नई दिल्ली। तिलहन की फसलों की उत्पादकता में बढ़ोतरी हो ताकि खाद्वय तेलों के आयात बिल में कटौती की जा सके, इसके लिए उद्योग ने बजट तैयार होने से पहले ही केंद्र सरकार को सिफारिशें भेजी है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने वित्त मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री और वित्त मंत्री को 2025-26 के लिए अपना बजट पूर्व ज्ञापन सौंपा है।
ज्ञापन का मुख्य फोकस तिलहनी फसलों की घरेलू उत्पादकता को बढ़ावा देने, खाद्य तेल आयात पर निर्भरता को कम करने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए तिलहन क्षेत्र को मजबूती प्रदान करना है। पिछले 3 दशकों में खाद्य तेल और तिलहन परिदृश्य में व्यापक बदलाव आया है। आयात पर हमारी निर्भरता जो नब्बे के दशक में केवल 3 फीसदी थी, वर्तमान में बढ़कर लगभग 60 फीसदी की हो गई है। इस निराशाजनक स्थिति का मुख्य कारण यह है कि तिलहन उत्पादन लगभग स्थिर बना हुआ है, जबकि मांग में बढ़ोतरी हो रही है। तिलहन उत्पादन लगभग 35 मिलियन टन और उत्पादकता 900-1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर स्थिर बनी हुई है।
इस समय देश में लगभग 160 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हो रहा है, जिसकी कीमत 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। आयातित खाद्य तेलों पर हमारी निर्भरता को इस समय जो 60 फीसदी है उसे घटाकर वर्ष 2029-30 तक 25-30 फीसदी करने के लिए अगले पांच वर्षों के लिए 25,000/- करोड़ रुपये के खर्च से “खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन” को लागू करने की आवश्यकता है। यह सरकार और उद्योग के लिए चिंता का विषय है।
उद्योग संगठन एसईए का बजट पूर्व ज्ञापन 2025-26 में माननीय प्रधान मंत्री के "आत्मनिर्भर भारत" और "मेक इन इंडिया" के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ाना, रोजगार के अवसर पैदा करना और खाद्य तेल क्षेत्र में आयात की निर्भरता को कम करना है।
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