नई दिल्ली। विश्व बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में चल रही गिरावट से घरेलू बाजार में तिलहन की प्रमुख फसल सरसों एवं सोयाबीन की कीमतों में भारी मंदा आया है। अत: घरेलू बाजार में तिलहन की कीमतों में आई गिरावट को रोकने के लिए उद्योग ने केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों के आयात पर शुल्क को कम से कम 20 फीसदी तक बढ़ाने की मांग की है।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा ने केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखकर मांग की है कि घरेलू बाजार में सस्ते खाद्य तेलों के आयात से तिलहन की कीमतों में भारी गिरावट आई है। उत्पादक मंडियों में जहां सरसों के दाम घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी से नीचे आ गए हैं, वही सोयाबीन की कीमतों में भी भारी गिरावट आई है। विश्व में खाद्य तेलों की कीमतों में आई गिरावट के बाद भी आयात शुल्क कम होने की नीति से तिलहन के किसान नाराज हैं। इसका असर खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता को कम करने के अभियान पर भी पड़ेगा क्योंकि प्रमुख तिलहन उत्पादक राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान तिलहन के बजाए अन्य फसलों की खेती को तरजीह देंगे।
विश्व बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में चल रही गिरावट के कारण घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में लगातार मंदा बना हुआ है, तथा वर्तमान में इनके दाम निचले स्तर पर आ गए हैं। सितंबर 2022 से 22 मार्च 2023 के दौरान आयातित क्रूड सोयाबीन तेल के भाव में 31 फीसदी की गिरावट आई है। इस दौरान सूरजमुखी और पाम तेल की कीमतों में बड़ी गिरावट दर्ज की गई। सोया तेल की कीमतों में आई गिरावट के कारण सोया मील का निर्यात प्रभावित हुआ है क्योंकि विश्व बाजार में इसकी कीमत 20 फीसदी तक गिर गई है। जिस कारण देश से सोया डीओसी के निर्यात पड़ते समाप्त हो गए।
अत: किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योग के हितों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार सभी खाद्य तेलों के आयात पर शुल्क को कम से कम 20 फीसदी तक बढ़ाने पर विचार करें।
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