बदलते सुरसरकार मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई जैसे पेचीदा मसले पर जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करेगी। राज्यों से विचार करके आम सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी। - प्रणब मुखर्जी, वित्त मंत्री (25 मार्च 2011, लोकसभा में)मल्टीब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई की इजाजत दी जानी चाहिए। - मोंटेक सिंह अहलूवालिया, उपाध्यक्ष, योजना आयोग (25 अक्टूबर 2010)रिटेल में एफडीआई से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा और उपभोक्ताओं को बाजार में चुनने के लिए ज्यादा विकल्प मिल सकेंगे। - डॉ. मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री (फरवरी 2010)हम फूड रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश की अनुमति देने पर विचार करेंगे, बशर्ते इससे किसानों को लाभ होने की संभावना हो।- सुबोध कांत सहाय, फूड प्रोसेसिंग मंत्री (अप्रैल 2008)भारत अपने 330 अरब डॉलर के रिटेल मार्केट को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलेगा। आर्थिक सुधारों की दिशा में यह अत्यंत महत्वपूर्ण कदम होगा। - पी. चिदंबरम, तत्कालीन वित्त मंत्री, सितंबर 2007भारत अपने 330 अरब डॉलर के रिटेल मार्केट को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलेगा। आर्थिक सुधारों की दिशा में यह अत्यंत महत्वपूर्ण कदम होगा। - पी. चिदंबरम, तत्कालीन वित्त मंत्री, सितंबर 2007मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) ऐसा मुद्दा है जो सरकार के समर्थन के बावजूद अभी तक टल रहा है। लगातार विरोध के कारण अब यह मसला सरकार की प्राथमिकताओं में काफी नीचे जा चुका है। करीब छह साल पहले यूपीए-1 के दौरान मल्टीब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई की चर्चा शुरू हुई। तब लेफ्ट के विरोध के कारण कुछ नहीं हो सका। सितंबर 2007 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इसके समर्थन में बयान दिया।
पिछले साल की शुरूआत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी किसानों को मिलने वाली कीमत और उपभोक्ताओं द्वारा चुकाए जाने वाले दाम में भारी अंतर का हवाला देते हुए इस सेक्टर को खोलने पर बहस छेडऩे की बात की। जुलाई 2010 में डीआईपीपी की तरफ से जारी डिस्कशन पेपर से लगा जैसे सरकार सभी पक्षों की राय लेने के बजाय एफडीआई के पक्ष में आमराय बनाने की कोशिश कर रही है। इसमें कहा गया, 'यह किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों की समस्याएं दूर कर सकता है। इससे उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम होंगी और महंगाई पर अंकुश लग सकेगा।'
लेकिन जैसे-जैसे इस प्रस्ताव का विरोध तीखा होता गया, सरकार के सुर भी बदलते गए। 25 मार्च 2011 को वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने संसद में कहा कि सरकार ऐसे पेचीदा मसले पर जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करेगी, राज्यों से विचार करके आम सहमति बनाने की कोशिश की जाएगी।इस समय देश में सिंगल ब्रांड रिटेल सेक्टर में 51 फीसदी और कैश एंड कैरी यानी थोक व्यापार में 100 फीसदी विदेशी निवेश की अनुमति है। सिंगल ब्रांड रिटेल में नाइके, ल्युइस व्यूटोन कंपनी भारत में व्यवसाय कर रही हैं।
कैश एंड कैरी व्यवसाय में वालमार्ट और कारफूर हैं। वालमार्ट ने रिटेल में काम करने के लिए भारती के साथ मिलकर ज्वाइंट वेंचर भी बनाया है। दरअसल, विकसित देशों की अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने के चलते बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारत और चीन जैसी उभरती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अवसर दिख रहे हैं। इसीलिए उनकी कोशिश है कि मल्टीब्रांड रिटेल में उन्हें निवेश की इजाजत मिल जाए।
अक्टूबर 2010 में वालमार्ट के सीईओ माइक ड्यूक इसके पक्ष में लॉबिंग के लिए आए तो उनसे मिलने के बाद योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने बयान दिया कि मल्टीब्रांड रिटेल में 51 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत दी जानी चाहिए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए रिटेल सेक्टर में भले ही संभावनाएं हों, लेकिन देश की बड़ी आबादी रोजगार के लिए इस सेक्टर पर निर्भर है।
इस वर्ग को अंदेशा है कि अगर रिटेल कारोबार में विदेशी कंपनियां आती हैं तो उनके सामने टिक पाना मुश्किल होगा। इससे बेरोजगारी बढ़ सकती है। यह अंदेशा बेवजह नहीं है। भारत में असंगठित क्षेत्र में करीब 1.1 करोड़ दुकानें चल रही हैं। भारत में छोटी दुकानों का घनत्व शायद दुनिया में सबसे ज्यादा है।
चंडीगढ़ मर्चेंट्स एसोसिएशन के चेयरमैन और व्यापारी आर.पी. कंसल कहते हैं, 'गनीमत है कि सरकार पहले जैसी सक्रिय नहीं है। लेकिन छोटे दुकानदारों पर संकट अभी टला नहीं है। अगर विदेशी कंपनियां आती हैं तो बाजार का मौजूदा ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाएगा। छोटी दुकानें किसी भी हालत में बड़ी कंपनियों का सामना नहीं कर पाएंगी। इससे बड़ी संख्या में व्यापारियों की रोजी-रोटी छिन जाएगी।'
मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार विदेशी निवेश की इजाजत तभी मिलेगी जब कंपनी कम से कम 10 करोड़ डॉलर यानी करीब 450 करोड़ रुपये निवेश करे और इसमें से कम से कम 50 फीसदी पैसा बैक-एंड इंफ्रास्ट्रक्चर यानी कोल्ड स्टोर, वेयरहाउस और कोल्ड चेन विकसित करने में लगाए।
इन कंपनियों को उन्हीं शहरों में स्टोर खोलने की अनुमति होगी जिनकी आबादी कम से कम 10 लाख हो। इस तरह ये कंपनियां देश के करीब 36 शहरों में ही काम कर सकेंगी। केंद्र की इस रक्षात्मक रुख से भी विरोध के स्वर कम होंगे, इसकी उम्मीद कम है।
पंजाब के किसान और भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के नेता बलवीर सिंह राजेवाल के मुताबिक विदेशी कंपनियों का एकाधिकार होगा तो अपनी उपज बेचने के लिए किसानों के विकल्प सीमित हो जाएंगे।
इससे किसानों का शोषण बढ़ेगा। कृषि उपज खरीदने के विकल्प ज्यादा होने और स्पर्धा होने पर ही किसानों को फायदा होगा। मौजूदा व्यवस्था में किसानों का पारंपरिक व्यापारियों के हाथों शोषण होता है, लेकिन विदेशी कंपनियां आने पर शोषण नहीं होगा, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।
रिटेल कंपनियों की राय इससे अलग है। रिटेल सेक्टर में सबसे मजबूत पकड़ रखने वाले फ्यूचर ग्रुप (बिग बाजार) के सीईओ किशोर बियानी कहते हैं, 'आर्थिक तरक्की से उपभोक्ताओं की आमदनी बढ़ रही है, उनकी जरूरतें बढ़ रही हैं। इसलिए रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश समय की मांग है।' बियानी के मुताबिक विदेशी निवेश आने से बेरोजगारी बढऩे की आशंका ठीक नहीं है। बाजार काफी बड़ा है और बड़ी कंपनियों के साथ छोटे दुकानदारों के विकास के लिए पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। बिज़नेस भास्कर का योगदान :- इस मसले पर सरकार को छोटे और मझोले व्यापारियों का विरोध झेलना पड़ रहा है। इन व्यापारियों की चिंताओं को बिजनेस भास्कर ने बुलंद आवाज दी और देश के लाखों-करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी से जुड़े इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। हमने व्यापारियों के विरोध के बिंदुओं को सरकार के संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाया। (Business Bhaskar)
29 जून 2011
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