मुंबई June 05, 2011
सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग ने विनिर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं को विस्मित किया हो, लेकिन बेंचमार्क गुणवत्ता बताने वाली इस व्यवस्था ने भारत की मौजूदा सोने की 25 रिफाइनरियों के कारोबार को झटका दिया है।देश में सोने की रिफाइनरियों की संचालन क्षमता गिरकर 20-25 फीसदी रह गई है, जो इतिहास में सबसे कम है क्योंकि पुराना सोना उपलब्ध नहीं हो पा रहा। करीब एक साल पहले इन रिफाइनरियों की संचालन क्षमता 35-40 फीसदी थी। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के आंकड़ों के मुताबिक, रीसाइक्लिंग के लिए भारत में सोने की उपलब्धता मौजूदा कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में घटकर 10 टन रह गई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 14 टन थी। इससे पहले की तिमाही में हालांकि सोने की उपलब्धता 25 टन हो गई थी।गोल्ड रिफाइनर्स एसोसिएशन के सचिव और सी. गोल्ड रिफाइनरी प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक जेम्स जोस ने कहा - उपलब्ध पुराने सोने की गुणवत्ता बढ़ी है और इसका श्रेय उपभोक्ताओं केजागरूकता को जाता है। 25 साल तक चलन में रहे सोने सामान्यत: 18 कैरेट के होते थे और इसमें बाकी मात्रा तांबे की होती थी। आज बाजार में बिक्री के लिए आ रहे पुराने सोने कम से कम 22 कैरेट के हैं क्योंंकि खुदरा ज्वैलरों ने बेंचमार्क हॉलमार्किंग अपना ली है। ऐसे में पहले आ रहे सोने में जहां 80 फीसदी की शुद्धता होती थी, वहीं आज यह कम से कम 91.6 फीसदी हो गई है।सामान्यत तौर पर इस्तेमाल किए गए ऐसे गहने ज्वैलर दोबारा बेच देते हैं, लेकिन इससे पहले इन पर पॉलिस करते हैं और इसकी मरम्मत करते हैं। बाजार में उपलब्ध कुल पुराने सोने में ऐसे सोने की हिस्सेदारी करीब 25 फीसदी होती है, जिसकी आपूर्ति सामान्य तौर पर रिफाइनर्स को नहीं होती है। बड़े सुनार सामान्यत: इस्तेमाल किए गए आभूषण रिफाइनिंग के लिए भेजते हैं ताकि इससे तांबे जैसी अशुद्धता निकाली जा सके।स्पष्ट रूप से केरल जैसे राज्यों में गर्मी की छुट्टिïयां समाप्त होने व प्रवासी भारतीय के विदेश लौट जाने के चलते इस्तेमाल किए गए सोने की बिक्री समाप्त हो चुकी है। तमिलनाडु में भी ऐसा सीजन समाप्त हो चुका है। ये दोनों राज्य इलाके में पुराने सोने की बिक्री में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखते हैं। ऐसे में पुराने सोने की उपलब्धता में गिरावट तो आएगी ही। दूसरा, दक्षिण भारतीय बाजार में उपभोक्ता पुराने आभूषण के बदले नए आभूषण लेते हैं, जबकि उत्तर व पश्चिम भारत में नहीं होता क्योंकि यहां के लोग पुराने सोने के बदले नकदी लेना पसंद करते हैं। जोस ने कहा कि इसलिए उपभोक्ताओं की प्राथमिकता एक जगह से दूसरी जगह अलग-अलग होती है।स्पष्ट रूप से आयात शुल्क केचलते गोल्ड कन्सन्ट्रेट (डोर बार) का आयात उपयुक्त नहीं है। जोस ने ऐसे शुल्क को समाप्त करने की मांग की है। आज के समय में गोल्ड कन्सन्ट्रेट की खुदाई अफ्रीका में होती है और इसे यूरोप में साफ किया जाता है। यूरोप की गोल्ड रिफाइनरी 50,000 रुपये प्रति किलोग्राम का शुल्क वसूलती है जबकि भारत में यह 5,000 रुपये प्रति किलोग्राम हो सकता ह ै।ऐसे में डोर बार पर आयात शुल्क घटाने से सोने की कीमतों में प्रति 10 ग्राम 450 रुपये की कमी आएगी।एनआईबीआर बुलियन के प्रबंध निदेशक हर्मेश अरोड़ा ने कहा - सरकार ने 80 फीसदी की शुद्धता वाले डोर बार के आयात पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया है, जिसे हासिल करना काफी मुश्किल है। लेकिन आज 91-92 फीसदी सोने की शुद्धता वाले डोर बार की खुदाई हो रही है। उन्होंने कहा कि कीमतों में बढ़ोतरी वाले बाजार में उपभोक्ता सामान्यत: किसी उत्पाद की बिक्री को टाल देते हैं। चूंकि सोने की कीमतें लगातार ऊपर जा रही हैं, लिहाजा उपभोक्ता इसमें और तेजी की उम्मीद में सोने को अपने पास रखे हुए हैं। (BS Hindi)
06 जून 2011
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