09 जून 2011
बर्बादी और परिवहन खर्च से बढ़ी सब्जी उत्पादन की मुश्किलें
सब्जियों की पैदावार और उत्पादन के इलाके के मामले में भारत सिर्फ चीन से पीछे है। फूलगोभी की पैदावार में भारत सबसे आगे हैं। वहीं, प्याज की खेती में दूसरे और पत्ता गोभी के मामले में यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। देश के लगभग 63 लाख हेक्टेयर इलाके में करीब 9.30 करोड़ टन सब्जियों की खेती होती है। दिलचस्प है कि शांगडॉन्ग प्रांत में सब्जियों की खेती करने वाले एक किसान की आत्महत्या के बाद चीन गंभीर सामाजिक चुनौती से जूझ रहा है। पिछले साल जब सब्जियों की कीमतों में तेजी आई तो किसानों ने इस उम्मीद से बड़े पैमाने पर पत्ता गोभी की खेती की कि उन्हें अच्छी कीमत हासिल होगी। हालांकि, पत्ता गोभी की पैदावार बहुत ज्यादा होने की वजह से आपूर्ति ज्यादा और मांग कम हो गई। नतीजतन, बाजार में आए पत्ता गोभी के थोक भाव में जबरदस्त गिरावट आई। मांग में जबरदस्त से एक किसान की पूरी खेप सड़ गई। नतीजतन उस निराश किसान ने आत्महत्या कर ली। भारत में फलों और सब्जियों का रोजाना का कारोबार 275 करोड़ रुपए का है। इनमें से आमतौर पर हर दिन 130 करोड़ रुपए की फल और सब्जियां 'बर्बाद' हो जाती हैं। दुनिया के कुल सब्जी उत्पादन का करीब 15 फीसदी भारत में होने के बावजूद निर्यात में इसकी हिस्सेदारी बहुत मामूली 1.5 फीसदी है। भारतीय सब्जी बाजार में छोटे उत्पादकों की पकड़ है। देश में अनाज से होने वाली आमदनी कम है। यही वजह है कि ज्यादा आमदनी के लिए किसान महंगी सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। चीन में मुद्रास्फीति, खासतौर पर खाने-पीने की चीजों में महंगाई होने के बावजूद सब्जियों की कीमतों में हैरतअंगेज गिरावट चिंता का मुद्दा बन गया है। भारत की तरह चीनी किसान भी छोटे पैमाने पर सब्जियों की खेती करते हैं, जबकि घरेलू सब्जियों का बाजार काफी बड़ा है। इस वजह से आपूर्ति और मांग के बीच लगातार असंतुलन बना रहता है। नतीजतन, चीन की अर्थव्यवस्था मुक्त होने के बावजूद सब्जियों की कीमतों में बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव होता है। चीन के किसानों को अपनी सब्जियों के लिए बहुत कम कीमत हासिल हो रही है, क्योंकि उत्पादन बहुत ज्यादा हो गया है और मांग में उस अनुपात से तेजी नहीं आई है। सब्जियों की कुल लागत का करीब दो तिहाई हिस्सा देश भर में सब्जियों के परिवहन पर खर्च होता है। परिवहन खर्च के अलावा हाईवे और टॉल ब्रिज पर शुल्क भुगतान से कुल लागत का दो तिहाई रकम परिवहन पर खर्च होता है। दिलचस्प है कि दुनिया भर की 70 फीसदी टोल सड़कें चीन में हैं। हाल के सालों में दुनिया भर के कई प्रांतों में सब्जियों की खेती और मजदूरी का खर्च बढ़ा है। शहर के बाजारों में सब्जियों और फलों की कीमतों में भी तेजी बरकरार है। खेत से बाजार तक सब्जियां आने में बिचौलिए भी हैं, जिससे भी लागत में बढ़ोतरी और अंतर है। सब्जियों की बर्बादी और आधुनिक भंडारगृह की बात करते हुए आमतौर पर हम यह भूल जाते हैं कि खेत में सब्जियों की कीमतें और उसके बाजार भाव में परिवहन खर्च की वजह से जमीन आसमान का अंतर है। भारत का हाल भी चीन की तरह है। दोनों जगह कुल लागत का 30 फीसदी रकम सब्जियों के परिवहन पर खर्च होता है। इसके अलावा 45 फीसदी लागत सब्जियों की बर्बादी के नाम रहता है। इन सब की वजह से ग्राहकों की जेब पर सब्जियों के खर्च का बोझ बढ़ जाता है, लेकिन इसका फायदा किसानों तक नहीं पहुंच पाता है। पेट्रोलियम की कीमतों में 5 रुपए प्रति लीटर का इजाफा होने से ग्राहकों और वितरकों की मुश्किल और बढ़ गई है, क्योंकि परिवहन खर्च बढ़ने से सब्जियों की लागत और बढ़ गई है। (ET Hindi)
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