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13 मई 2022

कॉटन की कीमतें रिकार्डस्तर पर, मिलों की खरीद कम होने से मासिक खपत घटी - उद्योग

नई दिल्ली। घरेलू बाजार में सोमवार को कॉटन की कीमतों में भारी तेजी आई, जबकि हाल ही में जिस अनुपात में घरेलू बाजार में कॉटन के दाम तेज हुए हैं, उसके हिसाब से धागे की कीमतें नहीं बढ़ पा रही है। ऐसे मेंं जहां छोटी स्पिनिंग मिलें बंद हो गई है, वहीं बड़ी मिलें भी एक या डेढ़ शिफ्टों में कार्य कर पा रही है। ऐसे में देश में कॉटन की मासिक खपत 29 लाख गांठ से घटकर केवल 19 लाख गांठ रह गई।

गुजरात में शंकर-6 किस्म की 29 एमएम कॉटन के भाव सोमवार को 1,150 रुपये तेज होकर 96,500 से 97,500 प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए। इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों में करीब 1,200 रुपये प्रति कैंडी की तेजी दर्ज की गई।

स्पिनिंग मिल एसोसिएशनों के अनुसार गुजरात में कॉटन की मासिक खपत में 2 लाख गांठ की कमी आई है, जबकि उत्तर भारत के राज्यों में एक लाख गांठ, मध्य प्रदेश में एक लाख गांठ, महाराष्ट्र में भी एक लाख गांठ, आंध्रप्रदेश में एक लाख गांठ, तेलंगाना एवं कर्नाटक में 50 हजार गांठ, तमिलनाडु में 3 लाख गांठ, तथा अन्य राज्यों में 50 हजार गांठ की खपत में कमी आई है। अत: देशभर के प्रमुख उत्पादक राज्यों में कॉटन की मासिक खपत करीब 10 लाख गांठ कम हो गई।

जानकारों के अनुसार घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतें रिकार्डस्तर पर पहुंची हुई हैं, जिस कारण छोटी मिलें घाटे के कारण लगभग बंद हो गई है, वहीं बड़ी मिलें भी एक या डेढ़ शिफ्ट में ही कार्य कर पा रही हैं। कॉटन की कमी के कारण अधिकांश बड़ी मिलों ने साप्ताहिक अवकाश भी एक से बढ़ाकर दो दिन का कर दिया है।

हाल ही में जिस अनुपात में कॉटन की कीमतें तेज हुई हैं, उस अनुपात में धागे के दाम नहीं बढ़ पाएं, जिस कारण मिलों को डिस्टपैरिटी का सामना करना पड़ रहा है। बढ़े हुए भाव में धागे में स्थानीय एवं निर्यात मांग नहीं बढ़ पा रही है।

देश के कई राज्यों में 7 से 8 घंटे की बिजली कटौती हो रही है, जिस कारण भी मिलें पूरी क्षमता से नहीं चल पा रही है। डीजल की कीमतें महंगी होने से मिलों की लागत और बढ़ जाती है। अत: गारमेंट और पावरलूम केवल 30 से 50 फीसदी क्षमता का ही उपयोग कर पा रहे हैं।

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