नई
दिल्ली। खरीफ फसलों की लिए संजीवनी माने जाने वाली मानसूनी बारिश चालू
सीजन में सामान्य होने का अनुमान है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी)
द्वारा मंगलवार को दी गई जानकारी के अनुसार देश में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी
बारिश के दीर्घकालिक अवधि औसत के 103 फीसद रहने की संभावना है।
आईएमडी
के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने मंगलवार को लंबी दूरी के अपने दूसरे
पूर्वानुमान में बताया कि देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून इस बार सामान्य
रहेगा और मात्रात्मक रूप से यह लंबी अवधि के औसत (एलपीए) का 103 फीसदी
होगा। अगर ऐसा होता है तो यह लगातार चौथा साल होगा, जब भारत में मानसून
सामान्य रहेगा। महापात्र के मुताबिक, दक्षिण प्रायद्वीप, मध्य भारत और कोर
मानसून क्षेत्र (मध्य भारत के अधिकांश क्षेत्रों) में सामान्य से अधिक
सामान्य वर्षा (एलपीए का 106 फीसदी) होने की संभावना है।
उन्होंने
बताया कि देश में जून में औसत से 92 से 108 फीसदी बारिश होने का अनुमान है,
जबकि उत्तर पूर्व में 96 से 106 फीसदी बारिश का अनुमान है। इसके अलावा
दक्षिण भारत में औसत से 106 फीसदी बारिश होगी। अगले दो से तीन दिनों में
कर्नाटक के कुछ हिस्सों में मानसून दस्तक दे देगा।
उन्होंने कहा कि
मध्य भारत और दक्षिण प्रायद्वीप में सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना
है, जबकि उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में सामान्य बारिश होने
की संभावना है। महापात्र ने कहा कि मौजूदा ‘ला नीना’ स्थितियां अगस्त तक
जारी रहने की उम्मीद है और भारत में मानसून की बारिश के लिए शुभ संकेत है।
‘ला नीना’ स्थितियां भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र के ठंडा होने का उल्लेख
करती हैं। हालांकि, नकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुवीय के विकास की
संभावना है जिससे केरल सहित सुदूर दक्षिण-पश्चिमी प्रायद्वीप में सामान्य
से कम वर्षा हो सकती है।
आईएमडी के के अनुसार, जून के पहले सप्ताह
में मानसून बेंगलुरु सहित राज्य के दक्षिणी हिस्सों में प्रवेश कर जाएगा।
दक्षिणी कर्नाटक में मानसून की बारिश में तीन-चार दिनों की देरी हो सकती
है, लेकिन पूरे राज्य में 7 जून से बारिश की उम्मीद है। मौसम विभाग का
पूर्वानुमान है कि अगले कुछ दिनों में बेंगलुरु में 7 मिमी तक बारिश होगी।
3-4 जून को गरज के साथ हल्की से मध्यम बारिश होगी। महाराष्ट्र की बात करें
तो दक्षिणी कोंकण क्षेत्रों और कोल्हापुर में मानसून की शुरुआत की सामान्य
तिथि लगभग 9 जून रहती है, लेकिन इस साल इसके एक सप्ताह पहले आने की संभावना
है।
भारत में मानसून समय से पहले दस्तक दे चुका है। आईएमडी के
मुताबिक, दक्षिण-पश्चिमी मानसून 29 मई को ही केरल पहुुंच गया था, जबकि इसके
आने की औसत तारीख 1 जून मानी जाती है। मंगलवार को मानसून केरल और तमिलनाडु
के कुछ हिस्सों में आगे बढ़ता नजर आया, लेकिन इसकी रफ्तार धीमी पड़ने की
संभावना है। आईएमडी ने बेंगलुरु में 2 जून से बारिश शुरू होने का अनुमान
लगाते हुए कर्नाटक के 10 जिलों के लिए यलो अलर्ट जारी कर दिया है।
31 मई 2022
चालू सीजन में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी बारिश सामान्य होने का अनुमान - आईएमडी
जापानी कंपनी ने मध्य प्रदेश की गुना मंडी से खरीदा गेहूं, भाव में आया सुधार
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दिल्ली। केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगी हुई है, इसके बावजूद
भी सोमवार को मध्य प्रदेश की गुना मंडी से जापान की कंपनी के अधिकारियों
ने 2,175 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद की। विदेशी कंपनी की
खरीद को देखते हुए घरेलू मिलों की मांग में भी सुधार आया तथा स्टॉकिस्टों
की बिकवाली कम हो गई। दिल्ली में इस दौरान गेहूं के दाम 10 से 30 रुपये
प्रति क्विंटल तक तेज हो गए। उत्तर प्रदेश और राजस्थान लाईन के गेहूं के
दाम बढ़कर 2,250 से 2,270 रुपये और मध्य प्रदेश लाईन के गेहूं के दाम तेज
होकर 2,230 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए।
जानकारों के अनुसार देश के
कई राज्यों की मंडियों में आज गेहूं के भाव में सुधार आया। सूत्रों के
अनुसार गेहूं निर्यात में आगामी दिनों में कुछ और राहत मिलने की उम्मीद है,
इसीलिए स्टॉकिस्ट दाम घटाकर बिकवाली नहीं कर रहे हैं। इसलिए मौजूदा कीमतों
में आगे हल्का सुधार और भी बन सकता है।
उधर केंद्र सरकार द्वारा
गेहूं के निर्यात पर रोक लगाए जाने के बावजूद इसकी सरकारी खरीद में तेजी
नहीं आई है। सरकार ने 13 मई को गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था तथा उस
दिन तक 179.89 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी। उसके बाद 30 मई तक यह
आंकड़ा केवल 184.64 लाख टन तक ही पहुंच पाया है। अत: इस दौरान केवल 4.75
लाख टन गेहूं की खरीद ही हो पाई, ऐसे में 195 लाख टन खरीद के संशोधित
लक्ष्य को हासिल कर पाना मुश्किल है।
पिछले साल रबी सीजन में 434
लाख टन गेहूं की एमएसपी पर खरीद को देखते हुए चालू रबी सीजन के आरंभ में
सरकार ने 444 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन बाद में उसे
घटाकर 195 लाख टन कर दिया। हालांकि सरकार ने गेहूं उत्पादन के अनुमान में
अभी तक ज्यादा कटौती नहीं की है। पहले 11.13 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का
अनुमान था, जिसे घटाकर 10.6 करोड़ टन किया गया है। 2020-21 में 10.96 करोड़
टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। हालांकि होली के बाद से अचानक तापमान बढ़ने
के कारण गेहूं के उत्पादन में 15 से 20 फीसदी तक की गिरावट आने की आशंका
है।
पंजाब में गेहूं की खरीद बंद हो चुकी है तथा राज्य की मंडियों
से अब तक 96.10 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई है। उधर मध्य प्रदेश की
मंडियों से 19 मई तक 41.89 लाख टन गेहूं खरीदा गया था, जोकि 30 मई को बढ़कर
44.27 लाख टन तक पहुंचा है। हरियाणा की मंडियों से 19 मई तक 40.64 लाख टन
गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी, जो अब 41.34 लाख टन तक पहुंची है। यही हाल
उत्तर प्रदेश का है जहां आंकड़ा 2.47 लाख टन से बढ़कर 2.84 लाख टन तक ही
पहुंच पाया है।
केंद्र सरकार ने 13 मई को निर्यात पर रोक लगाई थी,
तब उम्मीद थी कि किसान सरकारी खरीद केंद्रों पर गेहूं बेचने आयेंगे, लेकिन
खरीद के आंकड़ों को देखकर ऐसा लगता है कि किसान अधिकतर फसल की बिक्री पहले
ही कर चुके हैं। हालांकि सरकार खरीद बढ़ाने के लिए सरकार ने 15 मई को
नियमों में भी ढील दी थी और कहा था कि 18 फीसदी तक सिकुड़े दाने बिना भाव
में कटौती के खरीदे जाएंगे। इसके बावजूद भी सरकारी खरीद में तेजी नहीं आई।
मिलों की कमजोर मांग से दालों में उठाव नहीं, कीमतों पर दबाव बना रहने के आसार
नई
दिल्ली। दाल मिलों के साथ ही स्टॉकिस्टों की खरीद सीमित बनी रहने के कारण
शनिवार को आयातित के साथ ही देसी दलहन की कीमतों में मिलाजुला रुख देखा
गया। दिल्ली और मुंबई में जहां आयातित अरहर के भाव स्थिर बने रहे, वहीं
उत्पादक मंडियों में मूंग की कीमतों में मंदा आया, जबकि देसी मसूर और चना
के भाव में हल्का सुधार देखा गया। उड़द के दाम इस दौरान स्थिर बने रहे।
व्यापारियों के अनुसार उत्पादक मंडियों में अरहर, उड़द और चना की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी से नीचे बनी हुई है। हाजिर बाजार में नकदी की किल्लत के साथ ही दालों में थोक एवं खुदरा में ग्राहकी कमजोर होने से मिलर्स केवल जरुरत के हिसाब से ही दालों की खरीद कर रही हैं। जून में आमतौर पर दालों की खपत कम रहती है, इसलिए अभी इनकी कीमतों में हल्का सुधार तो आ सकता है लेकिन बड़ी तेजी के आसार नहीं है।
अरहर, उड़द और मसूर के आयात पड़ते महंगे हैं, तथा चालू खरीफ में अरहर और उड़द की बुआई में कमी आने की आशंका है। जानकारों के अनुसार महाराष्ट्र और कर्नाटक में अरहर और उड़द के बजाए किसान कपास और सोयाबीन की बुआई को प्राथमिका देंगे, क्योंकि किसानों को कपास और सोयाबीन के भाव अच्छे मिलें हैं।
जानकारों के अनुसार केंद्र सरकार दलहन, तिलहन एवं अन्य एग्री जिंसों की कीमतों की हर सप्ताह निगरानी कर रही है, तथा घरेलू बाजार में दालों की कीमतें अन्य सालों की तुलना में नीचे बनी हुई है, इसके बावजूद भी व्यापारियों में घबराहट है। घबराहट होने के कारण चना में इन भाव में भी बिकवाली बराबर बनी हुई है।
चालू समर सीजन में मूंग की बुआई बढ़ी है, जिससे उत्पादन अनुमान ज्यादा है। मध्य प्रदेश के बाद पंजाब एवं अन्य राज्यों में जून में मूंग की दैनिक आवक और बढ़ेगी, जिससे इसकी मौजूदा कीमतों में 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल का और मंदा आने का अनुमान है।
स्थानीय मिलों की मांग सुधरने से दिल्ली में बर्मा उड़द एसक्यू के भाव में 50 रुपये की तेजी आकर दाम 7,550 रुपये प्रति क्विंटल हो गए, जबकि इस दौरान उड़द एफएक्यू के भाव में 25 रुपये का मंदा आकर भाव 6,975 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
आंध्र प्रदेश लाईन की नई उड़द का दिल्ली के लिए व्यापार 6,950 रुपये प्रति क्विंटल की पूर्व दर पर ही हुआ।
मुंबई में बर्मा उड़द एफएक्यू की की कीमतें 6,650 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बनी रही।
इसी तरह से चेन्नई में बर्मा उड़द एफएक्यू और एसक्यू की कीमतें क्रमश: 6,725 रुपये और 7,225 रुपये प्रति क्विंटल के पूर्वस्तर पर टिकी रही।
दाल मिलों की हाजिर मांग बढ़ने से दिल्ली में मध्य प्रदेश की मसूर के भाव में 50 रुपये की तेजी आकर भाव 7,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। इस दौरान कनाडा की मसूर के दाम 7,050 रुपये प्रति क्विंटल के पूर्वस्तर पर स्थिर बने रहे।
दाल मिलों की सीमित मांग से कनाडा की मसूर के भाव मुंद्रा बंदरगाह पर 6,750-6,875 रुपये और आस्ट्रेलियाई मसूर के भाव कंंटेनर में 7,200-7,250 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे। इसी तरह से कनाडा की मसूर के दाम मुंबई कंटेनर में 7,150 रुपये प्रति क्विंटल के पूर्वस्तर पर स्थिर रहे।
कानपूर में देसी मसूर के भाव 6,875 से 6,900 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे, जबकि इंदौर में मसूर के बिल्टी भाव 50 रुपये बढ़कर 6,600 से 6,650 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए।
इंदौर मंडी में एवरेज क्वालिटी मूंग के दाम 100 रुपये घटकर 5,500 से 5,800 रुपये और बेस्ट क्वालिटी के बिल्टी भाव 100 रुपये कमजोर होकर 6,100 से 6,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
दिल्ली में मध्य प्रदेश की मसूर की कीमतों में 50 से 100 रुपये का मंदा आकर 6,350 से 6,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
दिल्ली में बर्मा की लेमन अरहर के भाव 6,450 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे।
दिल्ली डिलीवरी के लिए महाराष्ट्र की नांदेड़ लाईन की पुराने और नई अरहर के भाव क्रमशः 6,175 रुपये और 6,275 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।
चेन्नई में, बर्मा की लेमन अरहर के भाव में 6,025 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए।
मिलों की सीमित मांग से मुंबई में बर्मा की लेमन अरहर के भाव 6,050 रुपये प्रति क्विंटल के पूर्वस्तर पर स्थिर बने रहे।
इस दौरान मुंबई में अफ्रीकी लाईन की अरहर के भाव रुक गए। तंजानिया की अरुषा अरहर और मटवारा अरहर के भाव क्रमश: 5,425-5,475 रुपये और 5,250 से 5,300 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। मलावी अरहर के दाम भी 4,800-4,900 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। मोजाम्बिक लाईन की गजरी अरहर की कीमतें 5,300 रुपये प्रति क्विंटल के पूर्व स्तर पर स्थिर हो गई।
नीचे दाम पर मांग निकलने से दिल्ली में राजस्थानी चना के भाव में 50 रुपये का सुधार आकर भाव 4,775 से 4,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। मध्य प्रदेश के चना के दाम इस दौरान 25 रुपये तेज होकर 4,725 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए।
चालू समर सीजन में फसलों की बुआई 5.11 फीसदी बढ़ी, दलहन की सबसे ज्यादा
नई
दिल्ली। चालू समर सीजन में 27 मई 2022 तक फसलों की कुल बुआई 5.11 फीसदी
बढ़कर 76.41 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में
72.69 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। बुआई में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी
दालों की फसलों की हुई है, साथ ही तिलहन एवं मोटे अनाजों की बुआई भी बढ़ी
है, जबकि धान की रोपाई पिछले साल की तुलना में पिछड़ी है।
कृषि
मंत्रालय के अनुसार चालू समर सीजन में दालों की बुआई 17.30 फीसदी बढ़कर
23.05 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी
बुआई केवल 19.65 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी। मूंग की बुआई चालू समर में
बढ़कर 19.16 लाख हेक्टेयर में और उड़द की 3.65 लाख हेक्टेयर में हो चुकी
है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 16.58 लाख हेक्टेयर और 2.69
लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी।
इसी तरह से मोटे अनाजों की बुआई
चालू समर में बढ़कर 11.86 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस
समय तक 10.82 लाख हेक्टयेर में ही हो पाई थी। मोटे अनाजों में बाजरा की
बुआई 4 लाख हेक्टयेर में, मक्का की 7.36 लाख हेक्टेयर में और ज्वार 24 हजार
तथा रागी की बुआई 25 हजार हेक्टेयर में हुई है। पिछले समर सीजन में इनकी
बुआई क्रमश: 3.34 लाख हेक्टेयर में, 7.18 लाख हेक्टेयर में, 12 हजार
हेक्टेयर और 18 हजार हेक्टेयर में ही हुई थी।
तिलहनी फसलों की बुआई
चालू समर सीजन में बढ़कर 11.17 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले
साल इस समय तक इनकी बुआई 10.87 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी। समर तिलहन
में मूंगफली की बुआई चालू सीजन में 5.46 लाख हेक्टेयर में, शीसम सीड की
4.57 लाख हेक्टेयर में और सनफ्लावर की 37 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है।
पिछले समर सीजन में इनकी बुआई क्रमश: 5.93 लाख हेक्टेयर में, 4.31 लाख
हेक्टेयर में और 52 हजार हेक्टेयर में हो चुकी थी।
धान की रोपाई
चालू समर सीजन में घटकर 30.33 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल
इस समय तक इसकी रोपाई 31.35 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।
26 मई 2022
केंद्र द्वारा सोया और सूरजमुखी तेलों के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति से सरसों मंदी
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दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा सोया तेल और सूरजमुखी तेल के शुल्क मुक्त
आयात की अनुमति से घरेलू बाजार में बुधवार को सरसों एवं इसके तेल की कीमतों
में गिरावट दर्ज की गई। जयपुर में कंडीशन की सरसों के दाम 75 रुपये कमजोर
होकर 7,150 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि सरसों की दैनिक आवक 4.50 लाख
बोरियों के पूर्वस्तर पर स्थिर बनी रही। अधिकांश ब्रांडेड कंपनियों ने आज
सरसों की खरीद कीमतों में 100 रुपये प्रति क्विंटल तक की कटौती कर दी।
व्यापारियों
के अनुसार केंद्र सरकार घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को काबू
में रखने के लिए मार्च 2024 तक प्रत्येक वर्ष के लिए 20 लाख टन क्रुड पॉम
तेल और क्रुड सूरजमुखी तेल के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दी है। इससे
घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर दबाव देखा गया, जिसका असर सरसों
एवं इसके तेल पर भी पड़ा है। सरकार हर सप्ताह खाद्य तेलों की कीमतों की
निगरानी कर रही है, इसलिए मिलर्स एवं स्टॉकिस्ट जरुरत के हिसाब से ही खरीद
कर रहे हैं। जून में मानसूनी बारिश शुरू होने के बाद खाद्य तेलों की मांग
घरेलू बाजार में आमतौर पर बढ़ जाती है। हालांकि सरसों की कीमतों अभी बड़ी
तेजी के आसार नहीं है।
इंडोनेशिया में सरकार ने घरेलू तेलों की खपत
की आवश्यकता को सुनिश्चित करने के लिए नई नीति लेकर आयेगी। एमस्पेक एग्री
मलेशिया के अनुसार, मलेशिया से पहली से 25 मई के दौरान पाम तेल का निर्यात
अप्रैल महीने की समान अवधि की तुलना में 22.54 फीसदी बढ़ गया।
मलेशिया
में अगस्त महीने के वायदा अनुबंध में पॉम तेल की कीमतों में 93 रिगिंट
यानि की 1.43 फीसदी की गिरावट आकर भाव 6,389 रिगिंट प्रति टन रह गए। साथ ही
शिकागों के इलेक्ट्रानिक ट्रेडिंग में आज सोयाबीन, सोया तेल और मील की
कीमतों में भी गिरावट दर्ज की गई।
जयपुर में कच्ची घानी सरसों तेल
एवं एक्सपेलर के भाव में 10-10 रुपये की गिरावट आकर दाम क्रमश: 1,471 रुपये
और 1,461 रुपये प्रति 10 किलो रह गए। इस दौरान सरसों खल की कीमतें 2,750
रुपये प्रति क्विंटल के पूर्व स्तर पर स्थिर बनी रही।
देशभर की
मंडियों में बुधवार को सरसों की दैनिक आवक 4.50 लाख बोरियों की ही हुई,
जबकि मंगलवार को भी आवक इतनी ही बोरियों की हुई थी। कुल आवकों में से
प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान की मंडियों में 2 लाख बोरी, मध्य प्रदेश में
30 हजार बोरी, उत्तर प्रदेश में 75 हजार बोरी, हरियाणा और पंजाब में 60
हजार बोरी, गुजरात में 20 हजार बोरी तथा अन्य राज्यों की मंडियों में 65
हजार बोरी सरसों की आवक हुई।
देश में खाद्यन्न उत्पादन रिकार्ड 31.45 करोड़ टन होने का अनुमान, गेहूं और कपास का कम
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दिल्ली। चालू फसल सीजन 2021-22 के दौरान देश में खाद्यान्न का रिकार्ड
31.45 करोड़ उत्पादन होने का अनुमान है, जबकि इसके पिछले फसल सीजन में
31.07 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था। हालांकि गेहूं और कपास के आरंभिक
उत्पादन अनुमान में कमी आई है।
कृषि मंत्रालय द्वारा जारी तीसरे
आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी सीजन में गेहूं का उत्पादन घटकर 10.64
करोड़ टन ही होने का अनुमान है, जबकि दूसरे आरंभिक अनुमान में 11 करोड़ के
उत्पादन का अनुमान जारी किया था। चावल का उत्पादन खरीफ और रबी सीजन को
मिलाकर चालू फसल सीजन में 12.96 करोड़ टन होने का अनुमान है, जबकि इसके
पिछले फसल सीजन मेें इसका उत्पादन 12.43 करोड़ टन का हुआ था।
मंत्रालय
के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू फसल सीजन 2021-22 के दौरान दालों
का उत्पादन बढ़कर 277.5 लाख टन होने का अनुमान है, जोकि इसके पिछले साल के
254.6 लाख टन से ज्यादा है। रबी दलहन की प्रमुख फसल चना का उत्पादन बढ़कर
139.8 लाख टन होने का अनुमान है, जबकि पिछले फसल सीजन में इसका उत्पादन
119.1 लाख टन का हुआ था। खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर का उत्पादन 43.5 लाख
टन होने का अनुमान है, जबकि इसके पिछले साल इसका उत्पादन 43.2 लाख टन का
हुआ था। अन्य दालों में उड़द का 27.6 लाख टन, 28.5 लाख टन और मसूर का
उत्पादन 14.4 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले फसल सीजन में इनका उत्पादन
क्रमश: 22.3 लाख टन, 30.09 लाख टन और 14.9 लाख टन का हुआ था।
मोटे
अनाजों में ज्वार का उत्पादन चालू फसल सीजन में 45.1 लाख टन, मक्का का
331.8 लाख टन और बाजरा का 94.2 लाख टन होने का अनुमान हैं जबकि पिछले फसल
सीजन में इनका उत्पादन क्रमश: 48.1 लाख टन, 316.5 लाख टन और 108.6 लाख टन
का हुआ था। तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2021-22 के दौरान जो का
उत्पादन घटकर 15.9 लाख टन ही होने का अनुमान है, जबकि इसके पिछले सीजन में
16.6 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
मंत्रालय द्वारा जारी तीसरे आरंभिक
अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2021-22 के दौरान तिलहनी फसलों का उत्पादन
384.98 लाख टन होने का अनुमान है, जोकि इसके पिछले साल के 359.46 लाख टन से
ज्यादा है। तिलहनी फसलों में मूंगफली का उत्पादन 100.87 लाख टन, केस्टर
सीड का 15.06 लाख टन, सोयाबीन का 138.28 लाख टन और सरसों का 117.54 लाख टन
होने का अनुमान है। इसके पिछले फसल सीजन में इनका उत्पादन क्रमश: 102.44
लाख टन, 16.47 लाख टन, 126.10 लाख टन का और 102.10 लाख टन का उत्पादन हुआ
था।
मंत्रालय के अनुसार तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार 2021-22 के
दौरान कपास का उत्पादन घटकर 315.43 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो ही होने का
अनुमान है जबकि इसके पिछले साल इसका उत्पादन 352.48 लाख गांठ का हुआ था।
रिकार्ड उत्पादन के बावजूद भी महगांई से घबराई सरकार ने चीनी निर्यात को प्रतिबंधित श्रेणी में डाला
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दिल्ली। महंगाई से घबराई केंद्र सरकार ने रिकार्ड उत्पादन के बावजूद भी
चीनी के निर्यात को प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया। डायरेक्टरेट ऑफ शुगर
द्वारा 24 मई को जारी अधिसूचना के अनुसार पहली जून के बाद चीनी मिलों को
निर्यात की पूरी जानकारी सरकार को देनी होगी।
हालांकि यूरोपीय यूनियन (ईयू), अमेरिका और टैरिफ रेट कोटा (टीआरक्यू) के तहत होने वाले चीनी के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
केंद्र
सरकार के अनुसार चीनी सीजन 2021-22 (अक्टूबर-सितंबर) के दौरान देश में
चीनी की घरेलू उपलब्धता और मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए, 1 जून से चीनी
के निर्यात को प्रतिबंधित श्रेणी में डाला गया है। हालांकि इसके बाद चीनी
का निर्यात जारी रहेगा, लेकिन चीनी मिलों को हर रोज ये बताना होगा कि
उन्होंने कितनी चीनी निर्यात की है। साथ ही पहली जून के बाद चीनी के
निर्यात के लिए मिलों को केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी।
चीनी
निर्यात को मुक्त से प्रतिबंधित श्रेणी में डालने की वजह घरेलू बाजार में
चीनी की कीमतों को नियंत्रित रखना बताया गया है। हालांकि चीनी के उत्पादन
से लेकर इसकी बिक्री सरकार के ही नियमन में होती है। ऐसे में इसके उत्पादन,
स्टॉक और बिक्री के सटीक आंकड़े सरकार के पास होते हैं। ऐसे में चालू
पेराई सीजन (अक्तूबर, 2021 से सितंबर, 2022) में रिकॉर्ड 350 लाख टन चीनी
उत्पादन को देखते हुए सरकार का यह फैसला चौंकाने वाला है। उद्योग के अनुसार
देश में चीनी की सालाना खपत करीब 270 लाख टन होती है।
केंद्र सरकार
चीनी के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पिछले सीजन के पहले तक सब्सिडी दे
रही थी ताकि चीनी मिलें गन्ना किसानों को बकाया का भुगतान कर सकें। साथ ही
सरकार ने घरेलू बाजार में कीमतों में भारी गिरावट को रोकने के लिए चीनी पर
मिनिमम सेल प्राइस (एमएसपी) की व्यवस्था लागू कर रखी है।
थाइलैंड और
ब्राजील में चीनी उत्पादन में कमी आने के कारण भारत से निर्यात में
बढ़ोतरी हुई है। पिछले पेराई सीजन में देश से चीनी का निर्यात 71.91 लाख टन
का हुआ था।
चालू पेराई सीजन 2021-22 के पहले सात महीनों पहली
अक्टूबर 2021 से 15 मई 2022 तक चीनी का उत्पादन 14.45 फीसदी बढ़कर 348.83
लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस दौरान केवल 304.77 लाख
टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में अभी
तक 85 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुके है, जबकि अप्रैल अंत तक 71 लाख
टन चीनी की शिपमेंट हुई हैं। चालू पेराई सीजन के दौरान चीनी का कुल निर्यात
बढ़कर 90 लाख टन होेने की उम्मीद हैं।
चालू सीजन में 315.43 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान, घरेलू बाजार में भाव बढ़े
नई
दिल्ली। चालू फसल सीजन 2021-22 में देश में कपास का उत्पादन घटकर केवल
315.43 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो ही होने का अनुमान है, जोकि मार्च के
उत्पादन अनुमान 340.42 लाख गांठ से कम है। विदेशी बाजार में इलेक्ट्रानिक
ट्रेडिंग में मंगलवार को जहां कॉटन की कीमतों में गिरावट आई, वहीं घरेलू
हाजिर बाजार में भाव तेज हुए।
कपास उत्पादन और खपत संबंधी समिति
(सीओसीपीसी) की सोमवार को हुई बैठक के अनुसार देश के कई राज्यों में
प्रतिकूल मौसम एवं पिकं बावलर्म के कारण कपास के उत्पादन अनुमान में कमी आई
है।
मालूम हो कि सीओसीपीसी ने मार्च में अपनी पिछली बैठक में
340.42 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान जारी किया था, जबकि पिछले साल
देश में 352.48 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।
चालू फसल सीजन के
लिए, सीओसीपीसी ने 20 लाख गांठ कॉटन के आयात का अनुमान लगाया है, तथा 71.84
लाख गांठ के शुरुआती स्टॉक के साथ, कुल उपलब्धता 407.27 लाख गांठ होने का
अनुमान है।
समिति ने कपास की कुल खपत (घरेलू मांग 326 लाख गांठ और
निर्यात 40 लाख गांठ) को मिलाकर 366 लाख गांठ होने का अनुमान जारी किया है,
इस हिसाब से सितंबर 22 के अंत में कपास का बकाया स्टॉक केवल 41.27 लाख
गांठ ही बचने का अनुमान है।
समिति ने अपनी पिछली बैठक में कपास की
कुल उपलब्धता 430.46 लाख गांठ और कुल खपत (345 लाख गांठ घरेलू खपत और 40
लाख गांठ निर्यात) 385 लाख गांठ और सीजन के अंत में बकाया स्टॉक 45.46 लाख
गांठ रहने का अनुमान लगाया था।
फसल सीजन 2019-20 के दौरान सीजन के अंत में यानि की सितंबर आखिर में कॉटन का बकाया स्टॉक 120.79 लाख गांठ का था।
मंगलवार
को गुजरात में कॉटन की कीमतों में 1,000 रुपये प्रति कैंडी की तेजी दर्ज
की गई। शंकर 6 किस्म की 29एमएम कॉटन के भाव बढ़कर 1,02,000 से 1,03,000
रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।
उधर विदेशी बाजार में
सोमवार को कॉटन की कीमतों में मिलाजुला रुख देखा गया। आईसीई कॉटन के जुलाई
वायदा अनुबंध में 48 प्वांइट की तेजी आकर भाव 142.75 सेंट पर बंद हुए,
जबकि दिसंबर वायदा अनुबंध में 80 प्वांइट का सुधार आकर भाव 125.98 सेंट हो
गए। मार्च-2023 वायदा अनुबंध में 94 प्वांइट की नरमी आकर भाव 121.78 सेंट
रह गए। हालांकि आज इलेक्ट्रानिक ट्रेडिंग में कॉटन वायदा की कीमतों में
गिरावट आई है।
19 मई 2022
ग्राहकी के अभाव में अरहर, उड़द में गिरावट जारी, मसूर में मिलाजुला रुख
नई
दिल्ली। ग्राहकी के अभाव में अरहर और उड़द की कीमतों में बुधवार को भी
गिरावट जारी रही, जबकि मसूर के भाव में मिलाजुला रुख देखा गया। चना एवं
मूंग में भी मिलों की खरीद कमजोर ही बनी रही। व्यापारियों के अनुसार जून
में दालों की खपत सामान्य की तुलना में कम होती है, जबकि घरेलू बाजार में
देसी एवं आयातित अरहर और उड़द का बकाया स्टॉक, घरेलू मांग के लिए पर्याप्त
है। इसलिए इनकी कीमतों में अभी बड़ी तेजी के आसार नहीं है।
अरहर की
कीमतों में हाल ही में आई गिरावट के कारण इसके दाम उत्पादक मंडियों में
न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 6,300 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे आ चुके
है। जानकारों के अनुसार चालू वर्ष 2022 के पहले चार महीनों जनवरी से अप्रैल
के दौरान दालों का आयात बढ़कर 10.33 लाख टन का हो चुका है, तथा इसमें सबसे
ज्यादा हिस्सेदारी उड़द और अरहर की है।
नेफेड ने अरहर की एमएसपी
पर खरीद 31,464 टन की और मूंग की खरीद 16,977 टन की थी। जबकि चालू रबी सीजन
में चना की एमएसपी पर खरीद 16 लाख टन से ज्यादा की हो चुकी है।
व्यापारियों
के अनुसार देश में आमतौर पर चना की खपत 8 से 9 लाख टन की मासिक होती है,
लेकिन लॉकडाउन के बाद से चना की खपत घटकर आधी रह गई है। इसी तरह से अरहर की
महीने में तीन लाख टन से ज्यादा की होती थी, जोकि घटकर 2.50 लाख टन के
स्तर पर हा गई हैं। अत: दालों की कुल खपत में कमी आई है, जबकि चालू रबी में
चना और मसूर का उत्पादन अनुमान ज्यादा है।
चालू खरीफ में मानसूनी
बारिश सामान्य होने का अनुमान है तथा मानसून समय से पहले आने का अनुमान
है, जिससे खरीफ सीजन में दलहन की बुआई समय से हो पायेगी। हाजिर बाजार में
नकदी की किल्लत बनी हुई है, जिस कारण दालों में ग्राहकी सामान्य की तुलना
में कमजोर है।
बर्मा की लेमन अरहर 2022 की फसल की कीमतों में दिल्ली में 50 रुपये की गिरावट आकर भाव 6,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
चेन्नई में, बर्मा की लेमन अरहर के भाव में 50 रुपये की गिरावट आकर दाम 6,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
महाराष्ट्र
की नांदेड़ लाईन से पुरानी और नई अरहर का दिल्ली डिलीवरी का भाव क्रमशः
6,300 रुपये और 6,425 रुपये प्रति क्विंटल के पूर्वस्तर पर बोला गया, तथा
इन भाव में कोई व्यापार नहीं हुआ है।
मिलों की कमजोर मांग से मुंबई में बर्मा की लेमन अरहर की कीमतें 6,025 से 6,050 रुपये प्रति क्विंटल पर कमजोर बनी रही।
इस
दौरान मुंबई में अफ्रीकी लाईन की अरहर के भाव में गिरावट दर्ज की गई।
तंजानिया की अरुषा अरहर और मटवारा अरहर के दाम 50-50 रुपये घटकर क्रमश:
5,400 से 5,500 रुपये और 5,250 से 5,300 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। मलावी
अरहर के दाम भी 50 रुपये घटकर 4,800-4,900 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
मोजाम्बिक लाईन की गजरी अरहर की कीमतें 50 रुपये कमजोर होकर 5,350 रुपये
प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गई।
मिलों की मांग कमजोर होने से दिल्ली
में बर्मा उड़द एफएक्यू और एसक्यू नई के भाव में 75-75 रुपये की गिरावट
आकर दाम क्रमश: 7,000 रुपये और 7,575 से 7,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
इस दौरान उड़द एफएक्यू और एसक्यू पुरानी के भाव भी 75-75 रुपये नरम होकर
क्रमश: 6,950 रुपये और 7,525 से 7,550 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
आंध्र प्रदेश लाईन की नई उड़द का दिल्ली के लिए व्यापार 50 रुपये कमजोर होकर 7,050 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर हुआ।
मुंबई में बर्मा उड़द एफएक्यू की कीमतों में 50 रुपये की गिरावट आकर भाव 6,750 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
चेन्नई
में एफएक्यू उड़द के भाव हाजिर डिलीवरी के 6,650 रुपये प्रति क्विंटल पर
स्थिर बने रहे, जबकि एसक्यू उड़द की कीमतों में 25 रुपये का मंदा आकर भाव
7,150 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
दाल मिलों की हाजिर मांग सुधरने
से दिल्ली में मध्य प्रदेश की नई मसूर के भाव में 50 रुपये की तेजी आकर भाव
7,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। इस दौरान कनाडा की मसूर के भाव 7,050
रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे।
दाल मिलों की सीमित मांग से
कनाडा की मसूर के भाव मुंद्रा और मुंबई बंदरगाह पर क्रमश: 6,650-6,825
रुपये और 7,150-7,200 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। इस दौरान
ऑस्ट्रेलियाई मसूर की कीमत 7,250 रुपये पर स्थिर बनी रही।
कानपूर में उत्तर प्रदेश लाईन की मसूर के दाम 25 रुपये बढ़कर 6,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
दिल्ली में राजस्थानी चना के दाम 4,875 रुपये एवं मध्य प्रदेश के चना के भाव 4,800 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे।
अप्रैल में डीओसी के निर्यात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी - उद्योग
नई
दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2022-23 के पहले महीने अप्रैल में देश से डीओसी के
निर्यात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 333,972 टन का हुआ है,
जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात केवल 303,705 टन
का ही हुआ था।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (एसईए)
के अनुसार अप्रैल में देश से सरसों डीओसी के निर्यात में भारी बढ़ोतरी हुई
है, जिससे कुल निर्यात बढ़ा है। अप्रैल में सरसों डीओसी का निर्यात बढ़कर
229,207 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल अप्रैल में इसका निर्यात केवल 93,984
टन का ही हुआ था।
एसईए के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान देश
से डीओसी का निर्यात 37 फीसदी घटकर 23.8 लाख टन का ही हुआ, जबकि इसके
पिछले वित्त वर्ष के दौरान इनका निर्यात 36.8 लाख टन का हुआ था। मूल्य के
हिसाब से वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान डीओसी का निर्यात 5,600 करोड़ रुपये
का ही हुआ, जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष के दौरान 8,900 करोड़ रुपये का
निर्यात हुआ था।
चालू वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के दौरान
डीओसी का कुल निर्यात कम रहने की आशंका है, क्योंंकि घरेलू बाजार में
सोयाबीन की कीमतें तेज हैं, जिस कारण भारत से सोया डीओसी में निर्यात
पैरिटी कमजोर है। इस समय कांडला बंदरगाह पर सोया डीओसी का भाव 730 डॉलर
प्रति टन एफओबी है, जबकि अर्जेंटीना में सोया डीओसी का दाम 510 डॉलर और
ब्राजील की सोया डीओसी का भाव 505 डॉलर, सीएंडएफ बोली जा रही हैं। हालांकि
इस दौरान सरसों डीओसी के निर्यात में बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
एसईए
के अनुसार भारतीय बंदरगाह पर अप्रैल में सोया डीओसी का भाव घटकर 827 डॉलर
प्रति टन है जबकि मार्च में इसका भाव 888 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से
सरसों डीओसी का भाव अप्रैल में घटकर भारतीय बंदरगाह पर 321 डॉलर प्रति टन
रह गया, जबकि मार्च में इसका भाव 326 डॉलर प्रति टन था। केस्टर डीओसी का
भाव मार्च के 172 डॉलर प्रति टन से घटकर अप्रैल में भारतीय बदंरगाह पर 141
डॉलर प्रति टन के स्तर पर आ गया।
गेहूं के निर्यात नियमों में केंद्र सरकार ने दी ढील, बंदरगाहों पर अभी भी हजारों ट्रक फसे
नई
दिल्ली। केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात नियमों में थोड़ी ढील दी है,
जिससे निर्यातकों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। वाणिज्य एवं उद्योग
मंत्रालय द्वारा मंगलवार को जारी की गई अधिसूचना के अनुसार 13 मई या उससे
पहले हो चुके सौदों को निर्यात की अनुमति दी जायेगी।
केंद्र सरकार
के अनुसार गेहूं के निर्यात की खेप को जांच के लिए सीमा शुल्क विभाग को
सौंप दिया गया है, तथा जिन निर्यातकों ने 13 मई या उससे पहले निर्यात सौदों
का पंजीकरण कराया था, ऐसी खेपों को निर्यात करने की अनुमति दी जायेगी।
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर अचानक से रोक
लगा देने के बाद विश्व बाजार में जहां गेहूं की कीमतों में भारी तेजी आई
थी, वहीं घरेलू बाजार में इसके दाम कम हो गए। भारतीय बंदरगाहों पर अभी भी
हजारों ट्रक गेहूं की आलोडिंग का इंतजार कर रहे हैं।
केंद्र सरकार
द्वारा गेहूं के निर्यात पर रोक लगा देने से मिस्र की सरकार ने भी भारत
सरकार से निर्यात नियमों में राहत देने की मांग की थी। केंद्र सरकार के
अनुसार मिस्र को जानी वाली गेहूं की खेप का भी मंजूरी दे दी है, जोकि पहले
से ही कांडला बंदरगाह पर लोड हो रही है। मिस्र को गेहूं का निर्यात करने
वाली कंपनी ने 61,500 टन पूरा गेहूं लोडिंग करने की अनुमति मांगी थी, तथा
इसमें 44,340 टन गेहूं पहले ही लोड हो चुका था। अत: अब केवल 17,160 टन
गेहूं की लोडिंग होना ही बाकि है। अत: सरकार ने मिस्र के लिए पूरा 61,500
टन गेहूं की लोडिंग होने के बाद निर्यात की अनुमति दे दी है।
लगातार
बढ़ती महंगाई के बीच गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी को देखते हुए केंद्र
सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने का निर्णय लिया था। देश के कई
राज्यों में होली के बाद से तापमान एकदम बढ़ जाने से गेहूं उत्पादन में
भारी गिरावट आने की आशंका है। चालू रबी में तापमान अचानक बढ़ने के कारण कई
राज्यों में गेहूं के उत्पादन में भारी गिरावट आई है। जिस कारण सरकार को
एमएसपी पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य भी आधे से कम करना पड़ा है। पहले सरकार
ने 444 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था लेकिन अब उसे घटाकर 195 लाख
टन कर दिया है। भारतीय खाद्य निगम, एफसीआई के अनुसार अभी तक एमएसपी पर 180
लाख टन गेहूं खरीदा गया है।
निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले के बाद
सरकार ने गेहूं की एमएसपी पर खरीद की अंतिम तारिख बढ़ा दी है, लेकिन
जानकारों का मानना है कि अधिकांश किसान अपनी फसल ही बेच चुके हैं, इसलिए अब
सरकारी खरीद में ज्यादा बढ़ोतरी का अनुमान नहीं है।
कॉटन उत्पादन अनुमान में उद्योग ने फिर की कटौती, 323.63 लाख गांठ का अनुमान
नई
दिल्ली। प्रतिकूल मौसम के साथ ही पिंक बालवर्म की मार चालू सीजन में कपास
की फसल पर पड़ी थी, जिस कारण इसके उत्पादन अनुमान में उद्योग ने एक बार फिर
कटौती कर दी। उद्योग के अनुसार पहली अक्टूबर 2021 से शुरू हुए चालू फसल
सीजन में कॉटन का उत्पादन घटकर 323.63 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो ही होने
का अनुमान है, जबकि इसके पहले उद्योग ने 335.13 लाख गांठ के उत्पादन का
अनुमान जारी किया था, जबकि उससे पहले 343.13 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान
था।
कॉटन एसोसिएशन आफ इंडिया, सीएआई के अनुसार कॉटन के तीसरे
आरंभिक अनुमान मेें और 11.50 लाख गांठ की कमी आने की आशंका है। प्रमुख
उत्पादक राज्य गुजरात में पांच लाख गांठ, महाराष्ट्र में पांच लाख गांठ,
मध्य प्रदेश में एक लाख गांठ, तेलंगाना में 2 लाख गांठ और कर्नाटक में 50
हजार गांठ कम होने का अनुमान है। हालांकि इस दौरान तमिलनाडु में उत्पादन 2
लाख गांठ ज्यादा होने की उम्मीद है।
उद्योग के अनुसार चालू फसल
सीजन में कॉटन की खपत पहले के अनुसार 340 लाख गांठ से कम होकर 320 लाख गांठ
ही होने का अनुमान है। हालांकि पिछले साल 335 लाख गांठ की खपत हुई थी।
अप्रैल अंत तक 200 लाख गांठ की खपत हो चुकी है।
चालू फसल सीजन में
कॉटन का आयात बढ़कर 15 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि पिछले फसल सीजन
में 10 लाख गांठ का आयात हुआ था। चालू फसल सीजन में अप्रैल अंत तक करीब 6
लाख गांठ कॉटन का आयात हो चुका है।
उद्योग के अनुसार चालू फसल सीजन
में कॉटन का निर्यात 45 लाख गांठ के पहले अनुमान से घटकर 40 लाख गांठ का ही
होने का अनुमान है, जिसमें से अप्रैल अंत तक 36 लाख गांठ का निर्यात हो भी
चुका है।
सीएआई के अनुसार चालू फसल सीजन 2021-22 में पहली अक्टूबर
2021 से अप्रैल 2022 अंत तक देशभर की मंडियों में 277.49 लाख गांठ कॉटन
की आवक हो चुकी है, जोकि कुल उत्पादन का करीब 85 फीसदी है। अत: उत्पादक
राज्यों में अब केवल 15 फीसदी कपास ही बची हुई है।
उद्योग के अनुसार
मिलों के पास अप्रैल के अंत में करीब 78 लाख गांठ कॉटन का स्टॉक बचा हुआ
है, जोकि औसतन मिलों की खपत का करीब 89 दिनों का है। उधर कॉटन कारर्पोरेशन
आफ इंडिया, सीसीआई, महाराष्ट्र फैडरेशन, एमएनसी, जिनर्स, व्यापारी और
एमसीएक्स के पास मार्च अंत में कॉटन का करीब 44.49 लाख गांठ का बकाया स्टॉक
है। ऐसे में माना जा रहा है कि सीजन के अंत में 30 सितंबर 2022 को कॉटन का
बकाया स्टॉक 53.63 लाख गांठ का बचेगा।
व्यापारियों के अनुसार घरेलू
बाजार में हाल ही में जिस अनुपात में कॉटन के दाम तेज हुए हैं, उसके आधार
पर यार्न की कीमतें नहीं बढ़ पाई। साथ ही कई राज्यों में मिलों को बिजली
कटौती का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए छोटी स्पिनिंग मिलों ने उत्पादन
लगभग बंद कर दिया है, जबकि बड़ी मिलें भी केवल एक या डेढ़ शिफ्ट में ही काम
कर रही है। हालांकि जिनर्स दाम घटाकर गांठों की बिकवाली नहीं कर रह हैं,
जबकि नई फसल की आवक बनने में अभी समय है। इसलिए हाजिर बाजार में कॉटन की
कीमतों में अभी बड़ी गिरावट के आसार नहीं है।
गुजरात की मंडियों में
ए ग्रेड कॉटन के दाम 1,00,000 से 1,00,500 रुपये, बी ग्रेड किस्म की कॉटन
के भाव 99,500 से 1,00,000 रुपये और एवरेज ग्रेड की कॉटन के भाव 95,500 से
97,000 रुपये प्रति कैंडी क्वालिटीनुसार बोले गए।
विदेशी बाजार में
शुक्रवार को कॉटन की कीमतों में मिलाजुला रुख देखा गया। आईसीई कॉटन के
जुलाई वायदा अनुबंध में 33 प्वांइट की गिरावट आकर भाव 145.20 सेंट पर बंद
हुए, जबकि दिसंबर वायदा अनुबंध में 32 प्वांइट का सुधार आकर भाव 127.99
सेंट हो गए। मार्च-2023 वायदा अनुबंध में 47 प्वांइट की तेजी आकर भाव
122.82 सेंट हो गए।
14 मई 2022
केंद्र ने गेहूं निर्यात पर लगाई रोक, उत्पादन अनुमान में कमी की आशंका
नई
दिल्ली। गेहूं के उत्पादन अनुमान में आई गिरावट को देखते हुए केंद्र सरकार
ने सरकार ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। वाणिज्य मंत्रालय
के विदेश व्यापार महानिदेशालय, डीजीएफटी द्वारा शुक्रवार को जारी अधिसूचना
के अनुसार सभी किस्मों के गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध तत्काल प्रभावी हो
गया है। इससे हाजिर बाजार में गेहूं की कीमतों में गिरावट आने की आशंका है।
जानकारों के अनुसार लगातार बढ़ती महंगाई के बीच गेहूं की कीमतों
में बढ़ोतरी को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। इस बार गेहूं उत्पादन में
भारी गिरावट आने कमी आशंका है। अधिसूचना में यह भी कहा गया है कि इसके
जारी होने की तारीख से पहले जिन कंपनियों ने निर्यात के सौदे कर लिए हैं
उन्हें निर्यात की इजाजत होगी।
चालू रबी में तापमान अचानक बढ़ने के
कारण कई राज्यों में गेहूं के उत्पादन में भारी गिरावट आई है। जिस कारण
सरकार को एमएसपी पर गेहूं की खरीद का लक्ष्य भी आधे से कम करना पड़ा है।
पहले सरकार ने 444 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था लेकिन अब उसे
घटाकर 195 लाख टन कर दिया है। भारतीय खाद्य निगम, एफसीआई के अनुसार अभी तक
एमएसपी पर 179.89 लाख टन गेहूं खरीदा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि
निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले के बाद किसान फिर मंडियों का रुख कर सकते
हैं।
समर में फसलों की बुआई 5.40 फीसदी बढ़ी, दलहन, तिलहन के साथ मोटे अनाजों की बुआई ज्यादा
नई
दिल्ली। चालू समर सीजन में 13 मई 2022 तक फसलों की कुल बुआई 5.40 फीसदी
बढ़कर 73.58 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में
69.81 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। दलहन, तिलहन के साथ ही मोटे
अनाजों की बुआई में बढ़ोतरी हुई है, जबकि धान की रोपाई पिछले साल की तुलना
में पिछड़ रही है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू समर सीजन में दालों
की बुआई 22.9 फीसदी बढ़कर 21.41 लाख हेक्टयेर में हो चुकी है, जबकि पिछले
साल की समान अवधि में इनकी बुआई केवल 17.42 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी।
मूंग की बुआई चालू समर में बढ़कर 17.48 लाख हेक्टेयर में और उड़द की 3.69
लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश:
14.43 लाख हेक्टेयर और 2.64 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई थी।
इसी तरह
से मोटे अनाजों की बुआई चालू समर में बढ़कर 11.33 लाख हेक्टेयर में हो
चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक 10.75 लाख हेक्टयेर में ही हो पाई थी।
मोटे अनाजों में बाजरा की बुआई 3.99 लाख हेक्टयेर में, मक्का की 6.89 लाख
हेक्टेयर में और ज्वार 20 हजार तथा रागी की बुआई 25 हजार हेक्टेयर में हुई
है।
तिलहनी फसलों की बुआई चालू समर सीजन में बढ़कर 11.04 लाख
हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 10.69 लाख
हेक्टेयर में ही हो पाई थी। समर तिलहन में मूंगफली की बुआई चालू सीजन में
5.39 लाख हेक्टेयर में, शीसम सीड की 4.55 लाख हेक्टेयर में और सनफ्लावर की
37 हजार हेक्टेयर में हो चुकी है। पिछले समर सीजन में इनकी बुआई क्रमश:
5.81 लाख हेक्टेयर में, 4.25 लाख हेक्टेयर में और 52 हजार हेक्टेयर में हो
चुकी थी।
धान की रोपाई चालू समर सीजन में घटकर 29.80 लाख हेक्टेयर
में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी रोपाई 30.96 लाख हेक्टेयर
में हो चुकी थी।
13 मई 2022
कॉटन की कीमतें रिकार्डस्तर पर, मिलों की खरीद कम होने से मासिक खपत घटी - उद्योग
नई
दिल्ली। घरेलू बाजार में सोमवार को कॉटन की कीमतों में भारी तेजी आई, जबकि
हाल ही में जिस अनुपात में घरेलू बाजार में कॉटन के दाम तेज हुए हैं, उसके
हिसाब से धागे की कीमतें नहीं बढ़ पा रही है। ऐसे मेंं जहां छोटी स्पिनिंग
मिलें बंद हो गई है, वहीं बड़ी मिलें भी एक या डेढ़ शिफ्टों में कार्य कर
पा रही है। ऐसे में देश में कॉटन की मासिक खपत 29 लाख गांठ से घटकर केवल 19
लाख गांठ रह गई।
गुजरात में शंकर-6 किस्म की 29 एमएम कॉटन के भाव
सोमवार को 1,150 रुपये तेज होकर 96,500 से 97,500 प्रति कैंडी, एक
कैंडी-356 किलो हो गए। इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में कॉटन की कीमतों
में करीब 1,200 रुपये प्रति कैंडी की तेजी दर्ज की गई।
स्पिनिंग
मिल एसोसिएशनों के अनुसार गुजरात में कॉटन की मासिक खपत में 2 लाख गांठ की
कमी आई है, जबकि उत्तर भारत के राज्यों में एक लाख गांठ, मध्य प्रदेश में
एक लाख गांठ, महाराष्ट्र में भी एक लाख गांठ, आंध्रप्रदेश में एक लाख गांठ,
तेलंगाना एवं कर्नाटक में 50 हजार गांठ, तमिलनाडु में 3 लाख गांठ, तथा
अन्य राज्यों में 50 हजार गांठ की खपत में कमी आई है। अत: देशभर के प्रमुख
उत्पादक राज्यों में कॉटन की मासिक खपत करीब 10 लाख गांठ कम हो गई।
जानकारों
के अनुसार घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतें रिकार्डस्तर पर पहुंची हुई हैं,
जिस कारण छोटी मिलें घाटे के कारण लगभग बंद हो गई है, वहीं बड़ी मिलें भी
एक या डेढ़ शिफ्ट में ही कार्य कर पा रही हैं। कॉटन की कमी के कारण अधिकांश
बड़ी मिलों ने साप्ताहिक अवकाश भी एक से बढ़ाकर दो दिन का कर दिया है।
हाल
ही में जिस अनुपात में कॉटन की कीमतें तेज हुई हैं, उस अनुपात में धागे के
दाम नहीं बढ़ पाएं, जिस कारण मिलों को डिस्टपैरिटी का सामना करना पड़ रहा
है। बढ़े हुए भाव में धागे में स्थानीय एवं निर्यात मांग नहीं बढ़ पा रही
है।
देश के कई राज्यों में 7 से 8 घंटे की बिजली कटौती हो रही है,
जिस कारण भी मिलें पूरी क्षमता से नहीं चल पा रही है। डीजल की कीमतें महंगी
होने से मिलों की लागत और बढ़ जाती है। अत: गारमेंट और पावरलूम केवल 30 से
50 फीसदी क्षमता का ही उपयोग कर पा रहे हैं।
चालू फसल सीजन के पहले सात महीनों में डीओसी का निर्यात 71 फीसदी घटा - सोपा
नई
दिल्ली। पहली अक्टूबर 2021 से शुरू हुए चालू फसल सीजन में अप्रैल 22 अंत
तक सोया डीओसी का निर्यात 70.67 फीसदी घटकर केवल 5.12 लाख टन का ही हुआ है,
जबकि पिछले फसल सीजन की समान अवधि में इसका निर्यात 17.46 लाख टन का हुआ
था।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया, सोपा के अनुसार विश्व
बाजार में सोया डीओसी की कीमतें कम रही, जबकि घरेलू बाजार में इसके दाम तेज
होने के कारण निर्यात में कमी आई है। चालू सीजन में आरंभ में 2.41 लाख टन
सोया डीओसी का बकाया स्टॉक था, जबकि 4.40 लाख टन का आयात हुआ है। चालू फसल
सीजन में पहले सात महीनों में 36.72 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है,
तथा इसमें से फीड में खपत 32.50 लाख टन की और खाने में 4.65 लाख टन की हुई
है। अत: पहली मई को 1.26 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक है, जोकि पिछले
साल की समान अवधि के 1.53 लाख टन से कम है।
पहली अक्टूबर 2021 से
अप्रैल 2022 के अंत तक देशभर की मंडियों में 66 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई
है, जबकि इसमें से 46 लाख टन की क्रेसिंग हो पाई है। इसके अलावा 1.70 लाख
टन सोयाबीन की अप्रैल तक सीधी खपत हुई है, जबकि 0.32 लाख टन का निर्यात हुआ
है।
सोपा के अनुसार चालू सीजन के आरंभ में 1.83 लाख टन सोयाबीन का
बकाया स्टॉक था, जबकि 118.89 लाख टन का उत्पादन हुआ। अत: अपैल के अंत तक
2.30 लाख टन का आयात हुआ है, जबकि 13 लाख टन सोयाबीन की खपत बीज में हो
जायेगी। ऐसे में माना जा रहा है कि अप्रैल के अंत में व्यापारियों एवं
स्टॉकिस्टों के पास करीब 62 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है,
जोकि पिछले साल की समान अवधि के 25.84 लाख टन के दोगुने से भी ज्यादा है।
गेहूं की सरकारी खरीद 178 लाख टन के पार, पंजीकरण के बावजूद किसान बेचने नहीं आए
नई
दिल्ली। चालू रबी विपणन सीजन 2022-23 में 11 मई तक देश के प्रमुख उत्पादक
राज्यों से न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर 178.03 लाख टन गेहूं की सरकारी
खरीद हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले कम है। उत्पादक
मंडियों में गेहूं के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 2,015 रुपये प्रति
क्विंटल से ज्यादा होने के कारण किसान पंजीकरण कराने के बावजूद भी गेहूं
बेचने नहीं आए।
भारतीय खाद्य निगम, एफसीआई के अनुसार अभी तक गेहूं
की हुई कुल खरीद में पंजाब की हिस्सेदारी 95.56 लाख टन की है, जबकि हरियाणा
से एमएसपी पर 40.59 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है। मध्य प्रदेश से चालू रबी
में एमएसपी पर अभी तक 40.59 लाख टन गेहूं खरीदा गया है। एफसीआई के अनुसार
अन्य राज्यों में उत्तर प्रदेश से 2.23 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद ही हो
पाई है।
इस बार गेहूं खरीद में नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है।
चालू रबी विपणन सीजन 2022-23 के दौरान कई राज्यों में सरकारी खरीद के लिए
बड़ी संख्या में किसानों ने पंजीकरण तो करवाया लेकिन लेकिन अपनी उपज बेचने
वे सरकारी खरीद केंद्रों पर आए ही नहीं, क्योंकि उत्पादक मंडियों में
व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी से ज्यादा कीमत पर गेहूं की खरीद कर
रहे थे। उत्तराखंड में 1,050 किसानों ने गेहूं बेचने के लिए पंजीकरण
करवाया, लेकिन सिर्फ एक किसान सरकारी खरीद केंद्र पहुंचा और उसने 3.2 टन
गेहूं बेचा है।
इसी तरह गुजरात में पंजीकरण तो करवाया 11,463
किसानों ने, लेकिन सरकारी खरीद केंद्र पर सिर्फ तीन किसान अपनी फसल बेचने
पहुंचे। इसी तरह राजस्थान में पंजीकरण कराने वाले 12,430 किसानों में से
सिर्फ 85 और जम्मू-कश्मीर में 9,239 में से सिर्फ 58 किसान ही पहुंचे।
हिमाचल प्रदेश में 2,744 किसानों ने पंजीकरण कराया था, लेकिन उनमें से
सिर्फ 976 सरकारी खरीद केंद्रों पर पहुंचे।
हालांकि पंजाब और मध्य
प्रदेश में पंजीकरण की तुलना में ज्यादा किसान पहुंचे। पंजाब में 4.20 लाख
किसानों ने पंजीकरण कराया था, जबकि अब तक 7.39 लाख किसान सरकारी खरीद
केंद्रों पर अपनी उपज बेच चुके हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में 5.03 लाख
पंजीकृत के मुकाबले 5.18 लाख किसान आए हैं। सर्वाधिक खरीद के मामले में
तीसरे राज्य हरियाणा में 4.19 लाख किसानों ने पंजीकरण कराया था, जबकि आए
3.05 लाख।
हालांकि, नौ राज्यों में कुल रजिस्टर्ड किसानों और सरकारी
खरीद केंद्रों में आने वाले किसानों का योग देखें तो अंतर ज्यादा नहीं
लगता। इन नौ राज्यों के 230 जिलों में 16.99 लाख किसानों ने गेहूं बेचने के
लिए पंजीकरण करवाया था और आए 16.19 लाख किसान।
अप्रैल में खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 13 फीसदी की कमी - एसईए
नई दिल्ली। अप्रैल में खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 13 फीसदी घटकर 9,11,846 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल अप्रैल में इनका आयात 10,53,347 टन का हुआ था। हालांकि चालू तेल वर्ष 2021-22 के पहले छह महीनों नवंबर 21 से अप्रैल 22 के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों का आयात 4 फीसदी कम हुआ है।
एसईए के अनुसार इंडोनेशिया ने पाम ऑयल के निर्यात पर 28 अप्रैल 2022 से पाबंदी लगा दी है। इससे दुनिया भर के उपभोक्ताओं को परेशानी हो रही है। भारत हर महीने इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड तथा अन्य देशों से 6 से 6.5 लाख टन पाम ऑयल का आयात करता रहा है। इसमें से लगभग 3 लाख टन इंडोनेशिया से आरबीडी पॉमोलीन का आयात होता है। एसोसिएशन ने उम्मीद जताई है कि इंडोनेशिया मई खत्म होने से पहले पाम ऑयल के निर्यात पर पाबंदी हटा लेगा। लेकिन अगर उसने पाबंदी जारी रखी तो आयात प्रभावित होने का डर हैं क्योंकि दूसरे स्रोतों से उतना तेल उपलब्ध नहीं है।
06 मई 2022
विदेश में आई मंदी सरसों की कीमतों में गिरावट, दैनिक आवक स्थिर
नई
दिल्ली। विदेशी बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में आई गिरावट से गुरूवार
को घरेलू बाजार में सरसों की कीमतों में 50 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा
आया। जयपुर में कंडीशन की सरसों के भाव घटकर 7,400 रुपये प्रति क्विंटल रह
गए। इस दौरान सरसों की दैनिक आवक पांच लाख बोरियों पर स्थिर बनी रही।
व्यापारियों
के अनुसार मलेशिया में पॉम तेल के साथ शिकागों मेंं सोया तेल के भाव आज घट
गए, जिस कारण घरेलू बाजार में ब्रांडेड कंपनियों ने सरसों की खरीद कीमतों
में कटौती कर दी। सूत्रों के अनुसार भारत सरकार आयातित खाद्य तेलों के आयात
शुल्क में कटौती कर सकती है, ताकि घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों
को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि जानकारों का मानना है कि इससे घरेलू
बाजार में खाद्य तेलों एवं तिलहन की कीमतों में अस्थाई गिरावट तो आ सकती है
लेकिन आगे फिर दाम तेज हो जायेंगे।
निवेशकों की मुनाफावसूली आने
से मलेशिया में पॉम तेल के जुलाई अनुबंध की कीमतों में 348 रिगिंट यानि 4.9
फीसदी घटकर 6,756 रिगिंट प्रति टन रह गई। मलेशिया से पॉम तेल उत्पादों का
निर्यात अप्रैल में मार्च के मुकाबले 13.9 से 16 फीसदी तक घटा हैं। हालांकि
पॉम तेल के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश से पहली मई से पांच मई के दौरान
पॉम उत्पादों का निर्यात 180,418 मिलियन टन का हुआ, जोकि 1-5 अप्रैल 2022
के 107,980 मिलियन टन से 72,438 मिलियन टन यानि 67.08 फीसदी ज्यादा है।
शिकागों में इलेक्ट्रानिक ट्रेडिंग में सोयाबीन और मिल की कीमतों में तेजी
दर्ज की गई, लेकिन सोया तेल के भाव में गिरावट आई।
जयपुर में कच्ची
घानी सरसों तेल एवं एक्सपेलर के भाव में 1-1 रुपये की तेजी आकर भाव क्रमश:
1,549 रुपये और 1,539 रुपये प्रति 10 किलो हो गए, लेकिन इन भाव में ग्राहकी
कमजोर देखी गई। इस दौरान सरसों खल की कीमतें में 25 रुपये का मंदा आकर भाव
2,800 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
देशभर की मंडियों में गुरूवार
को सरसों की दैनिक आवक 5 लाख बोरी की हुई, जबकि बुधवार को भी आवक इतनी ही
हुई थी। कुल आवकों में से प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान की मंडियों में
2.25 लाख बोरी, मध्य प्रदेश में 35 हजार बोरी, उत्तर प्रदेश में 85 हजार
बोरी, हरियाणा और पंजाब में 65 हजार बोरी, गुजरात में 25 हजार बोरी तथा
अन्य राज्यों की मंडियों में 65 हजार बोरी सरसों की आवक हुई।
मिलों की मांग से बर्मा की अरहर और उड़द के साथ आयातित तथा देसी मसूर के भाव बढ़े
नई
दिल्ली। नीचे दाम पर दाल मिलों की हाजिर मांग बढ़ने के कारण गुरूवार को
बर्मा की लेमन अरहर और उड़द के साथ ही आयातित तथा देसी मसूर एवं चना की
कीमतों में सुधार आया। व्यापारियों के अनुसार अरहर और उड़द में आयातकों की
बिकवाली कम हुई है, जबकि खपत का सीजन होने के कारण चना दाल एवं बेसन की
मांग में सुधार आया है। ऐसे में दालों की कीमतों में हल्का सुधार और भी बन
सकता है लेकिन अभी बड़ी तेजी के आसार नहीं है।
जानकारों के अनुसार
डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने से अरहर और उड़द का आयात महंगा हो गया
है, जिस कारण आयातकों ने नीचे दाम पर बिकवाली कम कर दी, क्योंकि उन्हें
मौजूदा भाव में डिस्पैरिटी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि दालों में
उठाव सामान्य की तुलना में कमजोर है, तथा आमतौर पर जून एवं जुलाई में दालों
की खपत कम हो जाती है। इसलिए अरहर और उड़द की कीमतों में हल्का सुधार तो
और भी आ सकता है लेकिन अभी बड़ी तेजी मानकर व्यापार नहीं करना चाहिए।
चना
एवं मसूर की कीमतों में भी सुधार आया है। व्यापारियों के अनुसार चना के
दाम उत्पादक मंडियों में एमएसपी से नीचे हैं, तथा ब्याह, शादियों के सीजन
के कारण चना दाल एवं बेसन में मांग बनी रहने का अनुमान है। इसलिए चना के
भाव में हल्का सुधार और भी आ सकता है। मसूर में आयातक दाम तेज कर रहे हैं,
क्योेंकि चालू महीने में आस्ट्रेलिया एवं कनाडा से करीब 85 से 90 टन आयातित
मसूर बंदरगाहों पर पहुंचेगी।
चालू समर सीजन में दालों की बुआई
बढ़ी है, तथा समर मूंग की नई फसल की आवक जहां उत्पादक मंडियों में शुरू हो
गई है, वहीं समर उड़द की आवक भी चालू महीने के अंत तक शुरू होने की उम्मीद
है। चालू सीजन में मानसूनी बारिश अच्छी होने का अनुमान है, हालांंकि
जानकारों का मानना है कि खरीफ में अरहर के बजाए किसान कपास की खेती को
तरजीह देंगे, क्योंकि चालू सीजन में कपास किसानों को अच्छे भाव मिलें हैं।
ऐसे में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में अरहर की बुआई पिछले साल की
तुलना में कम रह सकती है।
अन्य बाजारों में दाम तेज होने से बर्मा
की लेमन अरहर 2022 की फसल की कीमतों में दिल्ली में 75 रुपये की तेजी आकर
भाव 6,625 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
चेन्नई में, बर्मा की लेमन अरहर के भाव में 50 रुपये की तेजी आकर दाम 6,250 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
महाराष्ट्र
(नांदेड़) से पुरानी और नई अरहर के भाव में 75-75 रुपये की तेजी आकर
दिल्ली डिलीवरी का व्यापार क्रमशः 6,400 रुपये और 6,500 रुपये प्रति
क्विंटल की दर पर हुआ।
बर्मा से आयातित दालों की लागत अधिक आ रही
है, तथा बर्मा से भारत में चेन्नई के लिए यांगून बंदरगाह पर दालों का कोई
वैसल लोड नहीं हो रहा है।
दाल मिलों की मांग सुधरने मुंबई में बर्मा की लेमन अरहर नई के भाव में 50 रुपये की तेजी आकर भाव 6,250 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
इसी
तरह, तंजानिया की अरुषा अरहर के भाव भी 50 रुपये तेज होकर 5,500-5,600
रुपये प्रति क्विंटल हो गए। दूसरी और मुंबई में तंजानिया की मटवारा अरहर के
दाम क्रमश: 5,350 से 5,400 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे। मलावी
अरहर के दाम भी 4,900 से 5,000 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। मोजाम्बिक की
गजरी अरहर की कीमतें 5,450 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बनी रही।
मिलों
की मांग सुधरने से दिल्ली में बर्मा उड़द एफएक्यू और एसक्यू नई के भाव में
25-50 रुपये की तेजी आकर दाम क्रमश: 7,075 रुपये और 7,775 रुपये प्रति
क्विंटल हो गए। इस दौरान उड़द एफएक्यू और एसक्यू पुरानी के भाव भी 25-50
रुपये तेज होकर क्रमश: 7,025 रुपये और 7,725 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
मुंबई में बर्मा उड़द एफएक्यू की कीमतें 6,700 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बनी रही।
चेन्नई
में उड़द एफएक्यू के भाव के भाव 50 रुपये तेज होकर 6,750 रुपये प्रति
क्विंटल हो गए, जबकि उड़द एसक्यू की कीमतों में 75 रुपये की तेजी आकर भाव
7,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
नीचे दाम पर दाल मिलों की मांग
सुधरने से दिल्ली में कनाडा और मध्य प्रदेश की मसूर के भाव में 75-100
रुपये की तेजी आकर भाव क्रमश: 7,100 रुपये और 7,050 रुपये प्रति क्विंटल हो
गए।
हालांकि कनाडा की मसूर के भाव हजीरा बंदरगाह पर 6,950 रुपये
प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे, जबकि आस्ट्रेलियाई मसूर के भाव कंटेनर में
7,200 रुपये और कनाडा की मसूर के दाम कंटेनर मेें 7,150 रुपये प्रति
क्विंटल के पूर्वस्तर पर स्थिर बने रहे।
कानपूर में देसी मसूर की कीमतों में 125 रुपये की तेजी आकर भाव 6,925 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
दिल्ली
में राजस्थानी चना के भाव 25 रुपये तेज होकर 5,050 से 5,075 रुपये प्रति
क्विंटल हो गए, जबकि मध्य प्रदेश के चना के दाम 4,950 रुपये प्रति क्विंटल
पर स्थिर बने रहे।
कानपूर में चना के 100 रुपये तेज होकर भाव 4,900 से 4,950 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए।
जयपुर में चना के बिल्टी भाव 75 रुपये तेज होकर 5,000 से 5,025 रुपये प्रति हो गए।
गेहूं के निर्यात पर रोक नहीं लगायेगी सरकार, उत्पादन अनुमान में 5.7 फ़ीसदी कटौती
नई
दिल्ली। केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाने की संभावना से
इनकार कर दिया है, साथ ही सरकार ने मान लिया कि चालू सीजन में गेहूं का
उत्पादन आरंभिक अनुमान से 5.7 फीसदी कम बैठेगा।
केंद्रीय खाद्य
सचिव सुधांशु पांडे ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में गेहूं निर्यात पर
रोक लगाने की किसी संभावना से भी इनकार किया और कहा कि निर्यात के कारण
किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिल रही है। उन्होंने कहा कि निर्यात के
लिए मांग बढ़ने के कारण ही देश के किसान अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य
(एमएसपी) 2,015 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक भाव पर व्यापारियों,
निर्यातकों एवं मिल वालों को बेच रहे हैं। इसलिए सरकारी एजेंसियों द्वारा
खरीद में गिरावट आई है। हालांकि सरकारी खरीद में गिरावट किसानों के लिए
फायदेमंद है क्योंकि उन्हें अधिक कीमत मिल रही है।
देश में अनाज के
भंडार पर उन्होंने कहा कि अभी हम सरप्लस की स्थिति में हैं। राष्ट्रीय
खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज उपलब्ध कराने के लिए हमारे पास पर्याप्त
अनाज है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत घरेलू मांग के लिए गेहूं
आपूर्ति की कोई समस्या नहीं है।
उन्होंने कहा कि कृषि मंत्रालय ने
गेहूं उत्पादन के अनुमान में 5.7 फ़ीसदी कटौती की है। पहले 11.13 करोड़ टन
गेहूं के उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। अब इसे संशोधित करके 10.5 करोड़
टन कर दिया गया है। 2020-21 में 10.96 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।
जानकार लगातार गेहूं उत्पादन में कमी की बात कह रहे थे लेकिन पहली बार
सरकार की तरफ से कोई औपचारिक बयान आया है।
पांडे ने कहा कि भारत से
गेहूं निर्यात के लिए मिस्र, तुर्की और कुछ यूरोपीय यूनियन के देशों में नए
बाजार खुले हैं। उन्होंने बताया कि निर्यातकों ने मौजूदा तिमाही के लिए 40
लाख टन गेहूं के निर्यात के सौदे किए हैं और इसमें से अभी तक 10 लाख टन
गेहूं का निर्यात किया जा चुका है। जानकारों के अनुसार अप्रैल में देश से
करीब 12 लाख टन गेहूं का निर्यात हो चुका है। पांडे ने कहा कि भारतीय
निर्यातकों के पास जून तक गेहूं निर्यात करने का अच्छा मौका है। उसके बाद
अर्जेंटीना का गेहूं विश्व बाजार में आ जाएगा। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत
ने 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था।
उन्होंने बताया कि गेहूं
की सरकारी खरीद अभी तक लगभग 175 लाख टन की हुई है और 2022-23 खरीफ विपणन
सीजन के दौरान 195 लाख टन के आसपास खरीद होने के आसार हैं। अभी मध्य प्रदेश
और उत्तर प्रदेश से 20 लाख टन गेहूं की खरीद होने की उम्मीद है। पिछले
रबी विपणन सीजन में एमएसपी पर 433.44 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हुई थी।
इस वर्ष सरकार ने 444 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा था।
चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 342 लाख टन के पार, 90 लाख टन निर्यात का अनुमान - इस्मा
नई
दिल्ली। चालू पेराई सीजन 2021-22 के पहले सात महीनों पहली अक्टूबर 2021 से
30 अप्रैल 2022 तक चीनी का उत्पादन 14.01 फीसदी बढ़कर 342.37 लाख टन का हो
चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन में इस दौरान केवल 300.29 लाख टन चीनी का
ही उत्पादन हुआ था। चालू पेराई सीजन में 82 से 83 लाख टन चीनी के निर्यात
सौदे हो चुके हैं तथा कुल निर्यात 90 लाख टन होने का अनुमान है।
इंडियन
शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में महाराष्ट्र
में 30 अप्रैल 2022 तक 132.06 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है, जबकि पिछले
साल इस समय तक केवल 105.63 लाख टन का ही उत्पादन हुआ था।
उत्तर
प्रदेश में चालू पेराई सीजन में मिलों में देर सेे गन्ने की पेराई आरंभ हुई
थी तथा राज्य में 30 अप्रैल 22 तक राज्य की 120 चीनी मिलों में से 78
मिलों में पेराई बंद हो गई है। राज्य में 30 अप्रैल 22 तक 98.98 लाख टन
चीनी का उत्पादन हुआ है जोकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के 105.62 लाख
टन से कम है।
कर्नाटक में 30 अप्रैल 22 तक 59.02 लाख टन चीनी का
उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में केवल 42.48 लाख
टन चीनी का ही उत्पादन हुआ था। राज्य में चालू पेराई सीजन में 72 मिलों
में गन्ने की पेराई चल रही थी, जिनमें से 70 मिलों में पेराई बंद हो गई है।
जून एवं जुलाई में राज्य की कुछ मिलें स्पेशल सीजन की पेराई आरंभ करेंगी,
तथा पिछले साल स्पेशल सीजन के दौरान 2.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
गुजरात में चालू पेराई सीजन में 30 अप्रैल 22 तक 11.55 लाख टन
चीनी का उत्पादन हो चुका है, जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य
की मिलों ने 10.15 लाख टन चीनी का उत्पादन किया था, राज्य में 10 चीनी
मिलों मेंं पेराई अभी भी चल रही है।
तमिलनाडु में चालू पेराई सीजन
में 30 अप्रैल 22 तक राज्य की मिलों ने 8.40 लाख टन चीनी का उत्पादन किया
है, जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में राज्य में 6.04 लाख टन चीनी का
ही उत्पादन हुआ था। राज्य में आगामी दिनों में चीनी पेराई का स्पेशल सीजन
शुरू हो होगा, पिछले साल स्पेशल सीजन के दौरान राज्य में 2.16 लाख टन चीनी
का उत्पादन हुआ था।
देश के अन्य राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना,
बिहार, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, राजस्थान और
ओडिशा की चीनी मिलों ने 30 अप्रैल 22 तक 32.36 लाख टन चीनी का उत्पादन
किया है। इनमें से बिहार, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान और ओडिशा की चीनी
मिलों में पेराई बंद हो चुकी है।
इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन
में अभी तक 82 से 83 लाख टन चीनी के निर्यात सौदे हो चुके है, जबकि अप्रैल
अंत तक 68 से 70 लाख टन चीनी की शिपमेंट भी हो चुकी है। चालू पेराई सीजन के
दौरान चीनी का कुल निर्यात बढ़कर 90 लाख टन होेने की उम्मीद है।
चालू पेराई सीजन में चीनी की घरेलू खपत 272 लाख टन होने का अनुमान है,
जबकि पिछले पेराई सीजन में 265.5 लाख टन की खपत हुई थी।
03 मई 2022
दाल मिलों की कमजोर मांग से अरहर, उड़द और मसूर के साथ ही चना की कीमतों में गिरावट
नई
दिल्ली। दाल मिलों की हाजिर मांग कमजोर बनी रहने के कारण सोमवार को आयातित
के साथ ही देसी अरहर, उड़द और मसूर के साथ ही चना एवं काबुली चना की
कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। व्यापारियों के अनुसार हाजिर बाजार में नकदी
की किल्लत होने के कारण भुगतान समय पर नहीं हो पाने के कारण दालों में थोक
एवं खुदरा मांग कमजोर है।
केंद्र सरकार समय, समय पर दलहन एवं
तिलहन की कीमतों की समीक्षा कर रही है, जिस कारण व्यापारियों ने चालू सीजन
में दलहन के बजाए, गेहूं, जौ एवं मक्का का स्टॉक किया है। अत: दालों में
स्टॉकिस्टों में बिकवाली की बराबर बनी रहने से भाव में लगातार गिरावट दर्ज
की गई।
अरहर एवं उड़द का आयातित स्टॉक बंदरगाहोें पर ज्यादा है,
साथ ही चालू महीने में समर उड़द की नई फसल की आवक बनेगी, तथा चालू समर में
मध्य प्रदेश की जबलपुर लाईन में उत्पादन अनुमान ज्यादा है। हालांकि मौजूदा
भाव में बर्मा से अरहर और उड़द के आयात की लागत बढ़ गई है, ऐसे में इनके
भाव में हल्का सुधार तो आ सकता है लेकिन बड़ी तेजी की उम्मीद अभी नहीं है।
चना
एवं मसूर की दैनिक आवक बराबर बनी हुई है, तथा चना एवं मसूर का उत्पादन
अनुमान पिछले साल की तुलना में ज्यादा है। इसलिए इनकी कीमतों पर दबाव देखा
जा रहा है। आयातित मसूर का बकाया स्टॉक बंदरगाहों पर अच्छा बताया जा रहा
है।
बर्मा की लेमन अरहर 2022 की फसल की कीमतों में दिल्ली में 25 रुपये की गिरावट आकर भाव 6,550 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
चेन्नई में, बर्मा की लेमन अरहर के भाव में 50 रुपये का मंदा आकर दाम 6,175 से 6,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
महाराष्ट्र
की नांदेड़ लाईन से पुरानी और नई अरहर के भाव में 75 से 100 रुपये का मंदा
आकर दिल्ली डिलीवरी का व्यापार क्रमशः 6,325 रुपये और 6,400 रुपये प्रति
क्विंटल की दर पर हुआ।
मुंबई में लेमन अरहर के भाव 6,250 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे।
मुंबई
में तंजानिया की अरुषा अरहर के दाम 5,500-5,550 रुपये प्रति क्विंटल पर
स्थिर बने रहे। मलावी अरहर के दाम भी 4,900-5,000 रुपये प्रति क्विंटल के
पूर्वस्तर पर टिके रहे। मोजाम्बिक लाईन की गजरी अरहर की कीमतें 5,450 रुपये
प्रति क्विंटल बोली गई। इसी तरह से तंजानिया लाईन की मटवारा अरहर के दाम
5,350-5,400 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर रहे। हालांकि इन भाव में ग्राहकी
कमजोर बनी रही।
मिलों की मांग कमजोर होने से दिल्ली में बर्मा
उड़द एसक्यू और एफएक्यू नई के भाव में 50-75 रुपये की गिरावट आकर दाम
क्रमश: 7,600 रुपये और 6,925 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इस दौरान उड़द
एसक्यू और एफएक्यू पुरानी के भाव में भी 50-75 रुपये की गिरावट आकर भाव
क्रमश: 7,550 रुपये और 6,8750 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। बर्मा में उड़द
का उत्पादन अनुमान ज्यादा है।
दाल मिलों की हाजिर मांग कमजोर होने
से मुंबई में बर्मा उड़द एफएक्यू की कीमतों में 50 रुपये की गिरावट आकर भाव
6,700 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
चेन्नई में उड़द एफएक्यू और
एसक्यू की कीमतों में 50 से 75 रुपये का मंदा आकर भाव क्रमश: 6,600 रुपये
एवं 7,275 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
दाल मिलों की कमजोर मांग से
दिल्ली में कनाडा और मध्य प्रदेश की मसूर के भाव में 25-25 रुपये की
गिरावट आकर भाव क्रमश: 7,025 रुपये और 6,925 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
हालांकि आयातित मसूर का बकाया स्टॉक कमजोर है, लेकिन मिलों की मांग में भी
गिरावट आई।
दाल मिलों की हाजिर मांग सीमित होने से कनाडा की मसूर
के भाव हजिरा बंदरगाह पर 6,950 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे। इस
दौरान आस्ट्रेलियाई मसूर के दाम कंटेनर में 7,250 रुपये और कनाडा की मसूर
के भाव कंटेनर में 7,200 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए।
तंजानिया के चना के भाव में मुंबई में 50 रुपये की गिरावट आकर दाम 4,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
दिल्ली
में चना की कीमतों में 25 रुपये का मंदा आकर राजस्थानी चना के दाम 4,950
से 4,975 रुपये एवं मध्य प्रदेश के चना के भाव 4,875 से 4,900 रुपये प्रति
क्विंटल रह गए।
सूडान के काबुली चने के भाव में 50 रुपये की गिरावट
आकर दाम 5,650-5,750 रुपये प्रति रह गए। काबुली चना में मिलों की मांग
कमजोर है, जबकि घरेलू मंडियों के साथ ही सूडान आयातित चना भी रहा है।
पंजाब से गेहूं की एमएसपी पर खरीद पांच मई से होगी बंद, दैनिक आवक कम होने का असर
नई
दिल्ली। पंजाब की मंडियों में गेहूं की आवक में भारी गिरावट को देखते हुए
खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग ने राज्य की मंडियों में
खरीद बंद करने का फैसला किया है। खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता
मामलों के मंत्री लाल चंद कटारुचक ने मंगलवार को कहा कि राज्य की मंडियों
में चरणबद्ध तरीके से 5 मई से गेहूं की खरीद बंद की जाएगी। इस संबंध में
अधिसूचना पंजाब मंडी बोर्ड द्वारा जारी की जाएगी।
उन्होंने खरीद की
गति और सीधे किसानों के बैंक खातों में भुगतान पर संतोष व्यक्त किया, साथ
ही उन्होंने कहा, यह खराब मौसम से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद हुआ, जिसके
परिणामस्वरूप राज्य के अधिकांश हिस्सों में गेहूं का दाना सिकुड़ गया था।
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में तेजी के बाद, अधिकांश
राज्यों में गेहूं की सरकारी खरीद में भारी गिरावट देखी गई, लेकिन
केंद्रीय पूल में गेहूं की सबसे बड़ी मात्रा में योगदान देने में पंजाब ने
एक बार फिर देश का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि राज्य ने अब तक 93 लाख टन
से अधिक गेहूं की खरीद की है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की मांग में वृद्धि हुई है और निजी व्यापारी
गेहूं की ज्यादा खरीद कर रहे हैं। सिकुड़े हुए दाने के लिए मानदंडों में
ढील देने में देरी के बारे में उन्होंने कहा कि केंद्रीय खाद्य और
सार्वजनिक वितरण विभाग ने समस्या की सीमा का पता लगाने के लिए अधिकारियों
का एक दूसरा दल भेजने का फैसला किया था। राज्य में पहले 132 लाख टन गेहूं
खरीद का लक्ष्य रखा गया था।