कुल पेज दृश्य

2102087

29 जनवरी 2025

रबी फसलों की बुआई 655.88 लाख हेक्टेयर के पार, गेहूं के साथ ही दलहन की ज्यादा

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में फसलों की बुआई 1.88 फीसदी बढ़कर 655.88 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 643.72 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। गेहूं के साथ ही दलहन की बुआई में बढ़ोतरी हुई है, जबकि तिलहनी फसलों की पिछले साल की तुलना में घटी है।


कृषि मंत्रालय के अनुसार 27 जनवरी तक गेहूं की बुआई बढ़कर चालू रबी सीजन में 324.48 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 315.63 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

धान की रोपाई चालू रबी में 35.15 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 30.38 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

इस दौरान दलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 142.49 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल समय तक केवल 139.29 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चना की बुआई चालू रबी में 98.55 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 95.87 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

मसूर की बुआई चालू रबी में घटकर 17.43 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 17.76 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

मटर की बुआई चालू रबी में थोड़ी घटकर 8.94 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 8.98 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

उड़द की बुआई चालू रबी में 5.60 लाख हेक्टेयर में और मूंग की 1.27 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 5.12 लाख एवं 1.08 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

मंत्रालय के अनुसार तिलहनी फसलों की बुआई घटकर 96.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 101.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई घटकर 98.18 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 102.52 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में सरसों की बुआई 89.30 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 93.73 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

मूंगफली की बुआई बढ़कर 3.65 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल 3.42 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

मोटे अनाजों की बुआई थोड़ी घटकर 55.67 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 55.89 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

ज्वार की बुआई 24.35 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 26.60 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

मक्का की बुआई बढ़कर 23.67 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल 21.75 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

जौ की बुआई 6.62 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 6.70 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों में कैस्टर तेल का निर्यात 8.18 फीसदी बढ़ा - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के पहले 9 महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान कैस्टर तेल के निर्यात में 8.18 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 500,553 टन का हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात केवल 462,665 टन का ही हुआ था।


साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार दिसंबर में कैस्टर तेल का निर्यात घटकर 41,339 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल दिसंबर में इसका निर्यात 51,227 टन का हुआ था। मूल्य के हिसाब से दिसंबर में कैस्टर तेल का निर्यात 556.50 करोड़ रुपये का हुआ है, जबकि पिछले साल दिसंबर में इसका निर्यात 623.89 करोड़ रुपये का हुआ था।

व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में बुआई में आई कमी से कैस्टर सीड का उत्पादन कम होने का अनुमान है। हालांकि उत्पादक मंडियों में नई फसल की आवकों में बढ़ोतरी हुई है, जिससे कीमतों पर दबाव है।

गुजरात की मंडियों में सोमवार को कैस्टर सीड के भाव 10 रुपये कमजोर होकर 1,260 से 1,275 रुपये प्रति 20 किलो रह गए। इस दौरान राजकोट में कमर्शियल तेल के भाव 2 रुपये घटकर 1,308 रुपये और एफएसजी के 2 रुपये कमजोर होकर 1,318 रुपये प्रति 10 किलो रह गए।

देशभर की मंडियों में कैस्टर सीड की दैनिक आवक सोमवार को 34 से 35 हजार बोरी, एक बोरी 35 किलो की हुई, जिसमें से गुजरात की मंडियों में 29 से 30 हजार बोरी तथा राजस्थान की मंडियों में 3400 से 3500 बोरियों की हो रही है। इसके अलावा करीब 2,200 से 2,500 बोरी सीधे मिल पहुंच का व्यापार हो रहा है।

कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के दौरान कैस्टर सीड का उत्पादन घटकर 15.53 लाख टन ही होने का अनुमान है, जबकि इसके पिछले फसल सीजन में 19.59 लाख टन का उत्पादन हुआ था।

कृषि मंत्रालय के अनुसार खरीफ सीजन में कैस्टर सीड की बुआई घटकर केवल 8.20 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 9.50 लाख हेक्टेयर की तुलना में कम थी। 

रबी फसलों की बुआई 640 लाख हेक्टेयर के पार, सामान्य की तुलना में ज्यादा

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन में फसलों की बुआई 640 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 637.49 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। सामान्य: रबी में फसलों की बुआई 635.30 लाख हेक्टेयर में होती है।


कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी सीजन में गेहूं के साथ ही दलहन की बुआई में बढ़ोतरी हुई है, जबकि तिलहन की बुआई पिछले साल की तुलना में घटी है।

गेहूं की बुआई बढ़कर चालू रबी सीजन में 320.74 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 315.63 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

धान की रोपाई चालू रबी में 26.20 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 26.14 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

इस दौरान दलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 141.69 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल समय तक केवल 139.29 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

चना की बुआई चालू रबी में 98.28 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 95.87 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

मसूर की बुआई चालू रबी में घटकर 17.43 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 17.76 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

मटर की बुआई चालू रबी में थोड़ी घटकर 8.94 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 8.98 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

उड़द की बुआई चालू रबी में 5.12 लाख हेक्टेयर में और मूंग की 1.21 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 5.12 लाख एवं 1.08 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

मंत्रालय के अनुसार तिलहनी फसलों की बुआई घटकर 96.15 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 101.37 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों की बुआई घटकर 97.62 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई 101.80 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में सरसों की बुआई 89.30 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 93.73 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

मूंगफली की बुआई बढ़कर 3.65 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल 3.42 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

मोटे अनाजों की बुआई थोड़ी घटकर 54.49 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 54.63 लाख हेक्टेयर में हो चुकी थी।

ज्वार की बुआई 23.95 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 25.76 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

मक्का की बुआई बढ़कर 22.90 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल 21.32 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी।

जौ की बुआई 6.62 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि पिछले साल 6.71 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी।

24 जनवरी 2025

चालू सीजन में कॉटन का उत्पादन बढ़कर 304.25 लाख गांठ होने का अनुमान - उद्योग

नई दिल्ली। उद्योग ने कॉटन के उत्पादन अनुमान में 2 लाख गांठ की बढ़ोतरी की है। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 304.25 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जबकि इससे पहले 302.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान था। पिछले फसल सीजन 2023-24 के दौरान देश में 325.29 लाख गांठ कॉटन का उत्पादन हुआ था।


कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के आरंभिक अनुसार के अनुसार उत्तर भारत के राज्यों पंजाब में कॉटन का उत्पादन फसल सीजन 2024-25 में 1.75 लाख गांठ, हरियाणा में 9.50 लाख गांठ, अपर राजस्थान में 10 लाख गांठ एवं लोअर राजस्थान के 9.25 लाख गांठ को मिलाकर कुल 30.50 लाख गांठ होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार मध्य भारत के राज्यों गुजरात में चालू फसल सीजन में 80 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 90 लाख गांठ तथा मध्य प्रदेश के 19 लाख गांठ को मिलाकर कुल 189 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है।

दक्षिण भारत के राज्यों में तेलंगाना में चालू फसल सीजन में 42 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 11 लाख गांठ एवं कर्नाटक में 23 लाख गांठ तथा तमिलनाडु के 4 लाख गांठ को मिलाकर कुल 80 लाख गांठ के कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

ओडिशा में चालू खरीफ में 2.75 लाख गांठ एवं अन्य राज्यों में 2 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 को कॉटन का बकाया स्टॉक 30.19 लाख गांठ का बचा हुआ था, जबकि 304.25 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है। चालू सीजन में करीब 25 लाख गांठ कॉटन का आयात होने की उम्मीद है। ऐसे में कुल उपलब्धता 359.44 लाख गांठ की बैठेगी।

चालू फसल सीजन में कॉटन की कुल घरेलू खपत 315 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि इस दौरान 18 लाख गांठ के निर्यात की उम्मीद है।

सीएआई के अनुसार 31 दिसंबर 24 तक 12 लाख गांठ कॉटन क आयात हो चुका है, जबकि इस दौरान 7 लाख गांठ निर्यात की शिपमेंट हुई है। उत्पादक मंडियों में दिसंबर अंत तक 133.85 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी है, जिसमें से 84 लाख गांठ की खपत हो चुकी है। अत: पहली जनवरी को मिलों के पास 25 लाख गांठ एवं सीसीआई, महाराष्ट्र फेडरेशन, एमएनसी, जिनर्स एवं निर्यातकों के साथ ही व्यापारियों के पास 60.04 लाख गांठ कॉटन का स्टॉक है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में कपास की बुआई 14 लाख हेक्टेयर घटकर 112.90 लाख हेक्टेयर में ही हुई, जबकि पिछले साल इसकी बुआई 126.90 लाख हेक्टेयर में हुई थी।

केंद्र सरकार ने जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 315 रुपये की बढ़ोतरी की

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने जूट किसानों को राहत देते हुए इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 315 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर दी है। जिससे लाखों किसानों और जूट उद्योग पर निर्भर अन्य लोगों को लाभ होगा।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने मार्केटिंग सीजन 2025-26 के लिए कच्चे जूट के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एएमएसपी) को मंजूरी दे दी है। समिति ने कच्चे जूट (TD-3 grade) का समर्थन मूल्य 5,650 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। इसमें पिछले मार्केटिंग सीजन की तुलना में 315 रुपये क्विंटल की वृद्धि की गई है। विपणन सीजन 2024-25 में कच्चे जूट का एमएसपी 5,335 रुपये क्विंटल था।

सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि जूट एमएसपी बढ़कर 5,650 रुपये क्विंटल होने से किसानों को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत पर 66.8 प्रतिशत का रिटर्न सुनिश्चित होगा। विपणन सीजन 2025-26 के लिए कच्चे जूट का स्वीकृत एमएसपी बजट 2018-19 में सरकार द्वारा घोषित अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर एमएसपी तय करने के सिद्धांत के अनुरूप है। वर्ष 2014-15 में कच्चे जूट का एमएसपी 2,400 रुपये था। जाहिर है उक्त वर्ष से इसके एमएसपी में 3,250 रुपये क्विंटल का इजाफा हो चुका है।

सरकार का कहना है कि जूट के एमएसपी में वृद्धि से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 40 लाख किसान परिवार और जूट उद्योग पर निर्भर लोगों को लाभ होगा। इस फैसले से करीब 4 लाख श्रमिकों को जूट मिल और जूट कारोबार में रोजगार मिलेगा। पिछले साल सरकार ने 1.7 लाख किसानों से जूट की खरीद की थी। इन किसानों में 82 फीसदी किसान पश्चिम बंगाल के थे, जबकि बाकी बचे 9 फीसदी किसान असम और बिहार के।

सरकार 2014-15 से 2024-25 की अवधि के दौरान जूट उत्पादक किसानों को 1,300 करोड़ रुपये जूट एमएसपी के तौर पर भुगतान कर चुकी है, जबकि 2004-05 से 2013-14 की अवधि के दौरान जूट एमएसपी की भुगतान की गई राशि 441 करोड़ रुपये थी।

तिलहन उत्पादकता बढ़ाकर खाद्य तेल के आयात बिल में कटौती की जाए - एसईए

नई दिल्ली। तिलहन की फसलों की उत्पादकता में बढ़ोतरी हो ताकि खाद्वय तेलों के आयात बिल में कटौती की जा सके, इसके लिए उद्योग ने बजट तैयार होने से पहले ही केंद्र सरकार को सिफारिशें भेजी है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने वित्त मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री और वित्त मंत्री को 2025-26 के लिए अपना बजट पूर्व ज्ञापन सौंपा है।

ज्ञापन का मुख्य फोकस तिलहनी फसलों की घरेलू उत्पादकता को बढ़ावा देने, खाद्य तेल आयात पर निर्भरता को कम करने और खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए तिलहन क्षेत्र को मजबूती प्रदान करना है। पिछले 3 दशकों में खाद्य तेल और तिलहन परिदृश्य में व्यापक बदलाव आया है। आयात पर हमारी निर्भरता जो नब्बे के दशक में केवल 3 फीसदी थी, वर्तमान में बढ़कर लगभग 60 फीसदी की हो गई है। इस निराशाजनक स्थिति का मुख्य कारण यह है कि तिलहन उत्पादन लगभग स्थिर बना हुआ है, जबकि मांग में बढ़ोतरी हो रही है। तिलहन उत्पादन लगभग 35 मिलियन टन और उत्पादकता 900-1000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर स्थिर बनी हुई है।

इस समय देश में लगभग 160 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हो रहा है, जिसकी कीमत 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक है। आयातित खाद्य तेलों पर हमारी निर्भरता को इस समय जो 60 फीसदी है उसे घटाकर वर्ष 2029-30 तक 25-30 फीसदी करने के लिए अगले पांच वर्षों के लिए 25,000/- करोड़ रुपये के खर्च से “खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन” को लागू करने की आवश्यकता है। यह सरकार और उद्योग के लिए चिंता का विषय है।

उद्योग संगठन एसईए का बजट पूर्व ज्ञापन 2025-26 में माननीय प्रधान मंत्री के "आत्मनिर्भर भारत" और "मेक इन इंडिया" के दृष्टिकोण के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ाना, रोजगार के अवसर पैदा करना और खाद्य तेल क्षेत्र में आयात की निर्भरता को कम करना है।

चालू रबी में राजस्थान में 137,84,859 टन मोटे अनाजों के उत्पादन का अनुमान

नई दिल्ली। चालू रबी सीजन 2024-25 के दौरान राजस्थान में 137,84,859 टन मोटे अनाजों के उत्पादन का अनुमान है। इस दौरान रबी दलहन की प्रमुख फसल चना का उत्पादन 25,35,194 टन तथा रबी तिलहन की प्रमुख फसल सरसों का 55,59,455 टन उत्पादन होने का अनुमान है।


राज्य के कृषि निदेशालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी सीजन 2024-25 में राज्य में 122,34,667 टन गेहूं तथा 14,37,223 टन जौ एवं 1,10,853 टन मक्का के अलावा 2,116 टन समाल मिल्ट के उत्पादन का अनुमान है।

इस दौरान दलहनी फसलों में 25,35,194 टन चना तथा 47,292 टन मसूर एवं 28,277 टन मटर के अलावा 102 टन अन्य दलहन के उत्पादन का अनुमान है। अतः: चालू रबी सीजन में दलहनी फसलों का कुल उत्पादन 26,10,865 टन होने का अनुमान है।

राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार तिलहनी फसलों में 55,59,455 टन सरसों तथा 82,326 टन तारामीरा एवं 10,701 टन कैस्टर सीड के अलावा 13,478 टन अन्य अलसी के उत्पादन का अनुमान है। अतः: चालू रबी सीजन में तिलहनी फसलों का कुल उत्पादन 56,65,960 टन होने का अनुमान है।

18 जनवरी 2025

चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों के दौरान डीओसी का 10 फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष 2024-25 की पहले 9 महीनों अप्रैल से दिसंबर के दौरान डीओसी के निर्यात में 10 फीसदी की गिरावट आकर कुल निर्यात 3,150,678 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 3,496,771 टन का ही हुआ था। इस दौरान सरसों डीओसी के साथ ही कैस्टर एवं राइस ब्रान डीओसी के निर्यात में कमी आई है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार दिसंबर में देश से डीओसी के निर्यात में 25 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 398,731 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल नवंबर में इनका निर्यात 532,729 टन का ही हुआ था।

चालू वर्ष के पहले नौ महीनों (अप्रैल से दिसंबर, 2024) में सोया डीओसी का निर्यात बढ़कर 14.85 लाख टन का हो गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 12.11 लाख टन का ही निर्यात हुआ था। इसका श्रेय जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय खरीदारों द्वारा अधिक आयात को जाता है। हालांकि, हाल के महीनों में विश्व बाजार में सोया डीओसी की आपूर्ति बढ़ने के कारण भारतीय सोया डीओसी को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि दिसंबर के अंत तक पेराई कम रही, जिसके परिणामस्वरूप सोया डीओसी के उत्पादन में गिरावट आई और आने वाले महीनों में खपत और निर्यात में कमी आने की आशंका है।

मक्का और अनाज से डीडीजीएस का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ने से स्थानीय बाजार में डीओसी की मांग कम हुई है। इसके अलावा, सरसों डीओसी के लिए बांग्लादेश एक प्रमुख बाजार है, जहां हाल के महीनों में अनिश्चितता के कारण इसके निर्यात में कमी आई है, तथा आगामी दिनों में इसके निर्यात में और भी कमी आने की आशंका है।

भारतीय बंदरगाह पर दिसंबर में सोया डीओसी का भाव कमजोर होकर 363 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि नवंबर में इसका दाम 372 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य दिसंबर में भारतीय बंदरगाह पर 270 डॉलर प्रति रहा, जबकि नवंबर में इसका भाव 270 डॉलर प्रति टन ही था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम नवंबर के 85 डॉलर प्रति टन से घटकर नवंबर में 81 डॉलर प्रति टन का रह गया।

कैस्टर सीड की नई फसल की आवक शुरू, मिलों के मांग से भाव में सुधार

नई दिल्ली। प्रमुख उत्पादक राज्य गुजरात की मंडियों में गुरुवार को कैस्टर सीड की नई फसल की आवक शुरू हो गई। हालांकि तेल मिलों की खरीद से उत्पादक मंडियों में इसके भाव 5 से 10 रुपये प्रति 10 किलो की तेजी आई।


व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में कैस्टर सीड की बुआई में कमी आई है, इसलिए इसके भाव में  अनिश्चितता बनी रहने का अनुमान है। इस साल ठंड के सीजन में देरी हुई है हालांकि अभी एक महीने तक ठंड का मौसम बना रहने की संभावना है। इसके अलावा इस साल अरंडी की बुवाई तीन से चार सप्ताह देरी से हुई थी। ये दो कारणों की वजह से अभी नई फसल की आवक सामान्य की तुलना में कम हो रही है। गुजरात की मंडियों में गुरूवार में नई अरंडी की 3,000 बोरी (1 बोरी=35 kg) के करीब आवक हुई।

व्यापारियों के अनुसार महेणासा, पाटन क्षेत्र में अरंडी की नई फसल तैयार हो चुकी है, तथा अगले दस-बारह दिन के बाद वहां की मंडियों में नई फसल की आवक बढ़ेगी।

गुरुवार को गुजरात में अरंडी की आक 17,000 बोरी, राजस्थान से 2,000 बोरी तथा सीधी मिलो में 1,000 बोरी की सीधी आवक हुई। राज्य की मंडियों अरंडी के भाव 1250-1270 रुपये प्रति 20 किग्रा पर स्थिर रह।

चालू वित्त वर्ष 2024-25 के पहले आठ महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान कैस्टर तेल के निर्यात में 11.61 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 459,214 टन का हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात केवल 411,438 टन का ही हुआ था।

साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार नवंबर में कैस्टर तेल का निर्यात बढ़कर 38,196 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल नवंबर में इसका निर्यात केवल 38,032 टन का ही हुआ था। मूल्य के हिसाब से नवंबर में कैस्टर तेल का निर्यात 522.04 करोड़ रुपये का हुआ है, जबकि पिछले साल नवंबर में इसका निर्यात 474.05 करोड़ रुपये का ही हुआ था।

व्यापारियों के अनुसार चालू सीजन में बुआई में आई कमी से कैस्टर सीड का उत्पादन कम होने का अनुमान है, जिस कारण इसके भाव में बड़ी गिरावट के आसार नहीं है।

15 जनवरी तक चालू पेराई सीजन में चीनी उत्पादन में 13.65 फीसदी की कमी - उद्योग

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन (अक्टूबर-24 से सितंबर-25) के पहले साढ़े तीन महीनों पहली अक्टूबर एवं 15 जनवरी के दौरान चीनी के उत्पादन में 13.65 फीसदी की गिरावट आकर कुल उत्पादन 130.55 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि में इसका उत्पादन 151.20 लाख टन का हो चुका था।


नेशनल फेडरेशन ऑफ को ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) के अनुसार 15 जनवरी 2025 तक देश भर की 507 चीनी मिलों ने कुल 1482.14 लाख टन गन्ने की पेराई की है। पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के दौरान 524 चीनी मिलों ने 1612.83 लाख टन गन्ने की पेराई की थी।

चालू पेराई सीजन 2024-25 के दौरान गन्ने में रिकवरी की दर पिछले पेराई सीजन की तुलना में कम बैठ रही है। अत: एनएफसीएसएफ ने चालू पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन अनुमान को कम कर दिया है। चालू पेराई सीजन के दौरान देश में चीनी उत्पादन घटकर 270 लाख टन तक होने का अनुमान है, जो इससे पहले के अनुमान 280 लाख टन से कम है। पिछले पेराई सीजन में देश में चीनी उत्पादन 319 लाख टन हुआ था।

देश में गन्ने में रिकवरी की दर पिछले सीजन की तुलना में कम आ रही है। 15 जनवरी, 2025 तक, औसत गन्ने में चीनी की रिकवरी दर 8.81 फीसदी की है, जबकि पिछले पेराई सीजन की समान अवधि के दौरान यह 9.37 फीसदी थी।

महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में 196 चीनी मिलों ने 489.20 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जिससे 43.05 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है।

उत्तर प्रदेश में चालू सीजन में 122 चीनी मिलों ने 473.48 लाख टन गन्ने की पेराई की है, जिससे 42.85 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है।

तीसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य कर्नाटक में पिछले सीजन के मुकाबले तीन ज़्यादा चीनी मिलें चल रही हैं। इस समय 77 चीनी मिलें चल रही हैं, जबकि पिछले सीजन में इसी अवधि में 74 मिलें चल रही थी। राज्य की चीनी मिलों ने 318.82 लाख टन गन्ने की पेराई की है, तथा 27.10 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है।

चालू पेराई सीजन में कर्नाटक और महाराष्ट्र की चीनी मिलों में देर से पेराई शुरू हुईं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल में रोग लगने की वजह से उत्पादन में कमी आई है।

चालू तेल वर्ष के पहले दो महीनों में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 16 फीसदी बढ़ा- एसईए

नई दिल्ली। चालू तेल वर्ष 2024-25 के पहले 2 महीनों नवंबर एवं दिसंबर के दौरान देश में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 16 फीसदी बढ़कर 2,859,068 टन का हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 2,472,276 टन का हुआ था।

सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार दिसंबर 2024 में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 6 फीसदी घटकर 1,231,426 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल दिसंबर में इनका आयात 1,311,686 टन का हुआ था। दिसंबर 2024 के दौरान खाद्वय तेलों का आयात 1,185,662 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 45,764 टन का हुआ है।

देश में पाम ऑयल की बाजार हिस्सेदारी कम हो रही है क्योंकि इसकी बिक्री में कमी आ रही है अत: सोया तेल की खपत बढ़ रही है। आपूर्ति में कमी आने के कारण मलेशियाई पाम तेल के आयात में हाल ही में गिरावट आई है, क्योंकि आयातक कम कीमत वाले दक्षिण अमेरिकी सोया तेल के आयात की ओर रुख कर रहे हैं। हाल के महीनों में सोया तेल की वैश्विक खपत में तेजी आई है क्योंकि पाम तेल के मुकाबले सोया तेल की कीमत नीचे बनी हुई है।

देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों में 3 जनवरी, 2025 तक सरसों की बुवाई 5.25 लाख हेक्टेयर घटकर 88.50 लाख हेक्टेयर ही हो पाई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 93.73 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हुई थी। किसानों ने सरसों के बजाए गेहूं की बुआई को प्राथमिकता दी है।

एसईए के अनुसार नवंबर एवं दिसंबर, 2024 के दौरान 422,736 टन की तुलना में 449,827 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलिन) का आयात हुआ है। इस दौरान नवंबर एवं दिसंबर, 2023 के 2,033,042 टन की तुलना में चालू तेल वर्ष के पहले दो महीनों में 2,326,136 टन क्रूड तेल का आयात किया गया है। आयात में वृद्धि के बावजूद रिफाइंड तेल का अनुपात 17 फीसदी से मामूली रूप से घटकर 16 फीसदी रह गया, जबकि क्रूड पाम तेल का अनुपात 83 फीसदी से बढ़कर 84 फीसदी हो गया।

नवंबर एवं दिसंबर 2024 के दौरान, पाम ऑयल का आयात, पिछले तेल वर्ष की समान अवधि के 1,763,678 टन से घटकर 1,342,168 टन का रह गया, जबकि सॉफ्ट ऑयल का आयात पिछले तेल वर्ष की इसी अवधि के 692,101 टन से बढ़कर 1,433,795 टन का हो गया। अत: पाम ऑयल की हिस्सेदारी 72 फीसदी से घटकर 48 फीसदी की रह गई, जबकि सॉफ्ट ऑयल की हिस्सेदारी 28 फीसदी से बढ़कर 52 फीसदी की हो गई।

नवंबर के मुकाबले दिसंबर में आयातित खाद्वय तेलों की कीमतों में मिलाजुला रुख रहा। नवंबर में भारतीय बंदरगाह पर आरबीडी पामोलिन का भाव बढ़कर 1,236 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि नवंबर में इसका दाम 1,233 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का दाम दिसंबर में बढ़कर 1,270 डॉलर प्रति टन का हो गया, जबकि नवंबर में इसका भाव 1,269 डॉलर प्रति टन था। क्रूड सोयाबीन तेल का भाव दिसंबर में घटकर भारतीय बंदरगाह पर 1,123 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि नवंबर में इसका भाव 1,219 डॉलर प्रति टन था। इसी तरह से क्रूड सनफ्लावर तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर नवंबर के 1,265 डॉलर से घटकर दिसंबर में 1,206 डॉलर प्रति टन रह गया।

चालू फसल सीजन के पहले तीन महीनों में सोया डीओसी निर्यात 22.57 फीसदी घटा - सोपा

नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2024-25 के पहले तीन महीनों अक्टूबर से दिसंबर के दौरान सोया डीओसी का निर्यात 22.57 फीसदी घटकर 5.18 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले फसल सीजन की समान अवधि में इसका निर्यात 6.59 लाख टन का हुआ था।

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन के अक्टूबर से दिसंबर के दौरान 24.07 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है, जबकि नई सीजन के आरंभ में 1.33 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। इस दौरान 5.18 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि 2.10 लाख टन की खपत फूड में एवं 17 लाख टन की फीड में हुई है। अत: पहली जनवरी को मिलों के पास 1.12 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 1.90 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के पहले तीन महीनों में देशभर की उत्पादक मंडियों में 46 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई है, जिसमें से दिसंबर अंत तक 30.50 लाख टन की पेराई हुई है। इस दौरान 1.40 लाख टन सोयाबीन की खपत डारेक्ट हुई है जबकि 0.04 लाख टन का निर्यात हुआ है। अत: प्लांटों एवं व्यापारियों तथा किसानों के पास पहली जनवरी को 89.82 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 93.46 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में सोयाबीन का उत्पादन 125.82 लाख टन का हुआ है, जबकि 8.94 लाख टन का बकाया स्टॉक नई फसल की आवक के समय बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 134.76 लाख टन की बैठी है, जबकि चालू सीजन में करीब 3 लाख टन सोयाबीन के आयात का अनुमान है। पिछले फसल सीजन में 118.74 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल की आवक के समय 24.07 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: पिछले साल कुल उपलब्धता 142.81 लाख टन की बैठी थी, जबकि 6.25 लाख टन का आयात हुआ था। 


उत्तर प्रदेश में चीनी की रिकवरी दर में गिरावट, मिलों की उत्पादन लागत बढ़ी

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू पेराई सीजन में 2024-25 में उत्तर प्रदेश में चीनी की रिकवरी दर में 0.3 से 1 फीसदी तक की कमी आई है, जिस कारण चीनी मिलों की उत्पादन लागत करीब 140 क्विंटल तक बढ़ गई है।


उत्तर प्रदेश शुगर मिल्स एसोसिएशन (यूपीएसएमए) ने चीनी की रिकवरी में आई गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इससे उत्पादन की लागत बढ़ गई। उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को भेजे गए पत्र में एसोसिएशन ने कहा कि रिकवरी में 0.3 से 1 फीसदी तक की गिरावट देखी गई।

यूपीएसएमए के अनुसार पिछले साल जनवरी में गन्ने के एसएपी में वृद्धि के बावजूद चालू
फसल सीजन में चीनी के न्यूनतम बिक्री मूल्य, एमएसपी कीमतों में वृद्धि नहीं की गई है। एसोसिएशन के अनुसार चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) आखिरी बार 2019 में संशोधित किया गया था और तब से यह स्थिर बना हुआ है।

पिछले साल जनवरी में उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने की तीनों किस्मों के लिए एसएपी में 20 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की थी। जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए एसएपी 350 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 370 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था। इसी तरह से सामान्य किस्मों के लिए यह 340 रुपये से बढ़ाकर 360 रुपये हो गया, जबकि देर से पकने वाली किस्मों के लिए यह 335 रुपये से बढ़ाकर 355 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया था। यूपीएसएमए की ताजा चिंता गन्ना विकास विभाग से मिले संकेतों के कारण आई है। राज्य के गन्ना किसानों के अनुसार चालू पेराई सीजन आरंभ हुए तीन माह से ज्यादा हो गए है, लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने गन्ने के एसएपी में बढ़ोतरी नहीं की है।

सूत्रों के अनुसार गन्ने के एसएपी का मुद्दा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले ही जोर पकड़ चुका है, जहां सबसे ज्यादा चीनी मिलें लगी हुई हैं। सूत्रों के अनुसार एसएपी पर फैसला अगले कुछ दिनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली राज्य कैबिनेट द्वारा लिए जाने की उम्मीद है। जानकारों के अनुसार मुख्य सचिव और गन्ना विकास विभाग की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति इस मुद्दे को कैबिनेट के समक्ष उठाएगी।

यूपीएसएमए के अनुसार माल ढुलाई लागत में वृद्धि के बावजूद परिवहन छूट कम रही है। यूपीएसएमए ने देशी शराब के निर्माण के लिए उपयोग किए जाने वाले मोलासेस के लिए 152 रुपये प्रति क्विंटल की कम कीमत के बारे में भी लिखा है। जानकारों के अनुसार मुक्त बाजार में मोलासेस की कीमत 1,000 रुपये प्रति क्विंटल आंकी गई है। एसोसिएशन ने लिखा, यहां तक कि एथेनॉल (भले ही यह एक अलग व्यवसाय है) से होने वाली प्राप्ति में पिछले दो वर्षों में गन्ने की कीमत में हुई वृद्धि की तुलना में कोई समान मूल्य वृद्धि नहीं देखी गई है। उन्होंने सरकार से प्राथमिकता के आधार पर एथेनॉल की कीमतों को संशोधित करने का आग्रह भी किया है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीफ तिलहनी फसलों की खरीद 15,01,028 टन के पार

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन 2024 में नेफेड ने 7 जनवरी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर उत्पादक राज्यों से 10,55,218 टन सोयाबीन एवं मूंगफली तथा सनफ्लावर की खरीद कर चुकी है, जबकि केंद्र सरकार ने पीएसएस स्कीम के तहत 54,77,905 टन खरीफ में तिलहन की फसलों की खरीद को मंजूरी दी हुई है।


सूत्रों के अनुसार खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन की किसानों से समर्थन मूल्य 4,892 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 33,60,628 टन की खरीद को मंजूरी दी हुई है, जिसमें से निगम ने 7 जनवरी तक केवल 8,84,134 टन सोयाबीन की खरीद की है। सोयाबीन की खरीद कर्नाटक से 18,282 टन, तेलंगाना से 83,075 टन, मध्य प्रदेश से 3,88,900 टन तथा गुजरात से 32,687 टन और महाराष्ट्र से 3,10,161 टन के अलावा तथा राजस्थान से 51,026 टन की हुई है।

चालू खरीफ सीजन में मूंगफली की खरीद समर्थन मूल्य 6,783 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 20,47,471 टन की खरीद को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी हुई है, जिसमें से निगम ने 7 जनवरी तक 6,13,616 टन की खरीद की है। मूंगफली की खरीद गुजरात से 4,49,344 टन, राजस्थान से 1,21,740 टन और उत्तर प्रदेश से 42,531 टन की हुई है। कर्नाटक एवं हरियाणा तथा आंध्र प्रदेश की मंडियों से अभी तक समर्थन मूल्य पर मूंगफली की खरीद शुरू नहीं हो पाई है।

अन्य तिलहनी फसलों में सनफ्लावर की समर्थन मूल्य 7,280 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 13,210 टन की खरीद को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी हुई है, जिसमें से कर्नाटक के किसानों से 7 जनवरी तक 3,278 टन की खरीद की जा चुकी है।

शीशम सीड की न्यूनतम समर्थन मूल्य 9,267 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 31,596 टन की खरीद को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी हुई है जोकि अभी तक शुरू नहीं हुई है। शीशम सीड की खरीद उत्तर प्रदेश और हरियाणा की मंडियों से की जानी है।

10 जनवरी 2025

मिलों की मांग कमजोर होने से सरसों के दाम नरम, दैनिक आवक स्थिर

नई दिल्ली। बढ़े दाम पर तेल मिलों की खरीद कमजोर होने के कारण गुरुवार को घरेलू बाजार में सरसों की कीमतों में नरमी दर्ज की गई। जयपुर में कंडीशन की सरसों के भाव 25 रुपये कमजोर होकर भाव 6,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इस दौरान सरसों की दैनिक आवक 1.85 लाख बोरियों के पूर्व स्तर पर स्थिर बनी रही।


विदेशी बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट का रुख रहा। मलेशियाई पाम तेल के दाम लगातार दूसरे कार्यदिवस में कमजोर हुए। साथ ही इस दौरान शिकागो में सोया तेल की कीमतों में भी गिरावट आई। उधर डालियान में भी खाद्वय तेलों की कीमतों में मंदा आया। जानकारों के अनुसार विश्व बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में अभी तेजी की संभावना नहीं है। घरेलू बाजार में गुरुवार को सरसों तेल के भाव में गिरावट आई, जबकि इस दौरान सरसों खल की कीमत दूसरे दिन भी स्थिर बनी रही।

उत्पादक राज्यों की मंडियों में सरसों की दैनिक आवक स्थिर हो गई। व्यापारियों के अनुसार नीचे दाम पर किसानों के साथ ही स्टॉकिस्ट सरसों की बिकवाली नहीं करना चाहते। हालांकि चालू सीजन में सरसों की बुआई में तो कमी आई है, लेकिन दिसंबर के अंत में हुई बारिश से फसल को फायदा ही हुआ है। माना जा रहा है कि खपत का सीजन होने के कारण घरेलू बाजार में सरसों तेल में मांग अभी बनी रहेगी, लेकिन इसकी कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक आयातित खाद्य तेलों के दाम पर ही निर्भर करेगी।

सुस्त मांग और वैश्विक बाजारों से नकारात्मक संकेत के कारण मलेशियाई क्रूड पाम तेल (सीपीओ) वायदा गुरुवार को लगातार दूसरे सत्र में कमजोर होकर बंद हुआ।

बुर्सा मलेशिया डेरिवेटिव्स एक्सचेंज, बीएमडी में मार्च डिलीवरी के पाम तेल वायदा अनुबंध में 59 रिगिंट यानी की 1.36 फीसदी की गिरावट आकर भाव 4,295 रिंगिट प्रति टन रह गए। इस दौरान शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड सोया तेल की कीमतों में 0.77 फीसदी की गिरावट आई।

डालियान के सबसे सक्रिय सोया तेल वायदा अनुबंध में 1.16 फीसदी की गिरावट आई जबकि इसके पाम तेल वायदा में 3.09 फीसदी की बड़ी गिरावट दर्ज की गई।

व्यापारियों के अनुसार विश्व बाजार में खाद्वय तेलों की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक अमेरिकी बायोडीजल बाजार की नीतियों पर निर्भर हो सकते हैं। अमेरिकी बायोडीजल नीतियों में कोई भी बदलाव या सोया तेल पर संभावित टैरिफ से पाम तेल की कीमत प्रभावित हो सकती है। निवेशक बदलते वैश्विक संकेतों और घरेलू आंकड़ों की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।

जयपुर में सरसों तेल कच्ची घानी और एक्सपेलर की कीमतों में गुरुवार को गिरावट दर्ज की गई। कच्ची घानी सरसों तेल के भाव 5 रुपये कमजोर होकर 1,336 रुपये प्रति 10 किलो रह गए, जबकि सरसों एक्सपेलर तेल के भाव भी 5 रुपये घटकर 1,326 रुपये प्रति 10 किलो रह गए। इस दौरान जयपुर में सरसों खल के भाव 2,340 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे।

देशभर की मंडियों में सरसों की दैनिक आवक 1.85 लाख बोरियों की ही हुई, जबकि इसके पिछले कार्यदिवस में भी आवक इतनी ही बोरियों की हुई थी। कुल आवकों में से प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान की मंडियों में सरसों की आवक 75 हजार बोरी, जबकि मध्य प्रदेश की मंडियों में 20 हजार बोरी, उत्तर प्रदेश की मंडियों में 25 हजार बोरी, पंजाब एवं हरियाणा की मंडियों में 5 हजार बोरी तथा गुजरात में 10 हजार बोरी, एवं अन्य राज्यों की मंडियों में 45 हजार बोरियों की आवक हुई।

सीसीआई ने 9,600 गांठ कॉटन की बिक्री की, मिलों की सीमित मांग से भाव में मिलाजुला रुख

नई दिल्ली। कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया, सीसीआई ने गुरुवार को घरेलू बाजार में 9,600 गांठ, एक गांठ 170 किलो कॉटन की बिक्री की। इसमें से स्पिनिंग मिलों ने 5,900 गांठ कॉटन की खरीद की, जबकि 3,700 गांठ व्यापारियों द्वारा खरीदी गई।


स्पिनिंग मिलों की मांग घटने के कारण गुरुवार को दोपहर बाद गुजरात में कॉटन की कीमतों में गिरावट आई, जबकि इस दौरान उत्तर भारत में इसके भाव स्थिर हो गए।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव में गुरुवार को 250 रुपये कमजोर होकर दाम 53,800 से 54,300 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो रह गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 5570 से 5580 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5550 से 5570 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 5570 से 5640 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव 53,900 से 54,000 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 1,87,300 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

स्पिनिंग मिलों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात में कॉटन की कीमतों में गिरावट आई, जबकि उत्तर भारत के राज्यों में इसके दाम स्थिर हो गए। व्यापारियों के अनुसार विश्व बाजार में कॉटन की कीमत, घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बनी हुई है इसलिए घरेलू बाजार में इसके भाव में अभी बड़ी तेजी के आसार नहीं है।

व्यापारियों के अनुसार खपत का सीजन होने के कारण सूती धागे की स्थानीय मांग पहले की तुलना में बढ़ी है, लेकिन निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है। कॉटन के निर्यात में भी पड़ते नहीं लग रहे। हालांकि चालू सीजन में बुआई में आई कमी के साथ ही कई राज्यों में अक्टूबर में हुई बारिश से कॉटन के उत्पादन और क्वालिटी प्रभावित हुई थी। विश्व बाजार में कॉटन की कीमत अभी सीमित दायरे में बनी रहने की उम्मीद है।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि पिछले खरीफ 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है। 

कॉटन की एमएसपी पर खरीद 63 लाख गांठ के पार, तेलंगाना एवं महाराष्ट्र की हिस्सेदारी ज्यादा

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2023 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया, सीसीआई न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर 63 लाख गांठ, एक गांठ 170 किलो की खरीद कर चुकी है। अभी तक हुई कुल खरीद में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी तेलंगाना एवं महाराष्ट्र की है।


सूत्रों के अनुसार सीसीआई ने चालू फसल सीजन में एमएसपी तेलंगाना से 32 लाख गांठ एवं महाराष्ट्र से 16 लाख गांठ कॉटन की खरीद की है। इसके अलावा गुजरात से निगम ने 5 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक से क्रमश: 3-3 लाख गांठ तथा मध्य प्रदेश से 1.25 लाख गांठ कॉटन की खरीद समर्थन मूल्य पर की है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के अनुसार चालू फसल सीजन 2024-25 में 8 जनवरी तक देशभर की मंडियों में 137.85 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी है। इस दौरान तेलंगाना की मंडियों में 34.85 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 27.58 लाख गांठ तथा गुजरात की मंडियों में 23.94 लाख गांठ के अलावा कर्नाटक की मंडियों में 16.41 लाख गांठ कॉटन की आवक हुई है।

उत्तर भारत के राज्यों की मंडियों में चालू सीजन में 15.13 लाख गांठ तथा ओडिशा की मंडियों में 1.13 लाख गांठ के अलावा तमिलनाडु में 58,500 गांठ तथा अन्य राज्यों में 30 हजार गांठ कॉटन की आवक हुई है।

व्यापारियों के अनुसार देशभर की राज्यों की मंडियों में इस समय करीब दो लाख गांठ कॉटन की दैनिक आवक हो रही है।

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने के कारण बुधवार को दोपहर बाद गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमतों में सुधार आया। गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव में बुधवार को 50 रुपये तेज होकर दाम 54,100 से 54,500 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 5570 से 5580 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये तेज होकर 5550 से 5580 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 10 रुपये तेज होकर 5570 से 5640 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव 53,900 से 54,200 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए।

सीसीआई ने कॉटन की बिक्री कीमतों में 300 रुपये प्रति कैंडी की बढ़ोतरी की

नई दिल्ली। कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया, सीसीआई ने मंगलवार को घरेलू बाजार में कॉटन की बिक्री कीमतों में 300 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) की बढ़ोतरी की।


सीसीआई के अनुसार अहमदाबाद में फसल सीजन 2023-24 की खरीदी हुई 28 एमएम की कॉटन के बिक्री भाव 300 रुपये बढ़ाकर 52,300 रुपये प्रति कैंडी कर दिए। इस दौरान अकोला में 30 एमएम की कॉटन की बिक्री कीमत निगम ने 300 रुपये बढ़ाकर 53,700 से 54,100 रुपये प्रति कैंडी कर दी।

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने के कारण मंगलवार को दोपहर बाद गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमतों में तेजी आई।

गुजरात के अहमदाबाद में 29 शंकर-6 किस्म की कॉटन के भाव में मंगलवार को 200 रुपये तेज होकर दाम 54,000 से 54,500 रुपये प्रति कैंडी, एक कैंडी-356 किलो हो गए।

पंजाब में रुई के हाजिर डिलीवरी के भाव 20 रुपये बढ़कर 5570 से 5580 रुपये प्रति मन बोले गए। हरियाणा में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 20 रुपये तेज होकर 5550 से 5570 रुपये प्रति मन बोले गए। ऊपरी राजस्थान में रुई के भाव हाजिर डिलीवरी के भाव 15 रुपये तेज होकर 5560 से 5640 रुपये प्रति मन बोले गए। खैरथल लाइन में कॉटन के भाव 53,900 से 54,000 रुपये कैंडी, एक कैंडी-356 किलो बोले गए।

देशभर की मंडियों में कपास की आवक 1,84,200 गांठ, एक गांठ-170 किलो की हुई।

घरेलू वायदा बाजार एमसीएक्स के साथ ही एनसीडीएक्स पर आज शाम को कॉटन की कीमतों में में गिरावट का रुख रहा। उधर आईसीई के इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग में कॉटन की कीमतों में तेजी आई।

स्पिनिंग मिलों की मांग बढ़ने के कारण गुजरात के साथ ही उत्तर भारत में कॉटन की कीमतों में तेजी आई। व्यापारियों के अनुसार विश्व बाजार में कॉटन की कीमत, घरेलू बाजार की तुलना में नीचे बनी हुई है इसलिए घरेलू बाजार में इसके भाव में अभी बड़ी तेजी के आसार नहीं है।

व्यापारियों के अनुसार त्योहारों का सीजन होने के बावजूद भी सूती धागे की स्थानीय मांग सामान्य की तुलना में कमजोर बनी हुई है। कॉटन के निर्यात में भी पड़ते नहीं लग रहे। हालांकि चालू सीजन में बुआई में आई कमी के साथ ही कई राज्यों में अक्टूबर में हुई बारिश से कॉटन के उत्पादन और क्वालिटी प्रभावित हुई थी। विश्व बाजार में हाल ही में कॉटन की कीमत सीमित दायरे में बनी रहने की उम्मीद है।

कृषि मंत्रालय के पहले आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ सीजन में कपास का उत्पादन 299.26 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो होने का अनुमान है, जो क‍ि पिछले खरीफ 2023-24 के 325.22 लाख गांठ के मुकाबले कम है।

कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के दूसरे आरंभिक अनुसार के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में 302.25 लाख गांठ, एक गांठ-170 किलो कॉटन के उत्पादन का अनुमान है, जोकि इसके पिछले फसल सीजन 2023-24 के 325.29 लाख गांठ से कम है।