26 नवंबर 2013
सब्जियां महंगी पर किसान लाभ से वंचित
कर्नाटक के धारवाड़ जिले में उप्पीनाबेटागेरी गांव के एक किसान भिमान्ना डिंडालकोप्पा ने कहा, 'जब हम प्याज बहुत अधिक ऊंची कीमतों के बारे में सुनते हैं तो हमें अचंभा होता है कि हमें ये कीमतें क्यों नहीं मिल रही हैं। प्याज की खुदरा कीमत उत्तरी कर्नाटक में 80 रुपये प्रति किलोग्राम तक हो गई थी, लेकिन इसका फायदा मुझे नहीं मिल सका, हालांकि बिचौलियों को मिला।' केवल वही अकेले व्यक्ति नहीं हैं, जो सब्जियों में तेजी के फायदे से वंचित रहे हैं।
कर्नाटक में अमीनाभावी के एक सब्जी उत्पादक रवींद्र देसाई बहुत कम बोलते हैं, लेकिन जब उन्होंने बातचीत की तो यह काफी तर्कसंगत थी। उन्होंने कहा, 'हमने यह पाया है कि जब सब्जियों की कीमतें बढ़ती हैं तो केवल खुदरा विक्रेताओं को ही फायदा मिलता है।' देश में उनके जैसे किसानों ने भी यही कहानी बयां की। किसानों का कहना है कि जब भी सब्जियों की कीमतें बढ़ती हैं तो उन्हें इसका सबसे कम फायदा मिलता है। पहले भी और हाल के महीनों में भी यह साबित हो गया है कि देशभर के खुदरा बाजारों में कीमतें किसानों को मिलने वाली कीमत से 3-4 गुना ज्यादा होती हैं। जब भी सौदेबाजी की बात आती है तो किसानों के हाथ बंधे होते हैं। क्योंकि सब्जियों की प्रकृति ऐसी होती है कि ये जल्दी खराब हो जाती हैं। इस वजह से उन्हें अपनी उपज बेचने के लिए बिचौलियों से सौदे करने होते हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त भंडारण सुविधाएं होती हैं।
भारतीय किसान संघ (बीकेएस) के सचिव मगनभाई पटेल ने कहा, 'सब्जी किसान सबसे ज्यादा आसान शिकार होते हैं। जब भी कीमतें सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचती हैं तो खुदरा कीमतों का एक-तिहाई या चौथाई मिलता है। सब्जियां खराब होने वाली जिंस हैं, इसलिए खुदरा विक्रेता बची हुई सब्जियों से नुकसान झेलने का जोखिम नहीं ले सकते।' उत्पादन लागत भी बढ़ रही है और ज्यादातर कृषि जिंसों के किसान कह रहे हैं कि उत्पादन लागत कई गुना बढ़ गई है, जिससे अच्छी कीमत लेने के लिए इंतजार करने की स्थिति में नहीं होते हैं। उर्वरक, मजदूरी, बिजली शुल्क और अन्य खर्च बढ़ रहे हैं।
तमिलनाडु में कोयंबटूर के एक किसान वी मुरुगननधाम कहते हैं कि पिछले साल उनकी उत्पादन लागत करीब 5-5.50 रुपये प्रति किलोग्राम थी, जो बढ़कर 6-6.50 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई है। जबकि बिक्री कीमत महज 50-80 पैसे बढ़कर 8-10 रुपये प्रति किलोग्राम हुई है। बाजार में आलू 35-30 रुपये प्रति किलोग्राम था और कई बार यह 80 रुपये तक भी हो गया था। उल्लेखनीय है कि शहरों के खुदरा बाजारों में प्याज, टमाटर, बंद गोभी और फूल गोभी 80 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही हैं, जो किसानों को मिलने वाली कीमत से करीब 3-4 गुना ज्यादा है। मध्य गुजरात के एक सब्जी उत्पादक किसान शंकर पटेल कहते हैं, 'जब सब्जियों की कीमतें बढ़ती हैं तो हम इन लोगों को हमारी उपज से पैसे बनाते हुए देखते हैं।'
तमिलनाडु के एक खुदरा सब्जी विक्रेता परमशिवम ने कहा, 'अगर किसान को अपनी फसल से पहले ही पैसे की जरूरत है तो उसे बिचौलिये के मनमाफिक कीमत पर ही उसे अपनी फसल बेचनी पड़ती है। अगर कीमतें ऊपर जाती हैं तो बिचौलिये किसान की फसल से होने वाले फायदे का कुछ हिस्सा उसे भी दे देते हैं। यह बिचौलिये के साथ संबंधों और किसान की सौदेबाजी की कीमत पर निर्भर करता है।' साफ है कि मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा खुदरा विक्रेताओं को मिलता है। उत्तरी गुजरात के आलू उत्पादक किसानों के एक संगठन बाटाटा उत्पादक खेडुत संगठन समिति के सदस्य गुनपाभाई लाधाभाई ने कहा, 'सब्जियों की कीमतों को बढ़ाने के पीछे थोक कारोबारियों और खुदरा विक्रेता सहित अन्य बिचौलिये खरीदारों का होता है।' (BS Hindi)
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