अहमदाबाद June 03, 2011
साल 2011-12 में कपास के रकबे में करीब 5 से 10 फीसदी की बढ़ोतरी की संभावना है और इस तरह साल 2010-11 के 111.6 लाख हेक्टेयर के मुकाबले इसमें अच्छी खासी बढ़ोतरी होगी। रकबे में बढ़ोतरी इसलिए हो रही है क्योंकि कपास की ऊंची कीमतों के चलते ज्यादा से ज्यादा किसान कपास का रुख कर रहे हैं।कपास के रकबे में कुल मिलाकर बढ़ोतरी की संभावना इसलिए भी मजबूत हो रही है कि उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा और राजस्थान) में साल 2011-12 में कपास के रकबे मेंं 15-20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इन राज्यों में कपास की बुआई मोटे तौर पर समाप्त हो चुकी है। पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में कपास के रकबे में करीब 2 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है और यह आज के समय में 15 से 15.5 लाख हेक्टेयर के आसपास पहुंच गया है जबकि पिछले साल 13.5 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने कहा - उत्तर भारत में कपास की बुआई का काम करीब-करीब समाप्त हो चुका है और पंजाब में हमने इसके रकबे में तीव्र बढ़ोतरी देखी है। राजस्थान व हरियाणा में भी कपास के रकबे में इजाफा हुआ है। बेहतर रिटर्न के चलते किसानों ने धान व ग्वार की बजाय कपास का रुख किया है। देश के कुल कपास उत्पादन में उत्तर भारत करीब 12-13 फीसदी का योगदान करता है और यहां का कुल उत्पादन करीब 38 से 39 लाख गांठ है।इस बीच, उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि कपास के रकबे में 5 से 10 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है और यह पिछले साल के 111.6 लाख हेक्टेयर से बढ़कर इस साल 150 से 180 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है।कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक बी के मिश्रा ने कहा - हमने इस साल कपास के रकबे में बढ़ोतरी देखी है। हाल में इसकी कीमतों में हुए उतारचढ़ाव के बाद भी किसान इसकी खेती की तरफ आकर्षित हुए हैं क्यों कि पिछले साल उनन्हें भारी रिटर्न मिला था। हालांकि इस बात का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि साल 2011-12 में कपास का वास्तविक रकबा कितना होगा। लेकिन इसके रकबे में संभवत: 5 से 10 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। उन्होंने यह भी बताया कि मार्च के बाद कपास की कीमतों में भारी गिरावट आई है।कपास के शंकर-6 किस्म की कीमतें मार्च में 62,500 रुपये प्रति कैंडी पर थीं, जो अब घटकर 45,000 रुपये रह गई है। वैश्विक बाजार में भी कपास की कीमतें तेजी से गिरी हैं। भारत में कपास का रकबा साल 2009-10 में 103.1 लाख हेक्टेयर था, जो 2010-11 में बढ़कर 111.6 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया था।गुजरात में इस साल कपास का रकबा 28 लाख हेक्टेयर रह सकता है, जबकि पिछले साल 26.3 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी। गुजरात स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन फेडरेशन के प्रबंध निदेशक एन एम शर्मा ने कहा - कपास से मिले रिटर्न से किसान उत्साहित हैं। ऐसे में गुजरात में भी इस सीजन में कपास का रकबा बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि यहां कपास का रकबा बढ़कर 28 से 30 लाख हेक्टेयर पर पहुंच जाएगा।कपास का उत्पादन करने वाले अन्य प्रमुख राज्य आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश हैं। इन इलाकों में कपास की फसल मोटे तौर पर बारिश पर आश्रित होती है। इन इलाकों में कपास की बुआई जून के दूसरे हफ्ते से जोर पकड़ेगी। चूंकि दक्षिण पश्चिम मॉनसून देश के दक्षिणी हिस्सों में दस्तक दे चुका है और इसके धीरे-धीरे आगे बढऩे की संभावना है, लिहाजा किसान साल 2011-12 में कपास की सफल खेती के प्रति आशान्वित हैं। (BS Hindi)
04 जून 2011
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