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30 जुलाई 2024

स्पिनिंग मिलों की खरीद कमजोर बनी रहने से गुजरात एवं उत्तर भारत में कॉटन मंदी

नई दिल्ली। स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर बनी रहने के कारण शनिवार को गुजरात एवं उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में मंदा आया। विश्व बाजार में जिस तरह से कॉटन के दाम कमजोर हो रहे हैं, उसे देखते हुए घरेलू बाजार में इसकी मौजूदा कीमतों में और भी नरमी आने की उम्मीद है।


गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव शनिवार को 150 रुपये कमजोर होकर दाम 56,500 से 57,000 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए। सप्ताह भर में गुजरात में कॉटन की कीमतों में 950 रुपये प्रति कैंडी का मंदा आ चुका है।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव कमजोर होकर 5800 से 5825 रुपये प्रति मन बोले गए। इस दौरान हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव घटकर 5725 से 5750 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव कमजोर होकर 5525 से 5925 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव 56,400 से 56,600 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 14,00 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

व्यापारियों के अनुसार कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के साथ ही अमेरिकी कृषि बाजारों में कमजोरी के कारण शुक्रवार को आईसीई कॉटन वायदा में 1 फीसदी से अधिक की गिरावट आई थी। आईसीई कॉटन वायदा में कीमतें अक्टूबर 2020 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई हैं। अत: घरेलू बाजार में स्पिनिंग मिलों की खरीद कमजोर होने से कीमतों पर दबाव बना हुआ है। घरेलू बाजार से कॉटन के निर्यात में पड़ते नहीं लग रहे, साथ ही सूती धागे की स्थानीय मांग भी कमजोर है। अत: कॉटन की मौजूदा कीमतों में तेजी के आसार नहीं है। उत्पादक राज्यों में कपास के दाम भी चालू सप्ताह में कमजोर हुए, साथ ही बिनौला एवं कपास खली में भी मांग सीमित बनी हुई है।

उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवकों में कमी आई है तथा अधिकांश जिनिंग मिलों ने उत्पादन भी बंद कर दिया है। इस सब के बावजूद भी घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी आईसीई कॉटन वायदा की कीमतों के आधार पर ही तय होंगी। कॉटन की मौजूदा कीमतों में जिनर्स को पड़ते नहीं लग रहे, इसलिए बिकवाली भी सीमित बनी हुई है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार 26 जुलाई तक देशभर में कपास की बुआई चालू खरीफ सीजन में 6.88 फीसदी घटकर 105.73 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 113.54 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

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