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14 नवंबर 2013

'जीएम फसलों पर संशय मिटाना जरूरी'

92% न क्षेत्र में जीएम कपास का उत्पादन हो रहा है देश में कई वर्षों से महानिदेशक ने कहा- बीटी कपास के बिनौला का पशुचारे में उपयोग से कोई परेशानी नहीं आई जेनेटिकली मॉडिफाइड (जीएम) फसलों के बारे में नीति-निर्माताओं और किसानों के बीच गलतफहमी को दूर करने की जरूरत है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. एस अय्यप्पन ने बुधवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जीएम फसलों के प्रति आम जनता की धारणा में बदलाव लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश में कपास के कुल उत्पादन में 92 फीसदी जीएम कपास का उत्पादन हो रहा है। बीटी कपास की पैदावार से किसानों की आय में भारी बढ़ोतरी हुई है। कपास से निकलने वाले बिनौला का उपयोग पशुआहार में किया जा रहा है तथा अभी तक इसके कोई नकारात्मक परिणाम सामने नहीं आये हैं जबकि बिनौला तेल का उपयोग खाने में हो रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के निदेशक एच एस गुप्ता ने इस अवसर पर कहा कि जब बड़ी आबादी वाले तमाम विकासशील देश जीएम फसलों पर अनुसंधान कर रहे हैं, तब भारत में भी इसे रोकना उचित नहीं है। बीजों में वैज्ञानिक ढंग से सुधार करने से खाद्यान्न की पैदावार बढ़ाने में मदद मिली है। हरित क्रांति में संकर बीजों की महत्वपूर्ण भूमिका थी जबकि यह तकनीक अब और आगे बढ़ी है, हालांकि इसके उपयोग में सतर्कता जरूरी है। नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस के प्रेसिडेंट प्रो. आर बी सिंह ने बताया कि बढ़ती आबादी की खाद्यान्न जरूरतों को पूरा करने के लिए जीएम फसलों को अपनाया जाना जरूरी है। जीएम फसलों से सुरक्षा को जो खतरा बताया जाता है, उस संदर्भ में यह उल्लेखनीय है कि अगर परीक्षण ही रुक गए, तो फसलों की सुरक्षा से जुड़े प्रयोगों पर भी विराम लग जायेगा। ऐसे में वह समय आ ही नहीं पायेगा, जब जीएम फसलों को सुरक्षित मानकर उनकी खेती की जाए। (Business Bhaskar)

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