नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। सरकारी खरीद एजेंसी नैफेड की 'मनमानी' पर अंकुश लगाने के लिए कृषि मंत्रालय ने लगाम कसनी शुरू कर दी है। अब यह सरकार के लिए सिर्फ तिलहन व दलहन की ही खरीद कर सकेगी। इसके इतर उसके अन्य कारोबार करने पर बंदिश लगाने की तैयारी कर ली गई है। कृषि मंत्रालय ने इसका मसौदा तैयार कर लिया है। इसे जल्दी ही केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा।
खुले बाजार में कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे होने की दशा में तिलहन व दलहन की सरकारी खरीद करने वाली नैफेड [नेशनल एग्रीकल्चरल कोआपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन] एक मात्र सरकारी एजेंसी है। कृषि मंत्रालय ने नैफेड के एकाधिकार को भी खत्म करने का फैसला कर लिया है। अब इस कारोबार में नेशनल कंज्यूमर को-ऑपरेटिव फेडरेशन [एनसीसीएफ], सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन और भारतीय खाद्य निगम [एफसीआई] जैसी बड़ी एजेंसियों को शामिल करने का प्रस्ताव है।
नैफेड के पिछले कुछ सालों के कामकाज को लेकर कृषि मंत्रालय खासा नाराज है। किसानों के हित संरक्षण और कृषि उत्पादों की खरीद करने के लिए गठित इस एजेंसी ने पिछले सालों में गैर कृषि कारोबार में हाथ आजमा कर हजारों करोड़ का नुकसान किया है। लौह अयस्क के आयात-निर्यात में एजेंसी को अच्छा खासा चूना लगा है। नैफेड के इस भ्रष्टाचार से आजिज केंद्र सरकार ने उसकी नकेल कसने की तैयारी कर ली है।
हाल ही में उभरे एक और नए विवाद ने गंभीर रूप पकड़ लिया है। नैफेड के अध्यक्ष व बोर्ड ने नवनियुक्त प्रबंध निदेशक पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उसे कार्यमुक्त कर दिया गया है। नैफेड में तैनात कई पूर्व अधिकारी जांच के घेरे में हैं। यह मुद्दा समय-समय पर गरम होता रहता है। कभी खराब कपास की खरीद तो कभी सरसों व प्याज की खरीद में घपले को लेकर नैफेड बराबर चर्चा में रहा है। इन सारी गतिविधियों पर लगाम कसने के मकसद से ही कैबिनेट नोट तैयार किया गया है। इसे जल्दी ही अंतिम रूप दे दिए जाने की संभावना है। (Jagran)
22 जून 2011
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