31 जुलाई 2012
सोयाबीन पर एफएमसी ने चलाया मार्जिन का डंडा
जिंस वायदा नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने अस्थायी तौर पर ही सही, दो संवेदनशील अनुबंधों का निलंबन टाल दिया है और इसके बजाय इस पर 20 फीसदी स्पेशल मार्जिन लगा दिया है। लेकिन डर अभी कम नहीं हुआ है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने मंगलवार को फिर बैठक बुलाई है जिसमें स्थिति की समीक्षा की जाएगी। साथ ही कीमतों में नरमी के लिए कदम उठाए जाएंगे।
10 फीसदी व 5 फीसदी के मार्जिन के बाद दो संवेदनशील कृषि जिंसों सोयाबीन और सोयाखली पर अब मार्जिन की दर क्रमश: 50 व 45 फीसदी हो गई है। एफएमसी के एक अधिकारी ने पुष्टि की है कि पिछले शुक्रवार को मार्जिन में 20 फीसदी की बढ़ोतरी की गई। इससे पहले 19 जुलाई को नियामक ने सोया खली पर स्पेशल मार्जिन 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया था।
यह कदम काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि जिंसों की कीमतों में असामान्य बढ़ोतरी को देखते हुए केंद्रीय उपभोक्ता मंत्री के वी थॉमस ने एफएमसी को कदम उठाने का निर्देश दिया था। इससे कारोबारियों के बीच यह डर पैदा हो गया है कि नियामक सोयाबीन और सोया खली वायदा को निलंबित कर सकता है।
जिंस वायदा में मार्जिन वह राशि होती है जो किसी क्लाइंट को वायदा अनुबंध में कारोबार शुरू करने से पहले ब्रोकरेज के खाते में जमा करानी होती है। हर जिंस पर मार्जिन की दर अलग-अलग होती है और इसमें बाजार के उतार-चढ़ाव के हिसाब से फेरबदल होता है। अनुबंध से पहले शुरुआती मार्जिन मनी देनी होती है और अनुबंध का निपटारा होने तक मेंटीनेंस मार्जिन जमा रखना होता है, जो शुरुआती मार्जिन के मुकाबले सामान्यत: कम होता है। नियामक से संपर्क कर एक्सचेंज समय-समय पर जरूरत के हिसाब से इसमें संशोधन भी करते हैं।
इस सीजन में सामान्य से कम बारिश की खबर के बाद इन दो जिंसों की कीमतों में असामान्य बढ़ोतरी के चलते ये मंत्रालय की निगाह में थे। एक ओर जहां सोयाबीन का निकट माह में एक्सपायर होने वाला अनुबंध 13.1 फीसदी उछला है और सोमवार को एनसीडीईएक्स पर यह 4472 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ जबकि ऐस कमोडिटी एक्सचेंज पर सोयाखली का अनुबंध पिछले एक महीने में 22 फीसदी बढ़ा है और सोमवार को यह 41,092 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
सोयाबीन और सोया खली की कीमतों में हो रहा उतार-चढ़ाव ग्वार की कहानी के दोहराव का संकेत दे रहा है, जब नियामक ने मार्जिन में 70 फीसदी से ज्यादा का इजाफा किया और इसके बाद भी सटोरिया गतिविधियों के चलते कीमतों में बढ़ोतरी जारी रही। इसके बाद नियामक ने इसके वायदा कारोबार पर पाबंदी लगा दी। अक्टूबर में नई फसल आने तक ग्वार गम और ग्वार के वायदा कारोबार पर पाबंदी लगी हुई है। नियामक हालांकि अपने स्वविवेक से एक्सचेंजों को ग्वार का कारोबार दोबारा शुरू करने की अनुमति दे सकता है।
ग्वार के उलट सोयाबीन और सोया खली को फंडामेंटल समर्थन है। भारतीय मौसम विभाग ने सामान्य के मुकाबले करीब 22 फीसदी कम बारिश का अनुमान जाहिर किया है। बारिश की शुरुआत दो हफ्ते देर से हुई और इस सीजन में सोयाबीन की बुआई में भी उसी अनुपात में देर हुई है। कम बारिश के चलते पहले से बोई गई फसल भी प्रभावित होने की संभावना है। सोयाबीन बारिश की फसल है और इसकी बुआई मॉनसून के आगाज के साथ होती है और कटाई अक्टूबर में होती है।
अदाणी विल्मर लिमिटेड के सीईओ अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि मध्य भारत में मॉनसून में सुधार हुआ है। लिहाजा सोयाबीन का रकबा बढ़ सकता है। इस तरह सोयाबीन का कुल उत्पादन बढ़कर 114 लाख टन होने की संभावना है जबकि पिछले साल 110 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि किसानों ने 20 जुलाई तक 86.2 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई की है जबकि पिछले साल इसी अवधि मेंं 90.3 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई थी। विश्लेषकों ने अनुमान जाहिर किया है कि मध्य भारत के राज्यों में इस हफ्ते बारिश में सुधार के चलते सोयाबीन की खेती में बढ़ोतरी हो सकती है। (BS Hindi)
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