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27 दिसंबर 2012

रबर पर आयात शुल्क घटाने की मांग

रबर उद्योग ने तैयार उत्पाद पर वसूले जाने वाले शुल्क के मुकाबले कच्चे माल पर आयात शुल्क कम रखने का अनुरोध केंद्र सरकार से किया है। अखिल भारतीय रबर उद्योग संघ (एआईआरआईए) के बजट-पूर्व ज्ञापन के मुताबिक भारतीय रबर उद्योग का प्रमुख कच्चा माल प्राकृतिक रबर है और कुल लागत में इसकी हिस्सेदारी 30 से 45 फीसदी है। संघ ने कहा है कि प्राकृतिक रबर पर सीमा शुल्क मौजूदा 20 फीसदी या 20 रुपये प्रति किलोग्राम (जो भी कम हो) को घटाकर 7.5 फीसदी या 10 रुपये प्रति किलोग्राम (जो भी कम हो) किया जाए। इस समय प्राकृतिक रबर की वैश्विक कीमतें 160 रुपये प्रति किलो है और 20 रुपये आयात शुल्क के साथ ये करीब 12.5 फीसदी बैठती हैं, जो तैयार उत्पाद पर वसूले जाने वाले 10 फीसदी आयात शुल्क के मुकाबले ज्यादा है। एआईआरआईए के अध्यक्ष नीरज ठक्कर ने कहा कि चीन ने प्राकृतिक रबर पर आयात शुल्क 1600 युआन से घटाकर अधिकतम 1200 युआन कर दिया है और यह जनवरी से प्रभावी होगा। फिलहाल वैश्विक कीमतें करीब 25,000 युआन प्रति टन हैं और इस हिसाब से आयात शुल्क महज 5 फीसदी बैठता है। ऐसे में प्रतिस्पर्धा के लिए उद्योग को समान मौका उपलब्ध कराने की दरकार है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर कच्चे माल पर आयात शुल्क की दरें काफी ऊंची हैं और यह 20 से 70 फीसदी तक है। ऐसे में आयातित कच्चे माल से तैयार होने वाले उत्पाद की लागत ज्यादा पड़ती है। इससे पड़ोसी देशों से तैयार उत्पादों का आयात होता है और देसी उत्पादकों को नुकसान पहुंचता है। एआईआरआईए के मुताबिक अगले वित्त वर्ष में प्राकृतिक रबर की मांग-आपूर्ति का अंतर 1.5 लाख टन से ज्यादा रहने का अनुमान है। इस खाई को पाटने के लिए संगठन ने 1 लाख टन रबर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति मांगी है। संगठन ने आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते के तहत रियायती दर पर आयातित माल से तैयार उत्पादों की तर्ज पर प्राकृतिक रबर के आयात की भी अनुमति देने की मांग की है। उसका कहना है कि रबर आधारित स्थानीय इकाइयों को भी समान मौका उपलब्ध कराया जाए। देश में 6,000 से ज्यादा इकाइयां हैं और उनमें से ज्यादातर इकाइयां कच्चे माल की लागत बढऩे और चीन जैसे देशों से सस्ते उत्पादों के आयात से संकट में हैं। एआईआरआईए के मुताबिक चीन और दूसरे देशों से रबर के सस्ते उत्पादों के आयात में बढ़ोतरी से देसी रबर उद्योग की चिंता बढ़ी है। 35,000 से ज्यादा रबर उत्पाद होने के चलते डंपिंग का आरोप साबित करना मुश्किल होता है और ज्यादातर विनिर्माता छोटे हैं और उनके पास कानून के मुताबिक एंटी-डंपिंग की कार्यवाही शुरू करने के लिए संसाधन नहीं होता। दूसरी ओर, कार्बन ब्लैक और रबर केमिकल (उद्योग का प्रमुख कच्चा माल) पर एंटी-डंपिंग ड्यूटी लगाए जाने से आयातित रबर से तैयार उत्पादों के मुकाबले भारतीय रबर उत्पाद ज्यादा महंगा हो जाता है। संघ के मुताबिक रबर उद्योग के लिए ऐसे कच्चे माल के आयात पर भी सीमा शुल्क ज्यादा है, जिसका उत्पादन देश में नहीं होता है। इसलिए उद्योग को अपना अस्तित्व बचाए रखने और तैयार उत्पादों से प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किलें हो रही हैं। इसलिए संघ ने देश में न बनने वाले ब्यूटाइल रबर और अन्य हाईटेक सिंथेटिक रबर जैसे कच्चे माल पर सीमा शुल्क नहीं वसूलने की भी मांग की है। कच्चे माल पर उच्च सीमा शुल्क ढांचे से उद्योग पर भारी असर पड़ा है और इस कारण कम क्षमता का इस्तेमाल हो रहा है। यहां तक कि रबर विनिर्माण इकाइयां बंद भी हुई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक रबर उत्पाद बनाने वाली करीब 294 इकाइयां पिछले पांच साल में बंद हो चुकी हैं। कई ऐसे विनिर्माताओं ने उत्पादन बंद कर दिया है, जहां काफी कम यानी 100 टन से कम रबर की खपत होती है । (BS Hindi)

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