02 जून 2011
रीटेल में 51% FDI करने का सशर्त प्रस्ताव
नई दिल्लीः वॉलमार्ट, कैरफूर और टेस्को जैसी मल्टीनेशनल रीटेल कंपनियों को भारत में अपने आउटलेट खोलने की इजाजत जल्द ही मिल सकती है, हालांकि उन्हें निवेश, सप्लाई और बड़े शहरों में स्टोर की सीमा को लेकर कई पाबंदियों का सामना करना पड़ेगा। औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) एक ऐसा प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेज सकता है, जिसमें मल्टी ब्रांड रीटेल में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सिफारिश हो। डीआईपीपी इस सेक्टर में विदेशी निवेश की न्यूनतम सीमा 10 करोड़ डॉलर तय कर सकता है। इस कदम का राजनीतिक विरोध न हो, इसलिए विदेशी रीटेल चेन स्टोर पर आखिरी फैसले का अधिकार संबंधित राज्य सरकारों को दिए जाने का प्रस्ताव है। डीआईपीपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया, 'ड्राफ्ट फ्रेमवर्क तैयार कर लिया गया है। इसमें छोटे दुकानदारों के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। ड्राफ्ट फ्रेमवर्क में यह कोशिश की गई है कि इस सेक्टर में एफडीआई आने से बैक-एंड इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूती मिले।' ड्राफ्ट फ्रेमवर्क को एक सचिवों की समिति को बांटा गया है। समिति इसमें संशोधन करके इसे अंतिम रूप देगी, जिसके बाद औपचारिक कैबिनेट नोट भेजा जाएगा। हफ्ते भर पहले कौशिक बसु की अगुवाई वाली उच्चस्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति ने मल्टी ब्रांड रीटेल सेक्टर को एफडीआई के लिए खोलने की सिफारिश की थी। भारत में अभी सिंगल ब्रांड रीटेल में 51 फीसदी और होलसेल कैश एंड कैरी में 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत है। डीआईपीपी के प्रस्ताव के मुताबिक, विदेशी रीटेलरों को कम से कम 50 फीसदी निवेश बैक-एंड इंफ्रास्ट्रक्चर में करना होगा। इस निवेश के स्टेटमेंट ऑफ एकाउंट को उन्हें आरबीआई और विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) के पास जमा कराना होगा। सरकार बैक-एंड इंफ्रास्ट्रक्चर को अलग इकाई के जरिए तैयार करने की इजाजत भी दे सकती है, जिससे उसे इस पर नजर रखने में सहूलियत होगी। विदेशी रीटेलरों को खाद्य उत्पाद सहित 30 फीसदी सामान भारत में छोटे और मझोले उपक्रम से खरीदने होंगे। विदेशी मल्टी ब्रांड रीटेल स्टोर को खोलने की इजाजत उन्हीं शहरों में दी जाएगी, जिनकी आबादी 10 लाख से ज्यादा है। हालांकि इस बारे में आखिरी फैसला राज्यों पर छोड़ा जा सकता है। आउटलेट शहर के 10 किलोमीटर के दायरे में हो सकता है। डीआईपीपी के इस अधिकारी ने बताया कि सरकार चाहती है कि मल्टी ब्रांड रीटेल में एफडीआई से बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन हो। साथ ही इससे बैंक-एंड इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने में भी मदद मिलनी चाहिए। भारत में कोल्ड चेन की कमी से 40 फीसदी कृषि उत्पाद बर्बाद हो जाते हैं। उद्योग के अनुमान के मुताबिक, इससे सालाना 50,000 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। भारत में रीटेल इंडस्ट्री 400 अरब डॉलर की है और यह तेजी से बढ़ रही है। मल्टीनेशनल रीटेल चेन यहां आने के लिए काफी समय से लॉबीइंग कर रहे हैं। हालांकि लेफ्ट और बीजेपी सहित दूसरे आलोचकों का कहना है कि विदेशी रीटेल चेन के आने से छोटे दुकानदारों के हितों को चोट पहुंचेगी। (ET Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें