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26 मार्च 2025

स्पिनिंग मिलों की खरीद सीमित होने से गुजरात में कॉटन रुकी, उत्तर भारत में तेज

नई दिल्ली। स्पिनिंग मिलों की मांग सीमित होने के कारण मंगलवार को गुजरात में कॉटन की कीमत स्थिर हो गई, जबकि उत्तर भारत के राज्यों में इसके दाम तेज हुए।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव मंगलवार को 53,200 से 53,600 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो पर स्थिर हो गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव तेज होकर 5510 से 5530 रुपये प्रति मन बोले गए।हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5450 से 5470 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव बढ़कर 5540 से 5560 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव तेज होकर 53,200 से 53,300 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 67,300 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स के साथ ही एनसीडीएक्स पर आज शाम को कॉटन की कीमतों में तेजी का रुख रहा। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन के दाम तेज हुए।

स्पिनिंग मिलों की मांग सीमित होने के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमत स्थिर हो गई। व्यापारियों के अनुसार मौजूदा दाम पर जिनर्स की बिकवाली कमजोर है, तथा स्पिनिंग मिलों की पास कॉटन का बकाया स्टॉक कम है। उधर विश्व बाजार में कॉटन के दाम हाल ही में कमजोर हुए थे, जिस कारण इसके आयात पड़ते सस्ते हैं तथा निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं। इसलिए कॉटन की कीमतों में आगे सुधार बन सकता है।

घरेलू बाजार में सीसीआई के पास कॉटन का भारी भरकम स्टॉक है, इसलिए आगामी दिनों में घरेलू बाजार में इसके भाव में तेजी, मंदी सीसीआई के बिक्री दाम पर भी निर्भर करेगी।

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 294.25 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) होने का अनुमान है, जो क‍ि इसके पहले के अनुमान 299.26 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई ने कॉटन के उत्पादन अनुमान में 6.45 लाख गांठ की कटौती की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 295.30 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 301.75 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।

सीमा शुल्क अधिसूचना के बाद नेपाल से खाद्य तेल आयात में कमी आने का अनुमान - एसईए

नई दिल्ली। उद्योग को उम्मीद है कि सीमा शुल्क विभाग द्वारा 18 मार्च को जारी अधिसूचना, जिसमें निर्यातकों/आयातकों को रियायती शुल्क के तहत आयातित वस्तुओं के लिए "मूल प्रमाण पत्र" के बजाय "मूल प्रमाण" प्रदान करने के लिए कहा गया है, इससे  नेपाल के साथ ही अन्य सार्क देशों से खाद्य तेल के बढ़ते आयात को कम करने में मदद मिलेगी।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अध्यक्ष संजीव अस्थाना ने एसईए सदस्यों को लिखे अपने मासिक पत्र में कहा है कि नेपाल से भारत में रिफाइंड सोया तेल और पाम तेल की भारी आवक, उत्पत्ति के नियमों का उल्लंघन करते हुए, घरेलू रिफाइनर और तिलहन किसानों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है, जिससे सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है। नेपाल से साफ्टा (दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र) समझौते के तहत शून्य शुल्क पर खाद्य तेल का आयात न केवल उत्तरी और पूर्वी भारत में तबाही मचा रहा है, बल्कि अब दक्षिण और मध्य भारत में भी फैल रहा है।

उन्होंने लिखा है कि जो कुछ पहले ये आंशिक रूप से शुरू हुआ था, लेकिन अब खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इससे इन क्षेत्रों में खाद्वय तेल रिफाइनरी उद्योग के अस्तित्व को खतरा पैदा हो रहा है साथ ही बाजार भी प्रभावित हो रहा है। इसके साथ ही खाद्य तेलों पर उच्च आयात शुल्क का उद्देश्य भी नहीं रह गया है।

उन्होंने लिखा है कि एसईए ने प्रधानमंत्री और अन्य प्रमुख मंत्रियों से नेपाल और अन्य सार्क देशों से खाद्य तेलों के आयात को विनियमित करने के लिए हस्तक्षेप करने और आवश्यक कार्रवाई करने का आग्रह किया है। जिस पर केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और कार्रवाई का आश्वासन दिया है।

सीमा शुल्क विभाग ने 18 मार्च 2025 को अधिसूचना संख्या 14/2025-सीमा शुल्क जारी की है, जिसके तहत निर्यातकों/आयातकों को रियायती शुल्क के तहत आयातित वस्तुओं के लिए 'मूल प्रमाण पत्र' के बजाय 'मूल प्रमाण' प्रदान करने की आवश्यकता है। इस कदम से निर्यातकों/आयातकों पर सटीक जानकारी प्रदान करने का दबाव पड़ने की उम्मीद है, जिससे साफ्टा के तहत नेपाल और अन्य सार्क देशों से खाद्य तेलों का प्रवाह कम हो जाएगा।


नेपाल से भारत में रिफाइंड सोयाबीन तेल और पाम तेल की भारी आमद, उत्पत्ति के नियमों का उल्लंघन करते हुए, घरेलू रिफाइनर और तिलहन किसानों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है, जिससे सरकार को राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है। नेपाल से SAFTA समझौते के तहत शून्य शुल्क पर खाद्य तेल का आयात न केवल उत्तरी और पूर्वी भारत में तबाही मचा रहा है, बल्कि अब दक्षिण और मध्य भारत में भी फैल रहा है।

अस्थाना ने कहा कि तिलहन आयात पर भारत की निर्भरता कम करने में सरसों महत्वपूर्ण फसल हैं। खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता हासिल करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बताए गए ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विजन को साकार करने के लिए विस्तार सेवाओं को मजबूत करना और सर्वोत्तम खेती प्रथाओं पर किसानों को जागरूक करना आवश्यक है।

उपज बढ़ाने के लिए एसईए के सतत सरसों मॉडल फार्म (एमएमएफ) का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 2020-21 में शुरू की गई यह पहल किसानों को उन्नत कृषि पद्धतियों से लैस करने में सहायक रही है, जिससे उत्पादकता और लचीलापन बढ़ा है।

भारत का सरसों उत्पादन 2020-21 में 86 लाख टन से बढ़कर 2023-24 में 116 लाख का हो गया है। खेती का रकबा भी सालाना बढ़ा है, जो 2020-21 में 67 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2023-24 में लगभग 94 लाख हेक्टेयर हो गया।

24 मार्च 2025

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीफ फसलों की खरीद 32.22 लाख टन के पार

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन 2024 में नेफेड ने 20 मार्च तक न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर उत्पादक राज्यों से 32.22 लाख टन तिलहन एवं दलहनी फसलों की खरीद कर चुकी है। केंद्र सरकार पीएसएस स्कीम के तहत चालू खरीफ सीजन में दलहन एवं तिलहनी फसलों की खरीद कर रही है।


सूत्रों के अनुसार खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन की किसानों से समर्थन मूल्य 4,892 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 33,60,628 टन की खरीद को मंजूरी दी हुई है, जिसमें से निगम ने 20 मार्च तक 14,71,780 टन सोयाबीन की खरीद की है। सोयाबीन की खरीद कर्नाटक से 18,199 टन, तेलंगाना से 81,129 टन, मध्य प्रदेश से 3,88,796 टन तथा गुजरात से 48,054 टन और महाराष्ट्र से 8,36,741 टन के अलावा तथा राजस्थान से 98,866 टन की हुई है।

चालू खरीफ सीजन में मूंगफली की खरीद समर्थन मूल्य 6,783 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 20,47,471 टन की खरीद को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी हुई है, जिसमें से निगम ने 20 मार्च तक 14,42,812 टन की खरीद की है। मूंगफली की खरीद गुजरात से 9,22,669 टन, राजस्थान से 4,38,488 टन और उत्तर प्रदेश से 79,611 टन की हुई है। कर्नाटक एवं हरियाणा तथा आंध्र प्रदेश की मंडियों से अभी तक समर्थन मूल्य पर मूंगफली की खरीद शुरू नहीं हो पाई है।

अन्य तिलहनी फसलों में सनफ्लावर की समर्थन मूल्य 7,280 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कर्नाटक के किसानों से 20 मार्च तक 3,272 टन की खरीद की जा चुकी है।

खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर की न्यूनतम समर्थन मूल्य 7,550 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 20 मार्च तक 1,27,649 टन की खरीद की जा चुकी है। इसी तरह से मूंग की न्यूनतम समर्थन मूल्य 8,682 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 1,76,474 टन की खरीद की जा चुकी है। उड़द की खरीद केवल 35.70 लाख टन ही हुई है।

महाराष्ट्र में चीनी उत्पादन 25 फीसदी घटा, 173 मिलों ने पेराई बंद की

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू चीनी पेराई सीजन 2024-25 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान महाराष्ट्र की अधिकांश चीनी मिलें बंद गई, तथा चीनी के उत्पादन में भी 24.93 फीसदी की कमी आई है।  


राज्य के चीनी आयुक्तालय की रिपोर्ट के अनुसार, चालू चीनी पेराई सीजन 2024-25 में 173 चीनी मिलों ने 20 मार्च तक अपना परिचालन बंद कर दिया है, जबकि इस समय केवल 27 मिलों में ही पेराई चल रही है।

महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन 2024-25 के दौरान अभी चीनी का उत्पादन केवल 79.25 लाख का ही हुआ है, जोकि पिछले सीजन की समान अवधि के 105.58 लाख टन की तुलना में 24.93 फीसदी कम है।

इस समय राज्य की कुल 27 मिलों में ही गन्ने की पेराई चल रही है, जबकि 173 मिलों ने पेराई सत्र समाप्त कर दिया है। 20 मार्च तक राज्य भर की मिलों ने 838.41 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जबकि पिछले सीजन की इसी अवधि के दौरान 1037.18 लाख टन की पेराई हुई थी। राज्य में चालू पेराई सीजन में चीनी की रिकवरी दर 9.45 फीसदी है, जो पिछले सीजन की समान अवधि के 10.18 फीसदी से कम है।

जानकारों के अनुसार, गन्ने की कम पैदावार और पेराई क्षमता में वृद्धि के कारण मिलों ने इस सीजन में पहले ही पेराई का काम बंद कर दिया है। पेराई सत्र की शुरुआत में देरी, इथेनॉल उत्पादन की और चीनी का रुख और गन्ने की पैदावार में कमी के कारण राज्य में चीनी का उत्पादन भी पिछले सीजन की तुलना में कम हुआ है।

कोल्हापुर संभाग की 40 मिलों ने 202.21 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 224.09 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। क्षेत्र की सभी चीनी मिलों का पेराई सत्र समाप्त हो चुका है। कोल्हापुर डिवीजन में राज्य में सबसे अधिक 11.08 फीसदी की रिकवरी प्राप्त हुई है। पुणे संभाग की 31 में से 24 मिलों की पेराई समाप्त हो चुकी है। संभाग में 199.24 लाख टन गन्ने की पेराई और 191.26 लाख क्विंटल चीनी उत्पादन हुआ है। औसत चीनी रिकवरी 9.6 फीसदी है। सोलापुर डिवीजन की सभी 45 मिलें बंद हो गई हैं। सभी मिलों ने कुल 130.36 लाख टन गन्ने की पेराई कर 105.7 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। सोलापुर में चीनी रिकवरी 8.11 फीसदी है।

अहिल्यानगर संभाग की 26 में से 20 फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं। क्षेत्र की मिलों ने 8.88 फीसदी चीनी उपज के साथ 112.97 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 100.31 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। छत्रपति संभाजीनगर विभाग में 22 में से 19 मिलें बंद हो गई हैं। मिलों ने 8 फीसदी चीनी रिकवरी के साथ 80.32 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 64.29 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है।

नांदेड़ संभाग की 29 में से 24 मिलें बंद हो चुकी हैं और उन्होंने 98.49 लाख टन गन्ने की पेराई की है और 95.1 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। विभाग की चीनी रिकवरी 9.66 फीसदी है। अमरावती संभाग में 4 में से 1 मिल बंद हो गई है। 11.27 लाख टन गन्ने की पेराई करके 10.03 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया गया है। विभाग की रिकवरी दर 8.9 फीसदी है। नागपुर संभाग में तीन मिलों ने 3.55 लाख टन गन्ने की पेराई कर 1.81 लाख क्विंटल चीनी का उत्पादन किया है। नागपुर संभाग में रिकवरी दर राज्य में सबसे कम 5.1 फीसदी है।

चालू फसल सीजन में खरीदी हुई दो लाख गांठ से ज्यादा कॉटन बेच चुकी है सीसीआई

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में खरीदी हुई 2,08,200 गांठ, एक गांठ - 170 किलो कॉटन की बिक्री सीसीआई अभी तक कर चुकी है।


निगम ने सीसीआई ने 17 मार्च 2025 को ई नीलामी के माध्यम से 113,700 गांठ, एक गांठ - 170 किलो कॉटन की बिक्री की। इसमें से 94,500 गांठ की खरीद मिलों ने की जबकि 33,200 गांठ कॉटन की खरीद व्यापारियों ने की।

व्यापारियों के अनुसार सीसीआई घरेलू बाजार की तुलना में ज्यादा दाम पर कॉटन की बिकवाली कर रही है, तथा चालू सीजन में सीसीआई के पास भारी भरकम कॉटन का स्टॉक है। इसलिए कॉटन की कीमतों में तेजी, मंदी सीसीआई के बिक्री दाम पर भी निर्भर करेगी।

स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण गुरुवार को गुजरात में लगातार चौथे दिन कॉटन की कीमत तेज हुई जबकि इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में इसके दाम कमजोर हो गए।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव गुरुवार को 50 रुपये तेज होकर दाम 53,500 से 53,800 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये नरम होकर 5560 से 5570 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये घटकर 5520 से 5550 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये कमजोर होकर 5540 से 5600 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव 53,400 से 53,500 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 74,200 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स के साथ ही एनसीडीएक्स पर आज शाम को कॉटन की कीमतों में तेजी का रुख रहा। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन के दाम तेज हुए।

स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमत चौथे दिन भी तेज हुई, लेकिन उत्तर भारत के राज्यों में इसके दाम नरम हो गए। व्यापारियों के अनुसार नीचे दाम पर जिनर्स की बिकवाली कमजोर है, तथा स्पिनिंग मिलों की पास कॉटन का बकाया स्टॉक कम है। अत: घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में हल्का सुधार बन सकता है। विश्व बाजार में कॉटन के दाम हाल ही में तेज तो हुए हैं, लेकिन अभी भी घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बने हुए हैं जिस कारण इसके आयात पड़ते सस्ते हैं तथा निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं।

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 294.25 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) होने का अनुमान है, जो क‍ि इसके पहले के अनुमान 299.26 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

चालू वित्त वर्ष के पहले 11 महीनों के दौरान डीओसी का 12 फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान डीओसी के निर्यात में 12 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 3,933,349 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 4,490,055 टन का ही हुआ था। इस दौरान सरसों डीओसी के साथ ही कैस्टर डीओसी के निर्यात में कमी आई है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार फरवरी में देश से डीओसी के निर्यात में 36 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 330,319 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल फरवरी में इनका निर्यात 515,704 टन का ही हुआ था।

चालू वर्ष के पहले 11 महीनों (अप्रैल 24 से फरवरी, 2025) में सोया डीओसी का निर्यात थोड़ा बढ़कर 19.40 लाख टन का हुआ, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 19.34 लाख टन का ही निर्यात हुआ था। इसका श्रेय जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय खरीदारों द्वारा अधिक आयात को जाता है। हालांकि, तेल वर्ष अक्टूबर 2024 से फरवरी 2025 के 5 महीने के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 26 फीसदी कम होकर 10.31 लाख टन का ही हुआ, जबकि अक्टूबर 2023 से फरवरी 2024 के दौरान इसका निर्यात 13.47 लाख टन का हुआ था।

पिछले एक महीने में विश्व बाजार में अत्यधिक आपूर्ति और कमजोर मांग के कारण सोयाबीन डीओसी की कीमत एक महीने पहले के 380 डॉलर की तुलना में 20 डॉलर घटकर 360 डॉलर प्रति टन रह गई, जबकि आयातक देशों की मांग की कमी के कारण सरसों डीओसी की निर्यात कीमतों में भारी गिरावट आई, तथा इसकी कीमत 80 डॉलर (एफएएस कांडला) से अधिक कमजोर हो गई तथा इसके दाम 17 मार्च, 2025 को 190 डॉलर प्रति टन पर आ गई, जबकि एक महीने पहले यह 270 डॉलर प्रति टन थी। अगस्त 2023 से डी ऑयल राइस ब्रान डीओसी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिस कारण देश के घरेलू उत्पादकों को भारी नुकसान हुआ है तथा इसकी कीमत घरेलू बाजार में एक साल पहले के 13,500 रुपये से गिरकर 8,500 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई है।

भारतीय बंदरगाह पर फरवरी में सोया डीओसी का भाव कमजोर होकर 370 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि जनवरी में इसका दाम 378 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य फरवरी में भारतीय बंदरगाह पर 248 डॉलर प्रति रहा, जबकि जनवरी में इसका भाव 270 डॉलर प्रति टन ही था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम जनवरी के 81 डॉलर प्रति टन से थोड़ा बढ़कर फरवरी में 82 डॉलर प्रति टन का हो गया।

जनवरी में कैस्टर तेल का निर्यात 17 फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। जनवरी 2025 में कैस्टर तेल के निर्यात में 16.98 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 44,168 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल जनवरी में इसका निर्यात 53,204 टन का ही हुआ था।


साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार जनवरी में कैस्टर तेल का निर्यात मूल्य के हिसाब से 566.01 करोड़ रुपये का हुआ है, जबकि पिछले साल जनवरी में इसका निर्यात 652.74 करोड़ रुपये का हुआ था।

व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में बुआई में आई कमी से कैस्टर सीड का उत्पादन कम होने का अनुमान है। हालांकि उत्पादक मंडियों में नई फसल की आवकों में पहते की तुलना में बढ़ोतरी हुई है, तथा आगामी दिनों में आवक और बढ़ेगी।

गुजरात की मंडियों में शनिवार को कैस्टर सीड के भाव 1,240 से 1,260 रुपये प्रति 20 किलो पर स्थिर हो गए। इस दौरान राजकोट में कमर्शियल तेल के भाव 15 रुपये घटकर 1,280 रुपये और एफएसजी के 15 रुपये कमजोर होकर 1,290 रुपये प्रति 10 किलो रह गए।

गुजरात की मंडियों में कैस्टर सीड की दैनिक आवक शनिवार को 38 से 40 हजार बोरी, एक बोरी 35 किलो की हुई, जिसमें से जिसमें से 2,000 से 2,200 बोरी सीधे मिल पहुंच का व्यापार हो रहा है। होली की छुट्टियों के कारण राजस्थान की मंडियों में इसकी आवक नहीं के बराबर हुई।

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान कैस्टर सीड का उत्पादन 18.22 लाख टन ही होने का अनुमान है, जोकि इसके पिछले फसल सीजन की तुलना में 8 फीसदी कम है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ सीजन में कैस्टर सीड की बुआई 12 फीसदी घटकर केवल 8.67 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। 

15 मार्च 2025

प्रमुख उत्पादक राज्यों में अरहर की सरकारी खरीद में आई तेजी - कृषि मंत्रालय

नई दिल्ली। उत्पादक राज्यों के किसानों से अरहर की न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर खरीद में तेजी आई है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र के साथ ही तेलंगाना की मंडियों से 11 मार्च तक 1.31 लाख टन अरहर की खरीद एमएसपी पर की गई है।


अन्य राज्यों में भी अरहर की खरीद बहुत जल्द शुरू की जाएगी। अरहर की खरीद नेफेड के ई-समृद्धि पोर्टल और एनसीसीएफ के संयुक्ति पोर्टल पर पहले से पंजीकृत किसानों से की जाती है। केंद्र सरकार केंद्रीय नोडल एजेंसियों नैफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों से 100 फीसदी अरहर की खरीद करने के लिए प्रतिबद्ध है।

केंद्र सरकार ने अरहर, उड़द और मसूर के उत्पादन का 100 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर खरीदने की प्रतिबद्धता जताई है।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के लिए सरकार ने 13.22 लाख टन अरहर, 9.40 लाख टन मसूर और 1.35 लाख टन उड़द की खरीद समर्थन मूल्य पर की जायेगी।

केंद्र सरकार ने एकीकृत प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अधिनियम, पीएम आशा योजना को 15वें वित्त आयोग चक्र के दौरान 2025-26 तक जारी रखने की मंजूरी दे दी है। एकीकृत पीएम-आशा योजना खरीद कार्यों के कार्यान्वयन में अधिक प्रभावशीलता लाने के लिए चलाई जाती है जो न केवल किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य प्रदान करने में मदद करेगी, बल्कि उपभोक्ताओं के लिए सस्ती कीमतों पर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करके आवश्यक वस्तुओं की कीमत में अस्थिरता को भी नियंत्रित करेगी।

पीएम आशा योजना की मूल्य समर्थन योजना के तहत निर्धारित उचित औसत गुणवत्ता, एफएक्यू के अनुरूप अधिसूचित दलहन, तिलहन और खोपरा की खरीद केंद्रीय नोडल एजेंसियों, सीएनए द्वारा राज्य स्तरीय एजेंसियों के माध्यम से पूर्व पंजीकृत किसानों से सीधे एमएसपी पर खरीद की जाती है।

दालों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने में योगदान देने वाले किसानों को प्रोत्साहित करने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने फसल सीजन 2024-25 के लिए अरहर, उड़द और मसूर राज्य के उत्पादन के 100 फीसदी के बराबर मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत खरीद करने की अनुमति दी है।

सरकार ने बजट 2025 में यह भी घोषणा की है कि देश को दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसियों के माध्यम से 2028-29 तक अगले चार वर्षों के लिए राज्य के उत्पादन का 100 फीसदी अरहर, उड़द और मसूर की खरीद की जाएगी। 

चालू रबी में 115.2 लाख टन सरसों के उत्पादन का अनुमान - एसईए

नई दिल्ली। बुआई में आई कमी के कारण चालू रबी सीजन में देश में सरसों का उत्पादन घटकर 115.2 लाख टन ही होने का अनुमान है, जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 115.8 लाख टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार कृषि मंत्रालय के 89.30 लाख हेक्टेयर की तुलना में चालू रबी सीजन में सरसों की बुआई बढ़कर 92.15 लाख हेक्टेयर में
हुई है। हालांकि यह पिछले साल के 100.5 लाख हेक्टेयर की तुलना में 11 फीसदी कम है।

एसईए के अध्यक्ष संजीव अस्थाना के अनुसार भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्वय तेलों का आयातक है, जिसका असर किसानों के साथ ही सरकारी खजाने पर भी पड़ रहा है। अत: एसईए  घरेलू तिलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए मॉडल मस्टर्ड फार्म प्रोजेक्ट चला रहा है, जिसका मकसद 2029-30 तक देश में सरसों का उत्पादन बढ़ाकर 200 लाख टन तक करना है।

सबसे बड़े उत्पादक राज्य राजस्थान में चालू रबी सीजन में 53.02 लाख टन सरसों के उत्पादन का अनुमान है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में 14.66 लाख टन और उत्तर प्रदेश में 15.60 लाख टन तथा हरियाणा में 12.30 लाख टन के उत्पादन का अनुमान है।

अन्य राज्यों पश्चिम बंगाल 6.79 लाख टन, झारखंड में 2.85 लाख टन, असम में 2.52 लाख टन तथा गुजरात में 5.38 लाख टन के अलावा अन्य राज्यों में 3.02 लाख टन के उत्पादन का अनुमान है।

केंद्र सरकार ने रबी विपणन सीजन 2025-26 के लिए सरसों का 5,950 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि उत्पादक मंडियों में नई सरसों 5,400 से 5,600 रुपये प्रति क्विंटल क्वालिटी अनुसार बिक रही है। व्यापारियों के अनुसार मौसम अनुकूल रहा तो होली के बाद नई सरसों की आवकों में बढ़ोतरी होगी तथा जल्द ही सरसों की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू नहीं हुई तो मौजूदा भाव में और भी गिरावट आयेगी। 

कॉटन का उत्पादन घटकर 295.30 लाख गांठ होने का अनुमान, दूसरी बार उद्योग ने की कटौती

नई दिल्ली। उद्योग ने कॉटन के उत्पादन अनुमान में एक बार फिर 6.45 लाख गांठ की कटौती की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 295.30 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 301.75 लाख गांठ तथा आरंभ में 304.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।


कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के अनुमान के अनुसार गुजरात में चालू सीजन में पहले के अनुमान के मुकाबले 4 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 3 लाख गांठ कम होने की आशंका है। हालांकि उड़ीसा में कॉटन का उपादन 55 हजार गांठ पहले के अनुमान से ज्यादा होगा।

पंजाब में कॉटन का उत्पादन फसल सीजन 2024-25 में 1.50 लाख गांठ, हरियाणा में 8.30 लाख गांठ, अपर राजस्थान में 9.20 लाख गांठ एवं लोअर राजस्थान के 9 लाख गांठ को मिलाकर कुल 28 लाख गांठ होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार मध्य भारत के राज्यों गुजरात में चालू फसल सीजन में 71 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 87 लाख गांठ तथा मध्य प्रदेश के 19 लाख गांठ को मिलाकर कुल 177 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है।

दक्षिण भारत के राज्यों में तेलंगाना में चालू फसल सीजन में 47 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 11 लाख गांठ एवं कर्नाटक में 23 लाख गांठ तथा तमिलनाडु के 4 लाख गांठ को मिलाकर कुल 85 लाख गांठ के कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

ओडिशा में चालू खरीफ में 3.30 लाख गांठ एवं अन्य राज्यों में 2 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 को कॉटन का बकाया स्टॉक 30.19 लाख गांठ का बचा हुआ था, जबकि 295.30 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है। चालू सीजन में करीब 30 लाख गांठ कॉटन का आयात होने की उम्मीद है। ऐसे में कुल उपलब्धता 355.49 लाख गांठ की बैठेगी।

चालू फसल सीजन में कॉटन की कुल घरेलू खपत 315 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि इस दौरान 17 लाख गांठ के निर्यात की उम्मीद है।

सीएआई के अनुसार 28 फरवरी 25 तक 22 लाख गांठ कॉटन का आयात हो चुका है, जबकि इस दौरान 9 लाख गांठ निर्यात की शिपमेंट हुई है। उत्पादक मंडियों में फरवरी अंत तक 223.57 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी है, जिसमें से 142 लाख गांठ की खपत हो चुकी है। अत: पहली मार्च को मिलों के पास 28 लाख गांठ एवं सीसीआई, महाराष्ट्र फेडरेशन, एमएनसी, जिनर्स एवं निर्यातकों के साथ ही व्यापारियों के पास 96.76 लाख गांठ कॉटन का स्टॉक है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ में कपास की बुआई 14 लाख हेक्टेयर घटकर 112.90 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी, जबकि इसके पिछले साल इसकी बुआई 126.90 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार कपास का उत्पादन 294.25 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) होने का अनुमान है, जो क‍ि इसके पिछले फसल सीजन 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

चालू फसल सीजन के पहले पांच महीनों में सोया डीओसी का निर्यात 18.87 फीसदी घटा - सोपा

नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2024-25 के पहले पांच महीनों अक्टूबर 24 से फरवरी 25 के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 18.87 फीसदी घटकर केवल 9.50 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले फसल सीजन की समान अवधि में इसका निर्यात 11.71 लाख टन का हुआ था।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन के अक्टूबर से फरवरी के दौरान 40.64 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है, जबकि नई सीजन के आरंभ में 1.33 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। इस दौरान 9.50 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि 3.65 लाख टन की खपत फूड में एवं 27.50 लाख टन की फीड में हुई है। अत: पहली मार्च को मिलों के पास 1.32 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के बराबर है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के पहले पांच महीनों में देशभर की उत्पादक मंडियों में 66 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई है, जिसमें से फरवरी अंत तक 57 लाख टन की पेराई हुई है। इस दौरान 2.20 लाख टन सोयाबीन की खपत डारेक्ट हुई है जबकि 0.06 लाख टन का निर्यात हुआ है। अत: प्लांटों एवं व्यापारियों तथा किसानों के पास पहली मार्च को 48.01 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 73.96 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में सोयाबीन का उत्पादन 125.82 लाख टन का हुआ है, जबकि 8.94 लाख टन का बकाया स्टॉक नई फसल की आवक के समय बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 134.76 लाख टन की बैठी है, जबकि चालू सीजन में करीब 3 लाख टन सोयाबीन के आयात का अनुमान है। पिछले फसल सीजन में 118.74 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल की आवक के समय 24.07 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: पिछले साल कुल उपलब्धता 142.81 लाख टन की बैठी थी, जबकि 6.25 लाख टन का आयात हुआ था।

फरवरी में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 7 फीसदी घटा- एसईए

नई दिल्ली। फरवरी 2025 में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 7 फीसदी घटकर 899,565 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल फरवरी में इनका आयात 965,852 टन का हुआ था। इस दौरान खाद्वय तेलों का आयात 885,561 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 14,004 टन का हुआ है। मालूम हो कि मई 2020 के बाद से खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का सबसे कम मासिक आयात हुआ है। कोविड-19 महामारी के कारण मई 2020 में इनका आयात 720,976 टन का ही हुआ था।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष 2024-25 के पहले चार महीनों नवंबर-24 से फरवरी-25 के दौरान देश में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 4 फीसदी बढ़कर 4,807,798 टन का हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 4,638,963 टन का हुआ था।

फरवरी 2025 में खाद्य तेल विशेष रूप से पाम तेल का आयात चार महीने के निम्नतम स्तर पर हुआ है, क्योंकि कीमतों में अंतर होने के कारण भारतीय आयातकों ने अन्य खाद्वय तेलों के आयात की ओर रुख करना पड़ा।

खाद्वय तेलों के आयात में हाल ही में आई गिरावट का प्रमुख कारण देश में नवंबर 2024 तक तक बकाया स्टॉक भी ज्यादा होना था, जो कि अब घटकर 2.0 मिलियन टन से नीचे आ गया है। अत: स्टॉक में आई कमी के कारण विशेष रूप से पाम तेल की खरीद में वृद्धि होने की उम्मीद है। पिछले कुछ हफ्तों में, घरेलू बाजार में क्रूड पाम तेल की कीमतों में थोड़ी मजबूती आई है। हालांकि, वैश्विक बाजार में मूल्य प्रतिस्पर्धा के कारण निकट भविष्य में देश में पाम तेल के आयात को सीमित कर सकती है।

खाद्वय तेल की खपत में बढ़ोतरी की गति 2024-25 में धीमी होने की उम्मीद है। अत: पाम तेल के भाव ज्यादा होने के कारण ही हाल के महीनों में आयात और खपत दोनों को कम कर दिया है, जिस कारण सोया तेल और सूरजमुखी तेल की संयुक्त खपत में तेज वृद्धि हुई है।

इसके अलावा, नेपाल से हो रहे आयात ने इस सीजन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ड्यूटी-फ्री एक्सेस का लाभ उठाते हुए देश में परिष्कृत सोया तेल का आयात नेपाल से बढ़ा है। इसी तरह से नेपाल और श्रीलंका से खाद्वय तेलों का निर्यात, भारत में हाल ही में बढ़र है।

देश में नवंबर 24 से फरवरी 25 के दौरान 588,241 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलीन) का आयात किया गया है, जबकि नवंबर 23 से फरवरी 24 के दौरान 3,813,743 टन का आयात किया गया था। जनवरी 25 में आरबीडी पामोलीन के कम आयात के कारण रिफाइंड तेल का अनुपात 17 फीसदी से घटकर 13 फीसदी का रह गया, जबकि क्रूड पाम तेल का अनुपात 83 फीसदी से बढ़कर 87 फीसदी का हो गया।

जनवरी के मुकाबले फरवरी में खाद्वय की कीमतों में तेजी का रुख रहा। फरवरी में भारतीय बंदरगाह पर आरबीडी पामोलिन का भाव बढ़कर 1,146 डॉलर प्रति टन का हो गया, जबकि जनवरी में इसका दाम 1,126 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का दाम फरवरी में बढ़कर 1,197 डॉलर प्रति टन का हो गया, जबकि जनवरी में इसका भाव 1,170 डॉलर प्रति टन था। क्रूड सोया तेल का भाव फरवरी में बढ़कर भारतीय बंदरगाह पर 1,156 डॉलर प्रति टन का हो गया, जबकि जनवरी में इसका भाव 1,118 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान क्रूड सनफ्लावर तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर जनवरी के 1,182 डॉलर से बढ़कर फरवरी में 1,216 डॉलर प्रति टन का हो गया।

11 मार्च 2025

भारत एवं अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते में घरेलू हितों की सुरक्षा सुनिश्चित हो - सोपा

नई दिल्ली। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने सरकार से आग्रह किया है कि भारत एवं अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते में घरेलू सोयाबीन और खाद्य तेल उद्योग के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।


केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल को भेजे पत्र में सोपा ने सोयाबीन, सोयाबीन तेल और सोया मील पर मौजूदा आयात शुल्क बनाए रखने की सिफारिश की है। संगठन ने चेतावनी दी कि शुल्क में कटौती से सस्ते खाद्वय तेलों के आयात का दबाव बढ़ेगा, जिससे घरेलू उत्पादन प्रभावित होगा और लाखों किसानों व संबंधित उद्योगों की आजीविका पर असर पड़ेगा।

सोपा ने खाद्य तेलों के रियायती आयात पर भी चिंता जताई, जहां भारत पहले से ही 60 फीसदी से अधिक निर्भरता रखता है। संगठन ने कहां कि और अधिक रियायतें देना नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स (ऑयलसीड्स) के तहत आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को कमजोर कर सकता है।

इसके अलावा, सोपा ने अमेरिका द्वारा भारतीय ऑर्गेनिक सोयाबीन मील पर 283.91 फीसदी की काउंटरवेलिंग ड्यूटी लगाने का मुद्दा उठाया, जो पहले 12-15 फीसदी थी। सोपा ने सरकार से आग्रह किया कि वह अधिक न्यायसंगत व्यापार शर्तों के लिए बातचीत करे, जिससे भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता बनी रहे और अमेरिकी बाजार में भारतीय ऑर्गेनिक सोया मील को उचित बाजार पहुंच मिले।

संगठन ने यह भी सिफारिश की कि सोया प्रोटीन आइसोलेट और कंसंट्रेट जैसे मूल्य वर्धित सोया उत्पादों के लिए रियायती शुल्क व्यवस्था पर विचार किया जाए। सोपा ने कहा कि इन उत्पादों का सोयाबीन बाजार से सीधी प्रतिस्पर्धा नहीं है और इनसे भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, जिससे सोयाबीन उत्पादन की आर्थिक वैल्यू बढ़ेगी।

सोपा ने नीति-निर्माताओं से अपील की कि वे घरेलू उत्पादन को सुरक्षित रखते हुए एक संतुलित और परस्पर लाभकारी व्यापार समझौते को प्राथमिकता दें।

गेहूं, चावल, मक्का, मूंगफली और सोयाबीन के रिकार्ड उत्पादन का अनुमान

नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान देश में चावल, गेहूं, मक्का, मूंगफली और सोयाबीन का रिकार्ड उत्पादन होगा।


मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी विज्ञप्ति में बताया गया है कि चालू फसल वर्ष में खरीफ का खाद्यान्न उत्पादन 1663.91 लाख टन और रबी का खाद्यान्न उत्पादन 1645.27 लाख टन होने का अनुमान है।

खरीफ सीजन की प्रमुख फसल चावल का उत्पादन 1206.79 लाख टन होने का अनुमान है जो कि फसल सीजन 2023-24 के 1132.59 लाख टन की तुलना में, 74.20 लाख टन अधिक हो सकता है। वहीं रबी चावल का उत्पादन 157.58 लाख टन अनुमानित है।

रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं का उत्पादन 1154.30 लाख टन अनुमानित है, जो कि पिछले फसल सीजन के 1132.92 लाख टन उत्पादन की तुलना में 21.38 लाख टन अधिक हो सकता है।

इसके अलावा श्री अन्न (खरीफ) फसलों का उत्पादन 137.52 लाख टन और श्री अन्न (रबी) का उत्पादन 30.81 लाख टन रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि पोषक/मोटे अनाज (खरीफ) का उत्पादन 385.63 लाख टन और रबी सीजन में इनका उत्पादन 174.65 लाख टन होने का अनुमान है।

अरहर एवं चने का उत्पादन क्रमश: 35.11 लाख टन एवं 115.35 लाख टन होने का अनुमान है एवं मसूर का उत्पादन 18.17 लाख टन होने का अनुमान है।

खरीफ एवं रबी सीजन में मूंगफली का उत्पादन क्रमश: 104.26 लाख टन एवं 8.87 लाख टन अनुमानित है। खरीफ मूंगफली का उत्पादन पिछले वर्ष के 86.60 लाख टन के उत्पादन की तुलना में 17.66 लाख टन अधिक है।

सोयाबीन का उत्पादन 151.32 लाख टन अनुमानित है जो कि पिछले वर्ष के 130.62 लाख टन उत्पादन की तुलना में 20.70 लाख टन अधिक है एवं रेपसीड और सरसों का उत्पादन 128.73 लाख टन होने का अनुमान है।

कपास का उत्पादन 294.25 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) और गन्ने का उत्पादन 4350.79 लाख टन होने का अनुमान है।

विज्ञप्ति के अनुसार खरीफ फसलों के उत्पादन का अनुमान तैयार करते समय फसल कटाई प्रयोग (सीसीई) आधारित उपज पर विचार किया गया है। रबी फसलों का उत्पादन औसत उपज पर आधारित है, अत: सीसीई के आधार पर बेहतर उपज अनुमान प्राप्त होने पर ये आंकड़े क्रमिक अनुमानों में परिवर्तन के अधीन हैं। विभिन्न जायद फसलों का उत्पादन आगामी तीसरे अग्रिम अनुमान में शामिल किया जाएगा।

कृषि फसलों के उत्पादन के ये अनुमान मुख्यत: राज्यों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किये गये हैं। दूसरे अग्रिम अनुमान में केवल खरीफ एवं रबी सीजन की फसल शामिल होती हैं।

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने से गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन तेज

नई दिल्ली। स्पिनिंग मिलों की मांग बनी रहने के कारण शनिवार को गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमतों में तेजी दर्ज की गई।


गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव शनिवार को 150 रुपये तेज होकर दाम 52,800 से 53,200 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 20 रुपये तेज होकर 5520 से 5530 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 20 रुपये बढ़कर 5490 से 5520 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये तेज होकर 5490 से 5550 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव बढ़कर 53,200 से 53,300 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 94,600 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमत लगातार दूसरे दिन तेज हुई। व्यापारियों के अनुसार नीचे दाम पर जिनर्स की बिकवाली कमजोर है, तथा स्पिनिंग मिलों की पास कॉटन का बकाया स्टॉक कम है। अत: घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में हल्का सुधार और भी बन सकता है। हालांकि विश्व बाजार में कॉटन के दाम घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बने हुए हैं जिस कारण इसके आयात पड़ते सस्ते हैं तथा निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं।

सीसीआई ने फसल सीजन 2024-25 में खरीदी हुई कॉटन की बिक्री शुरू कर दी है, लेकिन इसके भाव भाव 54,800 से 55,500 रुपये प्रति कैंडी हैं, जोकि हाजिर बाजार की तुलना में ज्यादा है।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि पिछले खरीफ 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई ने चौथे आरंभिक अनुमान में कॉटन के उत्पादन अनुमान में 2.50 लाख गांठ की कटौती की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 301.75 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 304.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।

चालू समर सीजन में दलहन के साथ ही धान की रोपाई बढ़ी, तिलहन की कम

नई दिल्ली। चालू समर सीजन में दलहन के साथ ही धान की रोपाई में बढ़ोतरी हुई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार समर सीजन में फसलों की कुल बुआई बढ़कर 32.55 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 26.54 लाख हेक्टेयर में ही इनकी बुआई हुई थी।


धान की रोपाई चालू समर सीजन में बढ़कर 25.06 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 22.24 लाख हेक्टेयर की तुलना में ज्यादा है।

दलहनी फसलों की बुआई चालू रबी में बढ़कर 4.35 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई केवल 1.41 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी। मूंग की बुआई बढ़कर 3.17 लाख हेक्टेयर में और उड़द की 1.09 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है।

मोटे अनाजों की बुवाई चालू समर सीजन में 1.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई केवल 1.36 लाख हेक्टेयर ही हो पाई थी। मक्का की बुआई बढ़कर 1.36 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुआई केवल 1.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

तिलहनी फसलों की बुआई चालू समर सीजन में घटकर 1.45 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 1.52 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी। मूंगफली की बुआई चालू समर सीजन में 1.02 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 1.04 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन 20 फीसदी कम, राज्य की 102 मिलों ने पेराई बंद की

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन (अक्टूबर-24 से सितंबर-25) के पहली अक्टूबर 24 एवं 4 जनवरी 25 के दौरान महाराष्ट्र में चीनी के उत्पादन में 20.31 फीसदी की गिरावट आकर कुल उत्पादन 76.43 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में इसका उत्पादन 95.92 लाख टन का हो चुका था।


चीनी आयुक्तालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 4 मार्च तक महाराष्ट्र की कुल 102 चीनी मिलों ने पेराई बंद कर दी है जबकि पिछले पेराई सत्र की समान अवधि के दौरान राज्य की केवल 38 मिलों ने ही पेराई बंद की थी। राज्य की 200 चीनी मिलों में से 50 फीसदी से अधिक ने चालू पेराई सीजन 2024-25 सत्र के लिए पेराई बंद कर दी है।

राज्य के सोलापुर की 41 चीनी मिलें पेराई बंद कर चुकी है जबकि कोल्हापुर की 22 मिलों ने पेराई बंद की है। पुणे की 12 चीनी मिलों ने तथा नांदेड़ की 11 चीनी मिलों के अलावा छत्रपति संभाजीनगर की 10 चीनी मिलों और अहिल्यानगर क्षेत्र की 6 चीनी मिलें पेराई बंद कर चुकी हैं।

महाराष्ट्र में इस समय केवल 98 चीनी मिलें ही गन्ना पेराई कार्यों में लगी हुई है तथा 4 मार्च तक राज्य भर की मिलों ने 814.92 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जबकि पिछले सत्र की इसी अवधि के दौरान 954.34 लाख टन गन्ने की पेराई की थी।

चालू पेराई सीजन में राज्य में चीनी की रिकवरी दर 9.38 फीसदी ही बैठ रही है, जो कि पिछले सत्र की समान अवधि के 10.05 फीसदी से कम है। जानकारों के अनुसार गन्ने की कम पैदावार और बढ़ी हुई पेराई क्षमता के कारण मिलों ने इस सत्र में परिचालन जल्दी बंद कर दिया है। हालांकि पेराई सत्र की शुरुआत में देरी के साथ ही गन्ने के डायवर्सन और पैदावार में कमी के कारण राज्य में चीनी का उत्पादन पिछले पेराई सीजन की तुलना में कम हुआ है।

05 मार्च 2025

पहली अक्टूबर 2025 के शुरू में चीनी का बकाया स्टॉक 60 लाख टन होने का अनुमान - इस्मा

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2025 में शुरू होने वाले गन्ना पेराई सीजन 2025-26 (अक्टूबर से सितंबर) के आरंभ में देश में 60 लाख टन चीनी का बकाया बचने का अनुमान है जोकि तय मानकों 50-55 लाख टन से ज्यादा है।

भारतीय चीनी और जैव-ऊर्जा निर्माता संघ (इस्मा) के महानिदेशक के अनुसार पेराई सीजन 2024-25 के शुरुआत में चीनी का बकाया स्टॉक 80 लाख टन था। पेराई सीजन 2024-25 के दौरान चीनी का उत्पादन अनुमान 272 लाख टन का है, जो कि पिछले पेराई सीजन 2023-24 के 320 लाख टन से लगभग 15 फीसदी कम है। अत: 80 लाख टन का शुरुआती स्टॉक और 272 लाख टन के अनुमानित उत्पादन के साथ 2024-25 में कुल चीनी की उपलब्धता 352 लाख टन की हो जाएगी। भारत में सालाना करीब 280 लाख टन चीनी की खपत होती है। इससे अगले सीजन के लिए शुरुआती स्टॉक के तौर पर करीब 60 लाख टन चीनी उपलब्ध होगी।

पेराई सीजन 2023-24 में चीनी निर्यात को प्रतिबंधित करने के बाद, केंद्र सरकार ने इस साल 21 जनवरी को चीनी मिलों को 10 लाख टन निर्यात करने की अनुमति दी है। सरकार ने पिछले साल घरेलू बाजारों में मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए चीनी के निर्यात पर रोक लगाई थी।

इस्मा के अनुसार 10 लाख टन चीनी के निर्यात के बाद भी देश में सीजन के अंत में 60 लाख टन का बकाया स्टॉक बचेगा। आम तौर पर सरकार सीजन के अंत बकाया स्टॉक के तौर पर 50-55 लाख टन चीनी रखना चाहती है। अत: 10 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति देने के बाद भी हमारे पास करीब 60 लाख टन चीनी का स्टॉक होगा। इसलिए सरकार ने निर्यात की अनुमति दी है।

इस्मा के अनुसार घरेलू चीनी मिलों के पास सितंबर तक का समय है ऐसे में मिलें अगले दो महीनों में 10 लाख टन चीनी के निर्यात का कोटा पूरा कर लेंगी।

इस समय, महाराष्ट्र में चीनी की एक्स-मिल कीमत 3,800 रुपये प्रति क्विंटल और उत्तर प्रदेश में 4,000-4,050 रुपये प्रति क्विंटल है। खपत का सीजन होने के कारण आगामी दिनों में चीनी की मांग बढ़ेगी, जिससे मौजूदा कीमतों में 100 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने का अनुमान है। मालूम हो कि पिछले दो वर्षों से चीनी का औसत खुदरा मूल्य लगभग स्थिर बना हुआ है। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने पिछले पांच वर्षों में चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य, एमईपी में संशोधन नहीं किया गया है। 2019 में इसे 31 रुपये प्रति किलो निर्धारित किया गया था, जबकि चीनी उत्पादन की अनुमानित लागत करीब 41 रुपये प्रति किलो है।

सीसीआई ने समर्थन मूल्य पर 92 लाख गांठ से ज्यादा कॉटन की खरीद की

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन में फरवरी अंत तक कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया, सीसीआई न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर करीब 92 लाख गांठ, एक गांठ 170 किलो से ज्यादा कपास की खरीद कर चुकी है।


निगम ने मध्य फरवरी में कपास की समर्थन मूल्य पर खरीद का अस्थाई रूप से बंद कर दिया था, लेकिन महीने के अंत में निगम से फिर से एमएसपी पर कपास की खरीद शुरू कर दी है।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण सोमवार को गुजरात में कॉटन की कीमत नरम हो गई, जबकि इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में सुधार आया।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव सोमवार को 150 रुपये कमजोर होकर 52,700 से 53,200 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये तेज होकर 5500 से 5510 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 बढ़कर 5490 से 5510 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये तेज होकर 5520 से 5580 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव तेज होकर 53,500 से 53,600 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 92,000 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स के साथ ही एनसीडीएक्स पर आज शाम को कॉटन की कीमतों में मंदा आया। आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन के दाम तेज हुए।

स्पिनिंग मिलें इस समय जरूरत के हिसाब से ही कॉटन की खरीद कर रही है, क्योंकि पिछले दो साल से मिलों ने सीमित मार्जिन में व्यापार किया है। अत: मिलें आगे के खरीद सौदे सीमित मात्रा में ही कर रही हैं। अत: स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमत नरम हो गई, जबकि उत्तर भारत के राज्यों में इसके भाव में सुधार आया। हालांकि व्यापारी कॉटन की कीमतों में अभी एकतरफा बड़ी तेजी के पक्ष में नहीं है। जानकारों के अनुसार खपत में कमी विश्व बाजार में कॉटन के दाम घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बने हुए हैं जिस कारण इसके आयात पड़ते सस्ते हैं तथा निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं।

व्यापारियों के अनुसार खपत का सीजन होने के कारण मार्च में सूती धागे की स्थानीय मांग बढ़ने की उम्मीद है, हालांकि निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि पिछले खरीफ 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई ने चौथे आरंभिक अनुमान में कॉटन के उत्पादन अनुमान में 2.50 लाख गांठ की कटौती की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 301.75 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 304.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने से गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन नरम

नई दिल्ली। स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण शनिवार को गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमतों में नरमी दर्ज की गई।


गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव शनिवार को 150 रुपये कमजोर होकर 52,900 से 53,300 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए। चालू सप्ताह में इसकी कीमतों में 400 रुपये प्रति कैंडी का मंदा आया है।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव नरम होकर 5490 से 5500 रुपये प्रति मन बोले गए।
हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव कमजोर होकर 5480 से 5490 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव घटकर 5525 से 5550 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव नरम होकर 53,300 से 53,400 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए। देशभर की मंडियों में कपास की आवक 83,000 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमत लगातार तीसरे दिन नरम हो गई। व्यापारी कॉटन की कीमतों में अभी एकतरफा बड़ी तेजी के पक्ष में नहीं है। जानकारों के अनुसार खपत में कमी आने के कारण विश्व बाजार में कॉटन के दाम घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बने हुए हैं जिस कारण इसके आयात पड़ते सस्ते हैं तथा निर्यात सौदे सीमित मात्रा में ही हो रहे हैं।

व्यापारियों के अनुसार खपत का सीजन होने के कारण मार्च में सूती धागे की स्थानीय मांग बढ़ने की उम्मीद है, हालांकि सूती धागे की निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है।

सीसीआई की न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर कपास की खरीद बंद है, इसलिए उत्पादक मंडियों में आवकों में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि पिछले खरीफ 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई ने चौथे आरंभिक अनुमान में कॉटन के उत्पादन अनुमान में 2.50 लाख गांठ की कटौती की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 301.75 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 304.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।

फरवरी अंत तक देशभर की 177 चीनी मिलों ने पेराई कार्य बंद किया - इस्मा

नई दिल्ली। कई क्षेत्रों में गन्ना पेराई सत्र अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है तथा 28 फरवरी तक देशभर की 177 चीनी मिलों ने पेराई कार्य बंद कर दिया है।


इंडियन शुगर एंड बायोएनर्जी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन 2024-25 (अक्टूबर से सितंबर) में 28 फरवरी तक चीनी का उत्पादन 219.78 लाख टन का ही हुआ है जोकि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 14 फीसदी कम है।

महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में हाल ही में मिलों के बंद होने की दर में वृद्धि हुई है तथा इन राज्यों में करीब 141 चीनी मिलें पेराई कार्य बंद कर चुकी हैं। राज्यवार चीनी उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र में 114 मिलें चल रही हैं, जिन्होंने 74.80 लाख टन चीनी का उत्पादन किया है।

तीसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य कर्नाटक में, चालू सत्र में 78 चीनी मिलें चल रही थी, जिनमें से 23 चीनी मिलें इस समय चल रही हैं तथा राज्य में चीनी का उत्पादन 38.20 लाख टन का हुआ है।

उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में चीनी का उत्पादन 72.93 लाख टन का हो चुका है, जबकि 108 चीनी मिलें अभी भी चालू हैं।

गुजरात में 15 चीनी मिलों ने इस सीजन में भाग लिया और अब तक 2 मिलों ने अपना काम बंद कर दिया है। राज्य में 28 फरवरी तक चीनी का उत्पादन 6.82 लाख टन का हुआ है।

तमिलनाडु में चीनी का उत्पादन 2.90 लाख टन का हुआ है, जबकि 30 मिलों ने पेराई आरंभ की थी और 27 मिलें अभी भी चालू हैं।

अन्य राज्यों में चीनी का उत्पादन 24.13 लाख टन का हो चुका है, तथा इन राज्यों में 70 चीनी  मिलें अभी भी पेराई कार्य में लगी हुई हैं।

इस्मा के अनुसार, उत्तर प्रदेश में चीनी की रिकवरी में पहले की तुलना में सुधार हो रहा है और यह पिछले सीजन की समान अवधि के बराबर पहुंचने की उम्मीद है। इसके परिणामस्वरूप, इस सीजन के अंत तक राज्य में सीजन की पहली छमाही के दौरान हुई की आंशिक रूप से भरपाई होने की उम्मीद है।

दक्षिण कर्नाटक में कुछ मिलों द्वारा जून/जुलाई से सितंबर 2025 तक विशेष सीजन के दौरान चीनी का उत्पादन होता है। आमतौर पर कर्नाटक और तमिलनाडु सामूहिक रूप से विशेष सीजन के दौरान लगभग 4-5 लाख टन चीनी का उत्पादन करते हैं।