कपास उत्पादक प्रमुख राज्य महाराष्ट्र और गुजरात के किसानों ने कपास की
जमकर बुआई की लेकिन इस महीने अभी तक बारिश न होने से फसल सूखने लगी है।
महाराष्ट्र में 90 फीसदी और गुजरात में 85 फीसदी से ज्यादा कपास की बुआई हो
चुकी है। इन दोनों राज्यों में एक दो-दिन में नहीं हुई तो दोबारा कपास की
बुआई करनी पड़ेगी, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान के साथ ही इसके रकबे में
कमी आ सकती है।
इस साल देश में कपास की बुआई सबसे बेहतर नजर आ रही है। कपास उत्पादक सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र में शुरुआती अच्छी बारिश का सबसे ज्यादा फायदा कपास किसानों ने उठाया है। महाराष्ट्र कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार अभी तक राज्य में कपास की बुआई 30 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच चुकी है। 11 जुलाई तक के आंकड़ों में महाराष्ट्र में कपास का रकबा 30.37 लाख हेक्टेयर दिखाया जा रहा है, जो खरीफ सीजन में कपास के कुल सामान्य रकबे का 90.4 फीसदी है, जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में महज 12.50 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। राज्य में जुलाई में बारिश न के बराबर होने के कारण फसल सूखने लगी है। सबसे बुरा हाल मराठवाड़ा और विदर्भ का है। विदर्भ के किशोर तिवारी कहते हैं कि यह सही है कि किसानों ने कपास की जमकर बुआई की थी, लेकिन 24 जून के बाद बारिश न होने से बोई गई फसल झुलस गई है, इसलिए अब किसानों को दोबारा बुआई करनी होगी।
देश के दूसरे बड़े कपास उत्पादक राज्य गुजरात में भी जून में हुई अच्छी बारिश से कपास का रकबा बढ़ा है। गुजरात में इस साल अभी तक पिछले साल की अपेक्षा कपास की दोगुनी बुआई हो चुकी है। गुजरात कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 13 जुलाई तक राज्य में करीब 23.20 लाख हेक्टेयर में कपास बोई गई है, जबकि पिछले साल 13 जुलाई तक राज्य में महज 10.20 लाख हेक्टेयर में कपास बोई गई थी। चालू सीजन में गुजरात में कपास का सामान्य रकबा 28 लाख हेक्टेयर के करीब है, लेकिन पिछले साल राज्य में कपास की बुआई 30 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच गई थी। गुजरात में सबसे ज्यादा कपास का उत्पादन सौराष्ट्र इलाके में होता है। सौराष्ट्र के कल्पेश भाई कहते हैं कि जो फसल बोई गई थी, उसमें से ज्यादातर झुलस गई है। अब दोबारा फसल की बुआई करनी होगी, जिससे किसानों पर लागत का भार बढ़ेगा और फसल मेंं देरी भी होगी। इससे उत्पादन प्रभावित होगा और किसान मजबूरी में कपास की फसल उजाड़कर दूसरी फसल लगाएंगे। इससे इस साल कपास का रकबा पिछले साल से कम रहने की आशंका है।
कपास की फसल पर संकट का असर बाजार पर भी पडऩा तय माना जा रहा है। कारोबारियों ने कहा कि विदेशी मांग कमजोर होने के साथ देश में कपास का रकबा बढऩे की खबरों से कीमतों पर दबाव था, लेकिन अगर गुजरात और महाराष्ट्र में कपास की फसल सूखी तो कीमतों में मजबूती आने लगेगी। कपास का बाजार इसी सप्ताह तय हो जाएगा। अगर पूरे सप्ताह बारिश नहीं हुई तो कपास में तेजी आने लगेगी। हालांकि बारिश होने पर कीमतें स्थिर रहेंगी। देश भर में कपास की बुआई अच्छी हुई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों केअनुसार देशभर में 10 जुलाई तक 87.83 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक देश में कपास की बुआई महज 45.10 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी। (BS Hindi)
इस साल देश में कपास की बुआई सबसे बेहतर नजर आ रही है। कपास उत्पादक सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र में शुरुआती अच्छी बारिश का सबसे ज्यादा फायदा कपास किसानों ने उठाया है। महाराष्ट्र कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार अभी तक राज्य में कपास की बुआई 30 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच चुकी है। 11 जुलाई तक के आंकड़ों में महाराष्ट्र में कपास का रकबा 30.37 लाख हेक्टेयर दिखाया जा रहा है, जो खरीफ सीजन में कपास के कुल सामान्य रकबे का 90.4 फीसदी है, जबकि पिछले साल इस समय तक राज्य में महज 12.50 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। राज्य में जुलाई में बारिश न के बराबर होने के कारण फसल सूखने लगी है। सबसे बुरा हाल मराठवाड़ा और विदर्भ का है। विदर्भ के किशोर तिवारी कहते हैं कि यह सही है कि किसानों ने कपास की जमकर बुआई की थी, लेकिन 24 जून के बाद बारिश न होने से बोई गई फसल झुलस गई है, इसलिए अब किसानों को दोबारा बुआई करनी होगी।
देश के दूसरे बड़े कपास उत्पादक राज्य गुजरात में भी जून में हुई अच्छी बारिश से कपास का रकबा बढ़ा है। गुजरात में इस साल अभी तक पिछले साल की अपेक्षा कपास की दोगुनी बुआई हो चुकी है। गुजरात कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक 13 जुलाई तक राज्य में करीब 23.20 लाख हेक्टेयर में कपास बोई गई है, जबकि पिछले साल 13 जुलाई तक राज्य में महज 10.20 लाख हेक्टेयर में कपास बोई गई थी। चालू सीजन में गुजरात में कपास का सामान्य रकबा 28 लाख हेक्टेयर के करीब है, लेकिन पिछले साल राज्य में कपास की बुआई 30 लाख हेक्टेयर के पार पहुंच गई थी। गुजरात में सबसे ज्यादा कपास का उत्पादन सौराष्ट्र इलाके में होता है। सौराष्ट्र के कल्पेश भाई कहते हैं कि जो फसल बोई गई थी, उसमें से ज्यादातर झुलस गई है। अब दोबारा फसल की बुआई करनी होगी, जिससे किसानों पर लागत का भार बढ़ेगा और फसल मेंं देरी भी होगी। इससे उत्पादन प्रभावित होगा और किसान मजबूरी में कपास की फसल उजाड़कर दूसरी फसल लगाएंगे। इससे इस साल कपास का रकबा पिछले साल से कम रहने की आशंका है।
कपास की फसल पर संकट का असर बाजार पर भी पडऩा तय माना जा रहा है। कारोबारियों ने कहा कि विदेशी मांग कमजोर होने के साथ देश में कपास का रकबा बढऩे की खबरों से कीमतों पर दबाव था, लेकिन अगर गुजरात और महाराष्ट्र में कपास की फसल सूखी तो कीमतों में मजबूती आने लगेगी। कपास का बाजार इसी सप्ताह तय हो जाएगा। अगर पूरे सप्ताह बारिश नहीं हुई तो कपास में तेजी आने लगेगी। हालांकि बारिश होने पर कीमतें स्थिर रहेंगी। देश भर में कपास की बुआई अच्छी हुई है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों केअनुसार देशभर में 10 जुलाई तक 87.83 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक देश में कपास की बुआई महज 45.10 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी। (BS Hindi)
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