नई दिल्ली । मौजूदा अध्यक्ष के रहते सरकार ने नैफेड को राहत पैकेज देने से हाथ पीछे खींच लिया है। संस्था में 51 फीसदी की हिस्सेदारी के बदले ही सरकार पैकेज दे सकती है। यह प्रस्ताव देश के प्रमुख सहकारी संगठन नैफेड को भेज दिया गया है। प्रस्ताव पर शुक्रवार को बोर्ड की बैठक में विचार- विमर्श भी किया गया, लेकिन कोई पुख्ता फैसला नहीं लिया जा सका है।
नैफेड के अध्यक्ष बिजेंदर सिंह व पूर्व प्रबंध निदेशक आनंद बोस के बीच की कलह से भी हालत और खराब हुई है। अध्यक्ष की जिद के आगे आनंद को हटना पड़ा। बोस के समर्थन में उतरे कृषि व खाद्य राज्यमंत्री केवी. थॉमस नैफेड बोर्ड से सख्त नाराज हैं। सूत्रों की मानें तो बोस को हटाने के निर्णय के समय शरद पवार के सामने बिजेंदर ने भी कुछ दिनों बाद अपना इस्तीफा सौंप देने का वादा किया था, लेकिन अब वह ना-नुकुर कर रहे हैं।
दरअसल नैफेड अध्यक्ष को हटाने का निर्णय सरकार सीधे तौर पर नहीं कर सकती। उसके लिए नैफेड के निदेशक मंडल की सहमति जरूरी होती है, लेकिन बोर्ड में सरकार के सदस्यों की संख्या न के बराबर है। यही वजह है कि अध्यक्ष पर सरकार दबाव बनाने में नाकाम रही है। इसीलिए अब सरकार ने 1200 करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के बदले 51 फीसदी हिस्सेदारी मांगी है। इससे साफ है कि अध्यक्ष वही होगा, जिसे सरकार चाहेगी। हालांकि इससे सबसे अधिक फायदा उन कर्मचारियों को होगा, जिनका पिछले 10 साल से वेतन नहीं बढ़ा है।
मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि सिंह पर प्राइवेट कंपनियों को 4,000 करोड़ रुपये का असुरक्षित कर्ज देने के मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इस मामले में नैफेड को 1,600 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए नैफेड को सरकार से राहत पैकेज की सख्त जरूरत है।
कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी का मानना है कि अगर सरकार ऐसे 'दागी' संस्थानों को राहत देती है, जिसके बोर्ड के ज्यादातर सदस्य अनियमितताओं के आरोपों में घिरे हों तो कई तरह की मुश्किलें पैदा होंगी। उनका कहना है कि ऐसे मामले में संस्था के हित में अध्यक्ष को स्वेच्छा से हट जाना चाहिए। नैफेड में वित्तीय अनियमितताओं की जांच के लिए गठित समितियों ने गैर कारोबारी गठजोड़ पाया, जो नैफेड के नियमों के हिसाब से गलत है। (Jagran)
22 जून 2011
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