऩेे की आशंका है। गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात के बारे में उन्होंने कहा कि इस पर अगले हफ्ते विचार किया जाएगा। कृषि मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष :2011-12: में 24.5 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन की संभावना व्यक्त की है। 2010-11 में उत्पादन 23.58 करोड़ टन था। (BS Hindi)
गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर अगले हफ्ते अधिकार प्राप्त मंत्रियों की समिति की होने वाली बैठक से पूर्व आज वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा कि कृषि जिंसों की ऊंचाी कीमत का दबाव बने रहने की आशंका है। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार को 'हड़बड़ीÓ में कोई कदम नहीं उठाना चाहिए।
अधिकार प्राप्त मत्रियों के समूह की बैठक 11 जुलाई को होने वाली है। खाद्य मंत्रालय ने 20 लाख टन गेहूं और 10 लाख टन गैर-बासमती चावल के निर्यात का प्रस्ताव रखा है। गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर क्रमश: फरवरी 2007 और अप्रैल 2008 से पाबंदी लगी हुई है। खुल्लर ने यहां विश्व व्यापार संगठन के एक कार्यक्रम में कहा कि मुझे लगता है कि कृषि जिंसों पर दबाव बना रहेगा।
घरेलू तौर पर भी कीमतों पर और अधिक दबाव पडऩेे की आशंका है। गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात के बारे में उन्होंने कहा कि इस पर अगले हफ्ते विचार किया जाएगा। कृषि मंत्रालय ने चालू वित्त वर्ष :2011-12: में 24.5 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन की संभावना व्यक्त की है। 2010-11 में उत्पादन 23.58 करोड़ टन था। (BS Hindi)
बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की अनुमति से रुकेगी महंगाई!
नई दिल्ली July 06, 2011
बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए खोलने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा नियुक्त एक समिति ने कहा है कि महंगाई पर अंकुश के लिए वैश्विक खिलाडिय़ों को इस क्षेत्र में उतरने की अनुमति दी जानी चाहिए। अंतर मंत्रालई समूह का मानना है कि यह बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र को एफडीआई के लिए खोलने का उचित समय है और सरकार को इस पर जल्द से जल्द विचार करना चाहिए।
समिति का मानना है कि इस क्षेत्र में सुधार महंगाई रोकने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। हालांकि, समिति ने चेताया है कि कंपनियां इस क्षेत्र में एकाधिकार की स्थिति पा सकती हैं और दाम बढ़ा सकती हैं, इसलिए उनकी निगरानी के लिए नियमन होने चाहिए।
मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु की अगुवाई वाली इस समिति का गठन प्रधानमंत्री ने फरवरी में किया था। समिति को महंगाई रोकने के बारे में उपाय सुझाने थे। महंगाई की दर इस समय नौ फीसद से ऊपर चल रही है, जो सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों के लिए चिंता की वजह है। (BS Hindi)
बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए खोलने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा नियुक्त एक समिति ने कहा है कि महंगाई पर अंकुश के लिए वैश्विक खिलाडिय़ों को इस क्षेत्र में उतरने की अनुमति दी जानी चाहिए। अंतर मंत्रालई समूह का मानना है कि यह बहु ब्रांड खुदरा क्षेत्र को एफडीआई के लिए खोलने का उचित समय है और सरकार को इस पर जल्द से जल्द विचार करना चाहिए।
समिति का मानना है कि इस क्षेत्र में सुधार महंगाई रोकने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। हालांकि, समिति ने चेताया है कि कंपनियां इस क्षेत्र में एकाधिकार की स्थिति पा सकती हैं और दाम बढ़ा सकती हैं, इसलिए उनकी निगरानी के लिए नियमन होने चाहिए।
मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु की अगुवाई वाली इस समिति का गठन प्रधानमंत्री ने फरवरी में किया था। समिति को महंगाई रोकने के बारे में उपाय सुझाने थे। महंगाई की दर इस समय नौ फीसद से ऊपर चल रही है, जो सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों के लिए चिंता की वजह है। (BS Hindi)
एफएमसी की सख्ती पर मंत्री के हस्तक्षेप की मांग
मुंबई July 05, 2011
नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) के प्रमोटर कैलाश गुप्ता ने जिंस बाजार नियामक एफएमसी की सख्त कार्रवाई पर खाद्य व उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री के वी थॉमस से हस्तक्षेप की मांग की है। एफएमसी ने कई आरोप लगाते हुए गुप्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया था और इसका जवाब देने को कहा था। गुप्ता से व्यक्तिगत रूप से 4 जुलाई को उपस्थित होकर जवाब देने को कहा गया था। गुप्ता ने कानूनी प्रतिनिधि को भेजा था, लेकिन एफएमसी ने इसे स्वीकार नहीं किया।मंत्री से संपर्क करने की बात पूछे जाने पर गुप्ता ने कहा - मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। उन्होंने न तो मंत्री के साथ बैठक की बात स्वीकार की और न ही इससे इनकार किया। सूत्रों ने कहा कि गुप्ता ने इस हफ्ते की शुरुआत में मंत्री से संपर्क किया था और वित्तीय अनियमितताओं के एकसमान मामलोंं पर दूसरे एक्सचेंजों के मुकाबले एनएमसीई के साथ एफएमसी के भेदभाव के बारे में उन्हें बताया था। गुप्ता ने कहा कि विगत में एफएमसी ने दूसरे एक्सचेंजों के साथ भेदभाव किया था, जिसका हम विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम उचित स्तर पर संघर्ष करेंगे। इस बीच, एफएमसी ने गुप्ता को भेजे हालिया कारण बताओ नोटिस में कई मुद्दे उठाए हैं और आयोग के सामने पेश होकर अपना पक्ष रखने के लिए 8 दिन का समय दिया है।एफएमसी के चेयरमैन बी सी खटुआ ने कहा - मार्केट मेकिंग एकमात्र अनियमितता नहीं है, जिसमें हमने उनके खिलाफ पाया है। उन्होंने कहा कि गुप्ता ने एक्सचेंज से व्यक्तिगत लाभ हासिल किया है और अपने परिवार के सदस्यों के विदेश दौरे के खर्च एक्सचेंज से वसूले हैं, साथ ही अन्य वित्तीय गड़बडिय़ां भी की है। खटुआ ने सवाल किया, आखिर गुप्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर एफएमसी के सामने अपना पक्ष क्यों नहीं रख रहे हैं? एफएमसी केदावों की प्रति हासिल करने के लिए गुप्ता ने एक वकील को अधिकृत किया है।समझा जाता है कि व्यक्तिगत रूप से एफएमसी के सामने पेश होने के लिए गुप्ता को 8 दिन का समय दिया है। गुप्ता ने भी उन दस्तावेजों की मांग की है जिसके आधार पर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, एफएमसी ने कहा है कि वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर इन्हें हासिल कर लें। (BS Hindi)
नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) के प्रमोटर कैलाश गुप्ता ने जिंस बाजार नियामक एफएमसी की सख्त कार्रवाई पर खाद्य व उपभोक्ता मामलों के राज्य मंत्री के वी थॉमस से हस्तक्षेप की मांग की है। एफएमसी ने कई आरोप लगाते हुए गुप्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया था और इसका जवाब देने को कहा था। गुप्ता से व्यक्तिगत रूप से 4 जुलाई को उपस्थित होकर जवाब देने को कहा गया था। गुप्ता ने कानूनी प्रतिनिधि को भेजा था, लेकिन एफएमसी ने इसे स्वीकार नहीं किया।मंत्री से संपर्क करने की बात पूछे जाने पर गुप्ता ने कहा - मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। उन्होंने न तो मंत्री के साथ बैठक की बात स्वीकार की और न ही इससे इनकार किया। सूत्रों ने कहा कि गुप्ता ने इस हफ्ते की शुरुआत में मंत्री से संपर्क किया था और वित्तीय अनियमितताओं के एकसमान मामलोंं पर दूसरे एक्सचेंजों के मुकाबले एनएमसीई के साथ एफएमसी के भेदभाव के बारे में उन्हें बताया था। गुप्ता ने कहा कि विगत में एफएमसी ने दूसरे एक्सचेंजों के साथ भेदभाव किया था, जिसका हम विरोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम उचित स्तर पर संघर्ष करेंगे। इस बीच, एफएमसी ने गुप्ता को भेजे हालिया कारण बताओ नोटिस में कई मुद्दे उठाए हैं और आयोग के सामने पेश होकर अपना पक्ष रखने के लिए 8 दिन का समय दिया है।एफएमसी के चेयरमैन बी सी खटुआ ने कहा - मार्केट मेकिंग एकमात्र अनियमितता नहीं है, जिसमें हमने उनके खिलाफ पाया है। उन्होंने कहा कि गुप्ता ने एक्सचेंज से व्यक्तिगत लाभ हासिल किया है और अपने परिवार के सदस्यों के विदेश दौरे के खर्च एक्सचेंज से वसूले हैं, साथ ही अन्य वित्तीय गड़बडिय़ां भी की है। खटुआ ने सवाल किया, आखिर गुप्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर एफएमसी के सामने अपना पक्ष क्यों नहीं रख रहे हैं? एफएमसी केदावों की प्रति हासिल करने के लिए गुप्ता ने एक वकील को अधिकृत किया है।समझा जाता है कि व्यक्तिगत रूप से एफएमसी के सामने पेश होने के लिए गुप्ता को 8 दिन का समय दिया है। गुप्ता ने भी उन दस्तावेजों की मांग की है जिसके आधार पर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, एफएमसी ने कहा है कि वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर इन्हें हासिल कर लें। (BS Hindi)
चीनी उद्योग की बढऩे लगी मिठास
मुंबई July 05, 2011
चीनी की बढ़ती कीमतों के चलते एक्स-मिल और खुदरा कीमतों के बीच की घटती खाई को विशेषज्ञ चीनी उद्योग में सुधार की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं। चीनी क्षेत्र को नियंत्रणमुक्त किए जाने की बाबत सरकार के भीतर सक्रियता के साथ हो रही चर्चा के साथ-साथ और निर्यात की संभावना ने उद्योग में उम्मीद की लौ जला दी है।भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा - निर्यात के लिए ताजा आवंटन संबंधी सरकारी फैसले समेत अन्य फैसले से एक्स-मिल कीमतों में लगातार पांच महीने से आ रही गिरावट थम गई है। वर्मा ने कहा कि जुलाई के लिए सरकारी कोटा जारी होने के बाद चीनी की एक्स मिल कीमतें उम्मीद से कम बढ़ी हैं।फरवरी-जून की अवधि में चीनी की एक्स-मिल कीमतें उत्तर प्रदेश में घटकर 2600 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई थीं। लेकिन सकारात्मक खबरों के बाद कीमतें 100-150 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी हैं और यह फिलहाल 2750-2800 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है। इसी तरह महाराष्ट्र में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतें 150 रुपये सुधरकर 2600 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं। चीनी उत्पादन करने वाले दोनों प्रमुख राज्यों में चीनी की एक्स- मिल कीमतें अभी भी क्रमश: 2900 रुपये व 2700 रुपये प्रति क्विंटल के उत्पादन लागत के मुकाबले 100 रुपये प्रति क्विंटल कम है।उत्तर प्रदेश की एक चीनी मिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस स्तर से कीमतें शायद ही नीचे आएं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि चीनी उद्योग की किस्मत सुधर रही है। मौजूदा समय में खुदरा कीमतें हालांकि 3200 रुपये प्रति क्विंटल है, जो 15 महीने में सर्वोच्च कीमतें हैं।मंगलवार को मुंबई में एस-30 व एम-30 चीनी की कीमतें 25 रुपये बढ़कर क्रमश: 2761.5 व 2888.5 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गईं। दिल्ली में थोक खरीदार व रिटेलरों की खरीद से चीनी की कीमतों में सुधार आया। दिल्ली के बाजार में आवक में कमी के चलते भी कीमतें बढ़ीं। हाजिर मीडियम व सेकंड ग्रेड चीनी की कीमतें 2950-3050 व 2925-3025 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2950-3100 व 2925-2940 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गईं। मिल डिलिवरी मीडियम व सेकंड ग्रेड चीनी की कीमतें 2750-2940 व 2725-2915 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर क्रमश: 2775-2975 व 2750-2950 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गईं।एक अधिकारी ने कहा - फंडामेंटल्स के आधार पर चीनी की बढ़ रही कीमतें अचानक अनुकूल हो गई हैं। सरकार ने 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है, लेकिन उद्योग इससे संतुष्ट नहीं है। इस चीनी वर्ष में भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मांग रहा था और इस बात की गारंटी भी दे रहा था कि घरेलू बाजार में आपूर्ति में दिक्कत नहीं होगी। ब्राजील में फसल में कमी के अनुमान ने भी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी में मदद की है और हमें विश्वास है कि आने वाले दिनों में यह जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि उद्योग में सुधार हो रहा है क्योंकि कीमतों में हो रहा सुधार लंबी अवधि तक जारी रहेगी।इस बीच, इस्मा ने सरकार से अनुरोध किया है कि चीनी की एक्स मिल कीमतें उत्पादन लागत के स्तर पर लाने के लिए वह कुछ कदम उठाए। खाद्य व सार्वजनिक वितरण सचिव (भारत सरकार) को लिखे पत्र में इस्मा ने कहा है कि 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने के सरकार के फैसले ने सुनिश्चित किया है कि चीनी की एक्स मिल कीमतें नीचे नहीं जाएंगी।एक रिसर्च कंपनी इक्विटोरियर इंडस्ट्री ऑल्टरनेट के मैनेजिंग पार्टनर एस बारिया ने कहा - भारत में चीनी की खपत में औद्योगिक मांग की भागीदारी 70 फीसदी की है और यह लगातार बढ़ रही है। महाराष्ट्र मेंं चीनी क्षेत्र काफी ज्यादा राजनीतिक है, जो राज्य सरकार की किस्मत तय करता है। चूंकि यह राज्य देश के कुल उत्पादन में एक तिहाई का योगदान करता है, लिहाजा सरकार किसानों व मिलों की आर्थिक स्थिति अगले साल और खराब होने के लिए नहीं छोड़ेगी। कीमत के मामले में किसान व मिलों की स्थिति इस साल अच्छी नहीं रही है। वैश्विक बाजार से भी यहां कीमतों को समर्थन मिला। आईसीई कच्ची चीनी वायदा मंगलवार को शुरुआती कारोबार मेंं चार महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया, क्योंकि वहां ब्राजील में फसल में कमी की खबर आई थी। (BS Hindi)
चीनी की बढ़ती कीमतों के चलते एक्स-मिल और खुदरा कीमतों के बीच की घटती खाई को विशेषज्ञ चीनी उद्योग में सुधार की शुरुआत के तौर पर देख रहे हैं। चीनी क्षेत्र को नियंत्रणमुक्त किए जाने की बाबत सरकार के भीतर सक्रियता के साथ हो रही चर्चा के साथ-साथ और निर्यात की संभावना ने उद्योग में उम्मीद की लौ जला दी है।भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा - निर्यात के लिए ताजा आवंटन संबंधी सरकारी फैसले समेत अन्य फैसले से एक्स-मिल कीमतों में लगातार पांच महीने से आ रही गिरावट थम गई है। वर्मा ने कहा कि जुलाई के लिए सरकारी कोटा जारी होने के बाद चीनी की एक्स मिल कीमतें उम्मीद से कम बढ़ी हैं।फरवरी-जून की अवधि में चीनी की एक्स-मिल कीमतें उत्तर प्रदेश में घटकर 2600 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई थीं। लेकिन सकारात्मक खबरों के बाद कीमतें 100-150 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ी हैं और यह फिलहाल 2750-2800 रुपये प्रति क्विंटल पर बिक रही है। इसी तरह महाराष्ट्र में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतें 150 रुपये सुधरकर 2600 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई हैं। चीनी उत्पादन करने वाले दोनों प्रमुख राज्यों में चीनी की एक्स- मिल कीमतें अभी भी क्रमश: 2900 रुपये व 2700 रुपये प्रति क्विंटल के उत्पादन लागत के मुकाबले 100 रुपये प्रति क्विंटल कम है।उत्तर प्रदेश की एक चीनी मिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस स्तर से कीमतें शायद ही नीचे आएं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि चीनी उद्योग की किस्मत सुधर रही है। मौजूदा समय में खुदरा कीमतें हालांकि 3200 रुपये प्रति क्विंटल है, जो 15 महीने में सर्वोच्च कीमतें हैं।मंगलवार को मुंबई में एस-30 व एम-30 चीनी की कीमतें 25 रुपये बढ़कर क्रमश: 2761.5 व 2888.5 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गईं। दिल्ली में थोक खरीदार व रिटेलरों की खरीद से चीनी की कीमतों में सुधार आया। दिल्ली के बाजार में आवक में कमी के चलते भी कीमतें बढ़ीं। हाजिर मीडियम व सेकंड ग्रेड चीनी की कीमतें 2950-3050 व 2925-3025 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2950-3100 व 2925-2940 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गईं। मिल डिलिवरी मीडियम व सेकंड ग्रेड चीनी की कीमतें 2750-2940 व 2725-2915 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर क्रमश: 2775-2975 व 2750-2950 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गईं।एक अधिकारी ने कहा - फंडामेंटल्स के आधार पर चीनी की बढ़ रही कीमतें अचानक अनुकूल हो गई हैं। सरकार ने 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है, लेकिन उद्योग इससे संतुष्ट नहीं है। इस चीनी वर्ष में भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) 10 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति मांग रहा था और इस बात की गारंटी भी दे रहा था कि घरेलू बाजार में आपूर्ति में दिक्कत नहीं होगी। ब्राजील में फसल में कमी के अनुमान ने भी चीनी की कीमतों में बढ़ोतरी में मदद की है और हमें विश्वास है कि आने वाले दिनों में यह जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि उद्योग में सुधार हो रहा है क्योंकि कीमतों में हो रहा सुधार लंबी अवधि तक जारी रहेगी।इस बीच, इस्मा ने सरकार से अनुरोध किया है कि चीनी की एक्स मिल कीमतें उत्पादन लागत के स्तर पर लाने के लिए वह कुछ कदम उठाए। खाद्य व सार्वजनिक वितरण सचिव (भारत सरकार) को लिखे पत्र में इस्मा ने कहा है कि 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति देने के सरकार के फैसले ने सुनिश्चित किया है कि चीनी की एक्स मिल कीमतें नीचे नहीं जाएंगी।एक रिसर्च कंपनी इक्विटोरियर इंडस्ट्री ऑल्टरनेट के मैनेजिंग पार्टनर एस बारिया ने कहा - भारत में चीनी की खपत में औद्योगिक मांग की भागीदारी 70 फीसदी की है और यह लगातार बढ़ रही है। महाराष्ट्र मेंं चीनी क्षेत्र काफी ज्यादा राजनीतिक है, जो राज्य सरकार की किस्मत तय करता है। चूंकि यह राज्य देश के कुल उत्पादन में एक तिहाई का योगदान करता है, लिहाजा सरकार किसानों व मिलों की आर्थिक स्थिति अगले साल और खराब होने के लिए नहीं छोड़ेगी। कीमत के मामले में किसान व मिलों की स्थिति इस साल अच्छी नहीं रही है। वैश्विक बाजार से भी यहां कीमतों को समर्थन मिला। आईसीई कच्ची चीनी वायदा मंगलवार को शुरुआती कारोबार मेंं चार महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया, क्योंकि वहां ब्राजील में फसल में कमी की खबर आई थी। (BS Hindi)
कपास कोटे का आवंटन आज
मुंबई July 05, 2011
विदेश व्यापार महानिदेशालय 6 जुलाई से प्रस्तावित कपास निर्यात कोटा आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। यह मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि देश भर के 8-9 निर्यातक अदालत पहुंच गए हैं और स्टे की मांग कर रहे हैं। निर्यातकों ने कपास निर्यात कोटा आवंटन के लिए डीजीएफटी द्वारा नया मानक तय करने पर ऐतराज जताया है। इनका विरोध विगत के अनुभवों के मानक तय करने को लेकर है, जो कपड़ा मंत्रालय द्वारा कोटा आïवंटन के समय नहीं हुआ करता था। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने डीजीएफटी से उस याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने को कहा है।सूत्रों ने कहा कि एक ओर जहां डीजीएफटी आवेदन पर विचार कर सकता है, वहीं इस प्रक्रिया को स्थगित करने की कोई वजह नहीं है क्योंकि उच्च न्यायालय के आदेश में अंतरिम राहत के तौर पर खास तौर से आïवंटन प्रक्रिया पर रोक लगाने या मानकों में बदलाव की बात नहीं कही गई है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि मानक के रूप में पिछले अनुभवों को शामिल करते हुए डीजीएफटी वैसे सक्षम निर्यातकों को रोक रहा है, जो कपास की पर्याप्त उपलब्धता और घरेलू बाजार में गिरती कीमतों की वजह से निर्यात कर सकता है।इस बाबत शर्तें व प्रक्रिया तय करते हुए डीजीएफटी ने कहा है कि जिन्होंने साल 2008-09 व 2009-10 (अक्टूबर-सितंबर) के सीजन में निर्यात किया था उन्हें ही निर्यात की अनुमति दी जाएगी। आïवंटन का काम आनुपातिक आधार पर किया जाएगा, लेकिन किसी भी निर्यातक को 25,000 गांठ से ज्यादा निर्यात की अनुमति नहीं दी जाएगी।सरकार ने 9 जून को 10 लाख गांठ अतिरिक्त कपास निर्यात की अनुमति देने वाली अधिसूचना जारी की थी। इससे पहले 55 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति दी गई थी, जो 15 जून तक पूरी हो गई थी। निर्यात कोटा उस अनुमान के आधार पर तय किया गया था, जिसके तहत इस सीजन में रिकॉर्ड 329 लाख गांठ कपास उत्पादन की संभावना जताई गई थी। कपास के अतिरिक्त कोटे के निर्यात के लिए पंजीकरण का काम 20 जून को शुरू हुआ था और यह 25 जून तक चला था। आवेदन की जांच आदि का काम 5 जुलाई तक चला और 6 जुलाई को आवंटित कोटे की घोषणा की जानी है। डीजीएफटी द्वारा तय समय-सारणी के मुताबिक, निर्यातकों को दस्तावेज जमा कराने के लिए 7 जुलाई से 15 जुलाई तक का समय दिया जाएगा, वहीं इसका शिपमेंट 15 सितंबर तक पूरा करना होगा।कपास निर्यात की अनुमति तब दी गई जब कपास की शंकर-6 किस्म की कीमतें अप्रैल के 40,000-41,000 रुपये प्रति कैंडी के मुकाबले करीब 35 फीसदी लुढ़क गईं। कपास निर्यात के अतिरिक्त कोटे की घोषणा के बाद हालांकि कपास की कीमतों में 10 फीसदी की उछाल आई है, लेकिन मांग में कमी के चलते यह एक बार फिर पिछले स्तर तक जा गिरी है। मौजूदा समय में कपास 39,500-40,000 रुपये प्रति कैंडी पर उपलब्ध है।कपास निर्यात का कोटा इस सीजन में रिकॉर्ड 329 लाख गांठ कपास उत्पादन के अनुमान के बाद तय किया गया था। बाद में हालांकि कपास सलाहकार बोर्ड ने उत्पादन अनुमान घटाकर 312 लाख गांठ कर दिया था। उत्पादन अनुमान घटाए जाने के बाद भी यह रिकॉर्ड है। वहीं कपड़ा मंत्रालय का अनुमान है कि 310 लाख गांठ कपास का उत्पादन होगा, पर कृषि मंत्रालय ने 329 लाख गांठ कपास उत्पादन की उम्मीद जताई थी। (BS Hindi)
विदेश व्यापार महानिदेशालय 6 जुलाई से प्रस्तावित कपास निर्यात कोटा आवंटन की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। यह मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि देश भर के 8-9 निर्यातक अदालत पहुंच गए हैं और स्टे की मांग कर रहे हैं। निर्यातकों ने कपास निर्यात कोटा आवंटन के लिए डीजीएफटी द्वारा नया मानक तय करने पर ऐतराज जताया है। इनका विरोध विगत के अनुभवों के मानक तय करने को लेकर है, जो कपड़ा मंत्रालय द्वारा कोटा आïवंटन के समय नहीं हुआ करता था। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने डीजीएफटी से उस याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने को कहा है।सूत्रों ने कहा कि एक ओर जहां डीजीएफटी आवेदन पर विचार कर सकता है, वहीं इस प्रक्रिया को स्थगित करने की कोई वजह नहीं है क्योंकि उच्च न्यायालय के आदेश में अंतरिम राहत के तौर पर खास तौर से आïवंटन प्रक्रिया पर रोक लगाने या मानकों में बदलाव की बात नहीं कही गई है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि मानक के रूप में पिछले अनुभवों को शामिल करते हुए डीजीएफटी वैसे सक्षम निर्यातकों को रोक रहा है, जो कपास की पर्याप्त उपलब्धता और घरेलू बाजार में गिरती कीमतों की वजह से निर्यात कर सकता है।इस बाबत शर्तें व प्रक्रिया तय करते हुए डीजीएफटी ने कहा है कि जिन्होंने साल 2008-09 व 2009-10 (अक्टूबर-सितंबर) के सीजन में निर्यात किया था उन्हें ही निर्यात की अनुमति दी जाएगी। आïवंटन का काम आनुपातिक आधार पर किया जाएगा, लेकिन किसी भी निर्यातक को 25,000 गांठ से ज्यादा निर्यात की अनुमति नहीं दी जाएगी।सरकार ने 9 जून को 10 लाख गांठ अतिरिक्त कपास निर्यात की अनुमति देने वाली अधिसूचना जारी की थी। इससे पहले 55 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति दी गई थी, जो 15 जून तक पूरी हो गई थी। निर्यात कोटा उस अनुमान के आधार पर तय किया गया था, जिसके तहत इस सीजन में रिकॉर्ड 329 लाख गांठ कपास उत्पादन की संभावना जताई गई थी। कपास के अतिरिक्त कोटे के निर्यात के लिए पंजीकरण का काम 20 जून को शुरू हुआ था और यह 25 जून तक चला था। आवेदन की जांच आदि का काम 5 जुलाई तक चला और 6 जुलाई को आवंटित कोटे की घोषणा की जानी है। डीजीएफटी द्वारा तय समय-सारणी के मुताबिक, निर्यातकों को दस्तावेज जमा कराने के लिए 7 जुलाई से 15 जुलाई तक का समय दिया जाएगा, वहीं इसका शिपमेंट 15 सितंबर तक पूरा करना होगा।कपास निर्यात की अनुमति तब दी गई जब कपास की शंकर-6 किस्म की कीमतें अप्रैल के 40,000-41,000 रुपये प्रति कैंडी के मुकाबले करीब 35 फीसदी लुढ़क गईं। कपास निर्यात के अतिरिक्त कोटे की घोषणा के बाद हालांकि कपास की कीमतों में 10 फीसदी की उछाल आई है, लेकिन मांग में कमी के चलते यह एक बार फिर पिछले स्तर तक जा गिरी है। मौजूदा समय में कपास 39,500-40,000 रुपये प्रति कैंडी पर उपलब्ध है।कपास निर्यात का कोटा इस सीजन में रिकॉर्ड 329 लाख गांठ कपास उत्पादन के अनुमान के बाद तय किया गया था। बाद में हालांकि कपास सलाहकार बोर्ड ने उत्पादन अनुमान घटाकर 312 लाख गांठ कर दिया था। उत्पादन अनुमान घटाए जाने के बाद भी यह रिकॉर्ड है। वहीं कपड़ा मंत्रालय का अनुमान है कि 310 लाख गांठ कपास का उत्पादन होगा, पर कृषि मंत्रालय ने 329 लाख गांठ कपास उत्पादन की उम्मीद जताई थी। (BS Hindi)
मल्टीब्रैंड रिटेल एफडीआई पर अहम बैठक जल्द!
जुलाई 2011
सीएनबीसी आवाज़
सीएनबीसी आवाज़ को सूत्रों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई पर 11 जुलाई को सचिवों की समिति की बैठक होनेवाली है।
सूत्रों का कहना है कि सचिवों की समिति मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई की सीमा पर अंतिम फैसला ले सकती है। हालांकि समिति ने मेट्रो शहरों के रिटेल ब्रैंड में एफडीआई पर कोई फैसला नहीं किया गया है। सचिवों की समिति की ओर से फैसला आने पर डीआईपीपी मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई पर कैबिनेट नोट तैयार करेगी।
सचिवों की समिति ने मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई के मसले पर राज्यों की राय जानने के लिए पत्र लिखा है। लेकिन बीजेपी शासित राज्यों की ओर से मल्टीब्रैंड में एफडीआई के फैसले का विरोध किया जा रहा है।(सीएनबीसी आवाज़)
सीएनबीसी आवाज़
सीएनबीसी आवाज़ को सूत्रों से मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई पर 11 जुलाई को सचिवों की समिति की बैठक होनेवाली है।
सूत्रों का कहना है कि सचिवों की समिति मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई की सीमा पर अंतिम फैसला ले सकती है। हालांकि समिति ने मेट्रो शहरों के रिटेल ब्रैंड में एफडीआई पर कोई फैसला नहीं किया गया है। सचिवों की समिति की ओर से फैसला आने पर डीआईपीपी मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई पर कैबिनेट नोट तैयार करेगी।
सचिवों की समिति ने मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई के मसले पर राज्यों की राय जानने के लिए पत्र लिखा है। लेकिन बीजेपी शासित राज्यों की ओर से मल्टीब्रैंड में एफडीआई के फैसले का विरोध किया जा रहा है।(सीएनबीसी आवाज़)
04 जुलाई 2011
मक्का, जौ के दाम बढऩे से फीड महंगा होने की संभावना
आर.एस. राणा नई दिल्ली
कच्चे माल जैसे मक्का, जौ और बाजरा के दाम बढऩे से कैटलफीड और पोल्ट्रीफीड की कीमतों में आठ से दस फीसदी तेजी आने की संभावना है। पिछले महीने भर में मक्का की कीमतों में 15 फीसदी, जौ की कीमतों में 10 फीसदी, सोयाबीन और बिनौला खली की कीमतों में क्रमश: पांच-पांच फीसदी की तेजी आई है। जबकि सरसों खल, चना चूरी और छिल्का में पशुआहार वालों की मांग मई-जून में बढ़ेगी।
किसान फोडर मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नरेंद्र सिंह ने बताया कि कैटलफीड बनाने के लिए अनाज में मक्का, जौ और बाजरा का प्रयोग होता है। इसके अलावा सरसों, सायोबीन और बिनौला डीओसी तथा शीरे का प्रयोग होता है।
मक्का की कीमतों में पिछले एक महीने में करीब 175 रुपये और जौ तथा बाजरा की कीमतों में 100-125 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। निर्यात मांग अच्छी होने से डीओसी के दाम भी तेज बने हुए हैं। ऐसे में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में आगामी दिनों में करीब 200-250 रुपये की तेजी आकर भाव 2,000-2,200 रुपये प्रति क्विंटल होने की संभावना है।
चेतक कैटलफीड एंड एग्रीकलचर इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर गौरव भारद्वाज ने बताया कि अप्रैल से जून के दौरान कैटलफीड में उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान बढऩे की संभावना है। कच्चे माल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं इसीलिए आगामी दिनों में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
सूर्या फीड कंस्ट्रक्टर्स प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय बंसल ने बताया कि गर्मियों में अंडों की मांग कम हो जाती है। लेकिन मक्का, सोया डीओसी और बाजरा महंगा होने से पोल्ट्रीफीड महंगा हो गया है। इसीलिए पोल्ट्री फीड में मांग कम हो गई है। पोल्ट्री फीड में कंस्ट्रेंट फीड का भाव बढ़कर 2,800-3,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
अबोहर स्थित कमल कॉटन कंपनी के डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि गर्मियों का मौसम होने के कारण बिनौला और बिनौला खली में मांग कम हो गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का और चूरी में मांग बढ़ जाएगी। इसीलिए इनकी कीमतों में आगामी दिनों में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। हरियाणा और पंजाब में बिनौला खल का भाव 1,400-1,700 रुपये और बिनौले का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।
कुनाल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर चेतन गोयल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सरसों और चने की नई फसल आ रही है लेकिन मई में आवक कम हो जाएगी। इसलिए सरसों खल, चना चूरी और छिल्का की कीमतों में 75-100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। सरसों खल का भाव 1,060-1,100 रुपये, चना चूरी का भाव 1,400-1,500 रुपये और छिल्का का भाव 950 से 1,000 रुपये तथा मूंगफली खल का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।बात पते की :- गर्मियों का मौसम होने से बिनौला और खली की मांग घट गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का व चूरी की मांग बढऩे से भाव में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। (Business Bhaskar...R S Rana)
कच्चे माल जैसे मक्का, जौ और बाजरा के दाम बढऩे से कैटलफीड और पोल्ट्रीफीड की कीमतों में आठ से दस फीसदी तेजी आने की संभावना है। पिछले महीने भर में मक्का की कीमतों में 15 फीसदी, जौ की कीमतों में 10 फीसदी, सोयाबीन और बिनौला खली की कीमतों में क्रमश: पांच-पांच फीसदी की तेजी आई है। जबकि सरसों खल, चना चूरी और छिल्का में पशुआहार वालों की मांग मई-जून में बढ़ेगी।
किसान फोडर मिल्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नरेंद्र सिंह ने बताया कि कैटलफीड बनाने के लिए अनाज में मक्का, जौ और बाजरा का प्रयोग होता है। इसके अलावा सरसों, सायोबीन और बिनौला डीओसी तथा शीरे का प्रयोग होता है।
मक्का की कीमतों में पिछले एक महीने में करीब 175 रुपये और जौ तथा बाजरा की कीमतों में 100-125 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आई है। निर्यात मांग अच्छी होने से डीओसी के दाम भी तेज बने हुए हैं। ऐसे में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में आगामी दिनों में करीब 200-250 रुपये की तेजी आकर भाव 2,000-2,200 रुपये प्रति क्विंटल होने की संभावना है।
चेतक कैटलफीड एंड एग्रीकलचर इंडस्ट्रीज के डायरेक्टर गौरव भारद्वाज ने बताया कि अप्रैल से जून के दौरान कैटलफीड में उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान बढऩे की संभावना है। कच्चे माल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं इसीलिए आगामी दिनों में सप्लीमेंट कैटलफीड की कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
सूर्या फीड कंस्ट्रक्टर्स प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय बंसल ने बताया कि गर्मियों में अंडों की मांग कम हो जाती है। लेकिन मक्का, सोया डीओसी और बाजरा महंगा होने से पोल्ट्रीफीड महंगा हो गया है। इसीलिए पोल्ट्री फीड में मांग कम हो गई है। पोल्ट्री फीड में कंस्ट्रेंट फीड का भाव बढ़कर 2,800-3,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।
अबोहर स्थित कमल कॉटन कंपनी के डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि गर्मियों का मौसम होने के कारण बिनौला और बिनौला खली में मांग कम हो गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का और चूरी में मांग बढ़ जाएगी। इसीलिए इनकी कीमतों में आगामी दिनों में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। हरियाणा और पंजाब में बिनौला खल का भाव 1,400-1,700 रुपये और बिनौले का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।
कुनाल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर चेतन गोयल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में सरसों और चने की नई फसल आ रही है लेकिन मई में आवक कम हो जाएगी। इसलिए सरसों खल, चना चूरी और छिल्का की कीमतों में 75-100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। सरसों खल का भाव 1,060-1,100 रुपये, चना चूरी का भाव 1,400-1,500 रुपये और छिल्का का भाव 950 से 1,000 रुपये तथा मूंगफली खल का भाव 1,700-1,900 रुपये प्रति क्विंटल है।बात पते की :- गर्मियों का मौसम होने से बिनौला और खली की मांग घट गई है। लेकिन सरसों खल, चना छिल्का व चूरी की मांग बढऩे से भाव में 100-200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है। (Business Bhaskar...R S Rana)
यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने में लगेंगे दो साल!
यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने पर मची जद्दोजहद के बावजूद इसे अमली जामा पहनाया जाना मुश्किल लग रहा है। उर्वरक मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि अगले दो साल तक यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त किए जाने का फैसला सरकार के लिए बेहद मुश्किल है। इसकी दो मुख्य वजह हैं। पहली वजह है अंतरराष्ट्रीय बाजार पर यूरिया के आयात को लेकर हमारी निर्भरता। दूसरी वजह है बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने में लगने वाला समय।
सूत्रों का कहना है कि यूरिया के आयात को लेकर हमारी निर्भरता अंतरराष्ट्रीय बाजार पर काफी ज्यादा है। ऐसे में अगर फिलहाल यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया तो कहीं हालात डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे न हो जाएं। सूत्रों ने बताया कि डीएपी की कीमतें 400 डॉलर से बढ़कर 700 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई हैं।
ऐसे में डीएपी की कीमतों को लेकर सरकार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए सरकार के लिए फिलहाल यूरिया की कीमतों पर से बंदिश हटाना मुश्किल है। उधर, देश में बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने के लिए जल्द ही कैबिनेट से मंजूरी मिलने की संभावना है।
अगर बंद पड़ी यूरिया इकाइयां जल्द ही चालू हो जाती हैं तो देश की यूरिया आयात पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। इसके बाद सरकार के लिए यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना बेहद आसान हो जाएगा क्योंकि उस समय कीमतों पर काबू करना काफी हद तक सरकार के हाथ में होगा। सूत्रों ने बताया कि बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने में गैस की उपलब्धता सुनिश्चित करना सबसे जरूरी है।
इसके लिए जल्द ही यह मसला मंत्रियों के समूह के पास जाएगा। सूत्रों का कहना है कि इन बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करवाने और गैस उपलब्धता सुनिश्चित करने में दो साल का समय लग सकता है। ऐसे में तब तक सरकार यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने से परहेज करेगी। (Business Bhaskar)
सूत्रों का कहना है कि यूरिया के आयात को लेकर हमारी निर्भरता अंतरराष्ट्रीय बाजार पर काफी ज्यादा है। ऐसे में अगर फिलहाल यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया गया तो कहीं हालात डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे न हो जाएं। सूत्रों ने बताया कि डीएपी की कीमतें 400 डॉलर से बढ़कर 700 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई हैं।
ऐसे में डीएपी की कीमतों को लेकर सरकार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए सरकार के लिए फिलहाल यूरिया की कीमतों पर से बंदिश हटाना मुश्किल है। उधर, देश में बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने के लिए जल्द ही कैबिनेट से मंजूरी मिलने की संभावना है।
अगर बंद पड़ी यूरिया इकाइयां जल्द ही चालू हो जाती हैं तो देश की यूरिया आयात पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। इसके बाद सरकार के लिए यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना बेहद आसान हो जाएगा क्योंकि उस समय कीमतों पर काबू करना काफी हद तक सरकार के हाथ में होगा। सूत्रों ने बताया कि बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करने में गैस की उपलब्धता सुनिश्चित करना सबसे जरूरी है।
इसके लिए जल्द ही यह मसला मंत्रियों के समूह के पास जाएगा। सूत्रों का कहना है कि इन बंद पड़ी उर्वरक इकाइयों को दोबारा चालू करवाने और गैस उपलब्धता सुनिश्चित करने में दो साल का समय लग सकता है। ऐसे में तब तक सरकार यूरिया की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने से परहेज करेगी। (Business Bhaskar)
गन्ना और एथेनॉल की मूल्य नीति में झोल
ओईसीडी और एफएओ की एक रिपोर्ट में भारत की गन्ना कीमत निर्धारण नीति की आलोचना की गई है
ई दिल्ली July 03, 2011
देश में चीनी क्षेत्र की खामियां दूर करने के लिए विशेषज्ञों और इस उद्योग के कारोबारियों ने गन्ना एवं एथेनॉल की कीमत तय करने के तरीकों में बड़े सुधारों की पैरवी की है। उनकी यह मांग आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) और संयुक्त राष्टï्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट में भारत की गन्ना कीमत निर्धारण नीति की आलोचना किए जाने के बाद उठी है। यह रिपोर्ट कहती है कि गन्ना कीमतों और अपेक्षाकृत बाजार संचालित चीनी के भाव के बीच कोई संबंध नहीं होता।देश में गन्ने का भाव केंद्र सरकार की ओर से हर साल घोषित होने वाले उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के आधार पर तय किया जाता है। इस मामले में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) से भी संपर्क किया जाता है। एफआरपी नीति के मुताबिक यदि राज्य सरकारें गन्ने के लिए ऊंचा भाव (राज्य सलाह मूल्य) रखने की मंशा रखते हैं, तो इसकी लागत उन्हें ही उठानी पड़ती है। लेकिन सीएसीपी के अध्यक्ष अशोक गुलाटी ओईसीडी और एफएओ के आकलन को पूरी तरह से सही नहीं ठहराते। उन्होंने कहा, 'चीनी क्षेत्र की खामियां दूर करने के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है। लेकिन, सरकार अब भी इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बदालव करने में संकोच कर रही है।उन्होंने कहा कि ओईसीडी और एफएओ के आकलन में भारत को लेकर गन्ने की कीमत और चीनी के भाव को एक-दूसरे से अलग करके देखा गया है, जो पूरी तरह सही नहीं है। उन्होंने कहा, 'हम कीमतें तय करते समय बाजार की परिस्थितियों और मांग एवं आपूर्ति के घटकों पर गौर करते हैं। इसमें नौकरशाही के मसले शामिल होते हैं और इसी के चलते कीमतें एक-दूसरे के अनुक्रम में नहीं होतीं।Ó उन्होंने यह भी कहा कि बाजार से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता, जिसकी मदद से कीमतें निर्धारित की जा सकें।बावजूद इसके, वह कहते हैं, 'ब्राजील के कारखाने गुड़ से चीनी की ओर रुख करते हैं और उनका रवैया इसके विपरीत भी हो सकता है, जो बाजार की जरूरतों पर निर्भर करता है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहां अब तक गुड़ से केवल एथेनॉल तैयार किया जाता है। भारतीय चीनी मिलों के संगठन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने भी कहा कि गन्ने की कीमत और चीनी के भाव में कोई संबंध नहीं होता। लेकिन चीनी की कीमतों के मामले में अलग-अलग राज्यों का रवैया भिन्न-भिन्न होता है।उन्होंने कहा, 'सरकार एक बेंचमार्क कीमत देती है। एफआरपी निश्चित मानकों पर आधारित होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में एफआरपी की वैधता नहीं होती क्योंकि वे एसएपी तय करते हैं, जो गन्ने की न्यूनतम कीमत होती है। यह एफआरपी से बहुत अधिक होती है। गुलाटी ने कहा कि कुछ प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में ऊंची एसएपी की वजह से कीमतों में भारी अंतर रहता है।वर्मा के मुताबिक ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और थाइलैंड जैसे देशों में विशेष कीमत फॉर्मूला इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि अगले महीने के लिए 3-4 लाख टन चीनी आगे बढ़ाई गई है क्योंकि सरकार ने जरूरी कोटे से अधिक चीनी जारी की थी। लेकिन जून में ऐसा नहीं हुआ। इस महीने चीनी का कारखाना भाव बहुत नीचे चला गया क्योंकि चीनी के कोटे को आगे नहीं बढ़ाया गया। उन्होंने बताया कि इस वर्ष के शुरुआती महीनों के दौरान उत्तर प्रदेश और महाराष्टï्र में प्रति क्विंटल लगभग 300 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि चीनी की बिक्री लागत से कम भाव पर की गई। (BS Hindi)
ई दिल्ली July 03, 2011
देश में चीनी क्षेत्र की खामियां दूर करने के लिए विशेषज्ञों और इस उद्योग के कारोबारियों ने गन्ना एवं एथेनॉल की कीमत तय करने के तरीकों में बड़े सुधारों की पैरवी की है। उनकी यह मांग आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) और संयुक्त राष्टï्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की एक रिपोर्ट में भारत की गन्ना कीमत निर्धारण नीति की आलोचना किए जाने के बाद उठी है। यह रिपोर्ट कहती है कि गन्ना कीमतों और अपेक्षाकृत बाजार संचालित चीनी के भाव के बीच कोई संबंध नहीं होता।देश में गन्ने का भाव केंद्र सरकार की ओर से हर साल घोषित होने वाले उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के आधार पर तय किया जाता है। इस मामले में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) से भी संपर्क किया जाता है। एफआरपी नीति के मुताबिक यदि राज्य सरकारें गन्ने के लिए ऊंचा भाव (राज्य सलाह मूल्य) रखने की मंशा रखते हैं, तो इसकी लागत उन्हें ही उठानी पड़ती है। लेकिन सीएसीपी के अध्यक्ष अशोक गुलाटी ओईसीडी और एफएओ के आकलन को पूरी तरह से सही नहीं ठहराते। उन्होंने कहा, 'चीनी क्षेत्र की खामियां दूर करने के लिए बड़े सुधारों की जरूरत है। लेकिन, सरकार अब भी इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण बदालव करने में संकोच कर रही है।उन्होंने कहा कि ओईसीडी और एफएओ के आकलन में भारत को लेकर गन्ने की कीमत और चीनी के भाव को एक-दूसरे से अलग करके देखा गया है, जो पूरी तरह सही नहीं है। उन्होंने कहा, 'हम कीमतें तय करते समय बाजार की परिस्थितियों और मांग एवं आपूर्ति के घटकों पर गौर करते हैं। इसमें नौकरशाही के मसले शामिल होते हैं और इसी के चलते कीमतें एक-दूसरे के अनुक्रम में नहीं होतीं।Ó उन्होंने यह भी कहा कि बाजार से ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता, जिसकी मदद से कीमतें निर्धारित की जा सकें।बावजूद इसके, वह कहते हैं, 'ब्राजील के कारखाने गुड़ से चीनी की ओर रुख करते हैं और उनका रवैया इसके विपरीत भी हो सकता है, जो बाजार की जरूरतों पर निर्भर करता है। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। यहां अब तक गुड़ से केवल एथेनॉल तैयार किया जाता है। भारतीय चीनी मिलों के संगठन (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने भी कहा कि गन्ने की कीमत और चीनी के भाव में कोई संबंध नहीं होता। लेकिन चीनी की कीमतों के मामले में अलग-अलग राज्यों का रवैया भिन्न-भिन्न होता है।उन्होंने कहा, 'सरकार एक बेंचमार्क कीमत देती है। एफआरपी निश्चित मानकों पर आधारित होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु जैसे राज्यों में एफआरपी की वैधता नहीं होती क्योंकि वे एसएपी तय करते हैं, जो गन्ने की न्यूनतम कीमत होती है। यह एफआरपी से बहुत अधिक होती है। गुलाटी ने कहा कि कुछ प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में ऊंची एसएपी की वजह से कीमतों में भारी अंतर रहता है।वर्मा के मुताबिक ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और थाइलैंड जैसे देशों में विशेष कीमत फॉर्मूला इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने कहा कि अगले महीने के लिए 3-4 लाख टन चीनी आगे बढ़ाई गई है क्योंकि सरकार ने जरूरी कोटे से अधिक चीनी जारी की थी। लेकिन जून में ऐसा नहीं हुआ। इस महीने चीनी का कारखाना भाव बहुत नीचे चला गया क्योंकि चीनी के कोटे को आगे नहीं बढ़ाया गया। उन्होंने बताया कि इस वर्ष के शुरुआती महीनों के दौरान उत्तर प्रदेश और महाराष्टï्र में प्रति क्विंटल लगभग 300 रुपये का नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि चीनी की बिक्री लागत से कम भाव पर की गई। (BS Hindi)
सुस्त मानसून के अनुमान से चिंता की लकीरें
आर. एस. राणा नई दिल्ली
उम्मीदपंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जून में सामान्य से 72 फीसदी ज्यादा बारिशपूरे देश में जून के दौरान मानसूनी बारिश सामान्य से करीब 11 फीसदी ज्यादा रहीमानसून के 36 डिवीजनों में से 26 में बेहतर बारिश सिर्फ दस क्षेत्रों में मानसून सुस्तमौसम विज्ञानियों को 2009 जैसी सूखे की स्थिति होने की दूर-दूर तक आशंका नहींमानसून के बिगड़े मिजाज का असर खरीफ फसलों की बुवाई पर पडऩे लगा है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ में चावल, दलहन, मोटे अनाज और कपास की बुवाई पिछडऩे लगी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जून महीनें में जारी किए गए दूसरे पूर्वानुमान के अनुसार वर्ष 2011 में देशभर में 95 फीसदी बारिश होने का अनुमान है जो सौ फीसदी सामान्य से थोड़ा कम है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जुलाई महीना खरीफ फसलों की बुवाई के लिए अहम है। जून महीने में देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य से करीब 11 फीसदी ज्यादा हुई है। इसीलिए अभी ज्यादा चिंता की बात नहीं है।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक चावल की बुवाई पिछले साल के 44.23 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 41.37 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। इसी तरह से दलहन की बुवाई पिछले साल के 8.68 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 7.08 लाख हैक्टेयर में और मोटे अनाजों ज्वार, मक्का तथा बाजरा की बुवाई 22.05 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है। पिछले साल की समान अवधि में मोटे अनाजों की बुवाई 26.75 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। सबसे ज्यादा कपास की बुवाई में 10.02 लाख हैक्टेयर की कमी आई है। चालू खरीफ में कपास की बुवाई 35.17 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कृषि भौतिकी के अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र सिंह ने बताया कि मौसम विभाग की भविष्यवाणी के मुताबिक देशभर में 95 फीसदी बारिश (इसमें भी चार फीसदी कम या ज्यादा संभव) होने का अनुमान है जो सामान्य से थोड़ी कम है। 2009 में चक्रवात के कारण मौसम में गड़बड़ी हो गई थी लेकिन चालू साल में ऐसी कोई संभावना नहीं है।
जुलाई महीना खरीफ फसलों की बुवाई के लिए महत्वपूर्ण है। इसीलिए जुलाई में कैसी बारिश होती है, ये काफी महत्वपूर्ण होगा। आईएआरआई के एग्रोनॉमी के अध्यक्ष डॉ. ए. के. व्यास ने बताया कि चालू साल में 2009 वाली स्थिति नहीं बनेगी। वैसे भी जून में देशभर में अच्छी वर्षा हुई है।
मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए चालू साल में भी मानसून सामान्य ही रहने की संभावना है। आईएमडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मानसून के लिहाज से देश को 36 हिस्सों में बांटा हुआ है, इनमें से इस साल जून में 17 इलाकों में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है जबकि 9 इलाकों में सामान्य और 8 में कम बारिश हुई है।
दो इलाकों में बारिश काफी कम हुई है। उत्तर पश्चिम भारत के प्रमुख खाद्यान्न उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जून में सामान्य से 72 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। जबकि देश के पश्चिमी इलाकों गुजरात, मराठवाड़ा और तेलंगाना में कम बारिश हुई है।
वर्ष 2010 में देश में सामान्य से 2 फीसदी ज्यादा बारिश हुई, जिससे खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन 23.58 करोड़ टन होने का अनुमान है। जबकि 2009 में देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बन गए थे। 2009 में पूरे देश में सामान्य से 22 फीसदी बारिश कम हुई थी जिससे खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2008 के 23.44 करोड़ टन से घटकर 21.81 करोड़ टन रह गया था। वर्ष 2005 से 2010 के दौरान देश में केवल 2007 और 2010 में ही सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है। (Business Bhaskar...R S Rana)
उम्मीदपंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जून में सामान्य से 72 फीसदी ज्यादा बारिशपूरे देश में जून के दौरान मानसूनी बारिश सामान्य से करीब 11 फीसदी ज्यादा रहीमानसून के 36 डिवीजनों में से 26 में बेहतर बारिश सिर्फ दस क्षेत्रों में मानसून सुस्तमौसम विज्ञानियों को 2009 जैसी सूखे की स्थिति होने की दूर-दूर तक आशंका नहींमानसून के बिगड़े मिजाज का असर खरीफ फसलों की बुवाई पर पडऩे लगा है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ में चावल, दलहन, मोटे अनाज और कपास की बुवाई पिछडऩे लगी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जून महीनें में जारी किए गए दूसरे पूर्वानुमान के अनुसार वर्ष 2011 में देशभर में 95 फीसदी बारिश होने का अनुमान है जो सौ फीसदी सामान्य से थोड़ा कम है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जुलाई महीना खरीफ फसलों की बुवाई के लिए अहम है। जून महीने में देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य से करीब 11 फीसदी ज्यादा हुई है। इसीलिए अभी ज्यादा चिंता की बात नहीं है।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ में अभी तक चावल की बुवाई पिछले साल के 44.23 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 41.37 लाख हैक्टेयर में ही हुई है। इसी तरह से दलहन की बुवाई पिछले साल के 8.68 लाख हैक्टेयर के मुकाबले 7.08 लाख हैक्टेयर में और मोटे अनाजों ज्वार, मक्का तथा बाजरा की बुवाई 22.05 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है। पिछले साल की समान अवधि में मोटे अनाजों की बुवाई 26.75 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। सबसे ज्यादा कपास की बुवाई में 10.02 लाख हैक्टेयर की कमी आई है। चालू खरीफ में कपास की बुवाई 35.17 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कृषि भौतिकी के अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र सिंह ने बताया कि मौसम विभाग की भविष्यवाणी के मुताबिक देशभर में 95 फीसदी बारिश (इसमें भी चार फीसदी कम या ज्यादा संभव) होने का अनुमान है जो सामान्य से थोड़ी कम है। 2009 में चक्रवात के कारण मौसम में गड़बड़ी हो गई थी लेकिन चालू साल में ऐसी कोई संभावना नहीं है।
जुलाई महीना खरीफ फसलों की बुवाई के लिए महत्वपूर्ण है। इसीलिए जुलाई में कैसी बारिश होती है, ये काफी महत्वपूर्ण होगा। आईएआरआई के एग्रोनॉमी के अध्यक्ष डॉ. ए. के. व्यास ने बताया कि चालू साल में 2009 वाली स्थिति नहीं बनेगी। वैसे भी जून में देशभर में अच्छी वर्षा हुई है।
मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए चालू साल में भी मानसून सामान्य ही रहने की संभावना है। आईएमडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मानसून के लिहाज से देश को 36 हिस्सों में बांटा हुआ है, इनमें से इस साल जून में 17 इलाकों में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है जबकि 9 इलाकों में सामान्य और 8 में कम बारिश हुई है।
दो इलाकों में बारिश काफी कम हुई है। उत्तर पश्चिम भारत के प्रमुख खाद्यान्न उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जून में सामान्य से 72 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। जबकि देश के पश्चिमी इलाकों गुजरात, मराठवाड़ा और तेलंगाना में कम बारिश हुई है।
वर्ष 2010 में देश में सामान्य से 2 फीसदी ज्यादा बारिश हुई, जिससे खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन 23.58 करोड़ टन होने का अनुमान है। जबकि 2009 में देश के कई राज्यों में सूखे जैसे हालात बन गए थे। 2009 में पूरे देश में सामान्य से 22 फीसदी बारिश कम हुई थी जिससे खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2008 के 23.44 करोड़ टन से घटकर 21.81 करोड़ टन रह गया था। वर्ष 2005 से 2010 के दौरान देश में केवल 2007 और 2010 में ही सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है। (Business Bhaskar...R S Rana)
02 जुलाई 2011
मई में कॉफी निर्यात 16 प्रतिशत बढ़ा
नई दिल्ली July 01, 2011
अंतरराष्ट्रीय कॉफी संगठन (आईसीओ) ने कहा है कि मांग बढऩे की वजह से मई के महीने में वैश्विक कॉफी निर्यात 16 प्रतिशत बढ़कर 92 लाख बैग हो गया। कॉफी का एक बैग 60 किलोग्राम का होता है। आईसीओ ने कहा कि कॉफी का निर्यात वर्ष भर पहले की समान अवधि में 79.4 लाख बैग का हुआ था।
आईसीओ के अनुसार, कॉफी वर्ष के पहले 8 महीनों (अक्तूबर 2010 से मई 2011) में कॉफी निर्यात करीब 17 प्रतिशत बढ़कर 7 करोड़ 19.4 लाख बैग हो गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में छह करोड़ 16.2 लाख बैग था। आईसीओ ने कॉफी का वैश्विक उत्पादन चालू वर्ष में 13.3 करोड़ बैग होने का अनुमान व्यक्त किया है।
आईसीओ का अनुमान है कि 2011-12 में कॉफी उत्पादन 13 करोड़ बैग का होगा, जबकि अमेरिकी कृषि विभाग ने अपनी हालिया रपट में कॉफी उत्पादन 13.5 करोड़ बैग रहने का अनुमान व्यक्त किया है। (BS Hindi)
अंतरराष्ट्रीय कॉफी संगठन (आईसीओ) ने कहा है कि मांग बढऩे की वजह से मई के महीने में वैश्विक कॉफी निर्यात 16 प्रतिशत बढ़कर 92 लाख बैग हो गया। कॉफी का एक बैग 60 किलोग्राम का होता है। आईसीओ ने कहा कि कॉफी का निर्यात वर्ष भर पहले की समान अवधि में 79.4 लाख बैग का हुआ था।
आईसीओ के अनुसार, कॉफी वर्ष के पहले 8 महीनों (अक्तूबर 2010 से मई 2011) में कॉफी निर्यात करीब 17 प्रतिशत बढ़कर 7 करोड़ 19.4 लाख बैग हो गया, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में छह करोड़ 16.2 लाख बैग था। आईसीओ ने कॉफी का वैश्विक उत्पादन चालू वर्ष में 13.3 करोड़ बैग होने का अनुमान व्यक्त किया है।
आईसीओ का अनुमान है कि 2011-12 में कॉफी उत्पादन 13 करोड़ बैग का होगा, जबकि अमेरिकी कृषि विभाग ने अपनी हालिया रपट में कॉफी उत्पादन 13.5 करोड़ बैग रहने का अनुमान व्यक्त किया है। (BS Hindi)
डिफॉल्टर पर सख्त हुआ एफएमसी
मुंबई July 01, 2011
शेयर बाजार नियामक सेबी के पद्चिह्नों पर चलते हुए वायदा बाजार नियामक ने सभी एक्सचेंजों को निर्देश दिया है कि किसी एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वाले कारोबारियों को सभी एक्सचेंजों में डिफॉल्टर माना जाए।नियमन को और ज्यादा प्रभावी बनाने की खातिर एफएमसी ने सभी एक्सचेंजों से कहा है कि वह दोषी कारोबारियों की सूची सभी एक्सचेंजों के साथ साझा करे, ताकि वह दूसरे एक्सचेंजों पर कारोबार करने में कामयाब न हो सके। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी एक्सचेंज की सदस्यता किसी व्यक्ति के नाम से है तो इस सदस्य को सभी एक्सचेंजों पर कारोबार करने से तत्काल रोक दिया जाएगा।30 जून को जारी एफएमसी के परिपत्र (सर्कुलर) में स्पष्ट किया गया है कि अगर डिफॉल्टर की सदस्यता किसी कंपनी के नाम से हो तो भी एक्सचेंज बड़े शेयरधारकों के नाम तत्काल बताए, जिसने डिफॉल्ट किया हो।दिशानिर्देश के पहले हालांकि एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वाले कारोबारी आसानी से दूसरे एक्सचेंज पर कारोबार शुरू कर देते थे क्योंकि ऐसी सूचना एक एक्सचेंज से दूसरे एक्सचेंज तक नहीं पहुंचती थी और एक्सचेंजों के बीच एकरूपता नहीं होती थी। चूंकि एक्सचेंज का प्रशासन उनके खुद के दिशानिर्देशों से होता है, लिहाजा एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वाले कारोबारी को दूसरे एक्सचेंजों पर कभी भी सजा नहीं मिलती थी।एनसीडीईएक्स के चीफ बिजनेस अफसर विजय कुमार ने कहा - 'डिफॉल्टर कभी कभार ही सामने आते हैं यानी ऐसा शायद ही कभी होता है। आवश्यक नहीं है कि यह किसी उत्पाद विशेष में हो, बल्कि यह घटना विशेष हो सकती है। अगर किसी खास जिंस में देर शाम कीमतों में उतारचढ़ाव होने की वजह से मार्जिन नहीं वसूला गया हो तो क्लाइंट की तरफ से डिफॉल्ट की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में एफएमसी का यह कदम स्वागतयोग्य है।Óइस परिपत्र में कहा गया है कि अगर डिफॉल्टर का सहयोगी दूसरे एक्सचेंजों की सदस्यता रखता हो तो फिर ऐसे सहयोगी के खिलाफ कार्रवाई जरूरी होगी। लेकिन कार्रवाई का फैसला प्रासंगिक तथ्यों की जांच करने के बाद संबंधित जिंस एक्सचेंज करेंगे।शेयर बाजार नियामक सेबी ने ऐसे दिशानिर्देश 1992 में जारी किए थे और एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वालों को दूसरे एक्सचेंज का भी डिफॉल्टर अनिवार्य कर दिया था। इसलिए एफएमसी के दिशानिर्देशों का मतलब यह है कि जिस एक्सचेंज पर सदस्य ने डिफॉल्ट किया हो वह एक्सचेंज सदस्यता शुल्क, मार्जिन की रकम अपने पास रोक लेगा। डिफॉल्ट वाली रकम सदस्यता शुल्क व एक्सचेंज के पास जमा रकम में से समायोजित कर एक्सचेंज बाकी रकम क्लाइंट के नाम से जमा करेगा।एफएमसी के संशोधित दिशानिर्देश के साथ अब सवाल उठ रहा है कि उस रकम के साथ क्या होगा जिसे उस सदस्य ने सदस्यता शुल्क व मार्जिन के तौर पर एक्सचेंजों में जमा किया हो, जहां वह डिफॉल्टर नहीं है? हालांकि एक्सचेंज इस मुद्दे पर मौन है, लेकिन एक्सचेंजों के पास इसका जवाब है।एस डेरिवेटिव ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज के सीईओ दिलीप भाटिया ने कहा कि दूसरे एक्सचेंजों के पास जमा रकम का हिसाब-किताब उन एक्सचेंजों के दिशानिर्देशों के आधार पर होगा। लेकिन यह अच्छी खबर है कि एफएमसी ने डिफॉल्टर का नाम दूसरे एक्सचेंजों के साथ साझा करना अनिवार्य बना दिया है। उन्होंने कहा कि इससे एक्सचेंजों को ऐसे व्यक्तियों या कंपनियों को सदस्यता देने से इनकार करने में मदद मिलेगी। (BS Hindi)
शेयर बाजार नियामक सेबी के पद्चिह्नों पर चलते हुए वायदा बाजार नियामक ने सभी एक्सचेंजों को निर्देश दिया है कि किसी एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वाले कारोबारियों को सभी एक्सचेंजों में डिफॉल्टर माना जाए।नियमन को और ज्यादा प्रभावी बनाने की खातिर एफएमसी ने सभी एक्सचेंजों से कहा है कि वह दोषी कारोबारियों की सूची सभी एक्सचेंजों के साथ साझा करे, ताकि वह दूसरे एक्सचेंजों पर कारोबार करने में कामयाब न हो सके। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी एक्सचेंज की सदस्यता किसी व्यक्ति के नाम से है तो इस सदस्य को सभी एक्सचेंजों पर कारोबार करने से तत्काल रोक दिया जाएगा।30 जून को जारी एफएमसी के परिपत्र (सर्कुलर) में स्पष्ट किया गया है कि अगर डिफॉल्टर की सदस्यता किसी कंपनी के नाम से हो तो भी एक्सचेंज बड़े शेयरधारकों के नाम तत्काल बताए, जिसने डिफॉल्ट किया हो।दिशानिर्देश के पहले हालांकि एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वाले कारोबारी आसानी से दूसरे एक्सचेंज पर कारोबार शुरू कर देते थे क्योंकि ऐसी सूचना एक एक्सचेंज से दूसरे एक्सचेंज तक नहीं पहुंचती थी और एक्सचेंजों के बीच एकरूपता नहीं होती थी। चूंकि एक्सचेंज का प्रशासन उनके खुद के दिशानिर्देशों से होता है, लिहाजा एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वाले कारोबारी को दूसरे एक्सचेंजों पर कभी भी सजा नहीं मिलती थी।एनसीडीईएक्स के चीफ बिजनेस अफसर विजय कुमार ने कहा - 'डिफॉल्टर कभी कभार ही सामने आते हैं यानी ऐसा शायद ही कभी होता है। आवश्यक नहीं है कि यह किसी उत्पाद विशेष में हो, बल्कि यह घटना विशेष हो सकती है। अगर किसी खास जिंस में देर शाम कीमतों में उतारचढ़ाव होने की वजह से मार्जिन नहीं वसूला गया हो तो क्लाइंट की तरफ से डिफॉल्ट की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में एफएमसी का यह कदम स्वागतयोग्य है।Óइस परिपत्र में कहा गया है कि अगर डिफॉल्टर का सहयोगी दूसरे एक्सचेंजों की सदस्यता रखता हो तो फिर ऐसे सहयोगी के खिलाफ कार्रवाई जरूरी होगी। लेकिन कार्रवाई का फैसला प्रासंगिक तथ्यों की जांच करने के बाद संबंधित जिंस एक्सचेंज करेंगे।शेयर बाजार नियामक सेबी ने ऐसे दिशानिर्देश 1992 में जारी किए थे और एक एक्सचेंज पर डिफॉल्ट करने वालों को दूसरे एक्सचेंज का भी डिफॉल्टर अनिवार्य कर दिया था। इसलिए एफएमसी के दिशानिर्देशों का मतलब यह है कि जिस एक्सचेंज पर सदस्य ने डिफॉल्ट किया हो वह एक्सचेंज सदस्यता शुल्क, मार्जिन की रकम अपने पास रोक लेगा। डिफॉल्ट वाली रकम सदस्यता शुल्क व एक्सचेंज के पास जमा रकम में से समायोजित कर एक्सचेंज बाकी रकम क्लाइंट के नाम से जमा करेगा।एफएमसी के संशोधित दिशानिर्देश के साथ अब सवाल उठ रहा है कि उस रकम के साथ क्या होगा जिसे उस सदस्य ने सदस्यता शुल्क व मार्जिन के तौर पर एक्सचेंजों में जमा किया हो, जहां वह डिफॉल्टर नहीं है? हालांकि एक्सचेंज इस मुद्दे पर मौन है, लेकिन एक्सचेंजों के पास इसका जवाब है।एस डेरिवेटिव ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज के सीईओ दिलीप भाटिया ने कहा कि दूसरे एक्सचेंजों के पास जमा रकम का हिसाब-किताब उन एक्सचेंजों के दिशानिर्देशों के आधार पर होगा। लेकिन यह अच्छी खबर है कि एफएमसी ने डिफॉल्टर का नाम दूसरे एक्सचेंजों के साथ साझा करना अनिवार्य बना दिया है। उन्होंने कहा कि इससे एक्सचेंजों को ऐसे व्यक्तियों या कंपनियों को सदस्यता देने से इनकार करने में मदद मिलेगी। (BS Hindi)
चीनी क्षेत्र में 900 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश
पटना July 01, 2011
बिहार में आने वाले वक्त में चीनी की मिठास बढऩे वाली है। राज्य सरकार के मुताबिक चीनी मिलों की स्थापना और पुरानी मिलों की क्षमता में इजाफा करने के लिए बिहार में अब तक 900 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम का निवेश किया जा चुका है। साथ ही, राज्य सरकार को इस क्षेत्र में नए निवेशकों के भी आने की उम्मीद बरकरार है। राज्य के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'राज्य में चीनी मिलों में निवेश करने के लिए हमारे पास कई प्रस्ताव आ रहे हैं। इनमें से 900 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम का निवेश को जमीन पर हो भी चुका है। इसमें से 501 करोड़ रुपये का निवेश नई चीनी मिलों की स्थापना के लिए किया जा चुका है। वहीं, पुरानी चीनी मिलों के विस्तार के हेतु 404 करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। यह वाकई काफी अच्छी बात है कि निवेशक हमारे राज्य में चीनी उद्योग में निवेश के लिए इतनी उत्सुकता दिखा रहे हैं।Ó दरअसल, राज्य में उत्पादन के लिए दो नई चीनी मिलें तैयार हैं। दूसरी तरफ, मौजूदा चीनी मिलों में से ज्यादातर अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन के लिए तैयार हैं। राज्य के उद्योग विभाग के प्रधान सचिव सी.के.मिश्रा ने बताया, 'राज्य में पहले से काम कर रही चीनी मिलों ने बीते कुछ साल में विस्तार के मद में मोटा निवेश किया है। इससे इन चीनी मिलों की उत्पादन क्षमता काफी बढ़ चुकी है। मिसाल के तौर पर हरिनगर चीनी मिल मेंं पेराई क्षमता को 8,500 से बढ़ाकर 10 हजार टीसीडी (टन प्रतिदिन पेराई) किया जा चुका है। यह मिल अपनी विस्तारित क्षमता पर काम कर रही है। वहीं, नरकटियागंज और सिधवलिया चीनी मिलों की पेराई क्षमता भी बढ़ाकर 7,500 और 5,000 टीसीडी की जा चुकी है। बड़ी बात यह है कि हमारे राज्य में चीनी मिलें अपनी पूरी क्षमता से काम कर रही हैं।Ó उन्होंने कहा, 'दूसरी तरफ, नई चीनी मिलें भी अब उत्पादन के लिए तैयार हैं। हिंदुस्तान पेट्रोकेमिकल्स लि. (एचपीसीएल) ने हमारी सुगौली और लौरिया चीनी मिलों का 2008 में अधिग्रहण किया था। ये मिलें भी अब उत्पादन के लिए तैयार हैं। यहां से अगले पेराई के मौसम से उत्पादन शुरू हो जाएगा। दूसरी तरफ, मोतीपुर चीनी मिल का काम भी तेजी से चल रहा है। यहां से भी अगले 2-3 साल में उत्पादन शुरू हो जाएगा।Óमोदी ने कहा, 'बीते 5-6 साल में राज्य में औद्योगिक वातावरण में काफी सुधार देखने को मिला है। अब देश के बड़े-बड़े उद्योगपति या तो राज्य में निवेश कर रहे हैं या फिर इसकी योजना बना रहे हैं। हमारी कोशिश है कि हम राज्य के तरफ ज्यादा से ज्यादा पूंजीनिवेश को लेकर आ सकें।Ó उन्होंने बताया, 'चीनी उद्योग इस मामले में हमारे लिए काफी अहम हैं। बिहार आजादी के पहले से ही देश में चीनी का प्रमुख उत्पादक राज्य रहा है। हालांकि केंद्र सरकार की योजनाओं और इस उद्योग की अनदेखी की वजह से राज्य में चीनी उद्योग की हालत खस्ता हुई। अब हम इसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं। (BS Hindi)
बिहार में आने वाले वक्त में चीनी की मिठास बढऩे वाली है। राज्य सरकार के मुताबिक चीनी मिलों की स्थापना और पुरानी मिलों की क्षमता में इजाफा करने के लिए बिहार में अब तक 900 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम का निवेश किया जा चुका है। साथ ही, राज्य सरकार को इस क्षेत्र में नए निवेशकों के भी आने की उम्मीद बरकरार है। राज्य के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'राज्य में चीनी मिलों में निवेश करने के लिए हमारे पास कई प्रस्ताव आ रहे हैं। इनमें से 900 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम का निवेश को जमीन पर हो भी चुका है। इसमें से 501 करोड़ रुपये का निवेश नई चीनी मिलों की स्थापना के लिए किया जा चुका है। वहीं, पुरानी चीनी मिलों के विस्तार के हेतु 404 करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है। यह वाकई काफी अच्छी बात है कि निवेशक हमारे राज्य में चीनी उद्योग में निवेश के लिए इतनी उत्सुकता दिखा रहे हैं।Ó दरअसल, राज्य में उत्पादन के लिए दो नई चीनी मिलें तैयार हैं। दूसरी तरफ, मौजूदा चीनी मिलों में से ज्यादातर अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन के लिए तैयार हैं। राज्य के उद्योग विभाग के प्रधान सचिव सी.के.मिश्रा ने बताया, 'राज्य में पहले से काम कर रही चीनी मिलों ने बीते कुछ साल में विस्तार के मद में मोटा निवेश किया है। इससे इन चीनी मिलों की उत्पादन क्षमता काफी बढ़ चुकी है। मिसाल के तौर पर हरिनगर चीनी मिल मेंं पेराई क्षमता को 8,500 से बढ़ाकर 10 हजार टीसीडी (टन प्रतिदिन पेराई) किया जा चुका है। यह मिल अपनी विस्तारित क्षमता पर काम कर रही है। वहीं, नरकटियागंज और सिधवलिया चीनी मिलों की पेराई क्षमता भी बढ़ाकर 7,500 और 5,000 टीसीडी की जा चुकी है। बड़ी बात यह है कि हमारे राज्य में चीनी मिलें अपनी पूरी क्षमता से काम कर रही हैं।Ó उन्होंने कहा, 'दूसरी तरफ, नई चीनी मिलें भी अब उत्पादन के लिए तैयार हैं। हिंदुस्तान पेट्रोकेमिकल्स लि. (एचपीसीएल) ने हमारी सुगौली और लौरिया चीनी मिलों का 2008 में अधिग्रहण किया था। ये मिलें भी अब उत्पादन के लिए तैयार हैं। यहां से अगले पेराई के मौसम से उत्पादन शुरू हो जाएगा। दूसरी तरफ, मोतीपुर चीनी मिल का काम भी तेजी से चल रहा है। यहां से भी अगले 2-3 साल में उत्पादन शुरू हो जाएगा।Óमोदी ने कहा, 'बीते 5-6 साल में राज्य में औद्योगिक वातावरण में काफी सुधार देखने को मिला है। अब देश के बड़े-बड़े उद्योगपति या तो राज्य में निवेश कर रहे हैं या फिर इसकी योजना बना रहे हैं। हमारी कोशिश है कि हम राज्य के तरफ ज्यादा से ज्यादा पूंजीनिवेश को लेकर आ सकें।Ó उन्होंने बताया, 'चीनी उद्योग इस मामले में हमारे लिए काफी अहम हैं। बिहार आजादी के पहले से ही देश में चीनी का प्रमुख उत्पादक राज्य रहा है। हालांकि केंद्र सरकार की योजनाओं और इस उद्योग की अनदेखी की वजह से राज्य में चीनी उद्योग की हालत खस्ता हुई। अब हम इसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं। (BS Hindi)
01 जुलाई 2011
सरकार ने 178 कंपनियों को कपास का निर्यात करने से रोका
मुंबई June 30, 2011
सरकार ने कपास निर्यात की निर्धारित मात्रा को बाहर भेजने में विफल रहने अथवा विभिन्न जरुरतों पर खरा नहीं उतरने के कारण 178 कंपनियों को कपास का निर्यात करने से रोक लगा दी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने उन कंपनियों की सूची प्रकाशित की है जिन्हें कपास निर्यात के लिए आवंटन प्राप्त करने से रोक दिया गया है।
सरकार ने निर्यात के लिए 928 आवेदकों को 19 लाख गांठों (एक गांठ 170 किलोग्राम) का आवंटन किया था। प्रत्येक निर्यातक केवल आवंटित कोटे की खेप ही बाहर भेज सकता है। प्रतिबंधित की गई 178 कंपनियों में से 100 कंपनियां मुंबई डीजीएफटी में पंजीकृत हैं, 34 चेन्नई में और शेष दिल्ली और कोलकाता में पंजीकृत हैं। (BS Hindi)
सरकार ने कपास निर्यात की निर्धारित मात्रा को बाहर भेजने में विफल रहने अथवा विभिन्न जरुरतों पर खरा नहीं उतरने के कारण 178 कंपनियों को कपास का निर्यात करने से रोक लगा दी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने उन कंपनियों की सूची प्रकाशित की है जिन्हें कपास निर्यात के लिए आवंटन प्राप्त करने से रोक दिया गया है।
सरकार ने निर्यात के लिए 928 आवेदकों को 19 लाख गांठों (एक गांठ 170 किलोग्राम) का आवंटन किया था। प्रत्येक निर्यातक केवल आवंटित कोटे की खेप ही बाहर भेज सकता है। प्रतिबंधित की गई 178 कंपनियों में से 100 कंपनियां मुंबई डीजीएफटी में पंजीकृत हैं, 34 चेन्नई में और शेष दिल्ली और कोलकाता में पंजीकृत हैं। (BS Hindi)
सदस्यता लें
संदेश (Atom)