महाराष्ट्र की बेंचमार्क पिंपलगांव मंडी में आज प्याज के दाम बढ़कर 2,800
रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गए। कीमतों में बढ़ोतरी की वजह आवक में भारी
गिरावट आना है। आवक इसलिए कम हुई है क्योंंकि स्टॉकिस्ट आगे कीमतें और बढऩे
की उम्मीद में अपना स्टॉक रोके हुए हैं। प्याज की कीमत का यह स्तर इस
महीने में इस जिंस की कीमत में 123.82 फीसदी बढ़ोतरी दर्शाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि नए सीजन की फसल बाजार में नहीं आने तक प्याज में तेजी जारी रहेगी और नई फसल आने में अभी तीन महीने बाकी हैं। सरकार ने प्याज की कीमतों में तेजी रोकने के लिए कई उपायों की घोषणा की है, लेकिन कीमतें हालात के कारण बढ़ी हैं जो उसके काबू में नहीं हैं। जैसे इस साल मार्च-अप्रैल में बेमौसम बारिश से रबी की फसल को नुकसान हो गया और लगातार तीन सप्ताह से बारिश न आने से रकबा घटने की आशंका बढ़ी है। साथ ही, इस सीजन में खरीफ की फसल की आवक में देरी की आशंका शामिल हैं। कृषि उपज विपणन समिति पिंपलगांव के निदेशक अतुल शाह ने कहा, 'कम आपूर्ति के चलते पिंपलगांव मंडी में देर शाम की नीलामी में प्याज की कीमत 2,800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को छू गई। बड़े स्टॉकिस्ट बाजार में सीमित मात्रा में प्याज निकाल रहे हैं क्योंकि उन्हें कीमतें और बढऩे की उम्मीद है। कम आपूर्ति का मुख्य कारण पिछले सीजन में मार्च-अप्रैल में बेमौसम बारिश से रबी की फसल खराब हो जाना था। जुलाई में बारिश की कमी के कारण खरीफ फसल की फिर से बुआई में देरी के आसार हैं।'
प्याज की बढ़ती कीमत ने सरकार की तैयारियों को निष्प्रभावी कर दिया है। वर्ष 2013 में खुदरा बाजार में प्याज के दाम 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए थे और इसका दोहराव रोकने के लिए सरकार ने कई उपायों की घोषणा की थी, लेकिन ये सब नाकाफी साबित हुए हैं। इन उपायों के तहत जमाखोरी पर रोक वर्ष 2016 तक बढ़ा दी गई। वहीं निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए इसका न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 250 डॉलर प्रति टन से बढ़ाकर 425 डॉलर प्रति टन किया गया। इसके नतीजतन भारत के प्याज निर्यात ऑर्डर थम गए। ये ऑर्डर पाकिस्तान, ईरान और चीन को मिलने लगे, जहां कीमतें भारतीय कीमतों से 100 डॉलर प्रति टन कम हैं। मुंबई के एक कारोबारी ने कहा, 'अप्रतिस्पर्धी कीमतों के कारण भारत निर्यात बाजार से बाहर हो गया है।'
पिछले केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कीमत स्थिरता कोष (पीएसएफ) के लिए पहली बार 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। स्मॉल फार्मर्स एग्रीबिज़नेस कंसोर्टियम और नैशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नेफेड) को क्रमश: 10,000 टन और 2,500 टन का बफर स्टॉक बनाने का जिम्मा सौंपा गया था।
नासिक के एक कारोबारी ने कहा, 'भारत का उत्पादन और खपत करीब 1.9 करोड़ टन है, इसलिए इन दोनों एजेंसियों की 12,500 टन की खरीद नगण्य है। अगर सरकार एक बार में ही इस स्टॉक को बाजार में निकाल दे तो भी कीमतों में बढ़ोतरी को रोकना संभव नहीं होगा।' एनएचआरडीएफ के निदेशक आर पी गुप्ता का मानना है कि कीमतों में वर्तमान तेजी भंडारण क्षेत्रों में पिछले दो दिनों में लगातार बारिश की वजह से आई है, जिसकी वजह से स्टॉकिस्ट मंडियों में पर्याप्त मात्रा में बिक्री नहीं कर सके। (BS Hindi)
विशेषज्ञों का मानना है कि नए सीजन की फसल बाजार में नहीं आने तक प्याज में तेजी जारी रहेगी और नई फसल आने में अभी तीन महीने बाकी हैं। सरकार ने प्याज की कीमतों में तेजी रोकने के लिए कई उपायों की घोषणा की है, लेकिन कीमतें हालात के कारण बढ़ी हैं जो उसके काबू में नहीं हैं। जैसे इस साल मार्च-अप्रैल में बेमौसम बारिश से रबी की फसल को नुकसान हो गया और लगातार तीन सप्ताह से बारिश न आने से रकबा घटने की आशंका बढ़ी है। साथ ही, इस सीजन में खरीफ की फसल की आवक में देरी की आशंका शामिल हैं। कृषि उपज विपणन समिति पिंपलगांव के निदेशक अतुल शाह ने कहा, 'कम आपूर्ति के चलते पिंपलगांव मंडी में देर शाम की नीलामी में प्याज की कीमत 2,800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को छू गई। बड़े स्टॉकिस्ट बाजार में सीमित मात्रा में प्याज निकाल रहे हैं क्योंकि उन्हें कीमतें और बढऩे की उम्मीद है। कम आपूर्ति का मुख्य कारण पिछले सीजन में मार्च-अप्रैल में बेमौसम बारिश से रबी की फसल खराब हो जाना था। जुलाई में बारिश की कमी के कारण खरीफ फसल की फिर से बुआई में देरी के आसार हैं।'
प्याज की बढ़ती कीमत ने सरकार की तैयारियों को निष्प्रभावी कर दिया है। वर्ष 2013 में खुदरा बाजार में प्याज के दाम 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए थे और इसका दोहराव रोकने के लिए सरकार ने कई उपायों की घोषणा की थी, लेकिन ये सब नाकाफी साबित हुए हैं। इन उपायों के तहत जमाखोरी पर रोक वर्ष 2016 तक बढ़ा दी गई। वहीं निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए इसका न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 250 डॉलर प्रति टन से बढ़ाकर 425 डॉलर प्रति टन किया गया। इसके नतीजतन भारत के प्याज निर्यात ऑर्डर थम गए। ये ऑर्डर पाकिस्तान, ईरान और चीन को मिलने लगे, जहां कीमतें भारतीय कीमतों से 100 डॉलर प्रति टन कम हैं। मुंबई के एक कारोबारी ने कहा, 'अप्रतिस्पर्धी कीमतों के कारण भारत निर्यात बाजार से बाहर हो गया है।'
पिछले केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कीमत स्थिरता कोष (पीएसएफ) के लिए पहली बार 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। स्मॉल फार्मर्स एग्रीबिज़नेस कंसोर्टियम और नैशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नेफेड) को क्रमश: 10,000 टन और 2,500 टन का बफर स्टॉक बनाने का जिम्मा सौंपा गया था।
नासिक के एक कारोबारी ने कहा, 'भारत का उत्पादन और खपत करीब 1.9 करोड़ टन है, इसलिए इन दोनों एजेंसियों की 12,500 टन की खरीद नगण्य है। अगर सरकार एक बार में ही इस स्टॉक को बाजार में निकाल दे तो भी कीमतों में बढ़ोतरी को रोकना संभव नहीं होगा।' एनएचआरडीएफ के निदेशक आर पी गुप्ता का मानना है कि कीमतों में वर्तमान तेजी भंडारण क्षेत्रों में पिछले दो दिनों में लगातार बारिश की वजह से आई है, जिसकी वजह से स्टॉकिस्ट मंडियों में पर्याप्त मात्रा में बिक्री नहीं कर सके। (BS Hindi)
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