इस बार अच्छी कीमत के बावजूद उत्तर प्रदेश में फरवरी के दूसरे सप्ताह
तक चीनी मिलों पर किसानों के गन्ने का 5,795 करोड़ रुपये बकाया था। यानी
उद्योग के लिए अच्छा साल होने पर भी किसानों को अच्छा फल नहीं मिल पाया है।
चालू चीनी सीजन 1 अक्टूबर से (यह सितंबर के आखिर तक चलता है) शुरू हुआ है।
उत्तर प्रदेश में गन्ने की देनदारी के 5,795 करोड़ रुपये में से कंपनियों
का हिस्सा 92 प्रतिशत के साथ 5,320 करोड़ रुपये था। इस कुल बकाया में से 55
प्रतिशत केवल चार कंपनियों पर ही बाकी था।
गन्ना किसानों को 14 दिनों के अंदर उनका भुगतान मिलना चाहिए। इसके बाद
यह राशि बकाया की श्रेणी में आ जाती है। इस सीजन में पिछले सप्ताह तक
उत्तर प्रदेश में 16,894 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना था जिसमें से 66
प्रतिशत यानी 11,098 करोड़ रुपये ही दिए गए। राज्य में 116 मिलें चल रही
हैं। इनमें से 91 मिलें निजी क्षेत्र में और 24 सहकारी क्षेत्र में हैं। एक
सरकारी चीनी मिल है। 1 फरवरी तक मिलों पर किसानों का 9,649 करोड़ रुपये का
बकाया था।
उत्तर प्रदेश के बाद कर्नाटक में 910 करोड़ रुपये, गुजरात में 455
करोड़ रुपये, तमिलनाडु में 400 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र में 363 करोड़
रुपये का बकाया हैं। इन चारों राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा की गई उचित
और लाभकारी मूल्य की अनुशंसा को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा स्वीकृत आधार
पर बकाया का आकलन किया जाता है। उत्तर प्रदेश ने अपने किसानों के लिए ऊंची
दर तय कर रखी है। सरकार ने 2016-17 में चीनी उत्पादन 2.2 करोड़ टन से कुछ
कम रहने का अनुमान जताया है, जबकि निजी व्यापारियों का विचार है कि यह दो
करोड़ टन से ज्यादा नहीं होगा। (BS Hindi)
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